शेष नारायण सिंह

कर्णाटक विधान सभा का चुनाव मई 2018 में होने की संभावना है। लेकिन राज्य में अभी से चुनाव की तैयारी पूरी शिद्दत से शुरू ही गयी है। भाजपा ने भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री येदुरप्पा को हटा दिया था लेकिन अब उनको फिर वापस लाकर राज्य में पार्टी की कमान थमा दिया है। पार्टी में भारी मतभेद हैं लेकिन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने उम्मीद का दिया जला दिया है। अमित शाह मूल रूप से आशावादी हैं। उन्होंने आशा की किरण तो त्रिपुरा और केरल में भी दिखाना शुरू कर दिया है, कर्नाटक में तो खैर उनकी अपनी सरकार थी।

अब भाजपा को राजनीतिक जीवन में शुचिता भी बहुत ज़्यादा नहीं चाहिए, क्योंकि हाल के यू पी और उत्तराखंड के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने कांग्रेस सहित विपक्षी पार्टियों के उन नेताओं को टिकट दिया और मंत्री बनाया जिनके खिलाफ भाजपा के ही प्रवक्तागण गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते रहे हैं। गोवा और मणिपुर में भी जिस स्टाइल में सरकारें बनायी गयीं, वह भी भाजपा की पुरानी वाली शुचिता की राजनीति से बहुत दूर माना जा रहा है। इस पृष्ठभूमि में जब दोबारा येदुरप्पा को कर्नाटक की पार्टी सौंपने का फैसला आया तो कोई ख़ास चर्चा नहीं हुयी।

CM of Karnataka, Siddaramaiah,Karnataka assembly electionsकर्नाटक की प्रभावशाली जाति लिंगायत से आने वाले येदुरप्पा का प्रभाव राज्य में है। यह बात और साफ़ हो गयी थी जब उन्होंने भाजपा से अलग होने के बाद अपनी पार्टी बनाकर चुनाव को ज़बरदस्त तरीके से प्रभावित किया था। भाजपा को उम्मीद है कि लिंगायत समूह का साथ तो मिल ही जाएगा और अगर पार्टी के अन्य बड़े नेता ईश्वरप्पा का जातिगत असर चल गया तो अच्छी संख्या में समर्थन मिल जाएगा।

यह देखना दिलचस्प कि कुरुबा जाति के ईश्वरप्पा की ही बिरादरी के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया भी हैं। उनकी जाति की संख्या खासी है। ज़ाहिर है सिद्धारमैया को कमज़ोर करने के लिए यह बाज़ी चली गयी है।

State President of @BJP4Karnataka, Former CM of Karnataka, Loksabha Member from Shivamoggaजानकार बताते हैं कि कर्णाटक के वर्तमान मुख्यमंत्री को कमज़ोर करके आंकने की ज़रुरत नहीं है। कांग्रेसी आलाकमान की संस्कृति में उनका मुख्यमंत्री के रूप में बचे रहना उनकी राजनीतिक क्षमता का ही एक संकेत है। जब उनको 2013 में मुख्यमंत्री बनाया गया तो कांग्रेस की अगुवाई वाली केंद्र में सरकार थी. उस वक़्त कर्णाटक के इंचार्ज महामंत्री दिग्विजय सिंह थे। ऐसा माहौल बना कि कांग्रेस की सरकार बन गयी और बड़े बड़े कांग्रेसी वफादारों को दरकिनार करके सिद्धारमैया ने सत्ता हासिल कर ली। उनके साथ बहुत सारे नेगेटिव भी थे। मसलन वे समाजवादी पृष्ठभूमि से आये थे और कांग्रेस की धुर विरोधी जनता पार्टी के सदस्य रह चुके थे, लेकिन वफादार कांग्रेसियों के विरोध के बावजूद जमे रहे और आज तक जमे हुए हैं। अब बेंगलूरू में जो चर्चा है उसके अनुसार कांग्रेस के दिल्ली के नेताओं में अब हिम्मत नहीं है कि चुनाव के पहले उनको हटा दिया जाए।

CM of Karnataka, Siddaramaiah,Karnataka assembly elections2018 के मई महीने में संभावित विधान सभा चुनावों की तैयारी सिद्धारमैया ने बहुत पहले से शुरू कर दी थी। इस हफ्ते उन्होंने एक ऐसा फैसला किया है जो निश्चित रूप से चुनाव के नतीजों को प्रभावित करेगा।

दलितों के लाभ के लिए मुख्यमंत्री ने बजट में ही बहुत सारी योजनायें लागू कर दी थीं। अब उनको और बढ़ा दिया गया है। इन नयी योजनाओं की जानकारी मीडिया को इसी 2 जून को दी गयी।

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने घोषणा की कि दलितों के लिए बहुत सारी योजनायें तुरंत प्रभाव से लागू की जा रही हैं। सरकारी संस्थाओं में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे दलित छात्रों को मुफ्त में लैपटाप तो पहले से ही था, अब निजी स्कूल कालेजों में पढने वाले दलित छात्रों को भी यह सुविधा दी जायेगी।

अभी दलित छात्रों को बस में चौथाई कीमत पर बस पास मिलते हैं। अब बस पास बिलकुल मुफ्त में मिलेगा।

दलित जाति के लोगों अभी तक ट्रैक्टर या टैक्सी खरीदने पर दो लाख रूपये की सब्सिडी पाते थे अब वह तीन लाख कर दिया गया है। ठेके पर काम करने वाले गरीब मजदूरों, पौरकार्मिकों, को अब तक रहने लायक घर बनाने के लिए दो लाख रूपये का अनुदान मिलता था, अब उसे चार लाख कर दिया गया है।

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इसी साल करीब एक हज़ार दलित किसानों को विदेश यात्रा पर ले जाने के लिए समाज कल्याण और कृषि विभाग के अधिकारियों को निर्देश दे दिए गए हैं।

दलितों के कल्याण के लिए पिछले चार वर्षों में करीब पचपन हज़ार करोड़ रूपये खर्च किये जा चुके हैं। इस साल के लिए करीब अट्ठाईस हज़ार करोड़ रूपये की अतिरिक्त व्यवस्था कर दी गयी है। जो दक्षिण भारत की राजनीति को समझता है उसे मालूम है कि कांग्रेसी मुख्यमंत्री चुनाव को अपने पक्ष में करने के लिए ही सारे क़दम उठा रहे हैं।

यह सारा कार्य योजनाबद्ध तरीके से हो रहा है। अब तक माना जाता था कि कर्णाटक में वोक्कालिगा और लिंगायत, संख्या के हिसाब से प्रभावशाली जातियां हैं। लेकिन चुनाव के नतीजों पर यह नज़र नहीं आता था। सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने जाति के आधार पर जनगणना करवाई। इस जनगणना के नतीजे सार्वजनिक नहीं किये जाने थे लेकिन पिछले साल अप्रैल में कुछ पत्रकारों ने जानकारी सार्वजनिक कर दी।

सिद्धारमैया की जाति के लोगों की संख्या 43 लाख यानी करीब 7 प्रतिशत बतायी गयी। इसी वजह से यह चर्चा भी शुरू हो गयी कि मुख्यमंत्री के दफ्तर से ही जानकारी लीक की गयी थी।

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बहरहाल लीक किसी ने किया हो लेकिन जानकारी अब पब्लिक डोमेन में आ गयी है जिसको सही माना जा रहा है।

CM of Karnataka, Siddaramaiah,Karnataka assembly electionsइस नई जानकारी के बाद कर्णाटक की चुनावी राजनीति का हिसाब किताब बिलकुल नए सिरे से शुरू हो गया है। नई जानकारी के बाद लिंगायत 9.8 प्रतिशत और वोक्कालिगा 8.16 प्रतिशत रह गए हैं। कुरुबा 7.1 प्रतिशत, मुसलमान 12.5 प्रतिशत, दलित 25 प्रतिशत ( अनुसूचित जाति 18 प्रतिशत और अनुसूचित जन जाति 7 प्रतिशत ) और ब्राह्मण 2.1 प्रतिशत की संख्या में राज्य में रहते हैं।

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अब तक कर्नाटक में माना जाता था कि लिंगायतों की संख्या 17 प्रतिशत है और वोक्कालिगा 12 प्रतिशत हैं। इन आंकड़ों को कहाँ से निकाला गया, यह किसी को पता नहीं था लेकिन यही आंकड़े चल रहे थे और सारा चुनावी विमर्श इसी पर केन्द्रित हुआ करता था। नए आंकड़ों के आने के बाद सारे समीकरण बदलेगें, इसमें दो राय नहीं है।

इन आंकड़ों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं लेकिन यह भी सच है कि दलित नेता इस बात को बहुत पहले से कहते हैं।

दावा किया जाता रहा है कि अहिन्दा ( अल्पसंख्यक, हिन्दुलिदा यानी ओबीसी और दलित ) वर्ग एक ज़बरदस्त समूह है।

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जानकार मानते हैं कि समाजवादी सिद्धारमैया ने चुनावी फायदे के लिए अहिन्दा का गठन गुप्त रूप से करवाया है। मुसलमान, दलित और सिद्धारामैया की अपनी जाति कुरुबा मिलकर करीब 44 प्रतिशत की आबादी बनते हैं, जोकि मुख्यमंत्री के लिए बहुत उत्साह का कारण हो सकता है।

दलितों के लिए बहुत बड़ी योजनाओं के पीछे यही नए आंकड़े काम कर रहे बताये जा रहे हैं।

इन आंकड़ों का कर्णाटक की ताक़तवर जातियां विरोध कर रही हैं।

बहुत ही प्रभावशाली लिंगायत मठों से भी इन आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाये जा रहे हैं। वे कहते हैं कि इससे समाज में बंटवारा और बढ़ेगा। यह सारी चिंता शायद इसलिए है कि संख्या के बल पर राजनीतिक सत्ता को खिसकते देख कर शासक वर्गों को परेशानी तो हो ही रही है।

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अगले साल जनवरी में चुनाव अभियान शुरू होगा लेकिन कर्णाटक में अभी से किलेबंदी शुरू हो गयी है। इस चर्चा में पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौडा की पार्टी का ज़िक्र नहीं आया है। उनके बेटे एच डी कुमारस्वामी मज़बूत नेता रहे हैं, मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं लेकिन अब लगता है कि अमित शाह के पूरे समर्थन से मैदान में आये येदुरप्पा और कांग्रेस की अकेली उम्मीद सिद्धारमैया के बीच होने जा रहे चुनाव में वे या तो वोटकटवा साबित होंगें या किसी के साथ मिल जायेंगें, क्योंकि देश की राजनीति की तरह ही कर्णाटक का चुनाव स्वार्थ की स्थाई धरा की मुख्य प्रेरणा से लड़ा जायेगा।