उपभोक्तावाद के युद्धोन्माद में बच्चे अपराधी- यही हिंदुत्व का पुनरुत्थान है, राष्ट्रवाद है और रामराज्य भी यही
उपभोक्तावाद के युद्धोन्माद में बच्चे अपराधी- यही हिंदुत्व का पुनरुत्थान है, राष्ट्रवाद है और रामराज्य भी यही
पलाश विश्वास
भोपाल में बंगाल की 28 साल की बेटी आकांक्षा अपने प्रेमी उदयन दास के साथ लिव इन कर रही थी। वह महीनों पहले अमेरिका में युनेस्को की नौकरी की बात कहकर बांकुड़ा में बैंक के चीफ मैनेजर पिता के घर से निकली थी। इस प्रेमकथा का अंत त्रासद साबित हुआ जब भोपाल में उदयन दास के घर में पूजा बेदी के नीचे दफनायी हुई सीमेंट की ममी बना दी गयी आकांक्षा का नरकंकाल निकला।
किसी प्रेमकथा की ऐसी भयानक अंत आजकल कही न कहीं किसी न किसी रूप में दीखता रहता है। आनर किलिंग, भ्रूण हत्या और दहेज हत्या और स्त्री उत्पीड़न के तमाम मुक्तबाजारी वारदातों के साथ बिन ब्याह लिव इन संबंधों की ऐसी परिणति अमेरिकी संस्कृति की तरह हमारी नींद में खलल नहीं डालती।
जैसे हम नरसंहारों क अभ्यस्त हैं, जैसे हम बलात्कार सुनामियों के अभ्यस्त है, जैसे हम दलितों और स्त्रियों पर उतक्पीड़न के अभ्यस्त हैं, वैसे ही मुक्तबाजारी वारदातें अब रोजमर्रे की जिंदगी है।
अब बारी किसकी है, कहीं हमारी तो नहीं, इसकी कोई परवाह किसी को नहीं है।
मुक्तबाजार में पागल दौड़ अब हमारा लोकतंत्र है।
मुक्तबाजार में पागल दौड़ मजहबी सियासत है तो अखंड कारपोरेट राज भी यही। इसी पागल दौड़ में हमारा रीढ़विहीन कंबंध वजूद है।
सदमा तब गहराता है जब प्रेमिका को ठंडे दिमाग से मारने वाला शराब पीकर जीने वाला कार फ्लैटवाला रईस प्रेमी बिना किसी हिचक के अपने मां बाप का कत्ल करके रायपुर में अपने ही घर के आंगन में उनकी लाशें दफना देने का जुर्म पुलिस पूछताछ में कबूल करता है और 24 घंटे के भीतर उसी घर के आंगन में मां बाप की लाशें मिल जाती हैं।
किसी भी मां बाप के लिए किसी बच्चे की यह क्रूरता भयंकर असुरक्षाबोध का सबब है क्योंकि उपभोक्तावाद के युद्धोन्माद में बच्चे अपराधी हैं तो कोई मां बाप, कोई रिश्ता नाता सुरक्षित नहीं है।
दरअसल असल अपराधी तो हम भारत के नागरिक हैं जो पिछले 26 सालों से लगातार परिवार, समाज, संस्कृति , लोक , जनपद, उत्पादन, अर्थव्यवस्था को तिलांजलि देकर ऐसा नरसंहारी मुक्तबाजार बनाते रहे हैं।
यही हिंदुत्व का पुनरुत्थान है, राष्ट्रवाद है और रामराज्य भी यही है।
अखंड क्रयशक्ति की कैसलैस डिजिटल अमेरिकी जीवनशैली यही है। जो अब मुक्त बाजार का अर्थशास्त्र है, जहां श्रम और उत्पादन सिरे से खत्म है और सामाजिक सांस्कृतिक उत्पादन संबंधों का तानाबाना खत्म है और उसकी सहिष्णुता, उदारता, विविधता और बहुलता की जगह एक भयंकर उपभोक्तावादी उन्माद है जिसका न श्रम से कोई संबंध है और न उत्पादन प्रणाली से और जिसके लिए परिवार या समाज या राष्ट्र जस्ट लिव इन डिजिटल कैशलैस इंडिया मेकिंग इन है। यही हिंदुत्व है।
उदयन दास हत्यारा है जिसने प्रेमिका की हत्या से पहले अपने मां बाप की हत्या की है। अपने अपराधों को उसने डिजिटल तकनीक की तरह सर्जिकल स्ट्राइक की तरह बिना सुराग अंजाम दिया है, परिवार और समाज से उसका कोई संपर्क सूत्र नहीं है और उपभोक्ता जीवन के लिए उसके लिए सारे संबंध बेमायने हैं, जिनकी कोई बुनियाद नहीं है। जाहिर है कि वह एक मानसिक अपराधी है और क्रिमिनल पर्सनलिटी डिसआर्डर का शिकार है। यह बीमारी मुक्तबाजार का उपभोक्तावाद है।
सबसे खतरनाक बात यह है कि मुक्तबाजार के इसी उपभोक्तावाद के लिए सारा का सारा अर्थतंत्र बदला जा रहा है। यही बजट का सार है। आर्थिक सुधार, पारदर्शिता है।
यह आर्थिक क्रांति भी रामराज्य और राममंदिर के नाम हो रहा है।
भारतीय जनसंघ के जमाने में कोई बलराज मधोक इसके अध्यक्ष भी बने थे शायद, ठीक से याद नहीं पड़ता क्योंकि साठ के दशक में तब हम निहायत बच्चे थे।
अब चूंकि संघ परिवार को श्यामाप्रसाद मुखर्जी, वीर सावरकर और गांधी हत्यारा के अलावा अपने जीवित मृत सिपाहसालारों की याद नहीं आती, इसलिए दशकों से बलराज मधोक चर्चा में नहीं हैं।
बलराज मधोक साठ के दशक में भारतीयकरण की बात करते थे।
जनसंघ तब भारतीयकरण के एजंडे पर था। यानी भारत में रहना है तो भारतीय बनना होगा और जाहिर है कि संघ परिवार की भारतीयता से तात्पर्य हिंदुत्व से है।
अब भी संघ परिवार के झोलाछाप विशेषज्ञ, सिद्धांतकार हिंदुत्व को धर्म के बदले संस्कृति बताते हुए सभी भारतवासियों के हिंदुत्वकरण पर आमादा हैं।
सबसे खतरनाक बात तो यह है कि समूचा लोकतंत्र, सारी की सारी राष्ट्र व्यवस्था, राजकाज, नीति निर्माण, संसदीय प्रणाली, लोकतांत्रिक संस्थाएं, मीडिया और माध्यम, अर्थव्यवस्था और समूचा सांस्कृतिक परिदृश्य, शिक्षा और आधारभूत संरचना ऐसे झोलाछाप विशेषज्ञों और सिद्धांतकारों के शिकंजे में हैं।
नोटबंदी से लेकर बजट, रिजर्व बैंक से लेकर विश्वविद्यालय हर स्तर पर अंतिम फैसला इन्हीं मुक्तबाजारी भूखे प्यासे बगुला भगतों का है। उन्ही का राज, राजकाज है।
मुक्तबाजार के कारपोरेट हिंदुत्व का अब सिरे से अमेरिकी करण हो गया है। मसलन डिजिटल कैशलैस लेनदेन भारतीय संस्कृति और परंपरा में किसी भी स्तर पर नहीं है। संघ परिवार की महिमा से रामराज्य में यही स्वदेशी नवजागरण है।
नकदी के तकनीक जरिये हस्तांतरण से अर्थ तंत्र का भयंकर अपराधीकरण हो रहा है और बेहतर तकनीक वाले बच्चे इसके सबसे बड़े शिकार होंगे। मां बाप के कत्लेआम का सारा समान बना रहा है हिंदुत्व का यह कारपोरेट डिजिटल अर्थतंत्र। कयामती फिजां की इंतहा है यह। अब इस अर्थतंत्र के डिजिटल धमाके में परिवार, समाज, राष्ट्र, सारे के सारे पारिवारिक सामाजिक उत्पादन संबंध खत्म हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था में बाजार की गतिविधियां भी सामाजिक कार्य कलाप है। यहां जनपदों में हाट बाजार ब भी कमोबेश चौपाल की तरह काम करते हैं, जहां लेनदेन के तहत समाजिक और उत्पादन संबंध की अनिवार्यता है।
अब तीन लाख रुपये से ज्यादा कैश रखने पर सौ फीसद जुर्माना के साथ नोटबंदी से पैदा हुए नकदी संकट से उबरने के साथ नोटबंदी को जायज ठहराने के लिए कर सुधारों के साथ जो बजट पेश किया गया है, वहां बाजार की भारतीयता को सबसे पहले खत्म कर दिया गया है।
बाजार अब मुक्तबाजार है जो किसानों, मजदूरों, कारोबारियों, बहुजनों, स्त्रियों और बच्चों के साथ साथ युवा पीढ़ियों का अबाध वधस्थल वैदिकी है। इस बाजार का उत्पादन प्रणाली, मनुष्यों, समाज, सभ्यता और संस्कृति से कोई लेना देना नहीं है।
डिजिटल कैशलैस क्रयशक्ति का उपभोक्ता वाद हिंदुत्व का नया अंध राष्ट्रवाद है। बेतहाशा बढ़ते विज्ञापनी उपभोक्ता बाजार के निशाने पर बच्चे हैं।
तकनीकी क्रांति में ज्ञान की खोज सिरे से खत्म है तो शिक्षा अब नालेज इकोनामी है यानी हर हाल में शंबूक हत्या अनिवार्य है।
अंधाधुंध उपभोक्तावाद अब कारपोरेट हिंदुत्व है और इस कारपोरेट हिंदुत्व के लिए परिवार, विवाह, समाज, लोकतंत्र, संविधान, कानून का राज वैसे ही फालतू हैं जैसे समता, सामाजिक न्याय, विविधता और बहुलता, उदारता और सहिष्णुता।
इस अमेरिकी हिंदुत्व के नये प्रतीक के बतौर उदयन दास का चेहरा है और सबसे खतरनाक बात तो यह है कि हर गली मोहल्ले में, गांव शहर में, हर परिवार में एलसीडी, कंप्यूटर, मोटरसाईकिल, फ्लैट, गाड़ी लिव इन पार्टनर के लिए बच्चे क्रमशः अपराधी और हत्यारे में तब्दील हो रहे हैं।
पूरी मुक्तबाजारी नई धर्मोनेमादी पीढ़ी अब क्रिमिनल पर्सनलिटी डिसआर्डर का शिकार है। बाहैसियत वारिस विरासत के हस्तांतरण तक रुकर उपभोग को विलंबित करने के मूड में नहीं है नई पीढ़ी।
उसे बाजार की हर चमकीली भड़कीली चीजे तुंरत चाहिए।
दूधमुंहा बच्चे तक स्मार्टफोन के रोज नये अवतार के लिए हंगामा बरपा देते हैं।
जोखिम भरे डिजिटल कैशलैस लेनदेनके साथ तकनीक बेहतर जानने वाले बच्चों का गृहयुद्ध अब नया महाभारत की पटकथा है।
उदयन दास अकेला अपराधी नहीं है।
मुक्तबाजार बड़े पैमाने पर बच्चों को अपराधी बना रहा है।
बंगाल में दुर्गापूजा के बाजार फेस्टिवल में महंगी खरीददारी के लिए क्रयशक्ति न होने की वजह से गरीब और मध्यवर्गीय परिवारों में बच्चों की आत्महत्या आम है।
कोलकाता में ही मां, बाप, दादा दादी और भाई बहन की मुक्तबाजारी उन्माद की वजह से हत्या अखबारी सुर्खियां और टीवी की सनसनी है।
आकांक्षा की प्रेमकथा के प्रसंग में वे सारी कथाएं उपकथाएं सनसनीखेज तरीके से फिर अखबारी पन्नों पर हैं और टीवी के परदे पर हैं।
यह क्राइम सस्पेंस और हॉरर मुक्तबाजार की संस्कृति है और इस उपभोक्ता युद्धोन्माद में कोई परिवार या कोई मां बाप सुरक्षित नहीं है।
गौरतलब है कि भोपाल और रायपुर की मूलतः देशज कस्बाई संस्कृति से जुड़े नये महानगरों का किस्सा आकांक्षा उदयन है। यह अबाध केसरिया अमेरिकीकरण का सिलसिलेवार विस्फोट है। भूकंप के निरंतर झटके हैं जो कभी भी तबाही में तब्दील हैं।
कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, बंगलूर से सलेकर अत्याधुनिक असंख्य उपनगरों और स्मार्ट शहरों में इसका अंजाम कितना भयानक होगा, यह देखना बाकी है।
विडंबना है कि रामराज्य का वैचारिक, आध्यात्मिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक प्रतीक मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं और इसके विपरीत भारतीय संविधान और भारतीय लोकगणराज्य का प्रतीक धम्मचक्र है।
संविधान और लोकगणराज्य और इनके प्रतीक धम्मचक्र जाहिर है कि बजरंगवाहिनी के रामवाण के निशाने पर हैं।
रामराज्य के भव्य राममंदिर के निरमाण के लिए सबसे पहले संविधान, लोकगणराज्य और उसके प्रतीक धम्मचक्र का सफाया जरुरी है और उनमें निहित मौलिक सिद्धांत, विचारधारा, आदर्श, कायदा कानून, समता, सहिष्णुता, उदारता, लोकतंत्र, न्याय, नागरिकता, नागरिक और मौलिक अधिकारों के खात्मे के साथ-साथ मुकम्मल मनुस्मृति राज अनिवार्य है और संयोग से राम उसके भी प्रतीक हैं जो मनुस्मृति की वर्ण व्यवस्था को लागू करनेके लिए शंबूक की हत्या करते हैं और मनुस्मृति साम्राज्य के लिए अश्वमेध यज्ञ का वैदिकी आयोजन करके जनपदों को रौंद डालते हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम पितृसत्ता का निर्मम प्रतीक भी हैं जो सतीत्व की अवधारणा का जनक है और उनका न्याय सीता की अग्निपरीक्षा और सीता का ही गर्भावस्था में वनवास है। रामराज्य में सामाजिक न्याय और समता का यही रसायन शास्त्र है जो अब मुक्तबाजार का भौतिकीशास्त्र और अर्थशास्त्र भी है।
सत्ता पर वर्गीय, नस्ली कब्जा और संसाधनों, अवसरों से लेकर जीवन के हर क्षेत्र में सत्ता वर्ग का जन्मजात जमींदारी वर्चस्व बनाये रखकर समता और सामाजिक न्याय को सिरे से खत्म करने के लिए मजहबी सियासत जिस तरह कारपोरेट और नरसंहारी हो गयी है, उसमें कानून का राज जैसे हवाई किला है, लोकतंत्र उसी तरह ख्वाबी पुलाव है और विचारधारा विशुध वैदिकी कर्मकांड का पाखंड है।
इसका कुल नतीजा दस दिगंत सर्वनाश है।
अर्थव्यवस्था और उत्पादन प्रणाली का विध्वंस है और राष्ट्र का, समाज का परिवार का, संस्थानों का खंड खंड विभाजन है। सारा तंत्र मंत्र यंत्र समरसता के नाम संपन्नता क्रयशक्ति के हितों में वर्गीय समझौता है और विचारधारा पाखंड है।
मजहबी सियासत का कुल नतीजा मुक्त बाजार है और मुक्तबाजार मजहबी सियासत में तब्दील है। सभ्यता और संस्कृति का अंत है तो विचारधारा और इतिहास का अंत है।
विडंबना है कि भारतीय धर्म कर्म राष्ट्रीयता के साथ साथ भारतीय संस्कृति और इतिहास का स्वयंभू धारक वाहक संस्थागत संघ परिवार है और देश में सत्ता की कमान उसी के हाथ में है।
राजकाज और नीति निर्धारण में संसदीय प्रणाली और लोकतांत्रिक संस्थानों को हाशिये पर रखकर कारपोरेट हितों के मुताबिक ग्लोबल हिंदुत्व का एजंडा संघ परिवार की सर्वोच्च प्राथमिकता है और मुफ्त में नस्ली रंगभेद के नये मसीहा डान डोनाल्ड अब उनका विष्णु अवतार है।


