अत्यधिक संवेदनशील विषय हैं माहवारी और प्रसव

Menstrual problems in women: Myths related to sanitary pads

पुंछ, जम्मू (सैय्यदा रुखसार काज़मी) 26 फरवरी 2024: महिलाओं और किशोरियों में स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे हमेशा महत्वपूर्ण रहे हैं. विशेषकर माहवारी और प्रसव के मामले यह बहुत ही संवेदनशील विषय रहा है. लेकिन इस मुद्दे पर सामाजिक कुरीतियों और संकुचित सोच ने उन्हें हमेशा चुप रहने पर मजबूर किया है. महिलाओं में मासिक धर्म (menstruation in women) उनके स्वास्थ्य प्रथाओं के विकास में महत्वपूर्ण चरण रहा है. कपड़े के उपयोग से सैनिटरी पैड तक के चरण ने संक्रमण से स्वच्छता की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति को चिह्नित किया है. पहले के समय में महिलाएं जब कपड़े का इस्तेमाल करती थीं तो अक्सर पुराने कपड़े का प्रयोग करती थीं, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से उनके लिए बहुत खतरनाक होता था। समय बीतने के साथ उसकी जगह सैनिटरी पैड ने ले ली, जो एक स्वच्छ और अधिक सुविधाजनक विकल्प साबित हुआ।

सैनिटरी पैड की सुरक्षा को लेकरक्यों उठ रहे हैं सवाल?

आज 21वीं सदी में भारत में बड़ी संख्या में महिलाएं और किशोरियां सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। हालांकि, इस संक्रमण के बावजूद, चुनौतियां बनी हुई हैं, जिससे सैनिटरी पैड की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि क्या इसका उपयोग उनके स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित है? देश के अन्य क्षेत्रों की तरह जम्मू कश्मीर की महिलाओं और किशोरियों के बीच भी यह बहस का एक महत्वपूर्ण विषय बना हुआ है।

मासिक धर्म के दौरान सैनिटरी पैड कितनी बार बदलना चाहिए?

जम्मू के सीमावर्ती क्षेत्र पुंछ की एक किशोरी शबनम कौसर (बदला हुआ नाम) कहती हैं कि जब वह सूती कपड़े का इस्तेमाल करती थीं तो उनका पीरियड बेहतर रहता था, लेकिन सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करने के बाद से मासिक धर्म के दिनों में दर्द और काफी परेशानी देखने को मिलती थी। इस संबंध में जब उन्होंने पुंछ के जिला अस्पताल की डॉ शहनाज़ से सलाह ली, तो डॉक्टर ने उन्हें दिन में कम से कम तीन बार सैनिटरी पैड बदलने की सलाह दी, साथ ही उन्हें सैनिटरी पैड का उपयोग करने से बचने की भी सलाह दी।

डॉक्टर के अनुसार सैनिटरी पैड में हानिकारक रसायन होते हैं। जो स्वास्थ्य के लिए पूरी तरह से लाभकारी नहीं होते हैं। शबनम का कहना है कि डॉक्टर ने मुझे सैनिटरी पैड की जगह सूती कपड़े या मेंस्ट्रुअल कप इस्तेमाल करने की सलाह दी, जो स्वास्थ्य के लिहाज से बेहतर हैं और पर्यावरण के अनुकूल भी है।

सैनिटरी पैड के साइड इफेक्ट्स क्या हैं?

हालांकि सैनिटरी पैड ने निस्संदेह मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता में सुधार किया है, लेकिन इससे स्वास्थ्य के बारे में भी कई चिंताएं उठाई गई हैं। दरअसल सैनिटरी पैड को तैयार करने के दौरान कई ऐसे रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है जो महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। इसमें फाइबर होते हैं जिन्हें साफ और रोगाणु हीन बनाने के लिए क्लोरीन से ब्लीच किया जाता है। यह ब्लीचिंग प्रक्रिया डाइऑक्सिन उत्पन्न करती है, जो एक अत्यधिक विषैला प्रदूषक है, जो पेल्विक सूजन की बीमारी, हार्मोन असंतुलन, एंडोमेट्रियोसिस और यहां तक कि कैंसर का कारण भी बन सकता है।

इसके अतिरिक्त पैड में परंपरागत रूप से उगाए गए कपास का उपयोग किया जाता है, जिसमें कीटनाशक दवाओं का प्रभाव रहता है जो कपास की कटाई के बाद भी लंबे समय तक बने रहते हैं। इसके दुष्प्रभाव भी महिलाओं और किशोरियों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं।

सेनेटरी पैड को लीक-प्रूफ माना जाता है। दरअसल पैड के नीचे एक प्लास्टिक की परत होती है जो इसे लीक होने से रोकती है। लेकिन यही प्लास्टिक गर्मी और नमी के दिनों में यीस्ट और बैक्टीरिया के लिए प्रजनन स्थल बनाने का काम करता है। इससे महिलाओं और किशोरियों को योनि के आसपास जलन, झनझनाहट और दर्द होने की संभावना रहती है। इसलिए जैसे-जैसे जागरूकता बढ़ती है, वैकल्पिक, स्वस्थ विकल्प ढूंढना महत्वपूर्ण हो जाता है।

मैंने पुंछ के डिग्री कॉलेज से अपनी शिक्षा पूरी की है। जब मैं कॉलेज के दूसरे वर्ष में थी, इस दौरान डॉक्टरों की एक टीम लड़कियों के स्वास्थ्य और सैनिटरी पैड के उपयोग और प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए आई थी।

इस दौरान महिला डॉक्टरों ने लड़कियों से पूछा कि वे माहवारी के दिनों में एक दिन में कितनी बार सैनिटरी पैड बदलती हैं? ज्यादातर लड़कियों ने जवाब दिया कि वे सिर्फ एक या दो बार ही बदलाव करती हैं। हॉल में लगभग पाँच सौ लड़कियाँ थीं और सभी ने कहा कि वे सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं लेकिन उन्हें इसके नुकसान के बारे में पता नहीं है। डॉक्टरों ने हमें सैनिटरी पैड के नुकसान के बारे में भी बताया और इससे होने वाली खतरनाक बीमारियों से भी अवगत कराया। साथ ही उन्होंने हमें बेहतर पैड का इस्तेमाल करने की सलाह दी जो हर स्थिति में सुरक्षित हों। इसके लिए साफ सूती कपड़े का इस्तेमाल करने की सलाह दी। यह दुकानों में कॉटन पैड के नाम से भी उपलब्ध है।

इसके साथ ही उन्होंने विकल्प के रूप में मेंस्ट्रुअल कप की जानकारी भी दी, जो हमारे लिए नई और अनोखी बात थी। मेडिकल ग्रेड सिलिकॉन, रबर या लेटेक्स से बने, ये पुन: प्रयोज्य कप एक टिकाऊ और सुरक्षित विकल्प प्रदान करते हैं। ये प्लास्टिक नहीं हैं जो पर्यावरण के लिए हानिकारक हों, इसके साथ ही जलन और संक्रमण के खतरे को भी कम करते हैं। इसके अतिरिक्त, वे समय के साथ एक लागत प्रभावी समाधान भी प्रदान करते हैं, जिससे कुछ महिलाओं को गुणवत्तापूर्ण सैनिटरी उत्पादों तक पहुंचने में आने वाली आर्थिक बाधाओं को दूर किया जाता है। महिला डॉक्टरों ने उल्लेखनीय विकल्प के रूप में जैविक कपास पैड के बारे में भी जानकारी दी। जो कृत्रिम योजकों और रसायनों से मुक्त होती है। ये पैड स्वास्थ्य और पर्यावरणीय स्थिरता दोनों को प्राथमिकता देते हैं। इनके इस्तेमाल से महिलाएं और किशोरियां माहवारी के दिनों में आरामदायक महसूस करती हैं।

मासिक धर्म के विषय में जागरूकता है जरूरी

दरअसल किशोरियों को उनके मासिक धर्म के दौरान स्वास्थ्य से जुड़े इन विकल्पों के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण है। उत्पाद चयन के अलावा, न केवल महिलाओं और किशोरियों को, बल्कि सभी को मासिक धर्म के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है। इस बारे में जागरूक करने की जरूरत है कि माहवारी कोई बीमारी या कुछ गलत नहीं है बल्कि प्रकृति द्वारा प्रदत उपहार है। जिसे महिलाएं अभी भी सबसे छुपाती हैं या इसके बारे में बात करने से भी कतराती हैं। दरअसल आज भी देश के लगभग सभी गांव में अनगिनत महिलाएं और किशोरियां हर महीने मासिक धर्म के दर्द और बीमारियों का सामना करती हैं, लेकिन वह इसके बारे में घर में किसी से भी चर्चा नहीं कर सकती हैं, क्योंकि उनके घरों के पुरुषों को इसके बारे में शिक्षित नहीं किया जाता है। ऐसे में वे खुद इस दर्द को चुपचाप सहन करती रहती हैं। सामाजिक स्तर पर हमें न केवल महिलाओं और किशोरियों को बल्कि पुरुषों को भी इस दिशा में जागरूक करने की जरूरत है ताकि महिलाएं और किशोरियां इससे जुड़ी खतरनाक बीमारियों से समय रहते बच सकें।

(चरखा फीचर)

(Article on Menstrual issues in women: A journey from clothing to conscious choice by rural writer Rukhsar Kazmi from Poonch, Jammu)