नेपाल में उपद्रव के पीछे अमेरिका ? जस्टिस काटजू का लेख
नेपाल में हालिया Gen Z आंदोलन हिंसा और पीएम ओली के इस्तीफ़े तक पहुँच गया। जस्टिस काटजू के अनुसार यह केवल भ्रष्टाचार और बेरोज़गारी का गुस्सा नहीं, बल्कि अमेरिका-चीन शक्ति संघर्ष का परिणाम है। क्या नेपाल नई भू-राजनीतिक जंग का अखाड़ा बन रहा है? पढ़िए जस्टिस मार्कंडेय काटजू का विश्लेषण;
नेपाल में क्या हो रहा है? जस्टिस काटजू का विश्लेषण : Gen Z आंदोलन, अमेरिका-चीन टकराव और ओली का इस्तीफ़ा
- नेपाल में Gen Z आंदोलन कैसे भड़का?
- सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार के खिलाफ युवाओं का गुस्सा
- प्रदर्शन हिंसक क्यों हुए और 30 लोगों की मौत कैसे हुई?
- पीएम ओली का इस्तीफ़ा और कर्फ़्यू के हालात
- अमेरिका-यूरोप बनाम चीन-रूस : नेपाल क्यों बना शक्ति संघर्ष का मैदान?
- ओली और चीन की नज़दीकी से अमेरिका क्यों नाराज़ हुआ?
- क्या नेपाल के विरोध प्रदर्शनों के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ है?
- नेपाली सेना का नियंत्रण और जनरल अशोक राज सिगदेल की भूमिका
- नेपाल की भू-राजनीतिक अहमियत : भारत, चीन और अमेरिका के लिए क्या मायने?
आने वाले समय में नेपाल में अमेरिका-चीन का परोक्ष युद्ध?
नेपाल में हालिया Gen Z आंदोलन हिंसा और पीएम ओली के इस्तीफ़े तक पहुँच गया। जस्टिस काटजू के अनुसार यह केवल भ्रष्टाचार और बेरोज़गारी का गुस्सा नहीं, बल्कि अमेरिका-चीन शक्ति संघर्ष का परिणाम है। क्या नेपाल नई भू-राजनीतिक जंग का अखाड़ा बन रहा है? पढ़िए जस्टिस मार्कंडेय काटजू का विश्लेषण
नेपाल में क्या हो रहा है?
जस्टिस मार्कण्डेय काटजू
नेपाल में हाल की घटनाओं पर स्थिति का गहराई से विश्लेषण करने की आवश्यकता है।
यह सब 8 सितंबर 2025, सोमवार को शुरू हुआ जब 'जेन-Z' नामक एक संगठन के नेतृत्व में नेपाली युवाओं ने सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर प्रतिबंध और भ्रष्टाचार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। राजधानी काठमांडू और अन्य शहरों में यह प्रदर्शन हिंसक हो गया। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली समेत कई राजनीतिक नेताओं के घर और कार्यालयों पर हमला किया गया और कई जगहों पर आग लगा दी गई। पुलिस ने गोली चलाकर 19 प्रदर्शनकारियों की हत्या कर दी (अब मरने वालों की संख्या 30 हो गई है) और १०० से अधिक लोग घायल हो गए हैं । काठमांडू समेत कई शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया और सेना को बुलाया गया है । सभी उड़ानें रद्द कर दी गई हैं। प्रधानमंत्री ओली ने इस्तीफा दे दिया है।
इस अचानक घटनाक्रम को कैसे समझा जाए?
भारतीय और विश्व मीडिया में हिंसा के कारणों को लेकर कई तरह की कहानियां बताई गई हैं, जैसे सोशल मीडिया बैन (जिसने कथित तौर पर घटनाओं को भड़काया) के खिलाफ गुस्सा, शीर्ष राजनीतिक नेताओं का व्यापक भ्रष्टाचार, युवाओं में बढ़ती बेरोज़गारी, आदि। लेकिन, मैं अपना दृष्टिकोण बताऊँगा।
इसमें कोई शक नहीं कि नेपाल में ऊपर बताए गए सभी बुराइयाँ थीं, और ये लंबे समय से पनप रही थीं, लेकिन हाल की घटनाओं को सही ढंग से समझने के लिए उनकी गहराई में जाना होगा।
आज दुनिया में दो शक्तिशाली गठबंधन हैं (1) अमेरिका-यूरोप गठबंधन, और (2) चीन-रूस गठबंधन। ये दोनों एक-दूसरे के विरोधी हैं, लेकिन उनके पास परमाणु हथियार हैं, इसलिए वे एक-दूसरे से सैन्य रूप से नहीं लड़ते, क्योंकि इससे दोनों का ही विनाश हो जाएगा। इसलिए वे एक-दूसरे के विरुद्ध अपने गुर्गों के द्वारा अप्रत्यक्ष युद्ध से लड़ते हैं ( proxy wars )। मेरी राय में, नेपाल में हुई घटनाएँ इन दो शक्तिशाली गठबंधनों के बीच एक अप्रत्यक्ष युद्ध ( proxy war _ है।
नेपाल एक छोटा देश है, जिसकी आबादी लगभग 3 करोड़ है, जो अपने उत्तर और दक्षिण के पड़ोसी देशों, चीन और भारत की तुलना में बहुत छोटा है, जिनकी आबादी 140 करोड़ से ज़्यादा है। लेकिन यह अपने दो बड़े पड़ोसियों के बीच एक रणनीतिक स्थान ( strategic position ) पर है।
प्रधानमंत्री ओली कम्युनिस्ट हैं, और वह नेपाल को चीन के साथ और करीब ले जा रहे थे।
इससे राष्ट्रपति ट्रंप और उनके करीबी सलाहकारों को गुस्सा आना स्वाभाविक था, क्योंकि उन्हें लगा कि नेपाल, अमेरिका के मुख्य दुश्मन चीन, के साथ मिलकर काम कर रहा है।
मेरा मानना है कि नेपाल में बड़े पैमाने पर हुए विरोध प्रदर्शनों के पीछे अमेरिकियों का हाथ था, क्योंकि वे नहीं चाहते कि नेपाल, चीन-रूस गठबंधन का हिस्सा बने।
इसमें कोई शक नहीं कि नेपाल में, खासकर युवाओं में, सोशल मीडिया बैन, भ्रष्टाचार, बढ़ती बेरोज़गारी वगैरह को लेकर गुस्सा था। लेकिन जिस पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, उसके लिए आर्थिक सहायकता ( funding ) और अन्य समर्थन की ज़रूरत होती है, और यह सब अमेरिकियों ने ही दिया होगा, जो नहीं चाहते कि नेपाल, चीन का समर्थक, चमचा और गुर्गा बन जाए। बेशक, ऐसे समर्थन का कोई स्पष्ट सबूत नहीं है, लेकिन इस आधार पर तर्कसंगत अनुमान लगाया जा सकता है। जनरल अशोक राज सिगदेल की अगुवाई वाली नेपाली सेना ने अब नेपाल पर लगभग नियंत्रण कर लिया है, और अविकसित देशों के अधिकांश सेना प्रमुख पश्चिमी समर्थक और कम्युनिस्ट विरोधी होते हैं।
लेकिन चीन इस घटनाक्रम से खुश नहीं होगा, क्योंकि इससे नेपाल पर उसका दबदबा कम होगा, जो तिब्बत और अन्य क्षेत्रों पर उसके नियंत्रण और कच्चे माल जैसी बढ़ती आर्थिक ज़रूरतों के लिए बहुत ज़रूरी है। वह ज़रूर कोई प्रतिक्रिया देगा (हालांकि यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल है कि कैसी), और आने वाले समय में हम नेपाल में अमेरिका और चीन के बीच एक परोक्ष युद्ध ( proxy war ) देख सकते हैं।
(जस्टिस काटजू भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं। ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं।)