आरक्षण नहीं, पुणे करार लागू हो-भूले नहीं, पुणे करार में ही हिंदू राष्ट्र की बुनियाद
आरक्षण नहीं, पुणे करार लागू हो-भूले नहीं, पुणे करार में ही हिंदू राष्ट्र की बुनियाद
सबसे पहले हम मान लें यह हिंदू राष्ट्र है सन् 47 से, तभी मुकाबला संभव है हिंदू साम्राज्यवाद का
आरक्षण नहीं, पुणे करार लागू हो
राजनीतिक संरक्षण में सीमाबद्ध है समता और सामाजिक न्याय, इससे बहुजनों को कोई अवसर नहीं, मुक्ति असंभव
धरती रोज काँपती है और महानगरीय सभ्यता को परमाणु विध्वंस का बेसब्री से इंतजार
परसो ही हमने लिखाः
इस वर्गीय शासन और राजकाज के फासिस्ट स्थाई मनुस्मृति बंदोबस्त को बदलने के लिए अब और आंखमिचौनी के बदले हम सीधे इस सामाजिक आर्थिक यथार्थ के निरंतर प्रवाहमान इतिहास को मान लें कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है और यहां हिंदू साम्राज्यवादियों का ही वर्गीय वर्चस्व है जो मनुष्यता और प्रकृति दोनों के लिए कयामत का मंजर है। मनुस्मृति के इस फासिस्ट मंजर को बदले बिना सत्ता परिवर्तन से कोई बदलाव इस राष्ट्र व्यवस्था में होगी नहीं जो दरअसल बहुसंख्य बहुजनों के खिलाफ सैन्य दमन तंत्र के सिवाय कुछ भी नहीं है। अस्मिताओं को तोड़े बिना, पूरे देश की मनुष्यता को बदलाव के लिए जोड़े बिना यह असंभव है कि धार्मिक ध्रुवीकरण के वर्गीय शासनतंत्र को बदलने के लिए हम कुछ भी कर सकें।
इस प्रस्थानबिंदू पर अनिवार्य सहमति और उसके मुताबिक देशव्यापी आम जनता का मोर्चा बनाने के बजाय गरम हिंदुत्व के बदले नरम हिंदुत्व के आवाहन के निरंतर सिलसिला से सामाजिक बदलाव, समता, समरसता और सामाजिक न्यायके उदात्त लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों की जुगाली करते हुए हम दरअसल हिंदू राष्ट्र के ही मनसबदार सिपाहसालार बनने की अंधी दौड़ में शामिल हैं और मुक्तिकामी जनता के हक हकूक की लड़ाई में शामिल होने के बजाय हम मुक्तबाजारी नरसंहारों को अंजाम देने की भावभूमि को ही मजबूत कर रहे हैं।
आरएसएस, भाजपा और भारतीय राज्य एक बार फिर बाबासाहेब आंबेडकर को अपनी राजनीति को जायज ठहराने के लिए उनको 'अपनाने' की कोशिश कर रहा है। उन्हें एक 'हिंदू राष्ट्रवादी' बताना इसी साजिश का हिस्सा है। लेकिन जातियों के उन्मूलन और ब्राह्मणवाद के ध्वंस के लिए लड़ने वाले बाबासाहेब का जीवन, चिंतन, उनके संघर्ष और उनका लेखन उन सभी चीजों के खिलाफ खड़ा है, जिनका प्रतिनिधित्व संघ, भाजपा या भारतीय राज्य करते हैं। मिसाल के लिए देखिए कि उन्होंने हिंदू राज के बारे में क्या कहा था। उनकी किताब पाकिस्तान ऑर द पार्टीशन ऑफ इंडिया से। बाबासाहेब की जयंती पर उन्हें याद करते हुए।
"अगर हिंदू राज असलियत बन जाता है, तो इसमें संदेह नहीं कि यह इस देश के लिए सबसे बड़ी तबाही होगी। हिंदू चाहे जो कहें, हिंदू धर्म स्वतंत्रता, बराबरी और भाईचारे के लिए खतरा है। इस लिहाज से यह लोकतंत्र के साथ नहीं चल सकता। हिंदू राज को किसी भी कीमत पर रोकना होगा।"
- डॉ. बी.आर. आंबेडकर
बाबासाहेब के अनुयायी स्वयंभू अंबेडकरी विरासत के दावेदार दरअसल कर क्या रहे हैं, यह आम जनता से और खासकर बहुजन जनता से छुपा कोई राज भी नहीं है कि हम रोज रोज उसका खुलासा करके मठाधीशों और मसीहावृंद के अंध भक्तों को और गर्द फैलाने का मौका देते हुए पहले से खंड खंड खंडित बहुजन समाज के विखंडन का काम करते रहें।
अब देख लीजियेः
Where is the expected outcry from Dalit groups?This PM is bloody touchy. He gets offended if students discuss his failures or criticise his communalised and corporatised politics.
This PM is bloody touchy. He gets offended if students discuss his failures or criticise his communalised and corporatised politics.
This cannot only be the students' fight. It's got to be everyone's.
Why are Congress, CPM, CPI, AAP, JDU all silent on this? Are they waiting to make it an issue only if it affects their own fiefdoms?
Not even a whimper of protest from DMK, PMK, AIADMK, all of who claim Periyar.
Where is the expected outcry from Dalit groups?
"Though the platform created a space for the students of IITM to discuss and debate on issues directly affecting the peasants, labours and the common mass, APSC continuously faced threats from rightwing groups inside IITM. Even the administration tried to curtail the activities of APSC, in June 2014, the DoS Dr.M.S.Sivakumar directed us to change name stating that the names 'Ambedkar and Periyar' are politically motivated and thus the study circle should be renamed with some apolitical titles without any personolity's name. APSC took stubborn decision to stick with the same title. We also indicated, the activities of right wing groups under the banner of Vivekananda Study Circle, but the Dean of Student's said they have been using the name (Vivekananda) for many years and he denied to change the name of "Vivekananda study circle". For a second time in September 2014, he sent a mail for the same reason, through MITR (the general counseling unit for students run by IITM admin) rather than from Dean's office stating that the name is polarising the students. We clearly explained the Dean, the motto of the study circle and relevance of Ambedkar and Periyar's name."
http://www.countercurrents.org/apsc290515.htm
अंबेडकरी आंदोलन के लिए सबसे जरूरी है बाबासाहेब के जाति उन्मूलन के एजेंडे को प्रस्थान बिंदू बनाकर हिंदू राष्ट्र और हिंदू साम्राज्यवाद के मनुस्मृति शासन,राजकाज,तंत्र मंत्र यंत्र और बजरंगी सैन्यदमन राष्ट्र व्यवस्था के खिलाफ आजादी की लड़ाई शुरु करना।
भूले नहीं, पुणे करार में ही हिंदू राष्ट्र की बुनियाद।
बाबासाहेब ने समान अवसरों के साथ साथ संसाधनों के समान बंटवारे की बात भी कही थी समता और सामाजिक न्याय के लिए, जो समरसता काल में नस्ली रंगभेदी पुरुषवर्चस्व के तहत देश बेचो अभियान में तब्दील है।
बाबासाहेब ने मनुष्यता और प्रकृति के हित में अर्थव्यवस्था लोककल्याणकारी राज्य के हवाले करने के लिए संविधान में मौलिक अधिकारों,जनमजात नागरिकता और नीति निर्धारक सिद्धांतों के प्रावधान किये थे और स्त्रियों और मेहनतकश जनता के हक हकूक के लिए श्रम कानून से लेकर संवैधानिक रक्षाकवच तक सारे इंतजाम किये थे। जो खत्म हैं।
आदिवासियों के लिए पाचवीं और छठीं अनुसूचियों के इंतजाम किये थे, जो खतम हैं।
अब भी लोगों को लगता है कि लोकतंत्र है हिंदू राष्ट्र में तो सिर्फ इसलिए कि इस गैस चैंबरी मृत्यु उपत्यका के लोगों को पक्का यकीन है कि कानून का राज है और संसद से सड़क तक जो भी कुछ होगा कानून के मुताबिक होगा। वे बस इस इंतजार में है कि उनका गला भी रेंत दिया जाये, चाहे सर कलम कर दिया जाये, चाहे उनकी जिंदगी हो जाये सलवा जुड़ुम, तो भी जो भी हो रहा है, कानूने मुताबिक हो रहा है और विधानसभा में न सही, संसद में माई बाप लोग बइठल हो जो किरया करम कर दिब।
इसीलिए अब भी जब न नौकरियां हैं और न नियुक्तियां हो रही हैं, रोबोट और क्लोन के इस बायोमैट्रिक दुष्काल में एक अकेली मशीन में समाहित उत्पादन प्रणाली और मेहनतकशों के सफाये के शापिंग दुस्समय के खुदरा एफडीआई बाजार में बहुजनों का यह यकीन दिलाया जा रहा है कि संविधान के मुताबिक दिये जाने वाले आरक्षण से अजा आजजा और पिछड़ों को समान अवसर और समानता का दर्जा के साथ साथ सत्ता में भागेदारी भी मिल रही है।शेष अगले पेज पर..... आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
इसी खुशफहमी में छह हजार से ज्यादा जातियों में बंटे बहुजन समाज में मारामारी है आपस में खूब और हिंदुत्व के नर्क जाति व्यवस्था बनाये रखने में ही और जाति के जरिये सब कुछ हासिल करने के जुगाड़ में ही सारी ताकत झोंकी जा रही है और मुंह बाएं खड़ी हत्यारी मनुस्मृति के खूनी खंजर पर किसी की नजर नहीं है और न हिंदू राष्ट्र के इस वधस्थल की नरसंहारी अर्थव्यवस्था को समझने की कोई कोशिश हो रही है।
काला नाग ने काटा नहीं, जनप्रतिबद्ध युवा कवि को इसकी खुशी है जबकि वह किसी को भी कहीं भी कभी भी काट सकता है। ऐसे जहरीले काले नागों से घिरे हैं हम।
हमारे गुरुजी TaraChandra Tripathi ने एक तस्वीर शेयर की हैः
यहाँ धरती रोज काँपती है. पर—-
(तोक्यो के काचीडोकी चुओ कू स्थित हमारे आवास का ६२ मंजिला भवन)
जाहिर है कि धरती रोज काँपती है और महानगरीय सभ्यता को परमाणु विध्वंस का बेसब्री से इंतजार।
परसो ही हमने लिखा यह और कल नयी दिल्ली में रेडियो एक्टिव लीक से हड़कंप और तुरत फुरत युद्धस्तरीय तत्परता से मामला रफा दफा लीक और फतवा जारी कि रेडियोएक्टिव लीक दरअसल रेडियो एक्टिव नहीं है।
दवाइयों और रसायनों का खुल्ला बाजार है भारत, यह जितना सच है, उससे बड़ा सच यह है कि भोपाल गैसत्रासदी जैसे प्रयोग की बहुराष्ट्रीय पूंजी को खुली छूट है। हरित क्रांति के रसायन से लबालब हमारी मधुमेह प्रजाति। मनसेंटो।
शीतल पेय से लेकर पानी और दूध तक में जहर। कुछ लोग पेशाब पीकर भी गुजारा कर सकते हैं और यह उनका धर्म भी है। उससे कहीं ज्यादा यह मुनाफावसूली का सबसे मजबूत मकड़जाल हुआ ठैरा। स्वमूत्र पान करें अब प्रजाजन। आयुर्वेद ही सहारा क्योंकि बाकीर इलाज के खाते खेंस में पइसा नइखे।
बाकी लोग जो स्वमूत्र पान कर नहीं सकते, संकट दरअसल उन्हीं का है। क्योंकि सारे दरवाजे, सारी खिड़कियां और रोशनदानों से घुस रही है विदेशी पूंजी के साथ विदेशी रेडियोएक्टिव बीमारियां और हिमालय का परमाणु बम कभी भी कहीं भी फट सकता है। महाभूंकप के बाद लापता होने लगे हैं तमाम ग्लेशियर तो नमामि गंगे से क्या होगा।
कृपया देखेंः
Radioactive leak might be a reality anytime! New Delhi might not be that safe as it seems to be.
http://www.hastakshep.com/old
हम जो लिख रहे हैं, उससे बहुसंख्य बहुजनों में जो अस्मिता राजनीति की सत्ता राजनीति से समता सामाजिक न्याय और समरसता का सपना संजोये हुए हैं बिना बाबासाहेब के जाति उन्मूलन के एजंडे को छुए, अपनी अपनी जाति के लिए सारे मौके सहेजने की आपाधापी में, उन्हें लगाता है कि हम आरक्षणविरोधी किसी आंदोलन के कोई अरविंद केजरीवाल हैं और हमारा जनसुनवाई मंच कोई यूथ फार इक्वालिटी है।
सोशल मीडिया मार्फत ऐसी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, जैसे कि हम लोग आरक्षण को खत्म करने पर तुले हैं। आरक्षण जो निजीकरण, उदारीकरण और ग्लोबीकरण के मुक्त बाजार में समरसता में निष्णात धोखाधड़ी में तब्दील कर दिया है मिलियनर बिलियनर मनुस्मृति स्थाई बंदोबस्त के जमींदारों ने, हम चूंकि उसे रेखांकित कर रहे हैं। और बहुजनों के विध्वंसक हिंदू साम्राज्यवादी मुक्त बाजार को बेपरदा कर रहे हैं।
हमारे पेश तथ्यों के मुकाबले हिंदुत्व के मलसबदारों और सिपाहसालारों की दलीलें कु छ इसी तरह की हैः
Rationality in question!
"Earthquakes are caused by the Jeans-Wearing Women"
Maulana Fazlur Rehman: “From earthquakes to inflation are caused by the Jeans-Wearing Women" Islamabad: Jamiat Ulema-e-Islami Fazl (JUI-F) Chief Maulana...
SHEIKYERMAMI.COM
समान शिक्षा के बदले जो नालेज इकोनामी है, उसमें आरक्षण के बावजूद गरीब बच्चों को लाखों के दांव पर सत्ता शिशुओं की शिक्षा के समान शिक्षा राममंदिरों में दाखिला असंभव है क्योंकि आरक्षण भी खरीद क्षमता से नत्थी है।
कृपया अपने अपने राज्य में उन अजा, अजजा और पिछड़ी जातियों की तनिक सुधि लीजिये जिन्हें बाहुबलि जातियों को मिले आरक्षण की वजह से सन 47 से और मंडल कमंडल खूनी समय में न आरक्षण मिला है और न जीवन के किसी क्षेत्र में उनका प्रतिनिधित्व है।
आरक्षण मिला नहीं है, लेकिन समाज में अछूत चिन्हित हैं और हाशिये पर हैं तो सामान्य वर्ग में भी एक कदम आगे बढ़ नहीं सकते।घुसे तो अस्पृश्य ही बने रहें।
यह हमारा भोगा हुआ यथार्थ है।
बाबासाहेब का नाम जापते हुए, महापुरुषों और पुरखों को याद करते हुए, जन्मजिन और तिरोधान दिवस मनाते हुए मूर्तिपूजा के हिंदुत्व में निष्णात हम यह कतई समझने को तैयार नहीं हैं कि इस देश में आजादी सिर्फ सत्ता वर्ग की है और प्रजाजन हजारों साल से जैसे गुलाम रहे हैं, वैसे ही गुलाम हैं। जबकि हरिचांद गुरुचांद ठाकुर, महात्मा ज्योति बा फूले और बाबासाहेब अंबेडकर बार बार चेतावनी देते रहे हैं कि उनका स्वराज हमारी गुलामी के सिवाय और कुछ भी नहीं है।
देश के बहुजन बहुसंख्य लोग पुणे करार भूल गये हैं और पुणे करार के तहत ही सत्ता की मलाई चाटने के लिए आपसी मारकाट में लहूलुहान हो रहे हैं, हम बार बार यही बताने की कोशिश कर रहे हैं और पूरी अर्थ व्यवस्था का खुलासा करते हुए वंचित वर्ग के बहिस्कार और कत्लेआम के स्थाई बंदोबस्त के जमींदारों को बेनकाब कर रहे हैं।
क्योंकि आरक्षण नहीं, पुणे करार लागू है राजनीतिक संरक्षण का।
क्योंकि राजनीतिक संरक्षण में सीमाबद्ध है समता और सामाजिक न्याय।
हस्तक्षेप पर लगे डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’, आस्तिक हिन्दू! के आलेख में कहा गया है कि अजा-अजजा को सरकारी शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में मिला आरक्षण संविधान की स्थायी व्यवस्था, जबकि राजनेता और सरकार जनता को करते रहे-भ्रमित…
कुछ दुराग्रही लोग आरक्षण को समानता के अधिकार का हनन बतलाकर समाज के मध्य अकारण ही वैमनस्यता का वातावरण निर्मित करते रहते हैं। वास्तव में ऐसे लोगों की सही जगह सभ्य समाज नहीं, बल्कि जेल की काल कोठरी और मानसिक चिकित्सालय हैं।
फिर उनने लिखा हैः अब सवाल उठता है कि यदि अजा एवं अजजा के लिये सरकारी सेवाओं और सरकारी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की स्थायी व्यवस्था है तो संसद द्वारा हर 10 वर्ष बाद जो आरक्षण बढ़ाया जाता रहा है, वह क्या? इस सवाल के उत्तर में ही देश के राजनेताओं एवं राजनीति का कुरूप चेहरा छुपा हुआ है।
सच्चार्इ यह है कि संविधान के अनुच्छेद 334 में यह व्यवस्था की गयी थी कि लोक सभा और विधानसभाओं में अजा एवं अजजा के प्रतिनिधियों को मिला आरक्षण 10 वर्ष बाद समाप्त हो जायेगा। इसलिये इसी आरक्षण को हर दस वर्ष बाद बढ़ाया जाता रहा है, जिसका अजा एवं अजजा के लिये सरकारी सेवाओं और सरकारी शिक्षण संस्थाओं में प्रदान किये गये आरक्षण से कोर्इ दूर का भी वास्ता नहीं है। अजा एवं अजजा के कथित जनप्रतिनिधि इसी आरक्षण बढाने को अजा एवं अजजा के नौकरियों और शिक्षण संस्थानों के आरक्षण से जोड़कर अपने वर्गों के लोगों का मूर्ख बनाते रहे हैं और इसी वजह से अनारक्षित वर्ग के लोगों में अजा एवं अजजा वर्ग के लोगों के प्रति हर दस वर्ष बाद नफरत का उफान देखा जाता रहा है। लेकिन इस सच को राजनेता उजागर नहीं करते!....शेष अगले पेज पर..... आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
आरक्षण की स्थाई व्यवस्था को जो हवाला निरंकुश दे रहे हैं कि -इस विषय से अनभिज्ञ पाठकों की जानकारी हेतु स्पष्ट किया जाना जरूरी है कि
भारतीय संविधान के भाग-3 के अनुच्छेद 12 से 35 तक मूल अधिकार वर्णित हैं। मूल अधिकार संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा होते हैं, जिन्हें किसी भी संविधान की रीढ की हड्डी कहा जाता है, जिनके बिना संविधान खड़ा नहीं रह सकता है। इन्हीं मूल अधिकारों में अनुच्छेद 15 (4) में सरकारी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के लिये अजा एवं अजजा वर्गों के विद्यार्थियों के लिये आरक्षण की स्थायी व्यवस्था की गयी है और अनुच्छेद 16 (4) (4-क) एवं (4-ख) में सरकारी नौकरियों में नियुक्ति एवं पदोन्नति के आरक्षण की स्थायी व्यवस्था की गयी है, जिसे न तो कभी बढ़ाया गया और न ही 2020 में यह समाप्त होने वाला है।- उसे भारतीय संविधान की रोज रोज हो रही हत्या के संदर्भ में देखने की जरुरत है।
उसे संपूर्ण निजीकरण, संपूर्ण विनियंत्रण, संपूर्ण विनिवेश, संपूर्ण केंद्रीयकरण, संपूर्ण विनियमन, संपूर्ण विदेशी पूंजी, संपूर्ण विदेशी हित और संपूर्ण विध्वंस के फासीवादी हिंदुत्व के एजंडे के आलोक में देखे बिना हम समझ ही नहीं सकते कि क्यों लिखित परीक्षाएं पास करने के बावजूद करोड़ों बहुजन बच्चों को नौकरियां नहीं मिलती रही है और आरक्षित पदों पर योग्य उम्मीदवार न मिलने की वजह से वहां सवर्णों की नियुक्ति होती रही है और अब क्यों ठेके पर हो रही हैं तमाम नियुक्तियां बचे खुचे सरकारी महकमों में भी।
सत्ता वर्ग के रंगभेदी नस्लभेदी चरित्र का सबसे लाइव प्रसारण आईपीएल का श्वेत चियारिन जलवा है। कालारंग से परहेज का सिलसिला है यह मुक्तबाजार और राजकाज गोरा बनाने का उपक्रम और इसीलिए कारे कारे बहुजन सारे गोरा बनने के फिराक में बजरंगी हुओ रे।
खेल में बाजार है कि बाजार में खेल है, इसे क्रिकेट के रंगबहार से न समझें तो फुटबाल और फिफा से समझ लें।
श्रीनिवासन और ब्लाटर एक ही कोष्ठक में है।
पता नहीं कैसा लगता होगा आपको , जबकि बाजार में घोड़ों की तरह नीलामी पर बेचे जाते हैं तमाम खेल खिलाड़ी।
पता नहीं आपको कैसा लगता हो कि नीता अंबानी के आगे पीछे लाइन लगाकर डोले बिग बी, सचिन तेंदुलकर, अनिल कुंबले, र


