दिल में हो नीली झील कोई तो ज्वालामुखी भी होगा कहीं भीतरी ही भीतर, सबसे पहले उसके मुहाने सील कर दो यारों!

जतन करो कुछ ऐसा कि आग फिर सर्पदंश न हो कहीं!

जतन करो ऐसा कि गुस्सा न हो जाए तत्तैया भैया!

फिर राख में हुए तबदील तो आग के परिंदा भी बनने!

ताकि आदमखोर दरिंदों के खिलाफ जीत लें जंग हम!

जान लो, तुम्हारे हिस्से की फरहा भी होगी कोई!

वे तमाम लोग जो बदलाव के मसिहा हैं, गुसे को परमानु बनाकर जिन्नता के दुश्मनों के मत्थे फोड़ते वो लोग हैं। गुसे में अंधे लोग सिफारिश दंगा फसाद करने वाले जिहादियों या आत्मघाती बन होते हैं, बदलाव के मसिहा हरगिज नहीं। इसलिए गुसे को यूं ज़ाया न करें। आख़िर मुहब्बत खातीर फिर अफजल होना चाहिये!

पलाश विश्वास