क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले पुण्यतिथि राष्ट्रीय महिला दिवस
10 मार्च 2015
दुद्धी, जनपद सोनभद्र उ0प्र0

गैरकानूनी कनहर बांध परियोजना व धरती मां की रक्षा के लिए भूमि अधिग्रहण का विरोध
सावित्रीबाई फुले पुण्यतिथि - महिला उत्पीड़न के खिलाफ व महिला सशक्तिकरण के लिए कार्यक्रमों का ऐलान
संघर्षशील बहनों और भाईयो!
आज देश एक बड़े संकट के दौर से गुज़र रहा है, जहां पर हमारी सरकारें पूरी तरह से पूंजीवादी कम्पनी राज के आगे नतमस्तक हैं और हमारी धरती मां जिससे हमारा आस्तित्व और संस्कृति जुड़ी हुई है, उसे कम्पनियों को औने-पौने भावों में नया भूमि अधिग्रहण कानून ला कर बेचने पर आमादा हैं। यह संकट पहले भी हमारे देश में आया, जब अंतर्राष्ट्रीय साम्राज्यवादी ताकतों ने हमें गुलाम बनाया था। लेकिन आज़ादी के आंदोलन में आदिवासियों, नौजवानों, किसानों व मज़दूरों ने उनके पैर जमने नहीं दिए व अंततः उन्हें इस देश की धरती से खदेड़ कर ही दम लिया। लेकिन आज आज़ाद भारत में ही शासक वर्गों द्वारा एक बार फिर से साम्राज्यवादी ताकतों को मज़बूत करने की कोशिश की जा रही है व ऐसे कानूनों को लाया जा रहा है, जिससे कम्पनियां जल-जंगल-जमींन जिसपर करोड़ों लोग खासकर ग़रीब, दलित आदिवासी व ग़रीब महिलाएं निर्भरशील हैं, उसे लूट सकें। आज ऐसे दौर में सवाल धरती मां के आस्तित्व की रक्षा का आ गया है, आज़ादी से लेकर आज तक राष्ट्र की प्रगति के नाम पर 55 फीसदी आदिवासियों को अपने पूर्वजों की भूमि से बेदख़ल व बेघर किया जा चुका है। उनके पुनर्वास व सम्मानजनक जीवन के बारे में किसी भी सरकार ने गंभीरता से नहीं सोचा व लगातार यह सरकारें उसी पूंजीवादी ऐजेंडे, भूमंडलीकरण व निजिकरण की नीतियों के ज़रिये अभी और भी भूमि व जंगल हड़पना चाहती हैं। यही सिलसिला पूरी दुनिया में चल रहा है। अब मुद्दा पर्यावरणीय न्याय का है, जो कि मानव जीवन के संकट से जुड़ा हुआ हैै। इस कारपोरेटी लूट से मानव जीवन पर तबाह होने के खतरा मंडराता साफ दिखाई दे रहा है। अपनी धरती मां के अस्तित्व की रक्षा को लेकर आज देश के कई जनांदोलनों ने एक साथ मिल कर गत 24 फरवरी को दिल्ली के संसद मार्ग पर एक विशाल जनसभा करके सरकार को चेता दिया कि अब उनकी यह कारपोरेटी लूट संभव नहीं है। अब भूमि अधिग्रहण नहीं, बल्कि भूमि अधिकार की यानि जमीन वापसी की बात होनी चाहिए। ग्रामसभा जो कि एक संवैधानिक ईकाई है, उसकी अनुमति का भी उतना ही महत्व है। इसलिए अब भूमि अधिग्रहण का सवाल सीधे-सीधे धरती मां के आस्तित्व से जुड़ा हुआ प्रश्न है।
वैसे तो भूमि बचाओ के कई आंदोलन चल रहे हैं, जिनमें महिलाएं अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। इसलिए धरती मां के अस्तित्व की रक्षा के आंदोलन के लिए हमने महिला दिवस का ही दिन चुना है, जो कि हमारे देश की पहली महिला अध्यापिका सावित्री बाई फूले को श्रद्धांजलि देते हुए शुरू किया जाएगा। धरती मां की रक्षा का मुद्दा सीधे तौर पर महिलाओं की सुरक्षा व सशक्तिकरण से जुड़ा हुआ है। आज धरती माता की अस्मिता को बचाने के लिए महिलाओं को ही सामने आना होगा व अपने अधिकारों के बारे में जागरुक व सशक्त होना होगा। महिलाओं और धरती माता दोनों के साथ बलात्कार, उत्पीड़न, उपेक्षा, दोयम दर्जा आज जिस स्तर पर पहुंच गया है, वह अब बर्दाश्त के बाहर हो चुका है। इसलिए हमारी यूनियन मानती है कि धरती माता और महिलाओं की लड़ाई एक ही है और यही लड़ाई समाज के वृहद आंदोलन में तब्दील हो सकती है, तभी मानव सभ्यता भी बच सकती है। यह वृहद आंदोलन कैमूर, बुंदेलखंड़, तराई क्षेत्र में ज़ारी है, जहां पर महिलाओं की अगुवाई में हज़ारों हैक्टर भूमि पर अपना दख़ल कायम कर उसे सामूहिक देखरेख में रखने की मिसाल पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से कायम कर अपनी राजनैतिक चेतना को मजबूत करने का काम किया गया है। आज इन सभी क्षेत्रों के आंदोलन एक साथ आ रहे हैं, चाहे वो वनविभाग से भूमि वापिस लेने का हो, सरकार की विस्थापन नीतियों के खिलाफ हो, कनहर सिंचाई परियोजना के खिलाफ हो, पावर कम्पनियों के खिलाफ महान सिंगरौली का संघर्ष हो या फिर तमाम कारखानों में काम कर रहे मेहनतकश वर्गो के अधिकारों को लेकर हो।
कनहर सिंचाई परियोजना सरासर गैरकानूनी व अवैध परियोजना है, जो कि 1984 में त्याग दी गई थी। इस परियोजना को चालू करने की मियाद तक खत्म हो चुकी है, लेकिन उ0प्र0 सरकार ने इस परियोजना की फिर से शुरूआत की है जोकि कानून सम्मत नहीं है। जबकि इस परियोजना को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की अुनमति नहीं है व राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी इस पर रोक लगा रखी है। इस परियोजना से तीन राज्यों उ0प्र0, झारखंड एवं छत्तीसगढ़ के 111 गांव प्रभावित होने वाले हैं। लेकिन इस क्षेत्र के पूंजीपति, सांमत, दबंग, ठेकदार, उच्च जातीय वर्ग, प्रशासन व मीडिया मिल कर इस कथित परियोजना के अंतर्गत आने वाली बहुमूल्य प्राकृतिक सम्पदा पर अपनी ललचाई नज़रे गड़ाए हुए है। पूर्व में इस क्षेत्र में देश का बहुचर्चित विस्थापन रिहंद बांध के माध्यम से हुआ था, जहां पर तीन-तीन बार विस्थापन किया गया व पूरे देश में विस्थापन के खिलाफ आंदोलन का जन्म भी इसी स्थान से हुआ था। विस्थापन की उस त्रासदी को अभी भी यहां के आदिवासी झेल रहे हैं, लेकिन भूमि लूटने की हवस में गुम यह सरकारें ये बात भूल गई हैं कि इस क्षेत्र के लोग अब और विस्थापन बर्दाश्त नहीं करेंगे व यह भूमि आंदोलन का ज्वालामुखी है, जिसमें किसी भी समय विस्फोट हो सकता है, जो शायद पूरे देश को हिला कर रख दे। इस क्षेत्र की तमाम ग्राम पंचायतों ने इस गैरकानूनी भूमि अधिग्रहण के खिलाफ प्रस्ताव भी पारित कर दिए हैं। लेकिन इन प्रस्तावों की अनदेखी कर यह सरकार लोकतंत्रीय व देश की संघीय ढ़ांचे के साथ खिलवाड़ कर रही है। वहीं वनाधिकार कानून-2006 के तहत भी यह परियोजना अब बिना ग्राम सभा की सहमति व अनुमति के लागू नहीं हो सकती। यह भूमि की लूट अब धरती मां की रक्षा का सवाल बन गई है, इसलिए इसकी रक्षा भी अब महिलाओं की अगुवाई में ही होगी। ऐसे में महिला सशिक्तकरण के लिए उन महान स्त्रियों के संघर्षो से आज हमें सीख लेने की जरूरत है, जिससे महिलाएं देश की दूसरी आज़ादी के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकें।
पूरी दुनिया में 8 मार्च को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है जो कि महिला सशिक्तकरण का प्रतीक बन चुका है। जिस समय उन्नीसवीं शताब्दी में महिलाएं अमरीका के शिकागो शहर में अपने अधिकारों के लिए लड़ रही थीं जिससे उनके संघर्षो को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली। उसी शताब्दी में भारतवर्ष में भी अति पिछड़े परिवार में जन्मी सावित्रीबाई फूले व उनकी सहयोेगिनी फातिमाबी ऐसे नाम हैं, जिन्होंने उस समय घोर जातिवाद, पुरूषसत्तात्मक, ब्राह्मणवाद एवं सांमतवाद के खिलाफ जा कर महिलाओं की शिक्षा एवं अधिकारों के लिए संघर्ष किया था। 10 मार्च को क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फूले के परिनिर्वाण दिवस के रूप में जाना जाता है, जब महिला अधिकारों के लिए लड़ते हुए उन्होंने इसी दिन अपने प्राण त्यागे थे। आज हमारे देश में नारी मुक्ति पर काम करने वाले व प्राकृतिक संसाधनों के लिए काम करने वाले ऐसे तमाम जनसंगठन हैं, जो कि सावित्रीबाई फूले के परिनिर्वाण दिवस को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाते हैं। क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला अध्यापिका व नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेत्री थीं, जिन्होंने अपने पति ज्योतिबा फुले के सहयोग से देश में महिला शिक्षा की नींव रखी।
नारी के उत्थान के लिए स्वयं नारी को ही सामने आना होगा इस बात का पैगाम सावित्री बाई फूले ने पूरे समाज को दिया। नारी की समानता, सम्मान, व उत्पादन के साधनों पर अधिकारों का संघर्ष जो सावित्रीबाई ने आज से डेढ़ सौ वर्ष पहले छेड़ा था, आज इस आधुनिक युग में भी नारी उसी संघर्ष से जूझ रही है। बराबरी, न्याय, सम्मान व अधिकारों के लिए संघर्ष को तेज़ करने वाली नारी के साथ आज उसका उत्पीड़न भी उतनी ही तेज़ी से बढ़ रहा है। तमाम राजनैतिक व सामाजिक शक्तियां जो समाज में अपना वर्चस्व क़ायम रखना चाहती हैं, वे नहीं चाहते कि महिलाएं शिक्षा के अधिकार व जागरूकता को प्राप्त करें। सरकार द्वारा अपनाई गई तमाम नवउदारवादी नीतियों के चलते नारी को एक बाजारू वस्तु बना कर उसे सरे आम नग्न किया जा रहा है। सरकार द्वारा इस समय नवउदारवादी नीतियों के तहत जिस तरह से कम्पनियों के आगे घुटने टेके जा रहे हैं, उससे साफ नज़र आ रहा है कि वे महिला तो क्या इस देश की सम्प्रभुता, धर्मनिरपेक्षता व अस्मिता को भी नहीं बचा पाऐंगे। ऐसे में हम महिलाओं पर अब एक अहम जि़म्मेदारी है कि हम अपने आप को इतना मजबूत करें कि, हम अपनी सुरक्षा करने के इंतज़ाम खुद कर सकें व बलात्कारी, दुराचारियों व आततायीओं को सज़ा दें। साथ ही सामाजिक स्तर पर भी हम अग्रणी भूमिका निभा कर महिलाओं के लिए सम्मान, उनके साथ हो रहे भेदभाव को खत्म करने की मुहिम छेड़े तथा सरकारों द्वारा चलाई जा रही कम्पनियों की लूट के खिलाफ परचम लहरा दें। जब तक महिलाए खुद आगे नहीं आएगीं तब तक महिलाओं के प्रति भेदभाव व उत्पीड़न कभी भी समाप्त नहीं हो पाएगा। इसलिए वनाधिकार आंदोलन, भूमि अधिकार से जुड़ी सभी महिलाएं मिलजुल कर यह संकल्प लें कि अपने जल, जंगल और जमीन पर अपने सामूहिक अधिकारों को स्थापित कर एक नये समाज का निर्माण करेंगी, ताकि हमारी आगे आने वाली पीढ़ी सामुदायिकता जैसे मूल्यों को लेकर बड़ी हो व महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा को जड़ से समाप्त कर सके।
इस उपलक्ष में इस महीने हम विभिन्न क्षेत्रों में महिला सशक्तिकरण दिवस के रूप में महिला दिवस को अपनी प्रतीक महिलाओं सावित्री बाई फूले, फातिमा बी जैसी महान क्रांतिकारी बहनों को याद कर के मना रहे हैं व हमारे संगठन की दिवंगत साथी भारती द्वारा वनाधिकार आंदोलन को दिये गये योगदान को याद करते हुए मना रहे हैं। यह कार्यक्रम इस प्रकार हैं -
1. 10 मार्च 2015 - दुद्धी, सोनभद्र, उ0प्र0
2. 8 मार्च 2015 - मानिकपुर, चित्रकूट उ0प्र0
3. 13 मार्च 2015 - अधौरा, जिला कैमूर, बिहार
आपसे हमारा आह्वान है कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में इन कार्यक्रमों में शामिल हो कर महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा एवं धरती माता की लूट को समाप्त करने का संकल्प लें। सभी महिला साथी अपने साथ पेड़, फूल या जड़ी बूटी के पौधे लाएं व एक दूसरे को भेंट कर उन तमाम भूमिओं पर लगाएं जो कि हमारे पूर्वजों से छीनी गईं थी।
अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन AIUFWP
कैमूर क्षेत्र महिला मज़दूर किसान संघर्ष समिति, कैमूर मुक्ति मोर्चा, कनहर बांध विरोधी संघर्ष समिति, मानवाधिकार कानूनी सलाह केन्द्र
टैगोर नगर, जिला कचहरी के समीप, राबर्ट्सगंज, सोनभद्र-उ0प्र0। दिल्ली पता - बी 137, दयानंद कालोनी, लाजपत नगर।