पलाश विश्वास
राजनीति की बात छोड़ें,अब सिर्फ अमेरिका ही नहीं, पूरी दुनिया में यह उम्मीद पुख्ता होने जा रही है कि पुरुष वर्चस्व के रंगभेदी व्हाइट हाउस में अश्वेत राष्ट्रपति की तरह भारत में शनिमंदिर के गर्भगृह में स्त्री प्रवेश की तरह मैडम हिलेरी क्लिंटन मैडम राष्ट्रपति बन सकती हैं और पहले ही पति के सौजन्य से अमेरिकी की फर्स्ट लेडी रही, पहले अश्वेत राष्ट्रपति की पहली विदेश मंत्री रही हिलेरी पितृसत्ता को खूब जबरदस्त झटका देने वाली हैं।
अमेरिकी लोकतंत्र में सर्वोच्च पद को छूने की लड़ाई में किसी स्त्री के शामिल होने में ही पूरे 227 साल लग गये तो हम भारतीय नागरिक की हैसियत से गर्व से कह सकते हैं कि हमने 1969 में ही किसी इंदिरा गाधी की देश की बागडोर थमा दी थी और भारत की राष्ट्रपति भी कोई महिला प्रतिभा ताई बन चुकी हैं और भारत के राष्ट्रपति पद पर दलित, सिख और मुसलमान भी चुने जाते रहे हैं और फिल वक्त अमेरिकी संसद, समूची अमेरिकी सत्ता और सरकार, समूची व्यवस्था को एकमुश्त जो संबोधित कर रहे हैं, वे नरेंद्र भाई मोदी भी किसी भीम राव अंबेडकर के लिखे संविधान के तहत पूर्वचायवाला एक ओबीसी शूद्र संतान हैं। फिर भी भारत में पितृसत्ता और मनुस्मृति दोनों निरंकुश हैं।
मीडिया के मुताबिक अमेरिका की पूर्व प्रथम महिला, न्यूयार्क की सीनेटर और पूर्व विदेश मंत्री आधिकारिक तौर पर अगले माह सम्मेलन में डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार बनेंगी और रिपब्लिकन पार्टी के संभावित उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप से आम चुनाव में मुकाबला करेंगी।
हाल में जनमत सर्वेक्षण से पता चला है कि ट्रंप की तरह ही हिलेरी भी सर्वाधिक लोकप्रिय उम्मीदवारों में से एक हैं।
इतिहास बल देने से इतिहास बनता नहीं है और इतिहास बनाने के लिए पीढ़ियों की कुर्बानियों के हजारों साल की लड़ाई अनवरत जरूरी है जो सत्ता के दम पर शॉर्टकट से धर्मस्थल बनाने का दंगा फसाद नरसंहारी सुधारों का करतब होता नहीं है।
भारत के किसानों, आदिवासियों, आजादी के सेनानियों के ख्वाबों के रंग किसी विशुध उन्माद के विजयपताका के बजरंगी युद्धोन्माद से खत्म हो नहीं जाते और मरे अधमरे वे ख्वाब फिर फिर सत्ता के प्रतिरोध के मोर्चे में तब्दील होंगे।
असम और पूर्वोत्तर में आग जलाने वाले और मीडिया पर सारस्वत वर्चस्व के दम पर मसीहाई लेखनी के फतवे से बाबासाहेब को प्रूफ रीडर बताने वाले भी सोच लें कि उनके कल्कि अवतार का कायाकल्प भी आखिरकार बाबासाहेब के मिशन का नतीजा है।
किसी के चेहरे से कुछ बदल रहा होता तो असम उल्फा के हवाले न होता और न देश और देश के प्राकृतिक संसाधन, राष्ट्र की एकता, अखंडता, संप्रभुता और नागरिकों की जान माल गोपनीयता आजादी सुरक्षा देशी विदेशी पूंजी के हवाले होता और देश के किसानों, मेहनतकशों, छात्रों, युवाओं, स्त्रियों और आदिवासियों के हकहकूक का रोज रोज कत्लआम होता और जल जंगल जमीन और नागरिकता की डकैती होती और फिजां इसतरह कयामत बन जाती कि ग्लेशियर भी दावानल से पिघलने लगे हैं और समुंदरों में आग लगी है। आसमान गिर रहा है और जमीन दहक रही है। यह धर्मराष्ट्र का समाज वास्तव है।
याद रखें कृपया कि बाबासाहेब का जाति उन्मूलन मिशन मसीहावृंद की अखंड गद्दारी के बावजूद अभी खत्म हुआ नहीं है और मुक्तबाजारी एजंडा भारत की सरजमीं पर लागू करने से पहले तमाम किसानों, आदिवासियों, मेहनतकशों, छात्रों और युवाओं, पितृसत्ता के खिलाफ तेजी से लामबंद होने वाली तमाम स्त्रियों और पूरी बहुजन आबादी के सफाये बिना मुक्तबाजारी मनुस्मृति राजसूय किसी वाशिंगटन के श्वेत महोत्सव में भी हो तो यह विचित्र देश भारतवर्ष किसी एक रंग से रंगेगा नहीं। समता और न्याय की लड़ाई जुल्मोसितम के इंतहा के बावजूद, हजारों लाखों रोहित वेमुला के कत्लेआम के बावजूद रुकेगी नहीं। हम रहें न रहें।
सत्ता का चेहरा पितृसत्ता और मनुस्मृति के विश्वव्यापी ग्लोबल तिलिस्म में अमेरिका और भारत में बार-बार बदलते रहे हैं। फिर भी न अमेरिकी राष्ट्र का रंगभेदी चरित्र बदला है और न भारत में शाश्वत सनातन मनुस्मृति शासन का सिलसिला टूटा है।
इसलिए अब भी न स्त्री का कोई अधिकार है और न कोई मानवाधिकार है।
किसी राष्ट्र को राष्ट्र बनने के लिए उसका अखंड भूगोल और गौरवशाली इतिहास ही काफी नहीं है।
क्योंकि किसी राष्ट्र को राष्ट्र बनने के लिए सर्वशक्तिमान सत्ता का प्रतीक वर्ण वर्चस्व रंगभेद सबसे बड़ा अवरोध है।
लोकतंत्र तब तक लोकतंत्र नहीं है जबतक कानून का राज नहीं है।
लोकतंत्र तब तक लोकतंत्र नहीं है जब तक राष्ट्र का संविधान सर्वत्र समान तौर पर लागू नहीं होता।
लोकतंत्र तब तक लोकतंत्र नहीं है जब तक सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार और समान न्याय नहीं है।
लोकतंत्र तब तक लोकतंत्र नहीं है जबतक उत्पीड़ितों वंचितों और हाशिये पर खड़ी मनुष्यता की कोई सुनवाई कहीं नहीं है।
न धर्मोन्माद राष्ट्रवाद है और न युद्धोन्माद राष्ट्रवाद है।
धर्मोन्माद और युद्धोन्माद का जो रसायन अमेरिका है और जिस अमेरिका के उपनिवेश में भारत तेजी से तब्दील पमाणु भट्टी है,उसकी परिणति महाविनाश है और मनुष्यता, सभ्यता और प्रकृति के लिए यह गहन अमावस्या की रात है और भोर को सूरज के सीने से आजाद किये बिना मुक्ति नहीं है।
जैसे मैडम हिलेरी के अमेरिका के राष्ट्रपति बन जाने से अमेरिका और बाकी दुनिया में पितृसत्ता को तनिकआंच आने की भी उम्मीद नहीं है, क्योंकि वे भी उसी तरह घृणा और हिंसा की विश्वव्यवस्था की कठपुतली होंगी जैसे कि उनके निर्मम पितृसत्ता के घनघोर प्रतिद्वंद्वी डोनाल्ड ट्रंप, जिनने गद्दाफी के साथ गठजोड़ करके अरबों डालर बनाने के बाद व्हाइट हाउस के सिंहद्वार पर दस्तक दी है। हिलेरी ने ऐलान नहीं किया है और ट्रंप ने डंके की चोट पर ऐलान किया है, बाकी दोनों का एजंडा एकमेव सत्वमेव जयते है। जैसे भारत में नरम और गर्म हिंदुत्व का राजकाज फिर वही मनुस्मृति है।
दोनों अमेरिकी आवाम के नहीं, बल्कि तेल अबीब से दुनिया पर राज करने वाले जायनी वैश्विक मुक्तबाजार के उम्मीदवार हैं न कि डेमोक्रेटिक पार्टी या रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार जैसे कि हम देखते हैं। उसी दरगाह पर फिर शीश नवाने वालों में हमारे मसीहावृंद हैं तो समझ ले साफ लफ्जों में कि हम एकमुश्त वाशिंगगटन और तेलअबीब के गुलाम प्रजाजन हैं और हम कुरुक्षेत्र हो न हो, हमारा वध ही उनका एजंडा है मुक्तबाजारी। धर्म फिर अधर्म है।
हमारी जाति की छठा इंद्रिय इतना प्रबल है कि जाति के अलावा हम हकीकत का सामना कर नहीं सकते कि हम गूंगे हैं, बहरे भी हैं हम और स्पर्श की कोई संवेदना नहीं है और हमारी जीभ पर स्वजनों के खून का जायका लगा है और हम हालात सूंघ भी नहीं सकते और इसीलिए हम देख नहीं पाते की भारत में भी रंग बिरंगे झंडों और डंडों से लैस तमाम विचारधाराओं के पाखंड के बावजूद सत्ता वर्ग में शामिल विभिन्न दलों, जातियों, मजहबों, नस्लों, क्षेत्रों के तमाम छोटे से बड़े जनप्रतिनिधि आखिरकार पितृसत्ता के ही नुमाइंदे हैं जो राष्ट्र और लोकतंत्र का कोरोबार कर रहे हैं धर्मोन्माद और युद्धोन्माद के राष्ट्रवाद के सहारे मुनाफावसूली के मुक्तबाजार के लिए।
अश्वेत राष्ट्रपति बाराक हुसैन ओबामा के दो दो कार्यकाल के बाद अमेरिका नहीं बदला और न दुनिया बदली है।
अगर मैडम हिलेरी बनी अमेरिकी राष्ट्रपति तो डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से जो सवा सत्यानाश के आसार हैं, वह कयामत का मंजर मैडम हिलेरी बंदल देंगी ऐसी उम्मीद कतई न करें।
मैडम हिलेरी के अमेरिका के राष्ट्रपति बन जाने से स्त्री अधिकार और मानवाधिकार की गारंटी होगी, ऐसा कतई उम्मीद न करें।
जब तलक दुनिया कुरुक्षेत्र है और सियासत और मजहब दोनों महाभारत है तो राष्ट्र कुल मिलाकर नागरिकों का अबाध वधस्थल है जहां पितृसत्ता निरंकुश है और शतरंज की बाजी फिर वही द्रोपदी की देह है।
ओबामा के दोहरे कार्यकाल के चूंचूं के मोरब्बे के बाद ऐसी उम्मीद पंचायती राज के प्रधानपतियों के राजकाज से कुछ बेहतर नहीं होगा, समझ लें। यह ऐसा ही है जैसे ओबीसी प्रधानमंत्री से संघ परिवार के नियंत्रण और संघ परिवार के हिंदुत्व एजंडा के खिलाफ दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और बहुजनों की बेहतरी के राजधर्म और राजकाज की की समरस प्रस्तावना भारतीय संविधान की प्रस्तावना को सिरे से खारिज कर देने की है।