साम्राज्यवाद का अंत ही आतंकवाद का अंत होगा।
गाँधी ही निशाने पर हैं
पाकिस्तान में बाचा यूनिवर्सिटी पर तालिबान आतंकियों का हमला, 25 मरे, चारों आतंकी ढेर
रणधीर सिंह सुमन

अमरीकी सम्राज्यवाद ने जो जहर पाकिस्तान में बोया था उसका असर बराबर दिखाई दे रहा है। आज भी इन आतंकवादियों को हथियार कौन दे रहा है? यह बात जगजाहिर है जिसने अफगानिस्तान में सोवियत संघ को परास्त करने के लिए आतंकवादी संगठनों का निर्माण किया था, उन्हीं ताकतों की हथियार सप्लाई है। अब यह छात्रों को भी नहीं बख्श रहे हैं।

पश्चिमोत्तर पाकिस्तान के अशांत खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत में भारी हथियारों से लैस आतंकवादियों ने प्रतिष्ठित बाचा खान विश्वविद्यालय में घुसकर छात्रों और शिक्षकों पर अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दीं, जिससे कम से कम 25 लोगों की मौत हो गई और करीब 50 अन्य लोग घायल हो गए। आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने पेशावर के पास स्थित बाचा खान विश्वविद्यालय पर हमले की जिम्मेदारी ली है। यह वही आतंकी संगठन है, जिसने 2014 में पेशावर के आर्मी स्कूल पर हमला करके कई मासूम बच्चों को मौत की नींद सुला दिया था।

यूनिवर्सिटी में आज को बाचा खान की पुण्यतिथि मनाई जा रही थी। 20 जनवरी 1988 के दिन खान अब्दुल गफ्फार खान (बाचा खान) का निधन हो गया था। 1987 में भारत ने उन्हें भारत रत्न की उपाधि भी दी थी। सीमांत गांधी भी कहे जाने वाले ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान ताउम्र उदार और गांधीवादी रहे। वह भारत के बहुत क़रीब रहे।
गाँधी के विचार ही हमेशा निशाने पर रहे हैं
गाँधी के विचार ही हमेशा निशाने पर रहे हैं। बाचा खान को सीमांत गाँधी कहा जाता था। हमारे यहाँ गाँधी को मार डाला गया था और अब जब सीमांत गाँधी नहीं रहे, तो आज उनके नाम की यूनिवर्सिटी के बच्चों को मार डाला गया है। आतंकवादी या सम्प्रदायिक ताकतें यही करती हैं। यहाँ ये ताकतें कमजोर हैं, इसलिए दंगे कर अपनी मानव रक्त पिपासा को शांत करती हैं। इस हमले जितनी निंदा की जाए वह कम है। साम्राज्यवाद का अंत ही आतंकवाद का अंत होगा। -

-रणधीर सिंह सुमन

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