विनाशकाले विपरीत बुद्धि: 2014 से 2025 तक अघोषित आपातकाल ?
25 जून 1975 की रात की तरह आज भी भारत में अभिव्यक्ति की आज़ादी खतरे में है। क्या हम एक अघोषित आपातकाल का सामना कर रहे हैं? पढ़ें डॉ सुरेश खैरनार का एक विश्लेषण...

आपातकाल की ऐतिहासिक रात और जयप्रकाश नारायण का कथन
- लालकृष्ण आडवाणी की चेतावनी: एक अघोषित आपातकाल
- लोकतंत्र पर खतरे: पत्रकारिता, अभिव्यक्ति और गिरफ्तारियां
- संवैधानिक संस्थाओं पर नियंत्रण और दमन
- भाजपा का 'राजधर्म' बनाम व्यवहारिक वास्तविकता
- हिटलर से तुलना: इतिहास दोहराने की आहट?
- आधुनिक भारत में विरोध का दमन और रणनीतिक चुप्पी
- डॉ. सुरेश खैरनार की दृष्टि से 50 वर्षों की राजनीति की यात्रा
क्या लोकतंत्र फिर संकट में है? सवाल अनुत्तरित हैं
25 जून 1975 की रात की तरह आज भी भारत में अभिव्यक्ति की आज़ादी खतरे में है। क्या हम एक अघोषित आपातकाल का सामना कर रहे हैं? पढ़ें डॉ सुरेश खैरनार एक विश्लेषण।
विनाशकाले विपरीत बुद्धि
25 जून 1975 को आधी रात के बाद दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में दिल्ली पुलिस जयप्रकाश नारायण के कमरे में घुसकर और उन्हें नींद से उठाकर, कहा कि "श्रीमती इंदिरा गाँधी जी ने आपातकाल की घोषणा कर दी है. और आपको गिरफ्तार करने का ऑर्डर दिया है" तब जयप्रकाश नारायण के मुंह से अनायास ही "विनाश काले विपरीत बुद्धि" निकल गया था, जो मुझे पिछले 11 सालों से भारतीय जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आने के बाद से लगातार महसूस हो रहा है.
भारतीय जनता पार्टी के भीष्म पितामह, और हमारे देश के पूर्व उपप्रधान मंत्री, लालकृष्ण आडवाणीजी ने भी आज से दस साल पहले 25 जून 2015 को, श्रीमती इंदिरा गाँधी जी के द्वारा आपातकाल की घोषणा के 40 साल होने के उपलक्ष्य में तत्कालीन इंडियन एक्सप्रेस के प्रधान संपादक श्री. शेखर गुप्ता को, 'वॉक विद टॉक' एनडीटीवी ('Walk with Talk' NDTV) के कार्यक्रम के लिए, एक साक्षात्कार में, खुलकर कहा था कि "उस समय के आपातकाल की घोषणा को आज 40 साल हो रहे हैं, लेकिन पिछले एक साल से भारत में अघोषित आपातकाल जारी है. उसका क्या ?
वैसे तो उनके कथन के अनुसार, "भारत में पिछले 11 सालों से अघोषित आपातकाल और सेंसरशिप जारी है. लेकिन उसके बावजूद कुछ पत्रकारों का ज़मीर जिंदा है, वह अपने तरीके से अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहे थे. 'इसलिए कि सुबह के छ बजे न्यूज क्लिक की टीम के छ पत्रकारों को दिल्ली पुलिस गिरफ्तार करके ले गए थी. इसी तरह कांग्रेस के बैंक खातों को सीज़ करना और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार करने, और उसके पहले लालू प्रसाद यादव से लेकर हेमंत सोरेन, मायावती, ममता बनर्जी, नीतिश कुमार, शिवसेना तथा एनसीपी कांग्रेस तथा विरोधी दलों को तोड़कर महाराष्ट्र की सत्ता को हथियाने का उदाहरण, पार्टी विथ डिफरंस द्वारा किया गया है. कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गोआ तथा उत्तर पूर्वी प्रदेशों में, जोड़तोड़ करते हुए, अपनी पार्टी की सरकारों को बनाना और सबसे हैरानी की बात, हमारे देश की पार्लियामेंट, चुनाव आयोग, ईडी, सीबीआई, आई बी, सेबी, बैंक, बीमा कंपनियां मतलब भारत के सभी संवैधानिक संस्थानों को कब्जे में लेकर विरोधी दलों को खत्म करवाना. भारतीय राजनीति के इतिहास में पहली बार किसी सत्ताधारी दल द्वारा, धड़ल्ले से हो रहा है. और रात के अंधेरे में केजरीवाल को पूछताछ के बहाने गिरफ्तार करने के कृत्य को, भारतीय राजनीति में पहली बार किसी सत्ताधारी मुख्यमंत्री को, बगैर कोई सबूत दिखाए, गिरफ्तार करने की घटना और वह भी लोकसभा चुनावों की घोषणा होने के बाद देखकर तो सीधी राजनीतिक बदले की कार्रवाई लगती है. चार सौ का आकड़ा पार करने के लिए क्या- क्या कारनामे किए गए ? वैसे तो चुनाव आयोग तो पूरी तरह सरकार की मुठ्ठी में है. और ईवीएम के बारे में हैकिंग का मुद्दा तो है ही, अचानक वोटर के नाम गायब होना या सुविधाजनक जगहों पर बढ़ जाने के उदाहरण किए जा रहे हैं. लेकिन सत्ता के नशे में, जिस तरह से इंदिरा गाँधी भी अपना आपा खो बैठीं थी बिल्कुल ही आज वही दोहराया जा रहा है.
और गैरभाजपा सरकारों के साथ वहाँ भेजे गए राज्यपालों के व्यवहार सिर्फ उदाहरण के लिए, तमिलनाडु के राज्यपाल का, एक मंत्री को शपथ दिलाने से इन्कार करना तमिलनाडु विधानसभा में पारित विधेयक रोककर रखना भारतीय संविधान का उल्लंघन का संगीन अपराध है. जिसका संज्ञान हमारे सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को लेना पड़ा. अन्य गैरभाजपा राज्यों में तो राज्यपालों द्वारा वहां के मुख्यमंत्रियों के कामकाज में दखलंदाजी करना आम बात हो गई है. शायद ही कोई गैरभाजपा राज्य होगा जहां राज्यपालों की तरफ से वहां की सरकारों के साथ असंवैधानिक हस्तक्षेप करने के रोजमर्रे के उदाहरण नहीं है.
पूरे देश में सिर्फ भाजपा की ही सरकारें चलाने का नशा जो सरपर चढ़ गया है. लेकिन अंग्रेजों के 'बाँटो और राज करो 'के जैसे एक बार और बंटवारे का सामना करना पड़ सकता है. वही नौबत संघ और उसकी राजनीतिक इकाई भाजपा हमारे देश में लाने की कोशिश कर रहे हैं. गोहत्या बंदी, वफ्क बिल, 370, राममंदिर, एन आर सी हिजाब जैसे मुद्दों को लेकर, अल्पसंख्यक समुदायों के साथ मनमानियां करने से और क्या होगा ?
साथियों सबसे हैरानी की बात, यही भारतीय जनता पार्टी, और उसका मातृ संजठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले 50 सालों से हर साल आपातकाल की घोषणा के 25 जून के दिवस के अवसर पर, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर खूब भाषण देते रहते हैं. लेकिन आज पिछले ग्यारह साल से अघोषित आपत्कालीन परिस्थितियों का सामना संपूर्ण देश कर रहा है. इसको देखकर आपातकाल के खिलाफ बोलने का नैतिक अधिकार खो चुके हैं.
2013 में ही मीडिया संस्थाओं के मालिकों को संघ और संघ की राजनीतिक ईकाई भाजपा के फेवर में, कवरेज करने के लिए तैयार कर लिया था. जिसके लिए अंबानी और अदानी समूह ने सब से बड़ी भूमिका निभाई है.
यह देखकर मुझे जर्मनी में हिटलर ने भी आज से सौ साल पहले अपनी पार्टी के लिए, धन मुहैया कराने से लेकर मीडिया कवरेज करने के लिए, जर्मनी के उद्योगपतियों को थैलियां खोलकर धन देने के लिए, और तथाकथित जर्मनी के राष्ट्र निर्माण के लिए, बेतहाशा औद्योगिक उत्पादन करने के लिए, खुली छूट देने का आश्वासन सत्ताधारी बनाने के लिए दिया था.
2014 के मई माह के अंतिम सप्ताह में, सत्ताधारी बनने के बाद, भारत के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लेकर प्रिंट मीडिया के बहुत बड़े हिस्से ने पहले ही हथियार डाल दिए हैं. लेकिन कुछ रीढ़ की हड्डी बचे हुए लोगों ने गोदी मीडिया से मुक्त होकर अपनी अभिव्यक्ति जारी रखने की कोशिश की है.
जो मैंने मेरी उम्र के 22 वे साल में 25 जून 1975 के बाद देखा है. उस दिन मैं जयप्रकाश नारायण के बुलावे पर, पटना के लिए नागपुर से पटना की ट्रेन में सवार होकर बैठा हुआ था. और जबलपुर स्टेशन पर गाड़ी रुकने के बाद, 26 जून 1975 की सुबह - सुबह लोग फुसफुसाती आवाज में आपस में बात कर रहे थे कि "श्रीमती इंदिरा गाँधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी है. और जयप्रकाश नारायण से लेकर सभी प्रमुख विरोधी दलों के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया है." तो मन-ही-मन मैंने सोचा कि अब पटना जाकर क्या करुंगा ? तो जबलपुर स्टेशन पर ही गाड़ी में से अपने सामान को चुपचाप उठाया और स्टेशन के बाहर आकर रिक्शे वाले को बस स्टैंड के लिए चलने के लिए बोलकर बैठ गया. और 1976 के अक्तूबर के प्रथम सप्ताह में गिरफ्तार होने के पहले तक, भूमिगत काम में लगा था. तो भूमिगत रहने के समय मुझे संघ से सहानुभूति रखने वाले लोगों की भी मदद मिली. तब बातचीत में मैं उन्हें कहा करता था कि "यह जो आपातकाल जारी है, यह बहुत ही ढीला ढाला है, क्योंकि यह सिर्फ श्रीमती इंदिरा गाँधी की मर्जी से लगाया गया है. लेकिन उनके अपने दल में बहुत लोग हैं, जिन्हें यह पसंद नहीं है. लेकिन भविष्य में कभी आप लोग सत्ता में आओगे तो इंदिरा गाँधी के जैसे बगैर किसी घोषणा से ही आप लोगों का राज खुद ही आपातकाल रहने की संभावना है. क्योंकि आपका कैडर बेस संगठन है. और आज भी आपके लोग सीबीआई आईबी तथा पुलिस तथा विभिन्न क्षेत्रों में भरे हुए हैं. क्योंकि मेरे जैसे आदमी को जिस तरह से अंडरग्राउंड रहने को मिल रहा है. क्या यह सब सीआईडी की बगैर मालूमात से इतने दिनों से चल रहा है ? "
मैं जब अक्तूबर 1976 के प्रथम सप्ताह में भारत सरकार को अपदस्थ करने के षडयंत्र मे पकड़ा गया. उसके बाद जेल पहुंच कर देखता हूँ कि संघ के स्वयंसेवक छपा हुआ माफीनामे पर हस्ताक्षर किए जा रहे थे, और हमारा जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से कोई सरोकार नहीं है, और इंदिरा गाँधी द्वारा घोषित 21 पॉईंट प्रोग्राम को अमल में लाने के लिए , हमें मुक्त कीजिए, ऐसा अंडरटेकिंग लिखकर देते हुए, हस्ताक्षर अभियान चला रहे थे. तो मैंने कहा कि "श्रीमती इंदिरा गाँधी जी आपके माफीनामा और आपके अंडरटेकिंग सब कुछ अपने पास रख लेगी और आप लोग जेल में ही रहोगे. तो काहे को अपनी आबरू गंवाने की गलती कर रहे हो ?" तो बोले कि "हम तो सिर्फ एक स्टेटेजी के तहत यह सब कर रहे हैं. बाकी हमें जो करना है, वहीं करेंगे "जो बैरिस्टर सावरकर के माफीनामे के भी, समर्थन में यही तर्क संघ के स्वयंसेवक से लेकर सावरकर सिनेमा बनाने वाले, रणजित हूडा तक, देते हुए देखे जा रहे हैं.
यह वही पाखंडी लोग हैं, जो आज इस देश के सत्ताधारी बने हुए हैं. और सत्तारूढ़ होने के दूसरे ही क्षण से श्रीमती इंदिरा गाँधी से जो भी खामियां रह गई थी, उन्हें टालते हुए, बगैर आपातकाल, सेंसरशिप की घोषणा किए, हमारे देश की सभी संवैधानिक संस्थाओं, न्यायालय, जांच एजेंसियों से लेकर संसद, पुलिस, सेनाओं तथा मीडिया संस्थाओं की नकेल कसने के कामों में लग गए. और बगैर किसी भी आपातकाल की घोषणा और सेंसरशिप जो श्रीमती इंदिरा गाँधी ने घोषणा कर के लगा दी थी. इन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं करते हुए, न्यायपालिका से लेकर संसद, जाँच एजेंसियों, चुनाव आयोग से लेकर हर संवैधानिक संस्थानों को अपने खुद के सुविधा के अनुसार इस्तेमाल करने की शुरूआत कर दी है. ऐसे लोगों को आपातकाल की आलोचना करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है.
और लालकृष्ण आडवाणीजी ने इन्हें सत्ताधारी बनने के एक साल में ही कहा था कि "यह अघोषित आपातकाल और सेंसरशिप जारी है." जिस तरह से गुजरात के दंगों के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि "राजधर्म का पालन नहीं हुआ."
25-26 जून 1975 के दिन जो 50 सालों पहले की तरह ही, आज महसूस हो रहा है. भारत में 2013 - 14 के दौरान हुए चुनावी जनसभाओं को संबोधित करते हुए नरेंद्र मोदी जी ने "बार- बार हमारा प्रजातंत्र खतरे में है. जिसे बचाने के लिए आप लोगों को मैं विनती कर रहा हूँ. और हमें सिर्फ पांच साल का एक मौका "मुझे एक मौका दो" जो देकर 11 सालों से देश अघोषित आपातकाल भुगत रहा है. और इसके बावजूद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के लोगों द्वारा 1980 के बाद हर 25 - 26 जून को आपातकाल लगाने के खिलाफ पानी पी - पी कर अभिव्यक्ति की आजादी के बारे में कसीदे पढते हैं. लेकिन पिछले 11 सालों से अघोषित आपातकाल खुद लगाकर अभिव्यक्ति की आजादी का क्या?
आज से सौ वर्ष पहले जर्मनी में हिटलर भी इसी तरह के भाषण देते हुए, आम जर्मनी के लोगों को बहकाने में पंद्रह साल तक कामयाब हुआ था.
आज से सौ साल पहले जर्मनी में जर्मन सेना में, सिर्फ कार्पोरल के पद पर रहा हुआ, अडॉल्फ हिटलर की भाव भंगिमाओं को याद करते हुए लगता है कि भारत में हूबहू इतिहास दोहराया जा रहा है. वह भी ड्यूमा (जर्मनी की संसद) के रास्ते जर्मनी के सबसे बड़े पद, चांसलर तक, ऐसी ही भाषा तथा वाक़पटुता दिखा - दिखा कर पंद्रह साल सिर्फ जर्मनी ही नहीं समस्त विश्व के नाक में दम कर दिया था. उसने भी सत्ताधारी बनने के बाद, अपने विरोधियों को बेरहमी से खत्म करने से लेकर, मीडिया तथा पार्लियामेंट को आग लगा कर दूसरों के ऊपर अनाप-शनाप आरोप लगाते हुए, और जब देखो तब जर्मन राष्ट्रवाद की चाशनी में, बेतहाशा नफरत फैलाते हुए 30 जनवरी 1930 से 30 अप्रैल 1945 तक अपने सनकीपन से संपूर्ण विश्व में भयंकर आतंक फैला दिया था. और जब दूसरे महायुद्ध के अंतिम चरण में अपने पराजय को होते हुए देखकर, अपनी कनपटी पर, खुद ही पिस्टल का स्ट्रीग्रर दबा कर, अपने आपको खत्म कर लिया. तो जर्मनी के साथ संपूर्ण विश्व ने राहत की सांस ली है.
इतिहास बडा ही बेरहम होता है कब किसके साथ क्या होगा ? यह आज कहना संभव नहीं लेकिन इतिहास में हुई गलतियों से सीखकर उन्हें न दोहराना ही सबसे बड़ा बुद्धिमानी का काम है. अन्यथा जयप्रकाश नारायण को आधी रात में नींद से उठाकर दिल्ली पुलिस जब गिरफ्तार करने आई थी और पुलिस ने उन्हें कहा कि मैडम इंदिरा गाँधी जी ने आपातकाल की घोषणा कर दी है. और हमें आपकी गिरफ्तारी करने का आदेश दिया है. तब जयप्रकाश नारायण के मुहं से अनायास ही "विनाशकाले विपरीत बुद्धि" यह वाक्य निकला था.
डॉ. सुरेश खैरनार
नागपुर.
Web Title: Vinashkale Vipreet Buddhi: Undeclared emergency from 2014 to 2025?