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इमरोज का अमृतामय होना
सुनकर कुछ कहना बचा नहीं था...हमारी फीकी हँसी में उदासी पैबस्त हो गई थी। घर सा घर था सब कुछ था पर उस सब में सब कुछ अनुपस्थित...वह अमृतमयी उपस्थिति...
ये लोकतंत्र और मरतंत्र की दूरी है
ये लोकतंत्र और मरतंत्र की दूरी है






