Rafale scam: Nirmala ji, the Defense Ministry itself has made the price of Rafale public on 23 September 2016

नई दिल्ली, 23 जुलाई। रफ़ाल डील पर एनडीटीवी के एंकर रवीश कुमार ने अपने आधिकारिक फेसबुक पेज पर एक टिप्पणी की है। आप भी पढ़ें और मसला क्या है खुद तय करें।

रवीश कुमार की टिप्पणी निम्नवत है -

रफ़ाल लड़ाकू विमान को लेकर लड़ाई किस बात की हो रही है

हमने इस विवाद को समझने के लिए बिजनेस स्टैंडर्ड में अजय शुक्ला और टाइम्स ऑफ इंडिया के रजत पंडित की रिपोर्टिंग का सहारा लिया है। ये दोनों ही रक्षा मामलों के बेहतरीन रिपोर्टर/विशेषज्ञ माने जाते हैं। आप भी खुद से तमाम लेख को पढ़कर अपना सूची बना सकते हैं और देख सकते हैं कि कौन पक्ष क्या बोल रहा है। हिन्दी में ऐसी सामग्री कम मिलेगी, सिर्फ नेताओं के आरोप मिलेंगे, मगर डिटेल छानने की हिम्मत कोई नहीं करेगा वरना वे जिसके गुलाम है उससे डांट पड़ेगी ।

7 फरवरी 2018 के टाइम्स आफ इंडिया में रजत पंडित की रिपोर्ट का सार यह है कि यूपीए ने फ्रांस से रफाल लड़ाकू विमान ख़रीदने का करार किया था। 18 विमान तैयार मिलेंगे और 108 विमान तकनीकि हस्तांतरण के ज़रिए भारत में बनेंगे। इसे लेकर मामला अटका रहा और सरकार चली गई। जून 2015 में मोदी सरकार ने पहले के करार को समाप्त कर दिया और नया करार किया कि अब 18 की जगह 36 रफाल विमान तैयार अवस्था में दिए जाएंगे और इसके लिए तकनीक का हस्तांतरण नहीं होगा मगर जब भी वायुसेना को ज़रूरत पड़ेगी, फ्रांस मदद करेगा। जब मेक इन इंडिया पर इतना ज़ोर है तो फिर तकनीक हस्तांतरण के क्लाज़ को क्यों हटाया गया, इस पर रजत और अजय के लेख में जानकारी नहीं मिली।

रजत पंडित ने लिखा है कि इसके लिए रिलायंस डिफेंस और रफाल बनाने वाली DASSAULT AVIATION के बीच करार हुआ। इस विवाद में रिलायंस डिफेंस पर आरोप लगे हैं मगर कंपनी ने इंकार किया है। राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि एक उ्द्योपगति मित्र को लाभ पहुंचाने के लिए मोदी सरकार ने ये जादू किया है कि जो विमान हम 540 करोड़ में ख़रीद रहे हैं, उसी को विमान निर्माण के मामले में नौसीखिया कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए 1600 करोड़ में ख़रीदा जा रहा है। यूपीए और एन डी ए के समय रफाल के दाम में इतना अंतर क्यों हैं, ज़रूर घोटाला हुआ है और प्रधानमंत्री इन सवालों पर सीधा जवाब नहीं दे पा रहे हैं।

रजत पंडित ने लिखा है कि निर्मला सीतारमण इसी साल फरवरी में भी संसद को बता चुकी है कि दो सरकारों के बीच हुए करार के आर्टिकल-10 के अनुसार वे इस सौदे से संबंधित जानकारियां सार्वजनिक नहीं कर सकती हैं लेकिन 18.11.2016 को रक्षा राज्य मंत्री सुभाष भामरे संसद में लिखित जवाब दे चुके हैं कि एक रफाल विमान का औसत दाम 670 करोड़ होगा और सभी अप्रैल 2022 तक भारत आ जाएंगे।

सादे विमान का दाम 670 करोड़ लेकिन इसे हथियार के अनुकूल बनाने, हथियार से लैस करने, कल पुर्ज़े देने और रख रखाव को जोड़ने के बाद औसत दाम 1640 करोड़ हो जाता है।

यहां तक रजत पंडित का लिखा है। अब राहुल गांधी यह नहीं बताते कि उनके समय में 540 करोड़ में एक विमान ख़रीदा जा रहा था तो वह सादा ही होगा, हथियारों से लैस करने के बाद एक विमान की औसत कीमत क्या पड़ती थी? ज़रूर यूपीए के समय एक रफाल विमान का दाम 540 करोड़ बताया जा रहा है और मोदी सरकार के समय एक का दाम 700 करोड़ से अधिक जबकि मोदी सरकार 18 की जगह 36 रफाल विमान खरीद रही है।

अब आते हैं 22 जुलाई के बिजनेस स्टैंडर्ड में छपे अजय शुक्ला के लेख की तरफ।

आप जानते हैं कि अविश्वास प्रस्ताव के समय रक्षा मंत्री ने कहा कि फ्रांस और भारत के बीच गुप्त शर्तों के कारण जानकारी सार्वजनिक नहीं हो सकती और यह करार 2008 में यूपीए ने ही किया था। आपने रजत पंडित के लेख में देखा कि निर्मला सीतरमण इसी फरवरी में अपनी सरकार के समय किए गए करार की गुप्त शर्तों का हवाला दे चुकी हैं।

अब यहां अजय शुक्ला निर्मला सीतरमण की बात में एक कमी पकड़ते हैं। अजय कहते हैं कि निर्मला सीतरमण ने संसद को यह नहीं बताया कि 2008 के ही करार को मोदी सरकार ने इसी मार्च में दस साल के लिए बढ़ा दिया है।

इस साल मार्च में फ्रांस के राष्ट्रपति भारत के दौरे पर थे, तभी यह करार हुआ था।

अजय शुक्ला ने लिखा है कि फ्रांस में समय समय पर यह जानकारी सार्वजनिक की जाती है कि हर रफाल की बिक्री पर सेना को कितने पैसे मिले हैं। वैसे में शायद ही फ्रांस भारत की परवाह करे। दूसरी ओर जब रक्षा राज्य मंत्री संसद में बयान दे रहे हैं कि सरकार रफाल सौदे की सारी बातें सीएजी के सामने रखेगी। आप जानते हैं कि सीएजी अपनी सारी रिपोर्ट पब्लिक करती है। अगर सीएजी से पब्लिक होगा तो सरकार खुद ही क्यों नहीं बता देती है।

अजय शुक्ला लिखते हैं कि 23 सितंबर 2016 को रक्षा मंत्रालय ने ख़ुद ही रफाल के दाम सार्वजनिक कर चुका है। रक्षा मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी ने कुछ पत्रकारों के साथ ऑफ रिकार्ड ब्रीफिंग की थी जिसमें एक एक डिटेल बता दिया गया था। इसी ब्रीफिंग के आधार पर कई अखबारों में ख़बर छपी थी। 24 सितंबर 2016 के बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि भारत ने 36 रफाल विमान के लिए 7.8 बिलियन यूरो का करार किया है। तब यह रिपोर्ट हुआ था कि बिना किसी जोड़-घटाव के सादे रफाल विमान की एक कीमत 7.4 अरब है तय हुआ है, यानी 700 करोड़ से अधिक। जब इन विमानों को भारत की ज़रूरत के हिसाब से बनाया जाएगा तब एक विमान की औसत कीमत 1100 करोड़ से अधिक होगी।

इस प्रकार रफाल सौदे की जानकारी तो पब्लिक में आ गई थी। ख़ुद रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण बोल चुकी थीं कि वे कुछ भी नहीं छिपाएंगी, देश को सब बताएंगी। लेकिन कुछ दिनों के बाद मुकर गईं और कह दिया कि फ्रांस और भारत के बीच गुप्त करार है और वे सौदे की जानकारी सार्वजनिक नहीं कर सकती हैं।

दिसंबर 2017 से कांग्रेस रफाल डील को लेकर घोटाले का आरोप लगा रही है। उसका कहना है कि इस विमान के लिए हिन्दुस्तान एरोनोटिक्स लिमिटेड को सौदे से बाहर रखा गया और एक ऐसी कंपनी को प्रवेश कराया गया जिसकी पुरानी कंपनियों ने कई हज़ार करोड़ का लोन डिफाल्ट किया है। जिसकी वजह से बैंक डूबने के कगार पर हैं। ऐसी कंपनी के मालिक को इस सौदे में शामिल किया गया जिसका विमान के संबंध में कोई अनुभव नहीं है।

राहुल गांधी का आरोप है कि यूपीए के समय में एक रफाल विमान की कीमत 540 करोड़ थी, अब उसी विमान को मोदी सरकार 1600 करोड़ में किस हिसाब से ख़रीद रही है। प्रधानमंत्री ने ये जादू कैसे किया है। अविश्वास प्रस्ताव के दौरान राहुल गांधी ने इस बात को उठाते हुए दावा किया कि उनकी फ्रांस के राष्ट्रपित से मिला और उन्होंने बताया कि ऐसा कोई करार भारत और फ्रांस के बीच नहीं है। आप यह बात पूरे देश को बता सकते हैं। इस बयान के तुरंत बाद फ्रांस के राष्ट्रपति ने इसका खंडन कर दिया। बीजेपी इस बात को लेकर आक्रामक हो गई और राहुल गांधी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया गया है।

इंडिया टुडे की वेबसाइट पर 8 मार्च 2018 का एक न्यूज़ आइटम छपा है। जिसकी हेडलाइन है कि मोदी सरकार विपक्ष के साथ रफ़ाल डील के डिटेल साझा कर सकती है। यह बयान फ्रांस के राष्ट्रपति का है। जो उन्होंने इंडिया टुडे टीवी को दिए इंटरव्यू में कहा था। आप इसे भी चेक कर सकते हैं। फिर सरकार क्यों किसी गुप्त शर्त के नाम पर नहीं बता रही है।

मोबाइल एप लांच कर देना ही डिजिटल इंडिया नहीं है

भारतीय रेल के 50 मोबाइल एप हैं। क्या रेल मंत्रालय का एक एप नहीं होना चाहिए था जहां से सारे एप तक पहुंचा जा सके। 50 एप का क्या मतलब है। क्या ये सारे एप डाउनलोड भी किए जाते हैं? पिछले दो साल में ही भारतीय रेल ने 25 मोबाइप एप बनाए हैं। तीन चार मोबइल एप को छोड़ कर बाकी किसी एप की कोई पूछ नहीं है। वे बेकार बन कर पड़े हुए हैं। उन्हें डाउनलोड करने वाला कोई नहीं है।

कृषि मंत्रालय के 25 एप हैं। चावल उत्पादन को लेकर ही सात प्रकार के एप हैं। नेशनल मोबाइल गवर्नेंस इनिशिएटिव (NMGI) की वेबसाइट के अनुसार 30 प्रकार के एप हैं जिनमें एक मात्र भीम एप है जिसे एक करोड़ लोगों ने डाउनलोड किया है। बाकी एप सिंगल डिजिट में ही डाउनलोड किए गए हैं।

यह मेरी जानकारी नहीं है। 21 जुलाई के बिजनेस स्टैंडर्ड में करण चौधरी और शाइनी जेकब की रिपोर्ट है। दोनों ने यह बात उजागर की है कि डिजिटल इंडिया को सक्रिय दिखाने के लिए विभाग के बीच मोबाइल एप बनाने की होड़ मची है। एक ही बात के लिए कई कई एप बने हैं और जो काम एक एप में हो सकता है, उसके लिए अलग-अलग एप बनाए जा रहे हैं।

ज़ाहिर है ज़्यादतर एप का मतलब आंखों में धूल झोंकना है। प्रचार पाना है कि बड़ा भारी काम हो गया है, एप लांच हो गया है। इस होड़ में सरकार ने 2000 से अधिक एप बना दिए हैं। एक मोबाइल एप को बनाने में पांच हज़ार से एक लाख तक ख़र्च आ जाता है।