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डिजिटल हो जाओ। गुलामी दांव पर है तो गुलामगिरि का का होय? हिंदू राष्ट्र मा हिंदुत्व से आजादी कौन मांगे?
पलाश विश्वास
विरासत में गुलामी मिली है हजारोंहजार बरस की। यही गुलामी आखेर पूंजी है भारत के कैशलैस डिजिटल आम नागरिकों की।
हालात लेकिन तेजी से बदलने लगे हैं।
मालिकान ने खुदै गुलामी की पूंजी में पलीता लगा दिया है। पण होइहें वहींच जो राम रचि राखा। गुलामी बदस्तूर जारी है।
जातपांत मजहब का कारोबार और आम जनता के बीच बंटवारा की सरहदें बदस्तूर सही सलामत है।
गुलामगिरि सही सलामत है।
इस गुलामी से छुटकारe किसे चाहिए, आजादी से आम जनता को भारी खौफ है। कहीं सचमुचै आजाद हो गयो तो गुलामगिरि का होगा?
मनुस्मृति विधान के तहत गुलामी की सीढ़ी पकड़कर रोये हैं कि नया साल लाखो बरीस आवै, चाहे जावै जान भली,  गुलामगिरि कबहुं ना जाये। कुलो किस्सा यहींच है। मजहब यही है। सियासत भी यहींच।
बहुजनों में सबसे भारी ओबीसी। देश की आधी आबादी ओबीसी। देश की, सूबों की सत्ता में ओबीसी। ढोर डंगरों की गिनती हुई रहै हैं, ओबीसी की गिनती कबहुं न होई।
मलाईदारों को चुन-चुनकर राबड़ी बांटि रहे। आम ओबीसी किस्मत को रोवै हैं। कहत रहे बवाल धमाल मचाइके पुरजोर। कोटा भी फिक्स कर दियो। बलि। मंडल लागू कर दियो। मंडल ना मिलल। घंटा मिलल। मंडल समरस भयो। ओबीसी बजरंगी भाईजान। महात्मा फूले माता साबित्रीबाई का नाम जाप। अंबेडकर नाम जाप। धर्मदीक्षा भी हुई रहै नमो नमो बुद्धाय। गुलामगिरि की आदत ना छूटै। चादर दागी बा। फिर मिलल उ बंपर लाटरी का करोड़पति ख्वाब। वानरसेना को मिलल भीम ऐप। गुलामगिरि सलामत है।
यूपी जीतने को नोटबंदी फेल। पण ओबीसी कुनबे में मूसल पर्व जारी है।
कभी महाभारत है तो रामायण कभी, कभी कैकयी का किस्सा। टीवी का फोकस वहींच।
जेएनयू के बारह छात्र निलंबित, खबर नइखे। नजीब कहां गइलन, खबर नइखै। जयभीम कामरेड गायब।

रोहित वेमुला के तस्वीरो गायब। पलछिन पलछिन नयका नयका तमाशा। जूतम पैजार हुई रहा, पण थप्पड़वा अभी मारिहें कि तबहुं मारिहें। मारिबे जरुर। कबहुं तो मारबो। टीआरपी आसमान चूमै। फोकस वहींच।
नोटबंदी पर चर्चा उर्चा अब मंकी बातें। ओकर खूंटूी मा बंधा गउमाता रिजर्वबैंकवा।
घर की मुर्गी भारतमाता वंदेमातरम। जब चाहे सर्जिकल स्ट्राइक। माइका लाल होवै जो सिडिशन मुठभेड़ छापे जांच के मुकाबले अंगद बन जाई। जब चाहै तब नियम कायदा कानून बदले देवै। गवर्नर ववर्नर एफएमवा कौन खेती की मूली?कारसेवा जारी बा। राम की सौगंध मंदिर वहींच बनावेक चाहि। जयभीम। गुलामगिरि सलामत।
बेशर्म गुलाम लोग का उखाड़ लीन्हे?
कबंधों का चेहरा नइखै, जान कौन फूकैं?
संसद को बायपास करके सुधार लागू होई रहा।
आधार भी लागू होई गयो सुप्रीम कोर्ट की ऐसी तैसी करके।
सियासत को ऐतराज नाही, जिसको ठेके पर देश है। काहे को सरदर्द?
हम अमेरिका बनै चाहै। ट्रंप ग्लबोल हिंदुत्व का भाग्य विधाता।
वहींच ट्रंपवा आज कहि रहे कंप्यूटर पर कोई भरोसा नइखे। सब हैक होवै रहे। कोई कंप्यूटर सेफ नाही। वे कहि रहे के कूरियर से चिठी भेजेक चाहि। ईमेलवा भी डेंजरस हो गइल। डिजिटल अमेरिका अनसेफ हो गइल। डिजिटल इंडिया शाइनिंग शाइनिंग। रुपै कार्ड से सबसे जियादा फर्जीवाड़े। अबहुं तीन करोड़ किसान के मत्थे रुपै। डिजिटल हो जाओ फिन चाहे थोक खुदकशी कर लो। बाबासाहेब ऐप है। डिजिटल हो जाओ।
सियासतबाज तमाम संसद मा खामोश वेतन भत्ता विदेश यात्रा में मशगूल। भौत खूब रहा कि उ संसद को गोली मारकर हिंदू ह्रदय सम्राट रेल बजट के जइसन बजट का भी काम तमामो कर दियो। पढ़े लिखे टैक्स छूट के अलावा बजट न समझें। टैक्स छूट नाही। पण बाकी बजट दिसंबर मा एडवांस होई गयो।
शर्म अगर सांसदों को होती तो संसद संविधान की रोज-रोज हत्या के बाद इस्तीफा दे रहे होते। शिकन तक ना। फ्री मार्केटवा मा सांसद सभै मस्त मस्त।
ओकर तो बावन इंच मोट सीना है। कांधा मोठा मजबूतै होय। अब बटाटा सस्ता हो कि महंगा हो कांदा, उस कांधे पर देश का बोझ है। जनता गउ ह। अर्थव्यवस्था कोल्ही का बैल। सांसद का है , आप ही बोलो। उसकी लाठी, उसका माडिया। चूंचा किये बिना गुलामगिरि की सोच भइये। जनता बागी हो जाई तो गलामगिरि को बड़का खतरा।
आधार का विरोध कोय ना करै जो डिजिटल आधार का फर्जीवाड़ा होवै। सूअरबाड़ा जिंदाबान। गुलामगिरि जिंदाबान। हिंदू राष्ट्र मा हिंदुतव से आजादी कौन मांगे?
युवराज नयका साल का जश्न मानवै रहै। बाकीर क्षत्रप सिपाहसालार सूबों की जंग मा बिजी होवै। बेशी तो रंगबिरंगे छापों से हैरान परेशान खामोश।
लखनऊ का दंगल नोटबंदी से सबसे बड़का राहत बा। बाकी देश मा अमंगल, यूपी लखनऊ मा मंगल ही मंगल। अमंगल मंगल। कैश भले  ना मिलल इंडिया डिजिटल बा। अंगूठा छाप दियो तो छप्पर फाड़कै सुनहले दिन बरसै। गुलामगिरि सही सलामत बा। फिर गमछा पहिनो के लुंगी पीन्दे, कि नंगा नाचै बीच बाजार, गुलामी सलामत बा।
टीवी शो फिर सास बहू संग्राम है। रियेलिटी शो जब्बर। बिग बास फेल है तो नोटबंदी फेलके जवाब ह ई रियलिटी शो। सबसे बड़ा शो। हजारोंहजार ऐंकर चीखै रहे ब्रेंकिंग न्यूज। बहुजन समाज ब्रेकिंग हो। ओबीसी आपसै मा सर फुटाव्वल मा बिजी।
 दशरथ और राम वनवास तो फिर दशरथै को ही वनवास।  का ट्विस्ट है स्टोरी मा धकाधक। उ निकार दियो। फिन रातोंरात वापल बुला भी लिया। खुदै निकल गये तो फिर निकार दियो।  शकुनी मामा विदेश मा। सौतेली मां कैकई। बहुओं के बीच बाल नोचेंकै दंगल। टीपू और औरंगजेब को बख्शे नहीं ससुरे। गुलामी सलामत बा।
बाबासाबहेब अब भीम ऐप हैं जयभीम माइनस कामरेड।
सत्ता में साझेदारी खातिर, समता नियाय खातिर दलित मुसलमान वोटों पर दांव लगाये बैठे हैं। समरस नजारा है। फिन घड़ी घड़ी नोटों की वर्षा। केसरिया हुईू गयो सारी मोटर साईकिलें  साइकिलें। ट्रको भयो बजरंगी। बुरबकई की हद है। गुलामगिरि।
रामायण महाभारत या मुगलई किस्सा जो भी हो, बहुजनों में जोर मारकाट मची है और यूपी जीतने का रास्ता बजरंगी ब्रिगेड के लिए साफ करने की अंधी बजरंगी वानर दौड़ है कि कहीं यूपी में ससुरा हिंदुत्व का विजय रथ विकास यात्रा  थम गयो तो हिंदुत्व के नर्क से जिनगी को निजात मिलने की कोई सूरत बन गयी तो प्यारी प्यारी गुलामगिरि दांव पर। फिर अंधेरे के कारोबार का होई। सही सलामत रहे गुलामगिरि।
जाहिर है कि बहुजनों को आजादी न भावै। फिलहालओबासी दंगल भौते भावै। उससे ज्यादा भावै गुलामगिरि कि आजादी से बड़ा डर लागे। रोशनी से भी डरै हो।
नयका साल का जश्न बड़जोर रहा। पुरनका बोतलवा मा नयकी शराब परोस दियो वहींच मिनि बजट। वहींच सोशल स्कीम खातिर सरकारी खर्च की संजीवनी।
क्योंकि अर्थव्यवस्था को चूना लगा दियो है। नकदी बिना बाजर ठप बा। विकास दर घटि चली जाये। रुपया धड़ाम। रुपया गायब। छूमंतर। फिर भी बेस्टइवर कारपोरेय वकीलवा दहाड़ रहि हैं कि इंफ्लेशनवा कंट्रोल में है। खेती मानसून की किरपा पर बशर्ते कुछ बोया भी हो। बिजनेस भगवान भरोसे। उद्योगों का बंटाधार। उत्पादन गिरता जाये। बरेली के बाजार मा झूमका गिरल हो डिजिटल हो जाओ। सबको मिल जाई। डाके की सोचो मत। बचा का है जो लूट लिबो। बची गुलामगिरि है। जाको राखे साइयां, खत्म ना होवै। कसर बाकी न रहे, महाजनी सभ्यता में अब डिजिटल अंगूठा छाप हो जाओ।
मेहनकशों के हाथ काट दिये। बजरंगी बनियों की थाली में कर्ज परोस दियो।
बलि सूद घटि गयो रे। कारोबार काम धंधा चौपट। रोजगार कामधंधे चौपट।  नौकरियों की छंटनी। जिनगी चटनी। भुखमरी की नौबत इधर तो उधर मंदी है। इनकम हैइइच नको। जमा पूंजी छिन लियो। बाजार से बेदखली के बाद अबहिं करज बढ़ाने और सूद घटाने का ख्वाबे बेचे बेशर्म सौदागर। गुलामगिरि सलामत चाहे कमामत आ जाये।
सौदागर भी दस दफा सोचे हैं। पुरनका माल नयका कहिकर गाहक फंसाने से पहले दस बार सोचे हैं। ई सौदागर अवतार ह। कल्कि अवतार ह। छप्पन इंच सीना।
सीनियर सिटिजनवा को ब्याज दर पहले सो जो था, वहींच है, मियां बीवी का खाता अलगे करके चूरण बांट दियो।
खाद्य के अधिकार में महिलाओं को पहिले से छह हजार मिलत रहे और शहरी ग्रामीण विकास परियोजनाओं में घर बनाने के लिए छूट पहिले से जारी है।
बैंकवा से ब्याज दरों में कटौती दिवालिया बैंकों के बच निकलने की जुगत है। डिजिटल विजिटल मा टैक्स भी लागू।  कैश लिमिट वही 24 हजार। एटीएम खलास।
इस पर तुर्रा सब्सिडी की गैस का दाम भी बढ़ा दियो है।
पेट्रोल डीजल बिजली भाड़ा किराया फीस सब लगातार बढ़ोतरी पर।
अनाज दाल तेल से लेकर मांस मछली दूध शिक्षा चिकित्सा में जो भुगतान करना पड़ै, उस खातिर ना नोट मिलल, ना पचास दिनों की तपस्या के बाद कालाधन कहीं ससुरा निकलता दीख रहा है।
सजा भुगतने का संकल्प पानी में है। बार बार वायदा से मुकरना कहानी है।
ख्वाबों की फूलझड़ी पुरानी योजनाओं के परवचन में खिलखिलाये दियो।
सियासतबाज बल्लियों उछले हैं। सोना उछला, बाजार उछले हैं।
आम लोग उन सबसे कहीं जियादो उछलो है। केसरिया केसरिया बोलो।
सबसे जियादा ओबीसी बहुजन उछले हैं कि गुलामगिरि सौ टका सही सलामत।
सुनहले दिन आये गरयो रे। नया साल मुबारक हो। बदल दो वंदेमातरम, हिंदुत्व का नया नारा हैःडिजिटल होजाओ। गुलामी दांव पर है तो गुलामगिरि का का होय?

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