क्या होम ट्यूशन में लड़कियां सुरक्षित हैं?

बिहार के मुजफ्फरपुर जिला स्थित मड़वन ब्लॉक की रहने वाली एक 16 वर्षीय नाबालिग निर्मला (बदला हुआ नाम) अपने साथ बचपन में हुए यौन दुराचार की घटना (childhood sexual abuse incident) के बारे में सुनाते हुए फूट-फूट कर रोने लगी. वह बताती है कि जब 6-7 साल की उम्र में दूसरी कक्षा में पढ़ रही थी, तभी उसके साथ यह अमानवीय घटना घटी थी. उसके पैरेंट्स ने दूर के एक चाचा के 21 वर्षीय बेटे को उसे पढ़ाने के लिए कहा. कुछ दिन तक उसने उसे और उसकी बहनों को खूब अच्छे से पढ़ाया. बाद में थोड़ी-थोड़ी गलती पर भी उसने बच्ची की मां से शिकायत करनी शुरू कर दी. निर्मला की मां ने उसे मारपीट कर पढ़ाने को कहा.

वह बताती है कि 'कभी-कभी मां जब घर पर नहीं रहती थी, तब वह पढ़ाने चला आता था. मां को उस पर कोई शक नहीं था, जिसका वह लाभ उठाने लगा और पढ़ाने के बहाने उसके अंगों को स्पर्श करना शुरू कर दिया. एक दिन उसने होमवर्क नहीं बनाने के कारण उसकी काफी पिटाई की.' मां के डर के कारण निर्मला सब सहती रही. एक दिन चाचा के उस 21 वर्षीय बेटे ने मासूम निर्मला से कहा कि 'यदि जैसा मैं करूंगा वैसा करने दोगी, तो मैं नहीं मारूंगा और यदि उसने अपनी मां को कुछ भी बताया तो इससे भी ज्यादा मारूंगा.

इस तरह निर्मला के साथ शुरू हुआ शारीरिक शोषण का सिलसिला. एक तो बचपना की नासमझी और ऊपर से मार का डर, उसे शारीरिक पीड़ा झेलने के लिए बाध्य करता रहा. वह बताती है कि उसका सपना पढ़ लिख कर अफसर बनने का था, लेकिन आज वह एक ट्रॉमा पेशेंट बनकर जी रही है.

वास्तव में, लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न और हिंसा की खबरें (Reports of sexual harassment and violence against girls) आये दिन समाचार की सुर्खियां बनती रहती हैं. स्कूल-कॉलेज की छात्राओं, कामकाजी महिलाओं, घरेलू औरतों से लेकर असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाली महिला मजदूरों के साथ कार्यस्थल पर ही शारीरिक शोषण झेलना जैसे इनकी नियति बन गयी है. महिलाएं घर से बाहर महफूज नहीं हैं, घर की चहारदीवारी के भीतर भी वे पूर्णतः सुरक्षित नहीं हैं. निकट संबंधियों, दूर के रिश्तेदारों और घर में आने-जाने वाले मित्रों-पड़ोसियों की बुरी नजर से भी मासूम बच्चियां बच नहीं पाती हैं. यहां तक कि शिक्षकों में गिरते नैतिक व चारित्रिक स्तर के कारण कोचिंग संस्थानों में पढ़ाने वाले टीचर भी छात्राओं को अपना शिकार बनाने से बाज नहीं आते हैं. इन सबसे बचने के लिए अक्सर माता-पिता अपनी बच्चियों को होम ट्यूशन दिलवा कर निश्चिंत हो जाते हैं. लेकिन क्या ऐसा हो पाता है? सच तो यह है कि लड़कियां न घर में सुरक्षित हैं और न ही बाहर.

मुजफ्फरपुर के सरैया प्रखंड की 19 वर्षीया एक यौन पीड़िता मंजूला (बदला हुआ नाम) का कहना है कि 'जिस आदमी पर हवस सवार हो जाता है, उसकी नजर में पवित्र रिश्ते भी बेमानी हो जाते हैं. वह व्यक्ति दादा, चाचा, मामा, भाई, फूफा, भतीजा, शिक्षक या फिर दोस्त किसी भी रूप में सामने आ सकता है. लोग बाहर वालों से ज्यादा घर वालों एवं सगे-संबंधियों पर आंख मूंदकर भरोसा कर बैठते हैं और बच्चों को उनके साथ अकेला छोड़ देते हैं. यह जरूरी नहीं कि हम जो देख रहे हैं, वह सही ही हो. हमारी आंखों के सामने बहुत कुछ होता रहता है और हम समय रहते उसे भांप नहीं पाते हैं. जिसका परिणाम बहुत बुरा होता है. इसका सबसे नकारात्मक प्रभाव बच्चियों के मन मस्तिष्क पर पड़ता है.'

अक्सर मां-बाप की लापरवाही होती है बच्चों के साथ हादसों के पीछे

मंजूला भी घर के एक बेहद करीबी रिश्तेदार द्वारा यौन शोषण का शिकार हुई थी. वह कहती है कि 'ऐसे हादसों के पीछे अक्सर मां-बाप की लापरवाही होती है. वह बाहर के शिक्षक पर भरोसा नहीं करते हैं और घर पर आकर पढ़ाने वाले शिक्षक पर जरूरत से ज्यादा ही भरोसा कर लेते हैं. छोटी उम्र में बच्चों के पास सही और गलत की पहचान की समझ नहीं होती है. अच्छे और बुरे स्पर्श के बारे में उनके साथ कभी चर्चा भी नहीं की जाती है. कुछ मां-बाप की यह भी गलती होती है कि वे अपने बच्चों को वक्त ही नहीं देते हैं. उनके साथ उनका व्यवहार दोस्ताना न होने की वजह से बच्चे अपनी गलतियों को छुपाने लगते हैं.

अधिकांश यौन अपराधी पीड़िता के परिचित होते हैं

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, परिवार के किसी सदस्य द्वारा यौन दुर्व्यवहार के परिणाम अधिक गंभीर और दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक आघात हो सकता है. अधिकांश यौन शोषण अपराधी पीड़िता के परिचित होते हैं. रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में लगभग 30 प्रतिशत बच्चियों के बिलकुल करीबी रिश्तेदार होते हैं. लगभग 60 प्रतिशत अन्य परिचित जैसे कि परिवार के दोस्त, नौकर या पड़ोसी होते हैं. लगभग 10 प्रतिशत मामलों में ही अजनबी होते हैं.

आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि लोगों में पुलिस व कानून का भय बिल्कुल नहीं है और न समाज का डर व लोक-लाज का ख्याल होता है. साल 2022 में राष्ट्रीय महिला आयोग को महिलाओं के खिलाफ हुए अपराधों की लगभग 31000 शिकायतें मिलीं, जो 2014 के बाद सबसे अधिक है. पिछले संसद सत्र में केंद्र सरकार ने संसद में बताया था कि पिछले पांच सालों में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरों के डेटा के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ अपराध के लगभग एक करोड़ मामले दर्ज किए गए हैं.

मुजफ्फरपुर में संचालित एक स्थानीय गैर सरकारी संस्था ‘अमर त्रिशला सेवा आश्रम’ के सचिव रंजीत मेहता कहते हैं कि पहले संयुक्त परिवार होता था, जिस वजह से घर में कोई-न-कोई व्यक्ति रहता ही था. अब एकल परिवार का चलन बढ़ा है. यदि माता-पिता कामकाजी हैं, तो उनके बच्चों को अकेलापन झेलना पड़ता है, जिसका नाजायज फायदा उनके रिश्तेदार या फिर शिक्षक उठाते हैं. हम बच्चों को सेक्स एजुकेशन एवं गुड टच-बैड टच के बारे में भी नहीं बताते हैं. जो आगे चलकर यौन शोषण का कारण बनते हैं.

2017 की मुजफ्फरपुर शेल्टर होम की घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जब बाल सुधार गृह की बालिकाएं सुरक्षित नहीं हैं, तो स्थिति समझी जा सकती है. हालांकि इस घटना के बाद बाल संरक्षण इकाई के क्रियाकलापों पर सरकार की खास नजर है.

बाल यौन उत्पीड़न की शिकायत कहां करें

बाल यौन उत्पीड़न की शिकायत करने के लिए भारत सरकार की हेल्पलाइन नंबर 1098 पर संपर्क कर सकते हैं. साथ ही राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के टोल फ्री नंबर 18002330055 पर अथवा आयोग की वेबसाइट पर जाकर ‘ई-बाल निदान’ पर भी अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं.

यह संबंधित सरकारों एवं कानून-व्यवस्था की नाकामी है कि महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की संख्या घटने के बजाय बढ़ती ही जा रही है. ये आंकड़े इस ओर इशारा करते हैं कि हमारा कथित सभ्य समाज लगातार असभ्य, अनैतिक एवं अपराधी-प्रवृति का होता जा रहा है. यह भटकाव इंटरनेट क्रांति के बाद और तेजी से हुआ है. हर घर में छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक के हाथों में इंटरनेट से लैस एंड्रायड मोबाइल की उपलब्धता हो गयी है. स्मार्टफोन पर आसानी से पोर्न फिल्में उपलब्ध हो जाती हैं, जो खासकर छोटे-छोटे बच्चों एवं किशोर-किशोरियों के लिए घातक सिद्ध हो सकती हैं, क्योंकि उन्हें इन चीजों की समझ होती नहीं है. युवाओं एवं बुजुर्गों में भी इंटरनेट की दुनिया चारित्रिक पतन का एक बड़ा कारण है. ऐसे में समाज और सरकारों को महिलाओं के विरुद्ध बढ़ते अपराध को रोकने के लिए ठोस उपायों पर विचार करने की जरूरत है. किसी भी राज्य में बढ़ता अपराध अपराधियों के बढ़ते हौसले के कारण नहीं बल्कि सरकार द्वारा उसे रोक पाने में नाकाम रहने के कारण होता है.

प्रियंका साहू

मुजफ्फरपुर, बिहार

(चरखा फीचर)

Girls are not safe even in home tuition.