अपनी माँ की आँखों में झांक कर देखें

अपनी माँ की आँखों में झांक कर देखें

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Update: 2019-03-22 13:00 GMT

पलाश विश्वास
पलाश विश्वास एक लेखक, वरिष्ठ पत्रकार, रंगकर्मी, आंदोलनकारी व स्तंभकार हैं. उन्होंने कई रचनाएं लिखी हैं.

कमल जोशी: कैमरे की जुबान में हिमालय, इंसानियत और संवेदना की कथा

कमल जोशी सिर्फ एक फोटोग्राफर नहीं, हिमालय की जनता, प्रकृति और संघर्ष को कैमरे में जीने वाले संवेदनशील कलाकार हैं। पलाश विश्वास का यह लेख उनके रचनात्मक व्यक्तित्व, स्त्री-संवेदना, पर्यावरण सरोकार और सामाजिक अन्याय के मुद्दों पर एक आत्मीय दृष्टि प्रस्तुत करता है...

कमल जोशी नैनीताल में हमारे साथ डीएसबी कालेज के दिनों में रसायन शास्त्र से शोध करते थे और बीकर और परखनली में रसायन प्रयोगशाला में उनकी बनायी चायइस दुनिया में फिर कहीं नहीं मिली और न मिलने वाली है।

वे छात्र जीवन से हिमालय के जनजीवन में पगलाये हुए हैं। हिमालय का मतलब उनके लिए पहाड़ और पर्यावरण नहीं है सिर्फ, अर्थव्यवस्था तो है ही नहीं। हिमालयी जनता की आंखों में आंखें डालकर उनकी दिनचर्या को वे लगातार लगातार कैमरे में कैद करते रहे हैं।

हमारे लिए वे दुनिया के सबसे बेहतरीन फोटोकार कलाकार हैं, जिसके हरफ्रेम में कायनात की खूबसूरती में इंसानियत का कलरव है।

कमल कभी लिखते नहीं है।

वे कैमरे की जुबान में बातें करते हैं।

गिरदा और हमारे जैसे उधमियों के बीच वे हमारी उमा भाभी की तरह खामोश रहे हैं हमेशा।

इस बार जब राजीव नयन दाज्यू ने मुझे देहरादून में बीजापुर गेस्ट हाउस में ठहराया, तो मूसलाधार बारिश थी।

रात के दस बजे कमल स्कूटी किसी से मांगकर चले आये।

कमल ने शायद पहली बार फेसबुक पर कोई टिप्पणी की है।

इसे इसीलिए साझा कर रहा हूं।

कमल अपनी तारीफ से बेहद झल्लाते हैं।

लेकिन हम क्या करें, इतने महबूब दोस्त की तारीफ खुदबखुद जुबान पर आ ही जाती है।

कमल प्यारे, इस गुस्ताखी के लिए माफ करना।

पलाश विश्वास

मेरे एक "बुद्धिजीवी" (?) परिचित ने, उसके बारे में, जिससे वो खुंदक खाए थे झुंझला कर कहा

“ जिसकी दुम उठाओ- वो ही मादा है यार”....! पुरुषों में बहुत प्रचलित है ये कथन.

किसी धोखेबाज़, कायर, कम समझ वाले को मादा कह कर अपमानित करने का तरीका है ये... पर सोचिये अगर सारी दुनिया मादा हो जाए तो...?

मादा माने स्त्री! मादा शब्द ही माता से आया है....! मां माने संवेदन शील, केयर करने वाली , सब बच्चों में बराबरी रखने वाली और कमजोर के पक्ष में खड़ी होने वाली..., अपनी नहीं परिवार की सोचने वाली.......! क्या आप सारी दुनिया में एसे लोगों को नही चाहेंगे...!

मादा शब्द को गाली समझने/ समझाने वाले लोगों से एक निवेदन..., अपनी माँ की आँखों में झांक कर देखें ...क्या दुनिया में हर व्यक्ति को ऐसा ही नहीं चाहेंगे आप....!

जो लोग स्त्री को व्यक्ति नहीं समझते...., उनकी नज़र में तो हर औरत मादा है ....माँ भी मादा ही है.....!

वैसे मुझे पता नहीं क्यों लिख दिया ये आज....

Kamal Joshi's photo.

गंगा आरती : देवप्रयाग

नदियों के बारे में हम उनकी पूजा करने, आरती उतारने और पाप धोने के लिए स्नान करने तक ही सिमित क्यों हैं...? नदियों की पूजा करना आरती तक ही सीमित होना नहीं बल्कि ये वचन देना है की: "हे नदी , तू जीवनदायनी है ! मैं तेरी रक्षा करूंगा, कोई ऐसा कार्य नहीं करूंगा जिससे तुझे क्षति हो, या तू अपवित्र हो."

क्या नदी की आरती उतारते वक्त भक्तों से ये वचन लिवाया जा सकता है पंडा समाज द्वारा..?

शक है, क्यों कि इसी आरती स्थल से 50 मीटर दूर, झूला पुल के पाए के बगल में ऐसा पेशाब घर बनाया गया है जिससे पेशाब सीधी गंगा में उतरती है और फिर 50 मीटर बह कर इस आरती स्थल तक पहुंचती है...! पेशाब घर के लिए कोई दूसरी व्यवस्था या पेशाब उपचारित करने की ज़रूरत नहीं समझी गयी…

कठिन है डगर.....जिनगानी की...

कठिन है डगर.....जिनगानी की... एक तो औरत....., फिर मां की जिम्मेदारी बहुत कहेंगे की औरत है तो माँ बनेगी ही ....., नियती है....ज़रूरी भी है..! पर समझ में नहीं आता की पति-पत्नी-बच्चे वाले परिवार में बच्चे का बोझ केवल मां पर ही क्यों....! कम से कम तब तक, जब तक वो अपने मां बाप पर ही निर्भर हो....! पति अगर संवेदन शील नहीं तो मां को ही सब भोगना पड़ता है... और समाज के रीती रिवाजों ने औरत होना कितना कठिन कर दिया है... सब ऐसे नहीं...... पर अधिकांश हाल तो यही है... कठिन है जिन्दगानी तेरी

एक तो औरत....., फिर मां की जिम्मेदारी

बहुत कहेंगे की औरत है तो माँ बनेगी ही ....., नियति है....ज़रूरी भी है..!

पर समझ में नहीं आता कि पति-पत्नी-बच्चे वाले परिवार में बच्चे का बोझ केवल मां पर ही क्यों....! कम से कम तब तक, जब तक वो अपने मां बाप पर ही निर्भर हो....! पति अगर संवेदन शील नहीं तो मां को ही सब भोगना पड़ता है...

और समाज के रीति रिवाजों ने औरत होना कितना कठिन कर दिया है...

सब ऐसे नहीं...... पर अधिकांश हाल तो यही है...

कठिन है जिन्दगानी तेरी

मजदूर दिवस.....!

मजदूर दिवस.....! इस मजदूर को किस श्रेणी में डाला जाएगा जिसको पता ही नहीं की वो मजदूर भी है...! या फिर उसे सिर्फ बाल मजदूर के आंकड़ों में शामिल कर इतिश्री कर लि जायेगी.....! देवभूमि का एक सच ये भी है..!

इस मजदूर को किस श्रेणी में डाला जाएगा जिसको पता ही नहीं की वो मजदूर भी है...!

या फिर उसे सिर्फ बाल मजदूर के आंकड़ों में शामिल कर इतिश्री कर ली जायेगी.....!

देवभूमि का एक सच ये भी है..!

बेडू..! ये हैं अपन के यार लोग....

ज़रा बच के रहना अपन से....

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(मिलते ही यार बना लेते हैं....)

जीवन, आँखें खोलो ...!

देहरादून के घर में बुलबुल का मुन्ना.....!

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