इक गढ़े सच पर अंधा राष्ट्र चल रहा है.. भक्त सोचते हैं देश बदल रहा है
इक गढ़े सच पर अंधा राष्ट्र चल रहा है.. भक्त सोचते हैं देश बदल रहा है

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इक गढ़े सच पर अंधा राष्ट्र चल रहा है.. भक्त सोचते हैं देश बदल रहा है
ओ इतिहास पर पलने वाली दीमकों..
बस भी करो..
अब छिजी हुई भारतीयता में संस्कृति की नंगी टाँग..
साफ़ नज़र आ रही है..
लाचार इतिहास की छातियों पर बने तुम्हारे पपड़ीदार बमौटो ( दीमको के घर) में छिपे सिवाहीयों ( लम्बे सर वाली दीमक ) ने बहुत चाट लिये पुराण...
रामायण की जिल्द तलक नहीं छोड़ी..
हर्फ़ दर हर्फ़ चाटा दशरथ, कौशल्या, भरत, लक्ष्मण, उर्मिला, जानकी
और भी जाने क्या-क्या...
यहाँ तक कि कैकयी और मंथरा भी तुम्हारी चटोरी जीभ के तालू से नहीं बच सकीं..
और राम पर
चिपक कर पूरा का पूरा कुनबा ही तर गया
हर तरफ़ तुम्हारे लाल ( दीमकों के सिर का रंग ) नारंगी सर ही सर नज़र आते हैं..
नस्लों के फूले पेट किसी से छुपे नहीं है..
तुम्हारे सफ़ेद धड़ों में दिल है ही नहीं, जो धड़के..
साजिशें लंका की होतीं तो हनुमान ही काफ़ी थे
यक़ीनन इसमें रावण का छल नहीं शामिल....
इक पर वाले धोबी के हाथ लग गई राम की मर्यादा...
सो चट गयी..
अब दीमक दल महाभारत पर आँख लगाये है..
क्योंकि राजनैतिक जुये में साड़ी नहीं...
अबकी चड्ढियों पर दाँव लगा है..
और मुझे यक़ीन है पूरा यक़ीन कि
कृष्ण अब चीर नहीं बढ़ाएगा...
और देश भी द्रोपदी को नहीं बचायेगा..
क्योंकि देश दूरबीन से पाकिस्तान देखने में मशगूल है…
डॉ. कविता अरोरा