कैमूर क्षेत्र की आदिवासी महिलाओं ने अभियान चला सरकारी वृक्षारोपण को दी चुनौती
कैमूर क्षेत्र की आदिवासी महिलाओं ने अभियान चला सरकारी वृक्षारोपण को दी चुनौती
कहा कंपनियों को वन विनाश की नहीं दी जाएगी अनुमति
Vijay vinit
सोनभद् । जनपद में सावन की दस्तक शुरू होते ही आदिवासी महिलाओं ने शासन प्रशासन को चुनौती दे डाली हैं। आदिवासी महिलाओं ने वनों के अंदर वनाधिकार कानून में निहित सामुदायिक अधिकारों के तहत 10000 से भी अधिक पौधों को लगाने का ऐलान किया है। इस कार्यक्रम की शुरुआत जिला मुख्यालय सोनभद्र से की गई । जिला मुख्यालय सैकड़ों की संख्या में पहुंची आदिवासी महिलाओं ने लाल व हरी साड़ी पहन रखी थीं।, हाथ में तमाम तरह के पौधों को लिए पूरे शहर का भ्रमण किया। प्रतीकात्मक तौर पर जिला कचहरी व तहसील परिसर के पौधशाला में पौधों को लगाया। इस मौके पर आदिवासी महिलाओं ने, संदेश दिया कि वनों को बचाने व वृक्षों को लगाने का काम समाज का है न कि विदेशी कम्पनियों का। जो पौधे महिलाओं के हाथ में थे वे वनविभाग द्वारा रोपित ब्यापारिक हितों वाले पौधे नहीं बल्कि समाज के काम आने वाले फल, फूल व पर्यावरण को बचाने वाले वृक्ष थे। नीम, नींबू, आंवला, महुआ, जामुन, अमरूद, सहजन, आम आदि के पेड़ लिए आदिवासी महिलाएं रंग बिरंगे परिधानों में पूरे नगर को जो संदेश दिया उसे देख कर सभी नगरवासी आत्मविभोर हो उठे।
इस अभियान की शुरूआत पिछले माह पर्यावरण दिवस पर ही हो गई थी जब महिलाओं ने यह ऐलान किया कि इस बार बारिश आने पर वनों में आदिवासियों व वनाश्रित समुदाय की पहल पर ही वृक्षारोपण होगा । वनविभाग द्वारा वृक्षारोपण कार्यक्रम का जमकर विरोध किया जाएगा। राजकुमारी भुइयां का कहना था की यह विरोध इसलिए हैं क्योंकि वनविभाग द्वारा जितना भी वृक्षारोपण किया जा रहा है वह विदेशी धन या विश्व बैंक फंड़ से उन पेड़ों का हो रहा है जो कि न तो पर्यावरण के लिए अछा हैं और न ही लोगों के लिए उपयोगी है। यह पेड़ केवल कागज़ पर ही लग रहे हैं वन विभाग द्वारा पौधारोपण की आड़ में आदिवासीयों को वनाधिकार कानून के तहत मिली मालिकाना हक़ वाली भूमि पर ही प्लांटेशन किया जा रहा है। उनसे उनकी भूमि दोबारा छीनी जा रही है। वनविभाग भूमि कब्ज़ा करने की नियत से केवल गडडे ही खोदता है। इनके द्वारा किया गया वृक्षारोपण 99 फीसदी फेल हो जाता है। इस तथ्य की सच्चाई पिछले वर्षो में किए गए वृक्षारोपण का जमींनी स्तर पर मुआईना करने व इनके दस्तावेज़ों में अंकित आंकड़ों से समझा जा सकता है। इस समय यह वृक्षारोपण जापान की एक कम्पनी जाईका के माध्यम से कराया जा रहा है जिसके लिए उत्तरप्रदेश वनविभाग को लभगभ 500 करोड़ रूपये का प्रोजेक्ट मिला है। वन विभाग द्वारा इस पैसे को गांव के दबंगों की समिति को चयन कर के किया जा रहा है जिनका पर्यावरण से कोई लेना देना नहीं है। सिर्फ लालच के रूप में इस योजना से कुछ लोग जुड़े हैं। वनविभाग की इस समिति को आदिवासीयों के खिलाफ खड़ा किया जा रहा है और यहीं नहीं इस योजना के तहत वनाधिकार कानून को विफल करने की कोशिश की जा रही है।
सुकालो पनिका ने कहा कि कैमूर क्षेत्र व सोनभद्र वन व् खनिज सम्पदा के लिये पूरे विश्व में मशहूर है लेकिन इस पूरी सम्पदा पर वनविभाग, पूंजीपतियों, कंपनियों व माफियाओं का कब्ज़ा है। यहां के आदिवासी व ग़रीब तबका ऐतिहासिक काल से इन जंगलों के मालिक थे लेकिन देश आज़ाद होते ही इन जंगलों का मालिक वनविभाग बन बैठा। वन विभाग को अंग्रेज़ी शासन ने राजस्व कमाने, जंगल काटने व वन्य जन्तुओं के शिकार का लाईसेन्स देने के लिए स्थापित किया था। जब से जंगल वनविभाग के अधीन हुये जंगल बरबाद ही हुए जिसके साथ आदिवासी व वन्य जन्तु भी बरबाद हुए। अब यही वनविभाग इन बचे हुए जंगलों को कंपनियों से बचाने में नाकाम है। वनविभाग की इस नाकामी की वजह से ही संसद को सन् 2006 में वनाधिकार कानून पारित करना पड़ा। इसके पीछे मूल कारण था कि जंगल व वन्य जन्तु राष्ट्रीय धरोहर हैं व इनको केवल वनों पर जीविका के लिये आश्रित समुदाय ही बचा सकते हैं। इस कानून का आधार ही वनाश्रित समुदाय के सामुदायिक अधिकारों से है। लेकिन समुदाय को सामुदायिक अधिकार के तहत जंगल मिल जाएगें तो वन विभाग को खतरा है कि उनकी जमींदारी खत्म हो जाएगी इसलिए समुदाय इन सामुदायिक अधिकारों न प्राप्त कर सके। इसके लिए बिना समुदाय की राय के वनविभाग जाईका के तहत वृक्षारोपण करने की योजना को चलाया जा रहा है। जाईका जापान की एक कंपनी हैं संयुक्त वनप्रबंधन एक योजना है यह किसी भी कानून के अंतर्गत नहीं आती। दूसरी ओर वनाधिकार कानून 2006 एक केन्द्रीय कानून है। इसके तहत वनों में अधिकारों के साथ साथ वनों की देखरेख, प्रबंधन व वन्य जन्तुओं के देखभाल के लिये भी समितियों को गठित कर उनको अधिकार देने के प्रावधान है।
दुर्गावती अगरिया ने कहा कि सरकार एवं वनविभाग द्वारा वनाश्रित समुदाय के वनों के अधिकार की अनदेखी करने की वजह से ही आदिवासी महिलाओं द्वारा वृक्षारोपण की कमान को अपने हाथों में लेने का निर्णय लिया गया है। महिलाओं ने यह ऐलान किया है कि अगर वनविभाग नहीं चेता तो जल्द ही महिलाऐं वनविभाग के वृक्षारोपण को विफल करेंगीं। वनविभाग को भगाने के लिए वनों में वृक्षारोपण कार्य को आदिवासी समाज करेगां ।
सोनभद्र मुख्यालय पर किये गये प्रतीकात्मक वृक्षारोपण से महिलाओं ने एक चुनौती शासन, प्रशासन व वनविभाग को दी है। आदिवासी महिलाओं ने कहा कि अब जंगलो पर केवल वनाश्रित समुदाय का ही अधिकार होगा व वे ही इसकी सुरक्षा करेगीं। फिर से जंगल को हरा भरा कर अपनी जीविकोपार्जन करेगीं। विदेशी कम्पनीयों को भगाया जाएगा, व्यापारिक पौधारोपण का बहिष्कार किया जाएगा आदि जैसे कई निर्णय महिलाओं ने लिए। इस मौके पर आदिवासी महिलाओंके द्वारा गाए गए गीतों की मधुर धुन ने सबको मोहित कर के रख दिया ।


