पानसरे की शहादत को जाया न जाने देंगे- दिल्ली में श्रद्धांजलि सभा
पानसरे की शहादत को जाया न जाने देंगे- दिल्ली में श्रद्धांजलि सभा
पानसरे की शहादत - ज़िंदगी जिस धुन में जी, मौत से भी पानसरे ने वही काम लिया
नई दिल्ली । महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हाल में 16 फरवरी को अज्ञात हमलावरों की गोलियों का शिकार हुए कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के वरिष्ठ नेता कॉमरेड गोविंद पानसरे की याद में दिल्ली में श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई। आईटीओ स्थित हिंदी भवन में जोशी-अधिकारी इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज़ और ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन की ओर से आयोजित इस स्मृति सभा में महाराष्ट्र सीपीआई के सचिव डॉ. भालचंद्र कानगो, दिल्ली से वरिष्ठ पत्रकार प्रफुल्ल बिडवई, सांप्रदायिकता और फासीवाद के खिलाफ लगातार काम कर रहे मुंबई आईआईटी के पूर्व प्रोफेसर राम पुनियानी सहित न्यू एज अखबार के संपादक शमीम फैजी ने पानसरे को याद किया और वर्तमान राजनीति और चुनौतियों पर अपने विचार साझा किए और पानसरे की शहादत को जाया न जाने देने का संकल्प व्यक्त किया।
इस मौके पर महाराष्ट्र के सीपीआई सचिव डॉ भालचंद्र कानगो ने डॉ कॉमरेड पानसरे को याद करते हुए कहा कि उन्होंने कोई चुनाव नहीं लड़ा था, लेकिन वे जनता में बहुत लोकप्रिय थे और समाज के हर वर्ग का प्यार और समर्थन उन्हें मिला। उन्होंने कहा कि पानसरे समाज के हर वर्ग की समस्या को सुलझाने, समझने के लिए तैयार रहते थे। यह बड़ी बात है कि उनकी हत्या पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस बात को स्वीकार किया कि कामरेड पानसरे की हत्या के पीछे प्रतिक्रियावादी ताकतों सहित पूरी व्यवस्था जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि कॉमरेड पानसरे हमेशा विचारों की लड़ाई लड़ते थे, उन्होंने तकरीबन 21 किताबें लिखीं और उनमें सबसे ज्यादा चर्चित महाराष्ट्र के इतिहास पुरुष छत्रपति शिवाजी पर लिखी किताब हुई। शिवाजी कौन है? नाम से लिखी पुस्तक में उन्होंने शिवाजी के बारे में सांप्रदायिक ताकतों द्वारा फैलाए गए झूठ के सच को सामने लाने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि उनकी इस किताब की तकरीबन डेढ़ लाख से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी है। उन्होंने कॉमरेड पानसरे के साथ अपने कई संस्मरणों को याद करते हुए कहा कि वे अजातशत्रु थे। डॉ. कानगो ने कहा कि पानसरे की मृत्यु से महाराष्ट्र की राजनीति में बिखरे हुए तमाम वामपंथी समूह, दलित व् आदिवासी जुड़े हैं। पानसरे देह से भले अस्सी के हो गए हों लेकिन रचनात्मकता और उत्साह उनका भरपूर युवा था।
कॉमरेड पानसरे की शहादत पर श्रद्धांजलि देते हुए सीपीआई नेता, और मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव विनीत तिवारी ने वरिष्ठ साहित्यकार, लेखक और पत्रकार विष्णु खरे और जोशी इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के प्रेसिडेंट श्री एस. पी. शुक्ला के संदेश पढ़े। एस. पी. शुक्ला ने अपने संदेश में कहा कि पानसरे मजदूर तबके से आते थे और महाराष्ट्र के शाहू जी महाराज और सत्यशोधक आंदोलन से सीखकर कम्युनिस्ट आंदोलन में शामिल हुए थे। लेकिन उन्होंने कभी भी शाहू जी महाराज और सत्यशोधक आंदोलन को भुलाया नहीं। उन्होंने कहा कि पानसरे को इस बात की खुशी थी कि उन्होंने महाराष्ट्र के इतिहास पुरुष छत्रपति शिवाजी महाराज को सांप्रदायिक ताकतों के पास जाने से रोकने का प्रयास किया और उन्हें उनकी असली जनता को सौंपा जो मेहनतकश और गैर सांप्रदायिक है। विष्णु खरे ने अपने संदेश में कहा कि मराठी कवि नामदेव ढसाल की श्रद्धांजलि सभा में पानसरे से हुई दो घंटे की मुलाकात मेरे जीवन पर उनके व्यक्तित्व की अमिट छाप छोड़ गई। उन्होंने कहा कि वे असली योद्धा थे जो आजीवन समतावादी समाज, लोकतांत्रिक मूल्यों और समाजवाद के लिए लड़ते रहे।
डॉ पानसरे को याद करते हुए मुंबई आईआईआईटी के पूर्व प्रोफेसर और सांप्रदायिकता और फासीवादी मुद्दों के खिलाफ लगातार काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता डॉ राम पुनियानी ने कहा कि पानसरे जैसे लीडर अपने लक्ष्य और काम को लेकर बहुत ही समर्पित थे। उन्होंने कहा कि कॉमरेड पानसरे की हत्या के पीछे समाज में फैलता धार्मिक अंधविश्वास और महाराष्ट्र लगातार फैल रहा जातिवाद ही है। उन्होंने कहा कि पानसरे महाराष्ट्र में सांप्रदायिकता के खिलाफ काम कर रहे थे। उन्होंने पुणे में दाभोलकर की हत्या को भी इसी से जोड़ते हुए कहा कि यह दोनों ही अपनी-अपनी तरह से महाराष्ट्र में जागरूकता पैदा कर रहे थे और दोनों की ही हत्याएं तथाकथित प्रगतिशील महाराष्ट्र के लिए चुनौती है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के इतिहास के प्रतीक पुरुष शिवाजी पर पानसरे का कार्य अभूतपूर्व है और जिस तरह से महाराष्ट्र में शिवाजी का सांप्रदायिक उपयोग कर राजनीति को चमकाया गया है उसके खिलाफ पानसरे के शिवाजी एक चुनौती की तरह खड़े होते हैं। उनके इस काम ने मुझे भी चौंका दिया। उन्होंने कहा कि उनकी मृत्यु के बाद शिवाजी पर किया गया कार्य और जनता के बीच पहुंचेगा।पानसरे ने अपने जवान बेटे के न रहने के दुःख को भी एक रचनात्मक दिशा देकर हमें सिखाया कि व्यक्तिगत दुःख-सुख से समाज के लिए किया जाने वाला काम नहीं रुकना चाहिए। प्रो पुनियानी ने पानसरे के साथ अपने संस्मरणों को साझा करते हुए उन्हें एक समर्पित नेता और कभी न टूटने वाला इंसान बताया।
वरिष्ठ पत्रकार प्रफुल्ल बिडवई ने कहा कि रामकृष्ण बजाज ने ही बाल ठाकरे को ये विचार दिया था कि शिवाजी की संहारक और शिव की सृष्टिकर्ता की छबि का शिवसेना इस्तेमाल करे। इससे महाराष्ट्र की राजनीति को दक्षिण पंथी मोड़ देने की कार्रवाई हुई। उन्होंने महाराष्ट्र में मुंबई के बड़े मज़दूर नेता कॉमरेड कृष्णा देसाई की 1970 में हुई हत्या का हवाला देते हुए कहा कि उस समय भी उनकी हत्या के विरोध में लाखों लोग मुंबई और दिल्ली में इकट्ठे हुए थे, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टियों ने उनसे अपने गुस्से को नियंत्रित करने के लिए कहा था। उन्होंने कहा कि उस वक़्त जनाक्रोश को दिशा देने में वामपार्टियां असफल रही थीं और शिवसेना ने सांप्रदायिक नीतियों को फ़ैलाने की जगह बनाई। पानसरे भी कृष्णा देसाई की तरह अनेक वर्गों के सर्वमान्य नेता थे। उन्होंने कहा कि जब वे अस्सी वर्ष के हुए तो बहुत सी ट्रेड यूनियनों और महाराष्ट्र के अनेक लोगों ने उनका अभिनन्दन करने के लिए धन संग्रह किया। जब उन्हें बताया गया तो उन्होंने कहा कि इस पैसे से ऐसे सौ लोगों पर केंद्रित पुस्तकें प्रकाशित की जाएं जो प्रसिद्धि की आकांक्षा किये बगैर चुपचाप समाज के हक़ में, वंचित लोगों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं।
न्यू एज अखबार के संपादक और गोविन्द पानसरे के पुराने साथी शमीम फ़ैज़ी ने कहा कि महाराष्ट्र में एक और साथी की हत्या चौंकाने वाली है। उन्होंने कहा कि अभी तक दाभोलकर के हत्यारे पकड़े नहीं गए हैं, लेकिन पानसरे के साथ न्याय में हम देरी नहीं होने देंगे। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार सांप्रदायिक बयानबाजियों से रोजी, रोटी और सोशल इकॉनॉमिक मुद्दों से जनता का ध्यान हटाना चाहती है इसलिए जब अदानी को स्टेट बैंक से हजारों करोड़ का लोन देने की बात आती है तो साक्षी महाराज गोड्से पर बयान देते हैं, जब भू अधिग्रहण पर बात उठती है तो मोहन भागवत मदर टेरेसा पर बयान देते हैं। उन्होंने कहा कि कृष्णा देसाई की मौत के वक़्त जो चूक हुई वो अब नहीं होगी और जनता के गुस्से को जाया नहीं जाने दिया जाएगा। हम सभी लोकतांत्रिक, प्रगतिशील और सामाजिक संगठनों को इसके खिलाफ एकत्रित करेंगे और एक नई लड़ाई का आगाज करेंगे।
कार्यक्रम के आखिर में दिल्ली इप्टा से मनीष श्रीवास्तव व अन्य सदस्यों ने "ऐ लाल फरेरे तेरी कसम" तथा "हम सब इस जहां में ज़िंदगी के गीत गाएँ" गीत गाकर अपना सलाम पेश किया। कार्यक्रम में वेनेज़ुएला के दूतावास से प्रथम सचिव रिचर्ड्स स्पिनोज़ा भी अपनी श्रद्धांजलि प्रकट करने आये थे। प्रो विश्वनाथ त्रिपाठी, इतिहासकार सुमित सरकार, तनिका सरकार, प्रो अर्जुन देव, प्रो गार्गी चक्रवर्ती, प्रो. कृष्णा मजूमदार, प्रो. सुबोध मालाकार, प्रो. दिनेश अबरोल, प्रो. मधु प्रसाद, साहित्यकार पंकज बिष्ट, पत्रकार रामशरण जोशी, तीसरी दुनिया पत्रिका के संपादक आनंदस्वरूप वर्मा, पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव, बीबीसी के पत्रकार इकबाल अहमद, महिला फेडरेशन की राष्ट्रीय महासचिव एनी राजा, अर्थशास्त्री जया मेहता, शांता वेंकटरमण, अनहद की शबनम हाशमी, लेखक सुभाष गाताडे, प्रो अचिन विनायक, महिला फेडरेशन की वरिष्ठ नेत्री प्रमिला लुम्बा, लेखिका नूर जहीर, दिल्ली भाकपा के सचिव कॉम. धीरेन्द्र शर्मा और प्रो दिनेश वार्ष्णेय, अमीक़ जामेई, पिलानी से आये विमल भानोट, उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ शिक्षक संघ नेता हरिमंदिर पांडे और स्टूडेट फैडरेशन के राष्ट्रीय महासचिव विश्वजीत सहित अनेक वामपंथी संगठनों के प्रतिनिधि व अन्य लोग उपस्थित थे, जिन्होंने कामरेड पानसरे को श्रद्धांजलि दी। कार्यक्रम का संचालन जोशी-अधिकारी इंस्टिट्यूट के निदेशक प्रो अजय पटनायक ने किया।
विनीत और सोनू


