Politics changed, Didi-Modi alliance got 55 percent votes

दीदी ने भाजपा को राष्ट्रहित में सोनार बांग्ला गढ़ने के लिए समर्थन का कर दिया ऐलान

विजयन बनेंगे केरल के मुख्यमंत्री।

जहां मुसलमानों ने दीदी के खिलाफ वोट डाले जैसे पूरे मुर्शिदाबाद जिले में, वहां दीदी का सूपड़ा खाली ही निकला।

जाहिर है कि उग्रतम हिंदुत्व और मुसलमानों के थोक असुरक्षाबोध का रसायन वाम कांग्रेस बेमेल विवाह पर भारी पड़ा है।

खड़गपुर सदर से 1969 से लगातार दस बार विधायक रहे चाचा ज्ञानसिंह सोहन पाल भाजपा के संघी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष से चुनाव हार गये हैं। खड़गपुर के मतदाताओं में कुल पांच हजार भी सिख नहीं हैं तो पहले उनकी लगातार जीत का मतलब समझ लीजिये और फिर संघी सिपाहसालार से उनकी हार का मतलब।

पूरे बंगाल में वे चाचाजी हैं और अब केसरिया बंगाल ने अपने चाचा को भी नहीं बख्शा तो समझ लीजिये कितना भारी बदलाव है और यह बदलाव किस तरह का बदलाव है।

गौरतलब है कि हाल में यादवपुर विश्विद्यालय की बागी आजाद छात्राओं के खिलाफ दिलीप घोष के सुभाषित खूब चरचे में रहे हैं और इसी से समझा जा सकता है कि बंगाल में राजनीति की दशा दिशा अब क्या है। मालदा के वैष्णवघाट और अलीपुर द्वार के मदारी हाट से भी वोटबाक्स में कमल ही कमल खिले हैं।

चाचा ने पिछला चुनाव भी बत्तीस हजार वोटों से जीता था और 92 साल के हो जाने की वजह से इसबार लड़ने के मूड में कतई नहीं थे। जिस जनता की जिद पर वे फिर मैदान में डट गये,उसी जनता का केसरिया कायाकल्प हो गया और बूढ़ापे में चाचा हार गये। चाचा बंगाल विधानसभा के स्पीकर और मंत्री भी रह चुके हैं।

चुनाव जीतते ही प्रचार के दौरान दीदी और उनकी सरकार पर बिजली गिराने वाले केसरिया बादल मानसून बनकर बरसने लगे तो दक्षिण के बजाय पश्चिम की सारी खिड़कियां खोलकर दीदी ने भाजपा के साथ गठबंधन का ऐलान कर दिया कि राष्ट्रहित में,बंगाल के हित में सोनाल बांग्ला गढ़ने के लिए वे भाजपा के साथ ही हैं। बहरहाल बंगाल में ममता बनर्जी को तृणमूल कांग्रेस विधायक दल का नेता चुना गया है. ममता वहां से सीधे गवर्नर से मिलने पहुंची और सरकार बनाने का दावा पेश किया है।

दीदी की भारी जीत एकदम प्रतिकूल परिस्थितियों में हुई। शारदा से नारदा तक के सफर में उनकी साख खत्म सी हो गयी थी, लेकिन अंतिम वक्त पर वाम कांग्रेस का गठजोड़ बना तो वाम समर्थकों और कांग्रेस समर्थकों के वोट जहां उनके उम्मीदवार खड़े नहीं हुए, एक दूसरे को हस्तांतरित हुए नहीं और विपक्ष ने सत्ता विरोधी हवा बनाने में कोई कामयाबी हासिल नहीं की।

विपक्ष में नेतृत्व का अभाव रहा तो दीदी हर विधानसभा क्षेत्र में जाकर कहती रही, प्रत्याशी को भूल जाओ। मैं खड़ी हूं। मुझे वोट दो। खुलकर गलतियों के लिए वे माफी भी मांगती रही। हर सीट में दीदी अकेली लड़ रही थी और विपक्ष हवाबाजी को जीत मान चुका था। मैदान में उतरकर दीदी को जवाब देने वाला नेतृत्व कहीं न था।

तृणमूल का फूल बंगाल के चप्पे-चप्पे पर इस तरह खिलेगा, ममता दी के लिए वोटों की ऐसी रिमझिम बारिश होगी ये तो शायद तृणमूल पार्टी के नेताओं ने भी नहीं सोचा होगा। आखिर नारदा-शारदा के नारों का शोर इस तरह कैसे गुम हो गया?

दीदी-मोदी गठबंधन को 55 फीसद वोट मिले

अब इसका आशय कुछ इस तरह समझिये कि बंगाल में सत्तादल तृणमूल कांग्रेस को 45 फीसद वोट पड़े तो भाजपा को दस फीसद से ज्यादा वोट मिल गये। यानी दीदी-मोदी गठबंधन को 55 फीसद वोट मिले। भाजपा को पिछले लोक सभा चुनाव में सत्रह फीसद वोट मिले थे लेकिन वही 2011 के विधानसभा चुनाव में बंगाल में सिर्फ चार फीसद भाजपाई वोट थे।

गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने सत्ताविरोधी लहर को धता बताते हुए तथा वाम-कांग्रेस के विपक्षी गठबंधन को काफी पीछे छोड़कर विधानसभा चुनाव में दो तिहाई बहुमत के जादुई आंकड़े को पार कर लिया और 294 सदस्यीय विधानसभा में ममता बनर्जी की पार्टी ने 211 सीटें हासिल कर ली।

गौरतलब है कि मतदान से काफी पहले कांग्रेस वाम गठबंधन के आकार लेने से पहले दीदी ने सिदिकुल्ला चौधरी और जमायत की अगुवाई में तमाम मुसलमान संगठनों की बाड़ेबंदी कर दी थी।

जहां मुसलमानों ने दीदी के खिलाफ वोट डाले जैसे पूरे मुर्शिदाबाद जिले में, वहां दीदी का सूपड़ा खाली ही निकला।

जाहिर है कि उग्रतम हिंदुत्व और मुसलमानों के थोक असुरक्षाबोध का रसायन वाम कांग्रेस बेमेल विवाह पर भारी पड़ा है।

हालांकि पब्लिक में दीदी का भाजपा विरोधी जेहादी तेवर अभी बरकरार है। प्रचंड बहुमत के लिए ममता बनर्जी ने जनता का धन्यवाद किया, उन्होंने कहा कि दिल्ली से उन्हें भरपूर हराने की कोशिश की गई। लेकिन जनता का विश्वास उन पर था और उसका फल मिला है।

वहीं माकपा नेता सीताराम येचुरी ने पश्चिम बंगाल में भाजपा की जीत के लिए कांग्रेस और टीएमसी को जिम्मेदार ठहराया।

टीएमसी की जीत पक्की होने पर सीएम ममता बनर्जी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। उन्होंने कहा कि यह जनता की जीत है। उन पर जो आरोप लगे उन्हें जनता ने खारिज कर दिया। ममता ने कहा, 'मैंने अकेले लड़कर सबको हराया है। विरोधियों ने मुझे बदनाम करने की कोशिश की। '
दूसरी तरफ ,ममता बनर्जी ने माकपा और कांग्रेस के गठजोड़ के फैसले को एक बड़ी भूल करार देते हुए कहा है कि लोगों ने तृणमूल कांग्रेस को जिता कर विपक्ष के कुप्रचार अभियान का करार जवाब दे दिया है। उन्होंने इस अप्रत्याशित जीत के लिए आम लोगों के प्रति आभार जताते हुए कहा है कि लोगों ने विपक्षी दलों के झूठे आरोपों को नकार दिया है। ममता ने एक सवाल पर कहा कि वे प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल नहीं हैं। उनको राज्य के लोगों ने जिताया है और वे यहां रह कर बंगाल के विकास के लिए में काम करना चाहती हैं।

वहीं, बीबीसी के मुताबिक केरल में सीपीएम की बैठक में पिनराई विजयन को नया मुख्यमंत्री बनाने का फ़ैसला लिया गया है। वो पार्टी की पोलित ब्यूरो के सदस्य भी हैं। यह फ़ैसला सर्वसम्मति से हुआ है, लेकिन मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक़, पूर्व मुख्यमंत्री 92 वर्षीय वीएस अच्युतानंदन इससे खुश नहीं हैं और वो बैठक को बीच में ही छोड़कर निकल गए। सीपीएम की बैठक में पार्टी महासचिव सीताराम येचुरी के अलावा, पार्टी पोलित ब्यूरो के सदस्य भी मौजूद थे। रिपोर्ट के मुताबिक़ पार्टी ने चुनावों में एलडीएफ़ की जीत होने पर अच्युतानंदन को मुख्यमंत्री बनाने का आश्वासन दिया था।

केरल की राजनीति में भी संघ परिवार की घुसपैठ हो गयी।

केरल का यह चुनाव खास इसलिए भी था कि लोगों की नजरें लोकसभा चुनाव में जीत के बाद दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनाव में हार देख चुकी बीजेपी पर टिकी थी जिसने इस बार राज्य में अपना खाता खोलने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। यही नहीं, 2014 लोकसभा चुनाव में करारी हार के चलते केरल में जहां सत्ता बचाए रखना कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न था, वहीं एलडीएफ के लिए भी यह प्रतिष्ठा की लड़ाई थी क्योंकि मार्क्सवादी मोर्चे की अब केवल त्रिपुरा में ही सरकार रह गई है, के लिए भी केरल विधानसभा में खाता खोलना काफी अहम माना जा रहा है।

बहरहाल केरल में वाम की वापसी तो हो गयी, लेकिन केसरिया संक्रमण से केरल भी नहीं बचा। हालांकि वहां बंगाल की तरह तीन नहीं, भाजपा को एक ही सीट मिली है।