वो काट डालेंगे बागों को ज़मीन की लूट के लिये
वो काट डालेंगे बागों को ज़मीन की लूट के लिये
रणधीर सिंह सुमन
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से मिला हुआ बाराबंकी जनपद है। लखनऊ-बाराबंकी की सीमा प्रदेश के प्रशासनिक अधिकारीयों ने सड़क के दोनों तरफ के ज़मीने फैजाबाद तक खरीद डाली हैं। कुछ ज़मीने या फार्म हाउस उनके नाम हैं और बाकी सब बेनामी सम्पत्ति है। अब इन अधिकारीयों की निगाहें दूर दराज के गाँवों में किसानो की ज़मीनों पर लगी हुयी हैं। इसके लिये वह चाहते यह हैं कि मेट्रो सिटी की योजना बना कर या विकास प्राधिकरण की योजना बनाकर सरकारी पैसे से आधारभूत ढाँचा खड़ा कर अपनी घूसखोरी की रकम से किसानो की बेशकीमती जमीन रोजगार को छीन लिया जाये। जनपद में धान, गेंहू, पिपरमिंट, सब्जियों की रिकॉर्ड पैदावार होती है। केला उत्पादन में भी जनपद प्रगति की ओर अग्रसर है, आम की बागों के लिये भी मशहूर है, सबका महाविनाश करना चाहते हैं विकास के नाम पर।
किसी भी तरह से किसानों की उपजाऊ जमीन का अधिग्रहण और उनके रोजगार छीन लेना प्रशासन की मुख्य मंशा है चाहे बाराबंकी विकास प्राधिकरण बनाकर या लखनऊ बाराबंकी मेट्रो सिटी बनाकर 163 गाँवों के किसानों की जमीन को छीन लेना मुख्य उद्देश्य है।
अधिकारियों का तर्क यह है कि प्रति वर्ष 500 करोड़ रूपये का राजस्व किसानों की जमीन छीन लेने से ब़च जायेगा, किन्तु उन्हें यह बात रखनी चाहिए कि कमीशन खोरी व घूसखोरी बन्द कर दें तो प्रतिवर्ष लगभग 1500 करोड़ रूपये की सीधी बचत राज्य सरकार को होगी और किसी किसान के खेत भी नहीं छीनने पड़ेंगे। इन अधिकारीयों का पेट ऊपरी कमाई से अब नहीं भर रहा है तो जनपद के कई अधिकारी अपने भाई-भतीजों के आड़ में प्रॉपर्टी डीलिंग, बिल्डर्स का काम शुरू कर दिए हैं और स्थिति यह हो गयी है कि हम लूटने आये हैं लूट कर जायेंगे।
बिजली नहीं, पानी नहीं, नालियों की सफाई नहीं, स्कूलों में अध्यापक नहीं, अस्पताल में डाक्टर नहीं, जनपद में कानून व्यवस्था नहीं आदि इन्हीं कामों को देखने के लिये प्रशासन होता है। लेकिन इनकी प्राथमिकता बदल गयी है कि किसानों की उपजाऊ जमीन कैसे छीनी जाये, खनिज सम्पदा की लूट कैसे की जाये ? जनपद में गोमती घाघरा सहित कई नदियाँ जिनकी बालू अवैध रूप से बेचवाने का काम शासन व प्रशासन करता है जिससे करोड़ों रुपये की अवैध कमाई होती है। कानून सिर्फ उनके लिये है जो इस अवैध कार्य में अधिकारियों के मददगार नहीं होते हैं।
भूमि अधिग्रहण के कारण देश में खेती के लायक जमीन कम हो रही है। सरकार कृषि भूमि का अधिग्रहण करने की जगह आधारभूत परियोजनाओं के लिये बंजर भूमि की पहचान करे या बंजर जमीन का उपचार कर उसे कृषि योग्य बनाए।
उपजाऊ भूमि के अधिग्रहण के बारे में फैसला लेने का अधिकार राज्यों पर छोड़ा गया है।


