भारतीय राजनीति की आधुनिक भस्मासुर मायावती!
भारतीय राजनीति की आधुनिक भस्मासुर मायावती!
विजेंद्र त्यागी वरिष्ठ फोटो पत्रकार हैं, उन्हें कई प्रधानमंत्रियों की लगातार ब्रीफिंग करने का लंबा अनुभव है. सत्ता के गलियारों में कैसे कैसे खेल होते हैं और कैसे -कैसे सत्ता करवट बदलती है, उन्होंने बहुत नज़दीक से देखा है. उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के उत्कर्ष और उसके लिए जिम्मेदार परिस्थितियों पर उन्होंने बहुत बारीकी से प्रकाश डाला है. मायावती ने किस तरीके से लूट का वैधानिक तंत्र बनाया उस पर भी उन्होंने प्रकाश डाला है, हालांकि यह एकपक्षीय भी है. अच्छे अच्छों के मुखड़ों को कैमरे में क़ैद करने वाले त्यागी जी की कलम जब चलती है तो आग उगलती है, आइये देखते हैं उनका एक विश्लेषण
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री को आधुनिक राजनीति का भस्मासुर कुछ राजनैतिक पार्टियां कह रही हैं। यदि दार्शनिकता के चश्मे को यदि आप उतार कर देखें तो मायावती को भस्मासुर का वरदान किसने दिया? समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह विधानसभा में अपना बहुमत सिद्ध नहीं कर पाए तो उन्होंने मायावती का सहारा लेकर सपा और बहुजन समाज पार्टी की सरकार बनाई थी। मायावती ने मुख्यमंत्री बन कर आरोप लगाया कि मुलायम सिंह मेरे ऊपर पेट्रोल छिड़क कर मेरी हत्या कराना चाहते हैं। वहीं भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशीय नेताओं ने मायावती का बचाव किया था। इस केस में जिस प्रदेश के भाजपाई नेता की पत्नी को मायावती ने विधायक भी बना दिया था।
अब मायावती और भाजपा का गठबंधन प्रदेश में शासन करने लगा। परन्तु समय ने करवट ली वह गठबंधन भी थोड़े समय के पश्चात टूट गया था। जब कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता नरसिंहराव भारत के प्रधनमंत्री थे तो कांग्रेस और बहुजन पार्टी का पार्लियामेंट एनेमी में एक समझौता हुआ था कि प्रदेश में 300 सीट बहुजन समाज पार्टी और 125 सीट कांग्रेस पार्टी लड़ेगी। यह समझौता कांशीराम और नरसिंह राव के बीच हुआ था। इस समझौते के समय शरद पवार भी स्टेज पर मौजूद थे। मैंने प्रधनमंत्री नरसिंह राव से उस समय सवाल किया था। राव साहब आप गांधीवादी नेता हैं और बहुजन समाज पार्टी के लोग गांधी को गाली देते हैं। यह कैसा समझौता है। इस पर राव साहब ने जवाब दिया- आप अच्छी तस्वीर खींचें। मैंने उनसे कहा- मैं तस्वीर खींचू या लिखू इससे आपका मतलब नहीं है।
कृपया करके आप सवाल का जवाब दें। प्रधनमंत्री का जवाब था-‘‘यदि आप सुनना चाहते हैं तो आज उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति ऐसी नहीं है जिससे कांग्रेस अपने बलबूते पर चुनाव लड़ सके। इसलिए मजबूर होकर समझौता करना पड़ रहा है। दोनों पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ेंगी।
पिफर मैंने स्टेज पर बैठे हुए कांशीराम से पूछा-‘‘कांशीराम जी आप तो गांधी विरोधी हैं। आपका गांधी वादियों से यह कैसा समझौता है?’’ कांशीराम का जवाब था- ‘‘भाई हम लोग गांधी वांधी को नहीं मानते, हम तो अम्बेडकर जी को मानते हैं। आप इन्हीं गांधीवादियों से पूछें जिन्होंने अम्बेडकर को पहले ट्रेटर कहा था फिर उसे कानून मंत्री बनाया और फिर भारत रत्न दिया। यह बातें तो सभी के सामने हैं।इन्हीं लोगों से पूछें कि यह लोग ऐसा क्यों करते रहे। इस पर नरसिंहराव गर्दन हिला हिला कहते रहे, यस -यस। चुनाव के बाद तीसरी बार मायावती प्रदेश की मुख्यमंत्री बन गयी।
मायावती की कार्यकुशलता को यदि आप देखें तो उसने अपने कौशल से प्रदेश के लगभग 20 प्रतिशत हरिजनों को प्रदेश की जनसंख्या के आधार पर एकजुट कर दिया। उस समुदाय में जोश भरने के लिए उन्होंने पहले नारे का प्रयोग किया था- तिलक-ब्राह्मण, तराजू -बनिया, और तलवार-राजपूत, इनको मारो जूते चार।
यह ‘‘ओजस्वी नारा’’ मायावती ने हरिजन समुदाय को एक जुट करने के लिए एक प्रयोग किया था। मायावती ने इन्हीं दिनों अपनी और अपनी पार्टी को आर्थिक रूप से स्थिति सुदृढ़ कर ली थी। पिछले दिनों जब प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए तो उनका साथ एक सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट, जो जाति के ब्राह्मण हैं' ने दिया था। उन्होंने मायावती को समझाया कि प्रदेश का चुनाव आप अपने बलबूते पर नहीं जीत सकतीं। आपको अपने साथ सवर्ण एवं दबंग जातियों को भी साथ लेकर चलना होगा। इसीलिए मायावती ने कुछ टिकट ब्राह्मणों को, कुछ बनियों को तथा कुछ टिकट राजपूत समुदाय को भी दिये और पहले नारे को बदल कर अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह हाथी पर आधरित एक नया नारा दिया।
‘‘हाथी’’ नहीं गणेश है।
ब्रह्मा विष्णु महेश है।।
इस प्रकार प्रदेश के सवर्ण और दंबग लोग भी जब मायावती के साथ आये तो उसका मनोबल ऊंचा हो गया। रही बात मुसलमान वोटरों की, हमारे देश का मुसलमान तो शुरू से ही सत्ता पक्ष के साथ रहना पसन्द करता है। जब मुसलमानों ने मायावती का पलड़ा भारी देखा तो वे भी मायावती के साथ हो लिये। मायावती को भी पता नहीं था कि उन्हें इतना भारी बहुमत विधनसभा में मिलेगा। परिणाम स्वरूप चौथी बार मुख्यमंत्री के रूप में आज मायावती प्रदेश की बेताज बादशाह हैं। मायावती को यह सभी पार्टियां आज गाली देती हैं जिन्होंने उन्हें जमीन से उठाकर अपने सिर पर अपने स्वार्थ के लिए बिठाया।
प्रदेश में राजनीतिज्ञों की दलाली पर लगाम लगाने के लिए उसने अपनी पार्टी के संगठन को मजबूत किया और उसने जिला स्तर पर जो संगठन की कमेटियां गठित की उसे कमेटी का पदाधिकारी पार्टी के जिला स्तर के कार्यकर्ताओं के माध्यम से जनता की परेशानियों को दूर करने के लिए परेशानियों, आपत्तियों और सुझावों को जिलास्तर का अधिकारी कमिश्नरी पर भेजा है। फिर वह पदाधिकारी कमिश्नरी से इन तथ्यों को प्रदेश के पदाधिकारियों को भेजता है। प्रदेश का वह पदाधिकारी यानि कार्डोनेटर मुख्य सचिव के माध्यम से मुख्यमंत्री को भेजता है। मुख्यमंत्री इन समस्याओं पर विचार करके निर्णय लेती है। फिर मुख्य सचिव के माध्यम से उस समस्या का निस्तारण कर दिया जाता है।
सूत्रों के अनुसार कोई भी विधयक या पार्टी के नेतागण सिफारिशी बन कर अधिकारियों से सीधे सम्पर्क नहीं कर सकते। उन सभी को उन्हीं को-ऑर्डिनेटर के माध्यम से अपने क्षेत्र की समस्याओं को मुख्य सचिव या मुख्यमंत्री को भेजना पड़ता है। इस कारण से चुने हुए विधयाकों और पार्टी के उन दबंग नेताओं की प्रशासन पर पकड़ नहीं के बराबर है। जिला प्रशासन और प्रदेश के प्रशासन पर उनका रौब हलका हो गया। अब माध्यमों या दलालों की दलाली की प्रशासन पर पकड़ कमजोर पड़ गयी है। वह विधायक या सांसद होकर भी सीधे मुख्य मंत्री से सम्पर्क नहीं कर सकते।
वर्तमान स्थिति में सुश्री मायावती मुख्य मंत्री तथा पार्टी अध्यक्ष दोनों हैं। पार्टी के चुनावों के लिए उम्मीदवारों का चयन प्रदेश के उन दबंग लोगों को उम्मीदवार बनाया जाता है जो आर्थिक और क्षेत्रीय स्तर पर दबंग हों, जो दूसरी पार्टियों के दबंगों पर भारी पड़ता हो उसी को पार्टी का टिकट मिलता है। सभी दबंगों को पैसा देना पड़ता है। दबंग अपनी जातियों के बीच में खुले मंच से कहते हैं मेरी इज्जत आप लोगों के हाथ है। यदि आप लोगों ने मुझे नहीं जिताया तो मेरा प्रतिपक्ष या प्रतिद्वन्दी मुझे मरवा देगा। इसलिए मैं आपके दरबार में आया हूं।
विगत में मायावती के जन्मदिन पर जिन पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पैसा नहीं दिया उन्हें उन्होंने यक कह कर पार्टी से निकाल दिया कि यह लोग हमारी पार्टी में दूसरे दलों से आकर घुस गए थे और पार्टी का अनुशासन तोड़ रहे थे। परन्तु जानकार लोगों का कहना है कि पैसा जिलास्तर के कार्यकर्ताओं और जिले के प्रशासनिक अधिकारियों के माध्यम से भी इकट्ठा किया जाता है।
जब मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बनी थी तो उन्होंने बड़ी जातियों के लोगों से पैसों की वसूली प्रदेश में हरिजन एक्ट लगाकर कराई थी। इस एक्ट के अनुसार आप जाति सूचक शब्द का बोल चाल में प्रयोग नहीं कर सकते। उस समय के लोग बताते हैं कि प्रदेश के हर थाने में एक जाति विशेष के लोगों की नियुक्तियां करके बड़ी जातियों के लोगों को हरिजन एक्ट लगाकर गिरफ्रतार किया गया। पैसा अगर नहीं दिया तो जेल भेज दिया जाता था। जिलास्तर पर जमानत नहीं होती थी। हाईकोर्ट से जमानत होती थी। वह भी गिरफ्रतारी के 6 महीने बाद। लोग जेल जाने के डर से पैसा देकर छूट जाते थे।
परन्तु मायावती के पश्चात जब कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने इस कानून में यह संशोधन किया कि आरोपी के ऊपर लोग आरोपों की डीएसपी स्तर का अधिकारी पहले जांच करेंगे फिर यदि आरोप सही सिद्ध हुआ तो केस दर्ज होगा।
इसके पश्चात इस संशोधन से लोगों का उत्साहवर्धन हुआ था। प्रदेश में मन माने ढंग से गिरफ्रतारियों में कमी आयी और जनता से सरकारी तन्त्र द्वारा लूट का सिलसिला थोड़ा कम हुआ।
मायावती के आने से प्रदेश के हरिजन समाज में एक जागृति पैदा करके उन्होंने उस समाज को एक जगह लामबन्द कर दिया। कांग्रेस पार्टी जिस समाज को अपना वोट माने हुई थी वह वोट बैंक उसके हाथ से निकल गया। उसी का कारण है कि युवराज आज देश में घूम-घूम कर हरिजनों के घरों में जाता है, खाता है, पीता है, सोता है, रहता है। साथ में पब्लिसिटी कराने के लिए वह चैनल संवाददाता को साथ रखकर उनके माध्यम से प्रचारित करते हैं कि उस देश के युवराज ने आज उस हरिजन की झोपड़ी में घुसकर खाना खाया, सोया आदि-आदि। कांग्रेस पार्टी के वही दरबारी जो संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और अब देश के युवरज के सामने उसी ढंग से हारमोनियम, तबला, सारंगी आदि साज बजा कर युवराज का यशोगान करते हैं।
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लेखक विजेंदर त्यागी देश के जाने-माने फोटोजर्नलिस्ट हैं. पिछले चालीस साल से बतौर फोटोजर्नलिस्ट विभिन्न मीडिया संगठनों के लिए कार्यरत रहे. कई वर्षों तक फ्रीलांस फोटोजर्नलिस्ट के रूप में काम किया और आजकल ये अपनी कंपनी ब्लैक स्टार के बैनर तले फोटोजर्नलिस्ट के रूप में सक्रिय हैं. "The legend and the legacy: Jawaharlal Nehru to Rahul Gandhi" नामक किताब के लेखक भी हैं विजेंदर त्यागी. यूपी के सहारनपुर जिले में पैदा हुए विजेंदर मेरठ विवि से बीए करने के बाद फोटोजर्नलिस्ट के रूप में सक्रिय हुए. वर्ष 1980 में हुए मुरादाबाद दंगे की एक ऐसी तस्वीर उन्होंने खींची जिसके असली भारत में छपने के बाद पूरे देश में बवाल मच गया. तस्वीर में कुछ सूअर एक मृत मनुष्य के शरीर के हिस्से को खा रहे थे. असली भारत के प्रकाशक व संपादक गिरफ्तार कर लिए गए और खुद विजेंदर त्यागी को कई सप्ताह तक अंडरग्राउंड रहना पड़ा. विजेंदर त्यागी को यह गौरव हासिल है कि उन्होंने जवाहरलाल नेहरू से लेकर अभी के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तस्वीरें खींची हैं. वे एशिया वीक, इंडिया एब्राड, ट्रिब्यून, पायनियर, डेक्कन हेराल्ड, संडे ब्लिट्ज, करेंट वीकली, अमर उजाला, हिंदू जैसे अखबारों पत्र पत्रिकाओं के लिए काम कर चुके हैं.


