स्वदेशे भुवनत्रयम्। यह धरती ही क्या ब्रह्माण्ड के तीनों लोक मेरा स्वदेश हैं।
स्वदेशे भुवनत्रयम्। यह धरती ही क्या ब्रह्माण्ड के तीनों लोक मेरा स्वदेश हैं।
"ऐ चारागर मना मेरे तेग़ आज़मा की ख़ैर
अब दर्दे सर की फ़िक़्र न कर दर्दे सर गया।"
अर्थात - सरदर्द दूर करने का सबसे बेहतर नुस्ख़ा यह है कि सर ही धड़ से अलग कर दो।
क्या खूब, कि विश्वविद्यालय में कुछ ने कुछ अनुचित नारे लगाये, तो विश्वविद्यालय को ही समाप्त कर दो।
मुझे अपने छुटपन में सुनी गढ़वाली कहावत आज कितनी सामयिक प्रतीत हो रही है कि -
गाली दिन्यान मनखी नी मरदा, ताता पाणी न कूड़ा नी फुकेंदा।
( गाली देने से मनुष्य नहीं मरा करते और खौलते पानी से मकान नहीं जलते)।
अस्तु, तनूरेव तन्वो अस्तु भेषजम्। शरीर ही शरीर की दवा है, न कि शरीरोच्छेद। - ऋग्वेद ।
मैं देशविरोधी नारे लगाने वालों की तीव्र भर्त्सना करता हूँ, लेकिन देशद्रोही उन्हें मानता हूँ, जो गला फाड़- फाड़ कर भारत माता की जय जानबूझ कर इस आक्रामक अंदाज़ में बोलते हैं कि भारत माता की जय होने की बजाय उत्तरोत्तर क्षय होती जाती है।
मैं अपने देश समेत सभी देशों की जय चाहता हूँ और चाहता रहूँगा। मैंने अपने पुराणों में यही पढ़ा है कि स्वदेशे भुवनत्रयम्। यह धरती ही क्या ब्रह्माण्ड के तीनों लोक मेरा स्वदेश हैं।


