बीडीएस कन्वेंशन में इज़रायल के पूर्ण बहिष्कार का आह्वान
बीडीएस कन्वेंशन में इज़रायल के पूर्ण बहिष्कार का आह्वान
नई दिल्ली। फ़िलिस्तीन के विरुद्ध इज़रायल की नस्लभेदी नीतियों और लगातार जारी जनसंहारी मुहिम के विरोध में 6 मार्च 2016 को नई दिल्ली के गांधी शान्ति प्रतिष्ठान में आयोजित 'बीडीएस इंडिया कन्वेंशन' में इज़रायल के पूर्ण बहिष्कार का आह्वान किया गया। 'फ़िलिस्तीन के साथ एकजुट भारतीय जन' की ओर से आयोजित बीडीएस यानी बहिष्कार, विनिवेश, प्रतिबंध कन्वेंशन में देश के विभिन्न भागों से आये बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं ने सर्वसम्मति से तीन प्रस्ताव पारित किये जिनमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रस्तावित इज़रायल यात्रा रद्द करने और इज़रायल के साथ सभी समझौते-सहकार निरस्त करने, इज़रायली कंपनियों और उत्पादों का बहिष्कार करने तथा इज़रायल का अकादमिक एवं सांस्कृतिक बहिष्कार करने की अपील की गई। इस सवाल को लेकर आम जनता में व्यापक अभियान चलाने का भी निर्णय लिया गया।
कन्वेंशन के दौरान यह आम राय उभरी कि ज़ायनवाद के विरुद्ध प्रचार उनके वैचारिक 'पार्टनर' हिन्दुत्ववादी फासिस्टों का भी पर्दाफ़ाश किये बिना प्रभावी ढंग से नहीं चलाया जा सकता। आम लोगों के बीच जाकर उन्हें यह समझाना होगा कि गाज़ा के हत्यारों और गुजरात के हत्यारों की बढ़ती नज़दीकी का राज़ यही है कि दोनों मानवता के दुश्मन हैं।
आनन्द सिंह द्वारा 'फ़िलिस्तीन के साथ एकजुट भारतीय जन' की ओर से प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया कि फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ ज़ायनवादी मुहिम बदस्तूर जारी है। गाज़ा अभी भी खुली जेल बना हुआ है और वेस्ट बैंक में गै़र-कानूनी बस्तियों का बसाया जाना जारी है। इज़रायली सैनिक और 'सेटलर' इज़रायली सत्ता के नग्न समर्थन से इतने बेख़ौफ़ हैं कि आम फ़िलिस्तीनियों पर ही नहीं, बल्कि वहाँ जाने वाले अन्तरराष्ट्रीय कार्यकर्ताओं, जाँच दलों, पत्रकारों आदि पर भी जानलेवा हमले कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अपने से सैकड़ों गुना ताक़तवर दुश्मन का मुक़ाबला करने के लिए फ़िलिस्तीनियों ने अपने प्रतिरोध का वैश्वीकरण करने की जिन रणनीतियों को अपनाया है उनमें बीडीएस का अहम स्थान है। वर्ष 2005 में फ़िलिस्तीन के कई सिविल सोसाइटी संगठनों ने पिछली सदी में दक्षिण अफ्रीका की नस्लभेदी सत्ता के बहिष्कार की विश्वव्यापी मुहिम की सफलता से प्रेरणा लेते हुए दुनिया भर के तमाम इंसाफ़पसन्द और संवेदनशील नागरिकों से अपील की थी कि वे इज़रायल का बहिष्कार करें, जिन अन्तर्राष्ट्रीय कंपनियों ने इज़रायल में निवेश किया है वे अपने निवेश वापस लें, एवं इज़रायल पर प्रतिबन्ध लगाए जाएँ ताकि उस पर अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन करने के लिए दबाव बनाया जा सके। बीडीएस का असर सीधे तौर पर इज़रायल की अर्थव्यवस्था पर हो रहा है और ज़ायनवादी बौखलाकर अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन व फ्रांस जैसे मुल्कों में इज़रायल के बहिष्कार की मुहिम को आपराधिक और ग़ैर-कानूनी बनाने के लिए उन मुल्कों की सरकारों पर दबाव डाल रहे हैं। वेनेजुएला एवं बोलिविया जैसे देश एवं कई प्रख्यात बुद्धिजीवी इज़रायली हुकूमत को ‘एपारथाइड’ या नस्लभेदी घोषित कर चुके हैं। बोलिविया ने तो इज़रायल को आतंकवादी राष्ट्र तक घोषित कर दिया है। रक्षा उद्योग इज़रायली अर्थव्यवस्था का आधार स्तंभ है और भारत इज़रायली हथियारों का सबसे बड़ा ख़रीदार बन गया है। हमें इस बात का विरोध करना होगा कि हमारे टैक्सों के पैसे फ़िलिस्तीनी बच्चों का ख़ून बहाने के लिए इस्तेमाल किये जायें।
वरिष्ठ पत्रकार सुकुमार मुरलीधरन ने कहा कि भारत हमेशा से फ़िलिस्तीन की मुक्ति का समर्थक रहा है लेकिन हाल के वर्षों में यह नीति बदल गई है। पिछले वर्ष पहली बार भारत के राष्ट्रपति ने इज़रायल की यात्रा की हालांकि उनकी यह यात्रा सुखद नहीं रही क्योंकि उन्हीं दिनों 'तीसरे इन्तिफ़ादा' की शुरुआत हो गई थी। दूसरे, भारत सरकार ने सन्तुलन बैठाने की कोशिश में फ़िलिस्तीन के लिए जो सहायता सामग्री भिजवायी थी उसे भी इज़रायल ने ज़ब्त कर लिया था। इस बीच इज़रायल के साथ भारत ने अरबों डालर के रक्षा सौदे किये हैं। उन्होंने कहा कि नरेन्द्र मोदी शायद विधानसभा चुनावों के बाद के मई में इज़रायल जाने की योजना बना रहे हैं। हमें अभी से इस यात्रा को रद्द करने का दबाव बनाना चाहिए। उन्होंने पश्चिम एशिया में साम्राज्यवादी साज़िशों का विस्तार से ब्यौरा देते हुए बताया कि इज़रायल फ़िलिस्तीनियों को पूरी तरह ख़त्म करके उस पूरे इलाके पर कब्ज़ा करना चाहता है। फ़िलिस्तीनी सम्प्रभुता के प्रतीकों को इज़रायल एक-एक करके नष्ट कर रहा है लेकिन फ़िलिस्तीनी क़ौम की जुझारू स्पिरिट को वह कभी नष्ट नहीं कर सकेगा। आज गाज़ा को 20 लाख लोगों की जेल में तब्दील कर दिया गया है लेकिन यह स्थिति चलती नहीं रह सकती। बीडीएस आन्दोलन ने इज़रायल को काफ़ी चिन्ता में डाल दिया है।
'द संडे इंडियन' के असिस्टेंट एडिटर और वॉरसा युनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंटरनेशनल रिलेशन्स में विज़िटिंग फैकल्टी सौरभ कुमार शाही ने कहा कि इंटरनेट के कारण पश्चिमी देशों के लोगों को फ़िलिस्तीन के हालात और वहाँ इज़रायल की बर्बरताओं के बारे में पता चलने के साथ ही पूरे यूरोप में फ़िलिस्तीन के पक्ष में भावनाओं का ज़बर्दस्त उभार हुआ है और इसीलिए वहाँ बीडीएस आन्दोलन का सबसे ज़्यादा असर है। अमेरिका में भी अब यह आन्दोलन गति पकड़ रहा है। अकादमिक दायरों में ही नहीं बल्कि ट्रेड यूनियनों, विद्यार्थियों और आम लोगों के बीच भी फ़िलिस्तीन की मुक्ति का समर्थन बढ़ रहा है। इसीलिए अब इज़रायल ने भारत और चीन पर ज़्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि भारत में इस आन्दोलन को आगे बढ़ाना एक बड़ी चुनौती है क्योंकि हिन्दुत्ववादी राजनीति ने मुस्लिम विरोधी भावनाओं को भुनाने के लिए इस मुद्दे का इस्तेमाल किया है। समाज में बढ़ी मुसलमान विरोधी भावनाओं के कारण बहुत से लोग अन्दर-अन्दर सोचते हैं कि जैसा इज़रायली वहाँ पर मुसलमानों के साथ कर रहे हैं, वैसा ही हमें यहाँ भी करना चाहिए। सौरभ ने कहा कि हमें बीडीएस को लागू कराने के लिए भावनात्मक रूप से नहीं बल्कि व्यावहारिक रूप में सोचना चाहिए। हम एक साथ सारी इज़रायल-पोषक कम्पनियों को निशाना नहीं बना सकते। हमें पहले एचपी और ग्रुप4 जैसी कुछ कम्पनियों को चुनकर लोगों को समझाना चाहिए कि जो फ़िलिस्तीनियों के लिए ख़राब है वह आपके लिए भी क्यों ख़राब है। दूसरे हमें भाजपा और कांग्रेस को छोड़ वाम और क्षेत्रीय पार्टियों पर इज़रायल से रिश्ते तोड़ने के लिए दबाव बनाना चाहिए। हमें यह समझना होगा कि आज 'ग्लोबल नैरेटिव' फ़िलिस्तीन के पक्ष में बदल रहा है और इस शानदार मुक्ति संघर्ष के पक्ष में अपने प्रयासों को सुव्यवस्थित ढंग से आगे बढ़ाना होगा।
लेखिका पेगी मोहन ने कहा कि यहूदी धर्म और ज़ायनवाद में वही फर्क है जो हिंदू धर्म और हिन्दुत्व की राजनीति में है और इसीलिए इन दोनों घोर दक्षिणपंथी ताकतों के बीच आपसी एकता भी है। जिस तरह यहां हिंदुत्ववादी राजनीति युवा लोगों को अंधराष्ट्रवाद के नाम पर उकसाती है उसी तरह इज़रायली ज़ायनवादी भी फ़िलिस्तीन के विरुद्ध अपनी युवा आबादी की भावनाएं भड़काकर उनका इस्तेमाल करते हैं। मोदी सरकार इज़रायल से जनता को दबाने और नियंत्रित करने सलाह ले रही है। वे कश्मीर में उन्हीं तकनीकों को आज़माना चाहते हैं जो इज़रायल गाज़ा में लागू करता रहा है। बीडीएस आंदोलन ने बहुत से इज़रायली युवाओं को भी यह कहने का मौका दिया है कि मेरे नाम पर यह सब अब नही चलेगा। उन्होंने कहा कि अक्सर एक बड़ी ताक़त से होने वाली जनता की लड़ाई के नजीजे तुरन्त दिखायी नहीं पड़ते और ऐसा लगता है कि कुछ हो ही नहीं रहा है। लेकिन फिर कहीं से एक ईंट गिरती है फिर दूसरी ईंट, फिर कोई दरार पड़ती है और फिर एक दिन पूरा शीराज़ा बिखर जाता है। इसलिए हमें लगातार चोट करते रहना होगा।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अरबी एवं अफ्रीकी अध्ययन केन्द्र के प्रो. मोहम्मद अजमल ने फ़िलिस्तीन को एक वैश्विक सवाल बताते हुए कहा कि यह मुसलमानों का मसला नहीं बल्कि इंसाफ़ की लड़ाई है। इज़रायल लगातार फ़िलिस्तीनियों की ज़मीनें हड़पता रहा है और संयुक्त राष्ट्र के तमाम प्रस्तावों को मानने से इंकार करता रहा है। गाज़ा पर हमलों में मरने वालों में मासूम बच्चों, बुजु़र्गों और औरतों की तादाद ज़्यादा रही है।
वरिष्ठ पत्रकार और जामिया विश्वविद्यालय के पश्चिम एशिया अध्ययन केंद्र के पूर्व अध्यापक क़मर आग़ा ने इस मुहिम को छोटे शहरों-कस्बों तक ले जाने और सांस्कृतिक माध्यमों से इज़रायल की हरकतों के बारे में लोगों को जागरूक करने पर बल दिया। उन्होंने फ़िलिस्तीन को नेस्तनाबूद करने पर आमादा इज़रायल के इरादों और उस पूरे क्षेत्र में साम्राज्यवादी साज़िशों के बारे में विस्तार से बताया।
मुंबई से आये फ़िलिस्तीन सॉलिडैरिटी कमिटी के फ़िरोज़ मिठीबोरवाला ने इज़रायल के बहिष्कार आंदोलन को तेज़ करने की बात करते हुए कहा कि हमें हिंदुत्ववादी कट्टरपंथियों के साथ ही इस्लामी कट्टरपंथियों का भी विरोध करना होगा।
कन्वेंशन में पारित तीन प्रस्तावों में प्रधानमंत्री की इज़रायल यात्रा रद्द करने और इज़रायल के साथ सभी समझौते-सहकार निरस्त करने, इज़रायली कंपनियों और उत्पादों का बहिष्कार करने तथा इज़रायल का अकादमिक एवं सांस्कृतिक बहिष्कार करने की अपील की गई। इस सवाल को लेकर आम जनता में व्यापक अभियान चलाने का भी निर्णय लिया गया।
कन्वेंशन में फ़िलिस्तीनी छात्रा दीना हिज्जो, जामिया की छात्रा नादिया, पत्रकार बोधिसत्व मैती, जेएनयू की शोधछात्रा लता, नौजवान भारत सभा के शिवम अनिकेत और भारत में रह रहे फ़िलिस्तीनी नागरिक नासिर बरकत ने भी अपनी बात रखी। कन्वेंशन में वरिष्ठ पत्रकार रामशरण जोशी, लखनऊ से आये प्रो. रमेश दीक्षित, रिहाई मंच, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष मोहम्मद शोएब, कवयित्री कात्यायनी, पत्रकार वर्गीस कोशी, बिहार के विधायक डा. शकील अहमद, युवा संवाद के राकेश रफ़ीक, लेखिका साज़ीना राहत, शुभदा चौधरी, ए. बिस्वास, गौहर इक़बाल, निधीर चित्तूर, डा. सुभाष गौतम, रंजना बिष्ट, कल्पना शास्त्री, साहित्य विजय, अमन सिंह, मनोहर प्रसाद सहित बड़ी संख्या में बुद्धिजीवियों, छात्रों और कार्यकर्ताओं ने हिस्सेदारी की।
कार्यक्रम का संचालन सत्यम ने किया तथा कविता कृष्णपल्लवी ने आयोजकों की ओर से आरंभिक वक्तव्य रखा। रेज़ोनेंस की ओर से तपीश मैंदोला ने फ़िलिस्तीन के संघर्ष के समर्थन में कुछ गीत प्रस्तुत किये और कात्यायनी ने अपनी कविता 'गाज़ा-2015' का पाठ किया।


