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सम्राट अशोक और राष्ट्रकवि दिनकर जी
समग्र को विभाजक व्यक्तित्व में तब्दील करने की कोशिश
इतिहास, वर्तमान को प्रभावित करता है लेकिन वर्तमान, इतिहास को कैसे साम्प्रदायिक और जातिवादी अस्मिताओं में बाँट कर कमंडल- और मंडल का वोट अपनी तरफ आकर्षित करता है, वो बिहार के आसन्न विधान सभा चुनाव की वजह से देखने को मलेगा। तरह-तरह की दिलचस्प और चौंकाने वाली घटनाएं अभी अपेक्षित हैं। महान सम्राट अशोक बुद्धिस्ट थे, ये सारी दुनिया में लोग जानते हैं। उन्हें कुशवाहा जाति के परिसीमन में डालकर उन्हें छोटा करने की कोशिश सिर्फ वोट पाना है, तो अचानक राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की महिमा का डंका भी इसी चुनाव के वक़्त ही क्यों ? 2008 में भूतपूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने

उनकी मूर्ति का अनावरण संसद के सेन्ट्रल हॉल में किया था और 2012 में राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी ने दिनकर जी के नाम पर 21 प्रतिभाशाली विद्वानों को पुरस्कृत भी किया था। उस समय भाजपा के नेताओं को राष्ट्रकवि दिनकर याद नहीं आया।
 राष्ट्रकवि दिनकर को भी एक जाति-विशेष के खाचें में परिसीमित कर उन्हें छोटा किया जा रहा है। बिहार विधानसभा चुनाव को अपनी तरफ करने के लिए महान अशोक और महान कवि दिनकर को जातिवाद की राजनीति में घसीटा जाएगा। इतिहास अब political Divisive identity की तरह इस्तेमाल हो रहा है। कल्पना नहीं की थी लेकिन सच तो यही है।
बचपन से अब तक इस ख़ुशी के अहसास से जीते रहे कि राष्ट्रकवि दिनकर हमारे पड़ोसी गांव के थे। हम लोग सभी खुश होते थे कि दिनकरजी हमारे हैं, लेकिन अब इस चुनाव में दिनकरजी को इतना न्यून न कर दें, उसका खतरा दीख रहा है।
स्वामी सहजानंद सरस्वती के साथ भी ऐसा ही हुआ !
सम्राट अशोक पर शाहरुख़ खान ने फिल्म भी बनायी थी और अशोक पर telivision शो चल रहे हैं। अशोक की मूर्ति में अशोक सम्राट का

मुख किसका होगा। ये दोनों या इनसे परे कोई काल्पनिक चेहरा या आग्नेय नेत्रों वाला राम जिसे बाबरी मस्जिद गिराने के दौरान दीवारों और होर्डिंग्स पर बहुत दिखाया गया था। कुछ भी संभव है। धार्मिक सिम्बल बड़ा काम आता है राजनीतिज्ञों के।
मगध का राजा नन्द और चाणक्य को भी जातिवादी राजनीतिक चुनाव में प्रासंगिक बनाया जाएगा, शायद ये ज़्यादा कारगार साबित हो।
अचानक विकास का सिद्धांत से इतिहास के पड़ताल की ज़रुरत आन पडी। मैं अंगेज़ी के लेखक चेतन भगत को इतिहास के उपयोग का विरोध करते सुना था, जब वो भाजपा को एक टी वी शो में समर्थन कर रहे थे। चेतनजी अब फिर से इतिहास के गौरवशाली परंपरा को भाजपा के दृष्टिकोण से देखिए और telivision में बोलिए।
अब इतिहास की इस लड़ाई में बिहार, उत्तरप्रदेश और देश का वर्तमान कितना लहूलुहान होगा, वो भविष्य ही बता पायेगा।
सत्यप्रकाश गुप्ता
सत्य प्रकाश गुप्ता, लेखक फिल्म निर्देशक हैं।

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