
पूंजीवाद
पूंजीवाद (Capitalism इन Hindi) वह आर्थिक व्यवस्था है जिसमें उत्पादन के साधन निजी स्वामित्व में होते हैं और लाभ कमाना प्राथमिक उद्देश्य होता है। यह व्यवस्था बाजार-आधारित प्रतिस्पर्धा, उपभोग की संस्कृति और श्रमिकों के श्रम से अधिकतम मुनाफा निकालने पर केंद्रित रहती है।
हस्तक्षेप न्यूज़ पोर्टल के "पूंजीवाद" टैग के अंतर्गत हम इस व्यवस्था के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रभावों की समीक्षा करते हैं — विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील देश में इसके असर, आर्थिक असमानता, श्रमिक अधिकारों, पर्यावरणीय संकट, और सांस्कृतिक बदलावों के संदर्भ में।
यह टैग उन पाठकों के लिए है जो पूंजीवादी संरचना के भीतर छिपे शोषण, कॉरपोरेट नियंत्रण और नवउदारवाद के खतरों को समझना चाहते हैं।
इस टैग के अंतर्गत आप पाएँगे:
- पूंजीवाद की आलोचना और उसका ऐतिहासिक विकास
- मार्क्सवादी दृष्टिकोण से पूंजीवाद की समीक्षा
- भारत में पूंजीवाद के प्रभाव
- वैश्विक पूंजी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भूमिका
- नवउदारवाद, निजीकरण और सार्वजनिक क्षेत्र का विनाश
- पूंजीवाद क्या है
- भारत में पूंजीवाद
- पूंजीवादी व्यवस्था की आलोचना
- पूंजीवाद बनाम समाजवाद
- पूंजीवाद का इतिहास
- आधुनिक पूंजीवाद के खतरे
- नवउदारवाद और भारत
- कॉरपोरेट नियंत्रण और मीडिया
- श्रमिकों का शोषण
- निजीकरण की नीति
- आर्थिक असमानता के कारण
- मार्क्सवाद और पूंजीवाद
- वैश्विक पूंजी और बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ
- पूंजीवादी समाज में शिक्षा और स्वास्थ्य
- क्रोनी कैपिटलिज़्म क्या है
- भारत का कॉरपोरेट लूट तंत्र
- श्रम सुधार या श्रमिक दमन?
- हस्तक्षेप में पूंजीवाद पर लेख
- पूंजीवाद और जलवायु संकट
- पूंजीवादी वैश्वीकरण
- उपभोग संस्कृति की आलोचना
- लोकतंत्र में पूंजी का हस्तक्षेप