दशहरा और बकरीद के साथ उत्तर प्रदेश में शुरू होगा मोदी का दौरा
अंबरीश कुमार
लखनऊ। दशहरा, दुर्गा पूजा और बकरीद के साथ उत्तर प्रदेश में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी का चुनाव अभियान शुरू होने जा रहा है। समय गौर करने वाला तो वह जगह भी, जहाँ से मोदी का चुनाव अभियान शुरू होगा। शुरुआत उद्योग नगरी कानपुर में पंद्रह अक्टूबर से होगी तो दूसरी जन सभाएं झाँसी और बहराइच में। इन जगहों के राजनैतिक मायने समझने वाले हैं। तीनों जगहों पर काँग्रेस है और राष्ट्रीय स्तर पर मोदी को काँग्रेस से ही मुकाबला करना है।

मोदी को राजनैतिक ब्राण्ड में बदलने वाली एजेन्सियाँ उनके चुनाव अभियान से लेकर वेश भूषा तक का ध्यान रख रही हैं। मोदी को हिन्दुत्व और विकास के प्रतीक के रूप में उभारा जा रहा है। हिन्दुत्व का एजेण्डा मुजफ्फरनगर में लागू हो चुका है इसलिये अब बारी विकास और राष्ट्र की होने वाली है। शुरुआत कानपुर से इसलिये भी और अगला पड़ाव झाँसी यानी बुंदेलखण्ड की अघोषित राजधानी है। ध्रुवीकरण की राजनीति के लिहाज से भी कानपुर भाजपा को फायदेमन्द नजर आता है।

भाजपा प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक के मुताबिक जिन तीन जगहों पर मोदी की चुनावी सभायें हो रही है वहाँ की संसदीय सीटें भाजपा के पास रही हैं, जिन्हें वापस लेना है इसलिये भी शुरुआत यहाँ से हो रही है। झाँसी में 25 अक्तूबर का कार्यक्रम रखा गया है जहाँ मोदी बुंदेलखण्ड में विकास का अपना मॉडल सामने रखेंगे। तीसरी सभा बहराइच में आठ नवम्बर को होगी जो सीमा का इलाका है। बहरहाल मोदी के दौरे के एलान के साथ ही राज्य की सभी सुरक्षा एजेन्सियाँ सतर्क हो गयी हैं।

बहराइच न सिर्फ भारत नेपाल सीमा का सबसे संवेदनशील जिला है बल्कि इसका भूगोल राजनैतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। बहराइच से लेकर नानपारा तक मुस्लिम बहुल इलाका है तो गोंडा बलरामपुर में हिन्दुत्व की ताकतें लामबन्द हैं। ऐसे में मोदी के दौरे से यह अंचल मजहबी गोलबंदी का शिकार हो जाये तो हैरानी नहीं होनी चाहिए।

गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ महापंचायत का एलान कर चुके हैं और दशहरा दुर्गा पूजा आते-आते उनकी हिन्दू युवा वाहिनी कई जिलों में माहौल बनाने जा रही है। ऐसे में जब समूचा पश्चिम मुजफ्फरनगर की आग में तप रहा हो तो पूरब में मोदी के आने की राजनीति को समझा जा सकता है। मुजफ्फरनगर में दंगा गाँव-गाँव तक फैला था और ध्रुवीकरण भी गाँव-गाँव तक हो चुका है। पर पूर्वांचल में फिलहाल ऐसा माहौल नहीं है। ग्रामीण इलाकों में जातीय गोलबंदी अभी भी धार्मिक ध्रुवीकरण पर भारी है। इसलिये सपा और बसपा के बीच ही राजनीति भी सिमटी हुयी है। दलित मायावती के साथ है तो पिछड़े और अगड़ों का एक हिस्सा मुलायम के साथ। पर धार्मिक ध्रुवीकरण होते ही यह समीकरण भी टूट जायेगा। यही चिन्ता धर्म निरपेक्ष ताकतों की है तो कट्टरपंथी ताकतें इसके इंतजार में है।

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी का साफ कहना है कि मोदी के आने-जाने से कोई फायदा कट्टरपंथी ताकतों को नहीं होने वाला है और अब अगर पश्चिम का प्रयोग पूर्वांचल में दोहराने की कोशिश हुयी तो बहुत सख्ती से निपटा जायेगा। पर मोदी का यह दौरा सत्तारूढ़ दल के लिये राजनैतिक चुनौती भी बन सकता है।