विद्या भूषण रावत

योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद से दिल्ली के मीडिया का पूरा ध्यान उत्तर प्रदेश की और आ गया है। मोदी-मोदी कहने वाला मीडिया अब जोगी-जोगी कर रहा है। दोनों में बहुत समानताएं दिखाई दे रही हैं, जैसे मोदी जी ने बचपन में मगरमच्छ पकड़ा था, वैसे ही योगी जी ने भी शेरों को दूध पिलाया है। वैसे लखनऊ के चिड़ियाघर से खबर ये है कि जंगल के राजा को अब चिकन खिलाया जा रहा है। उसकी हालात भी दयनीय हो गयी है, क्योंकि संतों का क्या कहे, वो तो शेरो से भी शाकाहारी बनने की उम्मीद कर रहे हैं।

योगी जी ने शपथ ग्रहण के बाद से अभी तक बिना कैबिनेट की मीटिंग बुलाये लगभग 50 बड़े फैसले लिए हैं जिसमें 'अवैध' बूचड़खाने बंद करवाना, कैलाश मानसरोवर के लिए सब्सिडी की सीमा पचास हज़ार से बढाकर एक लाख रुपये करना, सचिवालय में पान मसाला, खैनी बंद, सरकारी कार्यालयों में बायोमैट्रिक लगवाना, उत्तर प्रदेश की सड़कों को गड्ढा मुक्त बनवाना, नवरात्र और अन्य हिन्दू धर्म के आयोजनो में सम्पूर्ण प्रदेश में 24 घंटे विद्युत् सप्लाई, एंटी रोमियो दस्ते की स्थापना, भ्रष्टाचार के विरुद्ध सख्ती, प्रशासन में चुस्ती और लड़कियों के विवाह के लिए आर्थिक अनुदान। वैसे उनके एक मंत्री मोहसिन रजा ने बड़े मुसलमानो से हज सब्सिडी का इस्तेमाल न करने की बात कही है।

उत्तर प्रदेश एक विशाल प्रदेश है जो अपने आप में यदि एक देश होता तो शायद दुनिया के पांच देशों में गिना जाता। लगभग 20 करोड़ के प्रदेश की खासियत यहाँ की जातीय, धार्मिक और भौगोलिक विविधता है। प्रदेश में अधिकांश आबादी ग्रामीण इलाको में रहती है और असंगठित क्षेत्र में काम करती है।

अगर पिछले 70 वर्षों में लोगों ने बिना सरकार के सहारे रहे अपनी जिंदगी का गुजर बसर किया है तो ये इस असंगठित क्षेत्र की बदौलत हुआ है, जिस पर आज पूंजीपतियों का हमला है जो क्वालिटी के नाम पर पूरे क्षेत्र पर अपना कब्ज़ा जमाना चाहता है।

रेहड़ी वाले, ठेले वाले, खोमचे वाले, सब्जी, फल, दूध, मीट, साइकिल रिपेयर, मोटर, स्कूटर रिपेयर और मेंटीनेन्स इत्यादि काम करने वाले अधिकांश लोग हाशिए के समाज के लोग हैं। गाँव में भूमिहीन और जातीय पूर्वाग्रहों का शिकार ये लोग शहर की ओर रोजगार की तलाश में आते हैं। ऐसा नहीं है कि इन सड़क किनारे बैठने वालो में कोई क्वालिटी नहीं होती। मार्केट प्राइस से बहुत सस्ता और अच्छी क्वालिटी यहाँ मिलती है। दुनिया भर से आने वाले टूरिस्ट भारत के स्ट्रीट फ़ूड को बहुत सराहते हैं।

लखनऊ शहर के टुंडे के कवाब दुनिया में मशहूर हैं और जितने लोगों ने खाये बस तारीफ़ ही करते रह गए, लेकिन आज वो सूना पड़ा है क्योंकि बीफ नहीं है। पहले गाय को लेकर संवेदना थी और उसको लोगों ने स्वीकार भी कर लिया, लेकिन अब बाकी मीट खाने पर भी सवाल खड़े किये जा रहे हैं जो बेहद चिंताजनक और खतरनाक है। क्योंकि गौ माता अभियान से किसान का जितना नुक्सान हुआ है उतना किसी का नहीं। वो गाय और भैंस दोनों पालता है लेकिन शहरो को छोड़ दें तो आज व्यवस्था ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि जानवर पालना घाटे का सौदा है। गाय भैंस के दूध से उतना पैसा नहीं मिलता जितना उसकी देखभाल खानपान के लिए चाहिए क्योंकि गौचर और गाँव समाज की अन्य जमीनें चरने के लिए रहती थीं तो किसान का खर्च चलता था। उसके ऊपर साल भर में जो गायें या भैंसे बूढ़ी हो जातीं उन्हें बेच कर अपना खर्च निकलता।

कोई भी किसान कोई जानवर क्यों पालेगा यदि उसका लाभ नहीं है। योगी जी के पास बहुत गायें हैं और मठ भी, इसलिए उनका कार्य आसान है। आज भी गौशालाएं धर्म के नाम पर ही चल रही हैं, जिनको पूंजीपति खूब चन्दा देते हैं। इसलिए यदि किसान गाय नहीं पालेगा तो इस देश में दूध की कमी को कैसे पूरा किया जाएगा ?

तो पूंजीपति धार्मिक प्रयोजनों के जरिये किसानों के संसाधनों और उनकी आय के साधनों को ख़त्म कर देंगे। क्या योगी जी के पास कोई रास्ता है कि यदि मेरी गाय या भैंस जो दूध नहीं देती या बुजुर्ग हो चली है तो उसका क्या करें ? मैं जानता हूँ भक्तजन कहेंगे गौशाला को दान कर दो लेकिन किसान को क्या उसकी मेहनत और उसके पालने का मुआवजा नहीं मिलना चाहिए।

दूसरी बात, यदि गाय और भैंस मरते हैं तो क्या किया जाए। क्या उनको दफनाया जाए या उनका क्रिया कर्म किया जाए। यदि क्रिया कर्म करना है तो क्या आने वाले समय में हमारे पास इतनी लकड़ियां या बिजली है कि हम ये कर सकें और यदि दफनाना है तो क्या हमारे पास उसके लिए इतनी जगह है, क्योंकि अभी तो ये देश शमशान और कब्रिस्तान के चक्कर में फंसा है, लेकिन यदि गाय और भैंस भी हिन्दू और मुसलमान हो गए तो मैं खुले आम यह कह सकता हूँ कि देश की संस्कृति खतरे में है और देश की बायोडायवर्सिटी को भी खतरा पैदा होने वाला है।

हमें ये समझना पड़ेगा कि खान पान लोगों की व्यक्तिगत चॉइस है और ये धर्म से ज्यादा भौगोलिक कारणों से होता है। दुनिया के सबसे बड़े देश नेपाल में दशहरा और दिवाली में चले जाईये तो आपको काठमांडू के प्रमुख बाज़ारों से नाक में खुशबू आनी शुरू हो जाएगी। नेपाल, श्री लंका, थाईलैंड, म्यांमार आदि देशो में बीफ आसानी से उपलब्ध है।

मैंने पाकिस्तान, बांग्लादेश और मुस्लिम या पश्चिमी देशों का नाम नहीं लिया जिनके बारे में ये आसानी से प्रचलित है, लेकिन हिन्दू और बुद्धिस्ट देशों में भी कोई रोक-टोक नहीं। क्या बंगाल में जाकर भाजपा और हिंदुत्व के लोग मच्छी खाने को बंद कर देंगे ? क्या केरल में बीफ रोक सकते हैं। गोवा और नार्थईस्ट में भाजपा ने खुद कहा कि ऐसा करना मुश्किल है।

लोगों की भावनाओं का सम्मान होना चाहिए लेकिन वो तब जब कोई जबरदस्ती कर रहा हो। लोकतंत्र में बुनियादी मापदंडो को ध्यान में रखकर ही बातें की जाती हैं।

मीट व्यापार में अधिकांशतः दलित और पसमांदा मुसलमान कार्य कर रहे हैं। इतनी बड़ी इंडस्ट्री पर चोट कर क्या हम इन लोगों के रोजगार पर चोट तो नहीं कर रहे।

जस्टिस राजिंदर सच्चर ने एक बार कहा कि बीफ के सबसे ज्यादा एक्सपोर्टर्स तो सवर्ण हिन्दू हैं। हम तो केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार से ये अनुरोध करते हैं के वे बीफ एक्सपोर्ट पर एक श्वेत पत्र जारी करे और देश को बताये कि पिछले तीन वर्षो में भारत दुनिया का सबसे बड़ा बीफ निर्यातक देश कैसे बना और कौन कंपनिया इसमें सबसे आगे हैं और उनके मालिक कौन हैं ? मुझे ये कहने में संकोट नहीं कि मैं ऐसे मुसलमानों को जनता हूँ जो शाकाहारी हैं और हिन्दू जो बीफ खाते हैं। पुनः खान-पान व्यक्तिगत आस्थाओं का प्रश्न है और राज्य इससे दूर रहे तो अच्छा। हाँ, राज्य का कर्त्तव्य के लोगों को सही वस्तु मिले।

योगी सरकार का दूसरा बड़ा कदम है 'एंटी रोमियो स्क्वाड' की स्थापना। उत्तर प्रदेश पुलिस तो पूरा काम धाम छोड़ इस 'महान' यज्ञ में शामिल हो गयी। खबरें आने लगी कि कोई भी दो युवा जो साथ दिखाई दिए उनको पीटा जाने लगा। महिलाओं और नव-युवतियों का तो हाल बुरा हो गया।

पुलिस बलों में कार्य करने वाली अधिकांश महिलायें असल में पुरुष मानसिकता का शिकार होती हैं और उनसे महिलाओं के प्रति सहानुभूति की उम्मीद करना कुछ ज्यादा होगा। लेकिन क्या ये दो व्यक्तियों के साथ रहने, दोस्त बनाने और साथ घूमने के अधिकारों पे अतिक्रमण तो नहीं है ?

सबसे पहले बात यह कि एक गंभीर प्रश्न को हलके तरीके से लेने के नतीजे ये ही होंगे। हम जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में लड़कियों से छेड़ छाड़ की घटनाएं बहुत होती हैं और उसके लिए सरकार को सख्त कदम उठाने ही चाहिएं, लेकिन इस की आड़ में यदि दोस्तों के आपस में मिलने, उनके घूमने-फिरने पर यदि प्रतिबन्ध लगता है तो ये बहुत भयावह होगा और हमारे संविधान की मर्यादाओं के खिलाफ होगा।

टीवी और अखबारों की रिपोर्ट बताती हैं कि कैसे पुलिस ने युवक-युवतियों के साथ बदतमीजी की है। ऐसा लग रहा है कि पुलिस और प्रशाशन को जनता का मालिक बनाया जा रहा है और नवयुवक घबराये हैं।

पुलिस अधिकारी 'नैतिकता' का ज्ञान बाँट रहे हैं। उम्मीद है कि यह गीता प्रेस गोरखपुर की नैतिकता न हो, जो महिलाओं को घर की चारदीवारों में रहने के लिए प्रेरित करती है और जिसके लिए 'पति' देवता होता है जिसकी मर्जी के बिना कुछ संभव नहीं है।

हम जानते हैं खाप के चाहने वाले, जातीय पंचायतों के यकीन करने वाले, लव जिहाद का जुमला ढूंढने वाले सभी इस वक़्त ऐसे कानूनों की आड़ में लोगों को अपनी जातियों, धर्मों और क्षेत्रों के अंदर की घुटन भरी दम घोटू जिंदगी में ही कैद कर देना चाहते हैं। जातियों की पवित्रता का सिद्धांत यही से निकलता है कि हम दूसरे से श्रेष्ठ हैं और श्रेष्ठता हमारी ही जातियों और धर्मो में है।

राहुल सांकृत्यायन जी ने कहा था कि भारत की एकता और ताकत धर्मों की मज़बूती से नहीं अपितु धर्मो की चिताओं पे होगी। नौजवान लड़के-लड़कियों को आपस में मिलने से रोकना, प्यार का इजहार करने से रोकना, अपनी-अपनी खाप पंचायतों को मज़बूत करने के लिए किया जा रहा है।

सदियों से ये देश जातीय पूर्वाग्रहों और दुराग्रहों का शिकार रहा है और यही इस समाज के अंदर गैर बराबरी का कारण है जिसको ख़त्म करने के लिए बाबा साहेब आंबेडकर को कहना पड़ा कि जातियों का पूर्णतः उन्मूलन बहुत जरूरी है लेकिन अफ़सोस हिंदुत्व के प्रवक्ता इन बातों पर चुप्पी साधते हैं। मुसलमानों के विरोध कर देने मात्र से हिन्दू धर्म की ताकत नहीं बन सकती। वो वैसे है जैसे मुसलमानो की ताकत हिन्दुओ के विरोध से नहीं अपितु अपने अपने समाजो में आत्मावलोकन से होगी।

आज के युग में 'शुद्धिकरण' जैसे शब्दों का प्रयोग अनुचित और अलोकतांत्रिक होगा, लेकिन मुख्यमंत्री आवास में प्रवेश से पहले उसका 'शुद्धिकरण' सुनकर सहज ही कमलापति त्रिपाठी की याद आयी, जिन्होंने ने गांधीजी की मूर्ति को गंगाजल से धुलवाया जिसका अनावरण बाबू जगजीवन राम ने किया था, लेकिन कमलापति कहाँ हैं और बाबूजी कहाँ, ये सब जानते हैं।

वैसे भी छुआछूत भारतीय संविधान के अनुसार कानूनी है। वैसे घर में एक व्यक्ति के जाने और दूसरे के आने पर सफाई व्यवस्था से कोई शिकायत नहीं और हर व्यक्ति अपने अनुसार अपने घर तैयार करता है, लेकिन इसके लिए शुद्धिकरण शब्द का प्रयोग नहीं होता।

अभी पाकिस्तान से खबर आ रही है कि एक ब्लॉगर अयाज निज़ामी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। उन पर आरोप है के उन्होंने इस्लाम की तौहीन की है।

पाकिस्तान में ईश-निंदा कानून है जिसके मुताबिक इस्लाम और उससे सम्बंधित किसी बात पर सवाल नहीं हो सकता।

निज़ामी एक सेक्युलर एक्टिविस्ट हैं और पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरपंथी उन्हें सजा-ए-मौत की मांग कर रहे हैं।

हम जब पाकिस्तान में ऐसी घटनाओं को देखते हैं तो हमें भारत में रहने पर गर्व होता है। क्या धर्मों की सार्थक आलोचना नहीं हो सकती? क्या हम अपने समाज में धर्मो के कारण हो रहे दुष्प्रभाव और कुरीतियों के खिलाफ नहीं बोल सकते? लेकिन आज हम जिस भारत में रहे रहे हैं, उसकी राजनीति का पाकिस्तानीकरण हो गया है जहाँ ताकतवर, पैसे वाले और धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले लोगो की संख्या बढ़ गयी है जो किसी भी प्रकार की आलोचना सुनने को तैयार नहीं है।

हमें अपने बच्चो में वैज्ञानिक चिंतन, पर्यावरण के प्रति जागरूकता और एक दूसरे के प्रति संवेदनशीलता पैदा करनी चाहिए और हमारे स्कूल और कालेजो में ऐसी व्यस्था होनी चाहिए ताकि बच्चे जागरूक नागरिक बन सके।

सरकारों का काम है जनता की सुरक्षा और उनको बेहतर जीवन देने हेतु प्रयास। उनकी प्रमुख नैतिकता होती है कानून की रक्षा और संविधान का शासन। धार्मिक नैतिकताएं सबकी अलग अलग होती है लेकिन वे क़ानूनी तौर पर लागू नहीं की जा सकतीं।

व्यक्तिगत पसंद-नापसंद, खान-पान, रहन-सहन, ये सभी वैयक्तिक नैतिकताओं में आते हैं और सरकार यहाँ तभी हस्तक्षेप करे जब उससे दूसरे की स्वतंत्रता का हनन हो या कानून का उलंघन हो। प्रदेश में रहने वाली यदि 15-20% आबादी ये महसूस करे कि उसको जानबूझकर प्रताड़ित किया जा रहा है या उसके आर्थिक संसाधनों को विशेष अभियान के तहत ख़त्म करने की साजिश की जा रही है तो फिर शासन को सोचना पड़ेगा। ये देश के विकास, स्थिरता, स्थायित्व और एकता के लिए खतरा हो सकता है।

इस देश के कानून के अनुसार रहने वाले हर नागिरक की सुरक्षा सरकार का फ़र्ज़ है और इसके लिए जरूरी है कि बड़बोले धमकीबाज़ नेताओं और छुटभैयों पर कड़ी नकेल कसी जाए ताकि प्रदेश में सौहार्द बना रह सके।