सिंध-गंगा का मिलन हो- इंजीनियर अली
सिंध-गंगा का मिलन हो- इंजीनियर अली
इंजीनियर अली का साक्षात्कार
कश्मीर अगर पाकिस्तान में होता तो वह अपनी बदहाली को रोता
हर मज़हब अमन, इंसानियत, प्यार का मजहब है लेकिन पाकिस्तान में मज़हब के ठेकेदार मुल्लाओं की अलग-अलग जंग है।
पाकिस्तान के कराची शहर के बाशिंदे तथा आइडियल कॉलेज ऑफ़ टेक्नोलॉजी कराची के प्राचार्य श्री इंजीनियर अली बाराबंकी आये हुए हैं। उनसे पाकिस्तान के सन्दर्भ में हस्तक्षेप के एसोसिएट एडिटर रणधीर सिंह सुमन ने बातचीत की। उस बातचीतके प्रमुख अंश :
रणधीर सिंह सुमन : पाकिस्तानी आवाम भारत के सम्बन्ध में क्या सोचता है ?
इंजीनियर अली : पाकिस्तान में असल में दो तबके हैं एक वह तबका जो 1947 के बाद विभाजन का दर्द लेकर गया था और दूसरा तबका वहां पहले से रह रहे लोगों का है। दोनों तबकों की राय अलग-अलग है। भारत से गए लोगों की एक राय यह है कि दोनों मुल्कों की सरहदें एक हों, " सिंध-गंगा का मिलन हो " क्योंकि वह भारत को भी अपना मुल्क समझते हैं। खानदानों का बंटवारा हो गया है। आधा खानदान एक तरफ है आधा दूसरी तरफ। यह अस्वाभाविक है कि दरिया और समंदर का मिलन न हो। मैं पाकिस्तान में पैदा हुआ 60 वर्षों के बाद अब अपने पुरखों के वतन को देखने का मौका मिला।
अब जब मै चला जाऊंगा तो फिर तड़पता रह जाऊंगा। अपने पुरखों के वतन को देखने के लिए। हम लोग शादी-ब्याह, ख़ुशी-गम, बीमारी-अजारी में शिरकत नहीं कर पाते हैं और एक दूसरे को देखने के लिए तड़पते रह जाते हैं। जहाँ तक हमारी तरह के अवाम की जाती राय है कि भारत का अवाम बहुत मिलनसार, बहुत मोहब्बत करने वाले लोग, भाईचारे के जज्बे से लबरेज लोग हैं। एक बात समझ में नहीं आती कि दोनों हुकूमतें आपस में इख्तिलाफ क्यों रखती हैं ? दोनों मुल्कों के अवाम के दिल एक साथ धड़कते हैं। इसमें मजहब का कोई अमल दखल नहीं, लेकिन इनके जज्बात को हुकूमतें नहीं समझती। वहां पुराने मुकामी लोगों की राय है कि भारत बहुत अच्छा मुल्क है। यहाँ कानून की बालादस्ती है, भाईचारा है, मोहब्बत है। उनकी राय मेरी राय से अलग नहीं है। मेरी इस मुल्क के बारे मे इसलिए राय है कि मेरे तमाम रिश्तेदार इस मुल्क में बसते हैं और वह भारत के तमाम हालात से अगाही हासिल होती रहती है और हम लोगों की राय से पुराने बाशिंदे लोग परिचित होते रहते हैं। इसके अलावा प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से भी वह मुतासिर होते हैं। लेकिन कुछ भारतीय फिल्मों को देखने के बाद वहां लोग समझते हैं कि भारत में गुंडाराज है, हालाँकि ऐसा नहीं है।
पाकिस्तान के बाशिंदों को यह कहानी समझाई गयी है कि कश्मीर उनका है इसलिए कश्मीर उनको मिलना चाहिए किन्तु कश्मीर के सम्बन्ध में एक तबके की राय है कश्मीर अगर पाकिस्तान में होता तो वह अपनी बदहाली को रोता जैसे कुछ वर्षों पूर्व पूर्वी पाकिस्तान की हो गयी थी और जिन्हें पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश होना पड़ा था।
रणधीर सिंह सुमन : पाकिस्तान में लोग सामान्यतः कितनी शादियाँ करते हैं ?
इंजीनियर अली : सामान्य जन एक शादी करते हैं किन्तु बढेरा ( जमींदार और सरमायादार ) कई शादियाँ करते हैं और शादी के बगैर कई खवातीन रखते हैं।
रणधीर सिंह सुमन: पाकिस्तान में सामान्यत: कितने बच्चे एक व्यक्ति के होते हैं ?
इंजीनियर अली : गुरबत के कारम आम अवाम के ज्यादा बच्चे होते हैं लेकिन मिडिल क्लास में एक बेटा, एक बेटी या एक बेटा दो बेटी होती हैं। उच्च तबके में जैसे बढेरा, वह खानदान में की गयी शादी से एक या दो, तीन बच्चे पैदा करता है। अन्य खवातीन से वह शादी तो करता है किन्तु बच्चे पैदा नहीं होने देता है।
रणधीर सिंह सुमन: मजहब के हिसाब से पाकिस्तान में कितने लोग जीते हैं ?
इंजीनियर अली : अकसरियत शदीद मजहबी जज़्बात तो रखती है, लेकिन इस्लाम के बारे में कोई जानकारी नहीं रखती है। जो उनके बड़े करते आ रहे हैं, वही यह कर रहे हैं।
रणधीर सिंह सुमन : इस्लाम अमन-प्यार, इंसानियत का मज़हब है ? लेकिन क्या ऐसा आचरण पाकिस्तान में देखने को मिलता है ?
इंजीनियर अली : बिलकुल हकीकत यही है कि इस्लाम अमन, प्यार, इंसानियत का मज़हब है बल्कि यूँ कहा जाए कि हर मज़हब अमन, इंसानियत, प्यार का मजहब है लेकिन पाकिस्तान में मज़हब के ठेकेदार मुल्लाओं की अलग-अलग जंग है। यह इनकी जाती जंग है जो मज़हब की आड़ में खेली जा रही है। मुल्ला आपस में एक दूसरे को काफिर कहते हैं, जबकि दुनिया का कोई आदमी मज़हब के नाम पर इंसानियत के खिलाफ हरगिज़ नहीं जा सकता है। मज़हब के नाम पर मुल्लाओं की ठेकेदारी है। मज़हब के नाम पर मासूम बच्चों का कत्लेआम पेशावर स्कूल में किया गया, क्या यही इस्लाम है या यूँ समझिये पाकिस्तानी शायर की जुबान से-
है जाम के शीशा कोई महफूज़ नहीं है
पत्थर भी मेरे दौर के अबदाद तलब हैं
मुल्क के हालात वहां की शायरी में देखिये।
अपने असलाफ अपनी झूठी अना के लिए
नस्ल-ए-आदम में तफरीक करते रहे
अब गिरोहों में खलक-ए-अल्लाह बंट गई
जाति है कौम है मुल्क है रंग है
एक आदम की औलाद में जंग है
एक भाई ऐश में मदहोश है
दूसरे भाई पर ज़िन्दगी तंग है
एक भाई सर से लहू है रंग
दूसरे भाई के हाथ में संग है
ऐसे भी गम चेहरे पर लिखे हुए


