प्रतिरोध का अंतिम द्वीप भी बेदखल?
कभी नहीं। नहीं।
फिर भी गौतम बुद्ध, बाबासाहेब और शहीदेआजम भगतसिंह के रास्ते समता न्याय की सामाजिक क्रांति संभव।
#Fightback JNU # Fightback Jadavpur, हर हमले केखिलाफ गोलबंदी होगी तेज और इंसानियत का मुल्क साथ है।
पलाश विश्वास
Resist saffronisation of campus!
HCU se, JNU se, DU se, JU se, AMU, Bharat se hallabol!
BJP-AVBP-RSS pe hallabol!
Inquilaab Zindabaad!
‪#‎ResistAVBP
‪#‎FightbackJU
‪#‎FightbackJNU
‪#‎FightbackHCU
‪#‎FightbackDU
‪#‎FightbackAMU
‪#‎FightbackIIT
‪#‎FightbackIIM
यह लड़ाई जेएनयू में जैसे लड़ी जा रही है वेसै ही यह लड़ाई बंगाल के तमाम विश्वविद्यालयों और बाकी देश के विश्वविद्यालयों और दूसरे शैक्षणिक संस्थानों में लड़ी जा रही है। जाहिर है कि देशी विदेशी पूंजी, मुक्त बाजार और रंग बिरंगे वैश्विक फासीवादी मनुस्मृति रंगभेदी स्थाई बंदोबस्त के खिलाफ हमारे पुरखों की लड़ाई अभी खत्म हुई नहीं है।
JNUSU Indifinite Hunger Strike Day 10 (06.05.2016) : Artists, Intellectuals, Actvists joined at Freedom Square JNU in Solidarity with JNUSU.
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने ममता राज के तहत बुलंद हौसले के साथ फिर यादवपुर विश्वविद्यालय पर हमला बोला। हिंदुत्व एजंडा के तहत फिल्म शो के विरोध पर छात्रों के साथ मारपीट और छात्राओं से बदसलूकी चुनावी हिंसा में बहती खून की नदियों से भयंकर केसरिया सुनामी है और सत्तादल की मदद से हावड़ा से जीतने वाली फिल्मस्टार अभिनेत्री ने दस मिनट का अल्टीमेटम यादवपुर विश्वविद्यालय का गेट तोड़ने का जारी करके यह सारा हंगामा कर दिखाया और बता दिया कि संघ परिवार की बढ़ती ताकत और खुल्लमखुल्ला मोदी दीदी गठबंधन से भारत विभाजन के डाइरेक्ट एक्शन की पुनरावृत्ति फिर बंगाल में करने पर तुला है। तो प्रतिरोध में छात्राएं आगे रहीं और छात्राओं ने रूपा और बजरंगियों को मुंह तोड़ जवाब दिया। पाशे आछि यादवपुर। फािट बैक यादवपुर।
प्रतिरोध का अंतिम द्वीप भी बेदखल?
फिरभी गौतम बुद्ध, बाबासाहेब और शहीदेआजम भगतसिंह के रास्ते समता न्याय की सामाजिक क्रांति संभव।
#Fightback JNU # Fightback Jadavpur, हर हमले केखिलाफ गोलबंदी होगी तेज और इंसानियत का मुल्क साथ है।
केसरिया सुनामी के शिकंजे में बुरी तरह फंसा है बंगाल और बाकी देश के लिए यह डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने की खबर से ज्यादा बुरी खबर है कि सत्तापक्ष को वोट देने वाला बंगाल का हर शख्स अब हिंदुत्व के केसरिया रंग से रंगकर बजरंगी है।
इसी बीच जेएनयू बंद कराने की मुहिम जारी है और लगातार चेताते रहे हैं कि आंदोलन का नेतृत्व सामूहिक होना चाहिए और हमारी आजादी के लिए किसी मसीहा की जरूरत नहीं है।
मसीहा निर्माण और मूर्ति पूजा की रस्म अदायगी की निरंतरता में हम लगातार पांव तले जमीन खो रहे हैं और कयामती मंजर में सांस के लिए छटफटा रहे जल बिन मछली की तरह रोजमर्रे की जिंदगी नर्क होती जा रही है।
जेएनयू में मनुस्मृति के खिलाफ अभूतपूर्व गोलबंदी देशभर में संक्रामक है तो दमन और उत्पीड़न का मनुस्मृति तंत्र उससे ज्यादा मजबूत होता जा रहा है।
गौरतलब है कि जेएनयू के साथ खडा होने के जुर्म में शाट डाउन जेएनयू की तर्ज पर शाट डाउन यादवपुर अभियान संघ परिवार ने चलाया और उस दौरान यादवपुर विश्वविद्यालय में हमला हुआ तो बजरंगियों ने फिर जुलूस निकाल कर यादवपुर पर धावा बोलने की कोशिश की तो चारों तरफ से जुलूस निकालकर इसके मुकाबले की तैयारी देख पुलिस की पहरेदारी में वे मैदान छोड़कर बाहर निकले।
बजरंगियों का हौसला बुलंद होने की ताजा वजह सत्ता दल के समर्थन में जारी एक एक्जिट पोल है, जिसमें दीदी के 183 सीटों के साथ सत्ता में वापसी का दावा किया गया और भाजपा के खाते में नौ सीटें डाल दी गयीं, जिसकी उम्मीद बजरंगियों को कतई नहीं थी।
मोदी दीदी गठबंधन की वजह से पिछले पांच साल के दौरान बंगाल का भीतर ही भीतर जबर्दस्त केसरियाकरण हुआ है और उत्तरबंगाल में सूपड़ा साफ होते देख केसरिया सुनामी के जरिये सत्ता में वापसी की जुगत में भाजपा को सीटों की खैरात के साथ खुल्ला खेलने का जो मौका दिया गया, उससे दक्षिण बंगाल में कमसकम बीस फीसद वोट भाजपा के हक में गिरे ताकि वाम कांग्रेस गठबंधन को हराकर यूपी को नये सिरे से केसरिया बनाने का राजमार्ग खुले।
दावे के मुताबिक सीटें भले दीदी को या उनकी अंतरंग सहयोगी भाजपा को उतनी न मिले, लेकिन वोटों के हिसाब से भाजपा की ताकत बंगाल में भी अब भयंकर है और जेएनयू में जब आमरण अनशन जारी है, तब फिर यादवपुर विश्वविद्यालय पर हमला आने वाले खतरनाक दिनों की दस्तक है।
इससे ज्यादा खतरनाक तथ्य यह है कि सत्ता वर्ग और सत्तादल, दोनों का सार्विक केसरियाकरण हो गया है और बाकी देश बंगाल को अभी धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील मान रहा है जबकि प्रतिरोध का अंतिम द्वीप भी बेदखल होने जा रहा है।
केसरिया सुनामी के शिकंजे में बुरी तरह फंसा है बंगाल और बाकी देश के लिए यह डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने की खबर से ज्यादा बुरी खबर है कि सत्तापक्ष को वोट देने वाला बंगाल का हर शख्स अब हिंदुत्व के कसरिया रंग से रंगकर बजरंगी है।
यह लड़ाई जेएनयू में जैसे लड़ी जा रही है वेसै ही यह लड़ाई बंगाल के तमाम विश्वविद्यालयों और बाकी देशके विश्वविद्यालयों और दूसरे शैक्षणिक संस्थानों में लड़ी जा रही है। जाहिर है कि देशी विदेशी पूंजी, मुक्त बाजार और रंग बिरंगे वैश्विक फासीवादी मनुस्मृति रंगभेदी स्थाई बंदोबस्त के खिलाफ हमारे पुरखों की लड़ाई अभी खत्म हुई नहीं है।