पश्चिम बंगाल के प्रवासी मुसलमानों पर कहर: प्रो. शम्सुल इस्लाम ने उठाई आवाज़

शम्सुल इस्लाम पश्चिम बंगाल में गरीब प्रवासी मुसलमानों पर क्रूर कार्रवाई का वर्णन करते हैं। उन्होंने मानवाधिकार संगठनों और भारतीय मुस्लिम संगठनों से समर्थन की कमी पर भी प्रकाश डाला है।;

By :  Hastakshep
Update: 2025-07-26 04:35 GMT

shamsul islam

मानवाधिकार संगठन और मुस्लिम नेतृत्व क्यों हैं खामोश?

प्रोफेसर शम्सुल इस्लाम का यह पत्र पश्चिम बंगाल के गरीब प्रवासी मुस्लिमों के बारे में है। शम्सुल इस्लाम पश्चिम बंगाल में गरीब प्रवासी मुसलमानों पर क्रूर कार्रवाई का वर्णन करते हैं। उन्होंने मानवाधिकार संगठनों और भारतीय मुस्लिम संगठनों से समर्थन की कमी पर भी प्रकाश डाला है।

नई दिल्ली, 26 जुलाई 2025 दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर शम्सुल इस्लाम और उनकी पत्नी नीलिमा शर्मा ने हाल ही में एक अत्यंत गंभीर आरोप पत्र जारी किया है, जिसमें उन्होंने पश्चिम बंगाल के प्रवासी मुस्लिम मजदूरों पर हो रही कथित पुलिसिया कार्रवाई और उत्पीड़न को लेकर चिंता जताई है। यह पत्र न केवल राज्य प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठाता है, बल्कि मानवाधिकार संगठनों और मुस्लिम नेतृत्व की चुप्पी को भी कठघरे में खड़ा करता है।

'यह ममता दीदी का नहीं, मोदी का राज है'

गुरुग्राम से जारी अपने पत्र में प्रो. इस्लाम लिखते हैं कि बीते दस दिनों से पश्चिम बंगाल से आए मुस्लिम प्रवासियों को गुरुग्राम पुलिस के लोग सादे कपड़ों में घरों और सड़कों से उठा रहे हैं, और उनकी भारतीय नागरिकता पर सवाल उठाते हुए उन्हें थानों में ले जाकर अमानवीय मारपीट की जा रही है।

पुलिस की ओर से कथित रूप से यह कहा गया— "यहां ममता दीदी का नहीं, मोदी का राज है!" पीड़ितों के अनुसार, उन्हें कोई नोटिस या कागज़ी सूचना नहीं दी जाती, बल्कि सीधे हिरासत में ले जाकर बेरहमी से पीटा जाता है। आधार और वोटर आईडी जैसे दस्तावेज़, जो नागरिकता के सामान्य प्रमाण माने जाते हैं, उन्हें अब खारिज कर दिया जा रहा है।

हिरासत केंद्रों के बाहर की सिसकती महिलाएं

प्रो. इस्लाम के मुताबिक, हिरासत केंद्रों के बाहर परिजनों खासकर महिलाओं की स्थिति बेहद दयनीय है। वे अपनों के लौटने की उम्मीद में घंटों तड़पती हैं, लेकिन कहीं से कोई जवाब नहीं मिलता। कई बार तो रिहाई की 'कीमत' भी अज्ञात होती है— पीड़ित इस पर बात करने से कतराते हैं।

मुस्लिम संगठन और सिविल सोसाइटी की चुप्पी

इस पूरी त्रासदी में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि भारतीय मुस्लिम संगठनों और मानवाधिकार समूहों ने अभी तक कोई ठोस पहल नहीं की है। शम्सुल इस्लाम सवाल करते हैं: "जो संगठन तीन तलाक और पर्दा प्रथा जैसे मुद्दों पर आक्रामक रहते हैं, वे इन पीड़ित मुसलमानों के लिए मौन क्यों हैं?"

राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी नाकाम

प्रो. इस्लाम ने पश्चिम बंगाल रेजिडेंट कमिश्नर उज्जैनी दत्ता और अन्य अधिकारियों को पत्र लिखा, लेकिन अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। उन्होंने स्थानीय विधायक रेखा रॉय और उनके पति नुकुल दादा से भी संपर्क करने की कोशिश की, परंतु वहां से भी निराशा ही हाथ लगी।

एक उम्मीद: सीपीएम समर्थित मजदूर संगठन

हालांकि, इस घोर अंधेरे में एक आशा की किरण तब दिखाई दी जब प्रो. इस्लाम की बात कामरेड अशादुल्लाह गयेन (सीपीएम) से हुई। वे बंगाली प्रवासी मजदूरों के संगठन से जुड़े हैं। उन्होंने आश्वासन दिया कि अगर पीड़ितों के परिजन उनसे संपर्क करें, तो वे कागज़ात की जाँच और सहायता के लिए ज़िला प्रशासन से संपर्क करेंगे।

क्या होनी चाहिए तत्काल ज़रूरतें?

प्रो. इस्लाम के मुताबिक, इस संकट से निपटने के लिए तीन प्रकार के ज़मीनी कार्यकर्ताओं की तुरंत आवश्यकता है:

  1. स्मार्टफोन से लैस ज़मीनी कार्यकर्ता, जो दस्तावेज़ी सहायता कर सकें
  2. महिला स्वयंसेवक, जो हिरासत केंद्रों पर मौजूद महिलाओं को मनोबल दे सकें
  3. वकील, जो हिरासत में लिए गए लोगों को कानूनी सहायता दें

नागरिक समाज की परीक्षा

प्रो. शम्सुल इस्लाम का यह पत्र न केवल एक दस्तावेज़ है, बल्कि यह हमारी संवैधानिक मूल्यों और नागरिक समाज की सक्रियता की परीक्षा भी है। क्या हम केवल तब आवाज़ उठाएंगे जब कैमरे सामने हों? या तब भी, जब कोई निरीह प्रवासी अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा हो?

प्रो. शम्सुल इस्लाम के पत्र का मजमून निम्नवत् है-

पश्चिम बंगाल के ग़रीब प्रवासी मुसलमान: आरएसएस-भाजपा शासकों के ज़ुल्म के शिकार जिन्हें नागरिक अधिकार संगठनों और यहाँ तक कि भारतीय मुस्लिम संगठनों ने भी भुला दिया है!

मेरी पत्नी नीलिमा शर्मा और मैंने जीवन में कभी इतना असहाय और शर्मिंदा महसूस नहीं किया जो कि हम पिछले लगभग 10 दिनों से पश्चिम बंगाल के भारतीय मुसलमानों पर हो रहे क्रूर दमन के मूक दर्शक बने हुए हैं। उन्हें देर रात तक सादे कपड़ों में लोग (कई बार गाली-गलौज करते हुए, सवाल पूछना वर्जित) घरों और सड़कों से उठाते हैं और गुड़गांव के विभिन्न पुलिस थानों में ले जाते हैं। उन्हें अवैध प्रवासी होने के आरोप में उठाया जा रहा है। पीड़ितों ने आरोप लगाया है कि कागज़ मांगने से पहले ही, उन्हें घंटों तक बेरहमी से पीटा गया और फिर एक या एक से ज़्यादा पुलिस थानों में ले जाकर अराजक न्याय की और ख़ुराकें दी गयीं। पिटाई करने वालों का एक जाना-पहचाना डायलॉग है, "यहाँ ममता दीदी का राज नहीं है, मोदी का राज है।"

ये भी इल्ज़ाम है कि कई लोगों को ऐसी 'कीमत' चुकाकर रिहा किया जाता है जिसका कोई अंदाज़ा नहीं, क्योंकि पीड़ित इसके बारे में बात नहीं करना चाहते हैं। शिकायत करने के क्या परिणाम हो सकते हैं इस लिये चुप रहने में ही भलाई है। हिरासत केंद्रों के बाहर बंदियों के परिवारों की महिलाओं की हालत देखने और यकीन करने लायक है। पुलिस के अनुसार, आधार और वोटिंग कार्ड जो अब भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए 'कानूनी' दस्तावेज़ नहीं हैं, बंदियों को अपनी भारतीय नागरिकता साबित करनी है!

मैंने 16 जुलाई, 2025 को पश्चिम बंगाल रेजिडेंट कमिश्नर (उज्जैनी दत्ता), डिप्टी रेजिडेंट कमिश्नर (राजदीप दत्ता) और सहायक सूचना निदेशक (आशीष जाना) को निम्नलिखित पत्र लिखा था, जिसकी प्रतिलिपि सभी पीयूसीएल और उनके पदाधिकारियों को भेजी गई थी। रेजिडेंट कमिश्नर के कार्यालय से कोई जवाब न मिलने पर, मैंने उनके कार्यालय फ़ोन नंबरों पर संपर्क करने की कोशिश की लेकिन विफल रहा। यह लिखे जाने तक किसी ने कोई जवाब नहीं दिया है। [पत्र की प्रतिलिपि नीचे पेश है।]

इसी बीच हमारे परिचित पीड़ितों से पता चला कि वे लोग पश्चिम बंगाल के जिस निर्वाचन क्षेत्र से हैं, उस का प्रतिनिधित्व तृणमूल कांग्रेस की विधायक सुश्री रेखा रॉय करती हैं। हमें यह भी पता चला कि उनके पति नुकुल दादा उनके मामलों का प्रबंधन करते हैं, हमने उनके नंबर (+919775874794) पर कॉल किया। वह बहुत जल्दी में लग रहे थे, उन्होंने मेरी बात के बीच में ही फ़ोन काट दिया।

ज़्यादातर पीड़ित कट्टर मुसलमान हैं, लेकिन भारतीय मुस्लिम संगठन, जो शरीयत, तीन तलाक और पर्दा प्रथा को लागू करने में कोई कसर नहीं छोड़ते, वे भी इस दृश्य से गायब हैं!

हमें यह भी पता लगा कि कामरेड अशादुल्लाह गएन (CPM) के बंगाली परवासी मज़दूरों के संगठन को देखते हैं। उन से (म-9830202822) पर बात हुई उन्हों ने बताया कि जिन बंगाली मजदूरों को काग़ज़ात की जाँच के लिये बंदी बनाया गया है, उन के सगे-संबंधी उन से संपर्क कर सकते हैं और उनका संगठन डॉक्युमेंट्स के सत्यापन के लिए उनके क्षेत्र DM से तुरंत कार्यवाही के लिए पहल करेगा। ये जानकारी काफ़ी मददगार साबित हो सकती है।

लेकिन इस के लिए जहां पीड़ित क़ैद हैं वहाँ निम्नलिखित व्यवस्था करनी होंगी:

1. "हिरासत केंद्रों" पर स्मार्ट फ़ोन के साथ मददगार हमदर्द जो काग़ज़ी कार्यवाही कर सकें।

2. महिला हमदर्द जो परेशान महिलाओं को ढाँढस बंधा सकें।

3. हमदर्द वकील।

ये काम वे संगठन कर सकते हैं जिन का ऊपर ज़िक्र किया गया है जो बदक़िस्मती से मदद करने के लिये किसी और मौक़े का इंतेज़ार कर रहे हैं!

Namaskar!

I am a retired faculty of Delhi University, presently residing in Gurgaon.

For almost a fortnight local police in plainclothes is proactive in picking up Muslim WB youth from their residential quarters, brutally thrashing them saying that it is not Mamta rule here but of Modi. The parents/relatives are not informed about their whereabouts. They are sent back after horrendous beating. Nobody knows how many are missing.

Please do the needful.

With regards,

Shamsul Islam

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