तेलंगाना : टीआरएस और कांग्रेस में बंट सकते हैं मुस्लिम वोट

Telangana: Muslim votes can be divided in TRS and Congress

मोहम्मद शफीक

हैदराबाद, 2 दिसम्बर। तेलंगाना में मुस्लिम वोट सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) और विपक्षी कांग्रेसनीत पीपुल्स फ्रंट के बीच बंट सकता है क्योंकि सत्ता के दोनों मुख्य दावेदारों ने अल्पसंख्यक समुदाय को लुभाने के प्रयास तेज कर दिए हैं।

119 विधानसभा क्षेत्रों में खेल बिगाड़ सकते हैं मुस्लिम वोटर

राज्य की राजधानी हैदराबाद और कुछ अन्य जिलों में मुस्लिम वोटर अच्छी संख्या में हैं। वे इस स्थिति में हैं कि सात दिसंबर को विधानसभा चुनावों में 119 विधानसभा क्षेत्रों में से करीब आधी सीटों पर वोटों के गणित को बिगाड़ सकते हैं।

राज्य की 3.51 करोड़ की आबादी में 12 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम समाज की भूमिका टीआरएस और पीपुल्स फ्रंट के बीच सीधी लड़ाई में महत्वपूर्ण होती दिखाई दे रही है। फ्रंट में तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा), मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और तेलंगाना जन समिति (टीजेएस) व उसकी अन्य सहयोगी शामिल हैं।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कुछ सीटों पर तीसरी बड़ी दावेदार है।

हैदराबाद में 10 सीटों पर मुस्लिम मतदाता 35 से 60 फीसदी और राज्य की करीब अन्य 50 सीटों पर 10 से 40 फीसदी के बीच मौजूद है।

एमआईएम ने टीआरएस को समर्थन दिया

मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) ने सिवाए आठ सीटों के सभी सीटों पर टीआरएस को समर्थन दिया हुआ है। इन आठ पर उसके उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। इससे सत्तारूढ़ पार्टी को अपने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ थोड़ी राहत जरूर मिल सकती है।

जमात-ए-इस्लामी ने भी टीआरएस को समर्थन देने की घोषणा की है जबकि जमीअत उलेमा-ए-हिन्द ने कांग्रेस को समर्थन दिया है। विभिन्न मुस्लिम धार्मिक एवं सामाजिक संगठनों के समूह युनाइटेड मुस्लिम फोरम भी टीआरएस को समर्थन के मुद्दे पर बंटा हुआ दिखाई दे रहा है। फोरम को एमआईएम के करीबी के तौर पर देखा जाता है।

टीआरएस का समर्थन करने वाले संगठन दलील दे रहे हैं कि टीआरएस के साढ़े चार साल के शासन में कोई सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ और उसने मुस्लिमों के विकास और कल्याण के लिए कई कदम उठाए हैं। जैसे 250 रिहायशी स्कूलों को खोलना, छात्रों के लिए छात्रवृत्ति और 'शादी मुबारक' योजनाएं जिसके तहत गरीब लड़कियों की शादी के लिए एक लाख रुपये की वित्तीय सहायता दी जाती है।

हालांकि, मुस्लिम समाज का एक वर्ग टीआरएस से नाखुश भी है। उसकी दलील है कि पार्टी ने मुस्लिमों के लिए आरक्षण को चार फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी करने के अपने वादे को पूरा नहीं किया। मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहराया है क्योंकि केंद्र ने राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पर कुछ नहीं किया है।

इस वर्ग को लगता है कि केसीआर चुनाव के बाद भाजपा से हाथ मिला सकते हैं। उन्होंने टीआरएस के नोटबंदी और विभिन्न मुद्दों पर मोदी सरकार को समर्थन करने का हवाला दिया, जिसमें राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के पद का चुनाव भी शामिल है।

हैदराबाद में मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में मौजूद हैं। वे सात विधानसभा सीटों पर 50 फीसदी से ज्यादा हैं, जिन पर भंग विधानसभा में एमआईएम का कब्जा था।

पीपुल्स फ्रंट ने आठ मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है जबकि टीआरएस ने केवल दो उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने अधिकतर मुस्लिम उम्मीदवारों को एमआईएम के कब्जे वाली सीटों पर खड़ा किया है। भाजपा ने भी दो मुस्लिम उम्मीदवारों को यहां खड़ा किया है।

मुस्लिम उम्मीदवारों के बीच प्रमुख एमआईएम नेता अकबरुद्दीन ओवैसी चंद्रायनगुट्टा से लगातार पांचवी बार जीत के लिए चुनाव मैदान जोर लगा रहे हैं। वरिष्ठ कांग्रेस नेता व पूर्व मंत्री मोहम्मद अली शब्बीर कामारेड्डी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं।

टीआरएस के मोहम्मद शकील आमिर निजामाबाद जिले के बोधन से एक बार फिर ताल ठोंक रहे हैं। कांग्रेस के ताहेर बिन हमदान निजामाबाद शहर से चुनाव लड़ रहे हैं।

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