जब आतंकी घटनाएं होती हैं तो हथियारों का कारोबार बढ़ता है
आतंकवाद एक इंटरनेशन प्रोडक्ट है जो कि हमारे बाजार में बेचा जा रहा है
अगर आईबी को संसद के प्रति जवाबदेह बना दिया जाए तो एक बड़े स्तर पर घटनाओं को रोका जा सकता है

उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ अखिलेश सरकार के चार वर्ष पूरे होने पर रिहाई मंच ने जन विकल्प मार्च निकाला जिसमें सांप्रदायिक व जातीय हिंसा, बिगड़ती कानून व्यवस्था, अल्पसंख्यक, दलित, आदिवासी, महिला किसान, युवा विरोधी नीतियों औऱ आतंकवाद के नाम पर बेगुनाहों की गिरफ्तारी जैसे मुद्दे उठाए गए। लेकिन सरकार ने मार्च निकाल रहे लोगों को रोका और पुलिस द्वारा लाठी चार्ज किया गया, महिला नेताओं से अभद्रता की गई और नेताओं व कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इस मार्च के बारे में रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव से बात की युवा पत्रकार मीना प्रजापति ने। उनसे हुई बातचीत आपसे साझा की जी रही है।
प्रश्न - रिहाई मंच क्या है? और इसका उद्देश्य क्या है?
उत्तर - रिहाई मंच जैसा कि नाम से वाक़िफ़ है कि रिहाई यानि किसी कि रिहाई। यह 2007 में बना। यह संगठन जो भी लोग जेल में बंद हैं और खासतौर से देश में जो काले कानून हैं, उनके नाम पर लोग आतंकवादी के रूप में बंद किए जाते हैं और उनको सरकारें फंसाती हैं। तो उन बेगुनाहों के लिए रिहाई मंच लड़ता है। जैसा अभी जे एन यू में हुआ, वैसी ही घटना रिहाई मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मोहम्मद शोएब के साथ हुई थी। उनके ऊपर 2008 में हमला किया गया था। और जिस तरह से जेएनयू में अफवाह लगाई जा रही है कि वे भारत मुर्दाबाद और पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगा रहे थे। ठीक यही आरोप इन लोगों पर भी लगाया गया कि मो. शोएब जो उनके अपने एक्युस्ड हैं जिनका मुकदमा लड़ रहे थे उसमें रिजीजू रेहमान, नौशाद औऱ अली अकबर हैं, इनके कान में कहा गया कि भारत मुर्दाबाद और पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाओ। ये पूरी लड़ाई उस दौरान से शुरू होती है। अगर आप अनलॉफुल एक्टिविटी में पकड़ते हैं तो उसका मतलब ये नहीं होगा कि आप उसे मुकद्दमा लड़ने का अधिकार न दें। अगर ऐसा होगा तो ये मालूम कैसे पड़ेगा कि कौन सही है और कौन गलत है। और आठ साल बाद 14 जनवरी को ये सब अभियुक्त छूट गए जिनके ऊपर इन्होंने मुकद्दमा दर्ज किया था। तो पूरी लड़ाई वहीं से शुरु होती है।
प्रश्न - क्या रिहाई मंच सिर्फ आतंकवाद को लेकर ही काम करता है और ये लड़ाई कितनी मुश्किल होती है?
उत्तर- नहीं हम दलित, किसान, आदिवासी, महिला आदि मुद्दों पर भी काम करते हैं। 2005 में उत्तर प्रदेश के मऊ में दंगे हुए और उन दंगों के बाद हम लोग एक डॉक्युमेंटरी बनाने के लिए तैयार हुए थे। उस समय हम लोग बीए में पढ़ रहे थे तो हमने देखा कि ये दंगा कुछ अलग डाइमेंशन का है। उत्तर प्रदेश के किसी गांव में पहली बार दंगे हुए थे। तो उस स्थिति को समझते हुए देखा कि ये दंगा गुजरात फिनोमिना लिए हुए था। हम लोगों ने इस पर सर्च किया तो मालूम हुआ कि जिस तरह से गुजरात में सांप्रदायिक दंगे से टेरर की ओर शिफ्टिंग हुई इसी तरह से यूपी में भी हो रही थी। जब 2007 में कचहरी में बम ब्लास्ट हुए, उसके बाद हमने यह सवाल उठाया कि दंगों में बेगुनाहों को आतंकवाद के नाम पर फंसाया जाता है। और हमारी तीन चार प्रमुख डिमांड थीं और उसका नीति गत मामला किसी माइनारिटी से जुड़ा नही हैं। जैसे कि मेरा मानना है कि अगर किसी व्यक्ति को आप फंसाते हैं कि ये व्यक्ति राजद्रोही है तो क्यों नहीं एक जांच कमिशन का गठन हो। उस समय मायावती की सरकार थी तो हमारी यही डिमांड थी कि आप जांच कमिशन का गठन करिए। दूसरा जो इंटेलिजेंस एजेंसी है उसको संसद के प्रति जवाबदेह बनाइए। औऱ तीसरा यह कि जो पॉलिटिकल पार्टीज़ हैं वे चुनाव मेनीफेस्टों में भी इस बात को लिखें कि हम अगर हम गवर्मेंट में आते हैं तो इस तरह के बेगुनाहों को पकड़ना बंद करेंगे और जिन लोगों को बंद किया है उनको रिहा करेंगे और उनको रेगुलेट करेंगे। खासतौर से अभी जो हम देख रहें हैं जेएनयू वाले मामले को लेकर जहां लोग कई धड़ों में बंटे हैं। जब आप कह रहे हैं कि बेगुनाह लड़के हैं उन्हें फंसाया जाता है। 2008 में तारिक कासमी और खालिद मुजाहिद जब गिरफ्तार हुए तो उसमें हमारी पहली डिमांड को फरवरी 2008 में मायावती सरकार ने माना औऱ उन्होंने आतंकवाद के नाम पर आईडीमिनियस के नाम से संगठन का गठन किया। तो ये हमारी पहली जीत थी।
प्रश्न - रिहाई मंच क्या सिर्फ मुसलमानों के लिए ही काम करता है?

ऑपरेशन अक्षरधाम (हिन्दी एवं उर्दू)लेखक- राजीव यादव, शाहनवाज आलमपृष्ठ- हिन्दी-236, उर्दू-230 मूल्य- 250 रूपयेमुद्रक- फारोस मीडिया एंड पब्लिशिंग प्रा० लि० नई दिल्ली।

उत्तर- नहीं हम उन बेगुनाहों के लिए लड़ते हैं जिन्हें फंसाया जाता है। पॉलिटिकल साइंस में आतंकवाद की जो परिभाषा दी गई है उसमें राज्य द्वारा प्रायोजित ये चीजें हैं। मतलब कोई भी स्टेट इसको पैदा करता है। तो एक तो इसी फिलॉसफी को लेकर ये आंदलोन शुरू हुआ। लेकिन रिहाई मंच चाहे दलितों के सवाल हों, चाहें महिलाओं के सवाल हों। इन सब सवालों को टैकल करता है। माले गांव में, कानपुर में, मुड़ासा में जगह-जगह संघ के लोग कई बम बनाते हुए ब्लास्ट कर गए थे। उनमें नकली दाढ़ी औऱ टोपी मिली। इसका मतलब यह हुआ कि ये लोग मुसलमानों को फ्रेम करना चाहते हैं। बाद में उस मुसलमान को पकड़ा जाता है। मुसलमान की हालत ये है कि वो 15 अगस्त और 26 जनवरी को बाहर नहीं निकल सकता है। बहुत डरा हुआ होता है कहीं उसको पकड़ कर बन्द न कर दिया जाए। तो क्या उसकी हिम्मत आतंकवाद की घटनाओं को करने की होगी? हमारा एक बड़ा कैंपेन है जिसका नाम इंसाफ अभियान ही है। जिसके तहत हम इस तरह के सवाल को उठाते हैं।
प्रश्न - आतंकवाद जिस रफ्तार से बढ़ रहा है इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर- जैसे कि आपने कहा कि आतंकवाद रफ्तार से बढ़ रहा तो ये इंटरनेशनल लॉबी है ये उनके प्लान का हिस्सा है। बेसिकली क्या है कि 2008 में भारी मंदी से पूरा विश्व परेशान था। उस समय सबसे ज्यादा टेरर की घटनाएं हुईं। टेरर की पूरी फिलासफी आर्थिक तंत्र से जुड़ी है। औऱ इसलिए जुड़ी है कि जब टेरर की घटनाएं होती है तो हथियारों का कारोबार बढ़ता है। दुनिया में दो सबसे बड़े कारोबार हैं एक हथियार का कारोबार दूसरा दवाइयों का कारोबार। इसका उदाहरण बहुत सारी जगहों पर देखा जा सकता है। बहुत सारे देशों में वाइरस को जनरेट करके उसको वहां पर फैला दिया और फिर उसकी दवाएं दी जाती हैं। ठीक उसी तरह से आतंकवाद के वाइरस को हमारे जो साम्रज्यवादी देश हैं जिसमें अमेरिका है इजरायल है। ये लोग आतंकवाद के नाम पर एक पूरा माहौल बनाते हैं। सद्दाम हुसैन की हत्या या ओसामा बिन लादेन की हत्या इन सब में अमेरिका का हाथ था। जबकि ओसामा को अफगानिस्तान में खड़ा करने वाला अमेरिका खुद था। मतलब ये है कि आतंकवाद का जो सवाल है अमेरिका और इजरायल के द्वारा पोषित है। जो टेरर है वो हमारे यहां की उपज नहीं है वो एक इंटरनेशन प्रोडक्ट है जो कि हमारे बाजार में बेचा जा रहा है। इसलिए बेचा जा रहा है कि अगर वो उसके बिकने से उनको लाभ होता है। क्योंकि यहां पर घटनाएं होंगी तो वो कहेगा कि आपको सुरक्षा की जरुरत है, आप कुत्ते पालिए। इसमें फायदा किसका है। क्योंकि ट्रेनिंग सब इजरायल करवाता है हथियार सब इजरायल बनाता है फायदा तो उनका है।
प्रश्न 5- आतंकवाद को खत्म कैसे किया जाए।
उत्तर- भारत के संदर्भ में अगर इसको हम देखे तो यह एक बड़ा सवाल है। पूरी दुनिया इससे जूझ रही है। भारत मे जो इंटेलेजेंस एजंसी है जैसे आई बी आदि को संसद के प्रति जवाबदेह बनाया जाए। भारत में जो खुफियां एजेंसियां हैं उनकी संसद के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है। अगर जवाबदेही नहीं होती तो फर्जी फिकेशन्स में वो चाहे यहां कि लॉबी से जो यहां की राजनीति से प्रभावित होता है या फिर इंटरनेशनल लॉबी प्रभावित होती हैं। अगर आईबी को संसद के प्रति जवाबदेह बना दिया जाए तो एक बड़े स्तर पर घटनाओं को रोका जा सकता है। बहुत सारी घटनाएं देश में इंटेलिजेस एजेंसिज ने करवाई हैं। उसमें राजीव गांधी की हत्या सबसे बड़ा उदाहऱण है। इसका जैन कमीशन में जिक्र भी है।
मीना प्रजापति युवा पत्रकार हैं।