आरएसएस और हिंसा का पाठ
आरएसएस और हिंसा का पाठ
प्रेम सिंह
आनंद विहार इलाके के बाहुबली इंक्लेव पार्क में सुबह-शाम घूमने जाना होता है। वहां प्रतिदिन आरएसएस की शाखा लगती है जिसमें दो से चार लोग होते हैं। साल में एक-दो बार होने वाले बड़े कार्यक्रम में ज्यादा लोग आते हैं। उस दिन प्रतिदिन आने वाले लोगों की पूछ नहीं होती। बड़े कार्यक्रम में कुछ बड़े लोग भी निक्कर पहन कर आते हैं। भाजपा नीत एनडीए सरकार के समय हमने जाना कि कई बड़े अधिकारी रहे हमारे परिचित, जो अंग्रेजी और अमेरिका से नीचे नहीं उतरते और जिनके लड़के-लड़कियां दिन रात अमेरिका जाने की जुगत में रहते, पुराने स्वयंसेवक हैं। इस बार आरएसएस का विजय दशमी पर्व का पूर्वी जिले का कार्यक्रम बाहुबली इंक्लेव पार्क में आयोजित हुआ। पूरे इलाके में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बैनर लगाए ग्ए थे जिनमें इलाके के भाजपा नेताओं के नाम लिखे थे। सुबह करीब डेढ़-दो सौ स्वयंसेवक गणवेश में कार्यक्रम में आए। उनमें छोटे बच्चे और युवक भी शामिल थे। सबके पास लाठी थी। कुछ लोग लाठी के स्थान पर तलवार और बंदूक लेकर आए थे। दशहरा को शस्त्र पूजा होती है। मंच के साथ आरएसएस के संस्थापक डॉ. हेडगेवार और आरएसएस के हिंदुत्व के प्रमुख प्रणेता गुरु गोलवलकर की बड़ी तस्वीरें लगी थीं।
माइक की आवाज पूरे पार्क और उसके बाहर तक अच्छी तरह सुनी जा सकती थी। जिन सज्जन का मुख्य प्रवचन था उन्होंने आरएसएस की लाइन पर ‘हिंदुत्व’ की महिमा पर विस्तृत भाषण दिया। सतयुग से लेकर द्वापर और फिर कलियुग का ‘इतिहास’ बताते हुए प्रतिपादित किया कि कलियुग में संघ-शक्ति से ही हिंदुत्व की रक्षा की जा सकती है, इसीलिए डॉक्टर साहब ने 89 साल पहले आज ही के दिन आरएसएस की स्थापना की। सभी जानते हैं डॉ. हेडगवार का उपनिवेशवादी गुलामी से विरोध नहीं था और गोलवलकर ने भारत के अल्पसंख्यकों के साथ वही बर्ताव करने की सीख दी है जो हिटलर ने यहूदियों के साथ किया था। लेकिन इस सच्चाई का जिक्र वक्ता ने नहीं किया। इस सच्चाई को छिपाने के लिए ही संघ की सारी शाखाएं और प्रवचन चलते हैं। वाजपेयी सरकार के समय नवउदारवादी नीतियों को लेकर आरएसएस ने जरूर हल्की हुज्जत की थी, लेकिन मोदी सरकार में यह निर्णायक रूप से तय हो गया है कि आरएसएस को उपनिवेशवाद की तरह मौजूदा नवसाम्राज्यवाद से भी कोई विरोध नहीं है।
अध्यक्षता, जैसा कि घोषणा से पता चला, दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज के कोई शिक्षक कर रहे थे। उन्होंने अपने संक्षिप्त भाषण में हिंसा सीखने और करने की जरूरत पर बल दिया। उनका तर्क था कि केवल अहिंसा से काम नहीं चल सकता। यानी हिंदू राष्ट्र की स्थापना नहीं हो सकती; जरूरत पड़ने पर अहिंसा के पुजारी का ‘वध’ करने के लिए तत्पर रहना चाहिए! जाहिर है, वहां उपस्थित बच्चों और युवाओं को वह सीख दी गई थी। बाहुबली इंक्लेव और उसके साथ ऋषभ विहार जैन समाज की कॉलानियां हैं। उन्हें धर्म नगरी का नाम दिया गया है। इस नाते साथ में लगे सूरजमल विहार में भी बड़ी संख्या में जैन समाज के लोग बस गए हैं। पूरा साल, खास तौर पर चतुर्मास में जब प्रसिद्ध जैन मुनि यहां आते हैं, जैन धर्म के कई कार्यक्रम होते रहते हैं। उस दिन आरएसएस के कार्यक्रम में कई जैन गणवेश में शामिल थे। लेकिन ‘अंहिसा परमो धर्म’ में विश्वास करने वाले जैन धर्म के उन अनुयायियों में से किसी ने अध्यक्ष के कथन पर एतराज नहीं उठाया। उन्हें कम से कम पूछना चाहिए था कि चौरतफा अनेकशः हिंसा से घिरी दुनिया को और हिंसा भला क्यों चाहिए!
कार्यक्रम के अंत में उद्घोषक ने नगर निगम और दिल्ली पुलिस का धन्यवाद किया। धार्मिक त्योहार के दिन सार्वजनिक तौर पर की गई हिंसा सीखने और करने की घोषणा में पुलिस और नागरिक प्रशासन को कुछ भी अनुचित नहीं लगा। फर्ज करो कोई अतिवादी राजनीतिक विचारधारा में विश्वास करने वाला व्यक्ति, या कोई अल्पसंख्यक सार्वजनिक भाषण में हिंसा की वकालत करता तो क्या पुलिस और नागरिक प्रशासन ऐसे ही जाने देते?
यह वाकया स्वच्छ भारत अभियान के अगले दिन का है। कवायद के बाद स्वयसेवकों ने जलपान किया और कूड़ा वहीं बिखरा छोड़ कर चले गए। अगले दिन सुबह प्रतिदिन आने वाले स्वयंसेवकों ने वह कूड़ा उठा कर कुछ पास में लगे डस्टबिन में डाला और बाकी धरती पर ढेर लगा दिया। शायद पार्क में सैर करने वाले लोगों की शिकायत पर, या अपनी समझदारी से।
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