-राम पुनियानी

गुरमीत राम रहीम एक बहुत चमक-दमक भरे बाबा थे। उनकी गिरफ्तारी ने उनके प्रभावक्षेत्र वाले इलाके में मानो एक छोटा-मोटा भूचाल-सा ला दिया। उनकी गिरफ्तारी के बाद हुए घटनाक्रम से यह पता चलता है कि बाबाओं, राजनीतिक दलों और राज्य का गठजोड़ क्या कुछ नहीं कर सकता। गुरमीत को दोषसिद्ध किए जाने से यह भी स्पष्ट हुआ कि आज भी न्यायपालिका में कुछ ईमानदार, निष्पक्ष और निडर न्यायाधीश हैं, जो सच्चा न्याय करने में सक्षम हैं।

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धर्म आज राजनीति, व्यवसाय और समाज तीनों पर हावी हो रहा है। पिछले कुछ वर्षों से भारत में अहंकारी बाबाओं के खुलेआम कानून तोड़ने की घटनाओं में वृद्धि देखी जा रही थी। वे अपने आगे मानो किसी को कुछ समझते ही नहीं थे। राम रहीम की गिरफ्तारी से ऐसे बाबाओं की पोल खुलने का सिलसिला तो शुरू हुआ ही है, उससे यह भी साबित हुआ है कि आध्यात्मिकता के उनके चोले के रहते भी कानून के लंबे हाथ उन तक पहुंच सकते हैं।

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राम रहीम के खिलाफ चल रहे मुकदमे में फैसले की तारीख से कई दिन पहले, बाबा के समर्थक बड़ी संख्या में हरियाणा के पंचकुला पहुंचने लगे थे। भाजपा की मनोहरलाल खट्टर सरकार ने उन्हें अपने वोट बैंक की खातिर इकट्ठा होने दिया। बाबा के डेरे का मुख्यालय सिरसा में हैं परंतु उनके हथियारबंद समर्थक, पंचकुला में जमा हो गए। भाजपा सरकार ने अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया और उसे अदालत से फटकार भी खानी पड़ी परंतु तब तक हिंसा की जाज़म बिछ चुकी थी और निर्णय के तुरंत बाद भड़की हिंसा में 36 से अधिक लोग मारे गए।

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गुरमीत का प्रकरण लंबे समय से अदालतों में लंबित था। बाबा के कुत्सित कारनामों का पर्दाफाश करने वाले एक पत्रकार की पहले ही हत्या की जा चुकी थी। वे दो साध्वियां, जिन्होंने बाबा के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने का साहस दिखाया, हर तरह की मुसीबतों को झेलते हुए चट्टान की तरह दृढ़ बनी रहीं। सौभाग्य से उनके परिवारों और कुछ भले लोगों ने उनका साथ दिया और इसी कारण वे बाबा और उनके शक्तिशाली राजनीतिक संरक्षकों के होते हुए भी उनके खिलाफ गवाही दे सकीं।

ऐसा नहीं है कि केवल भाजपा ही बाबा के चरणों में लोट रही थी। कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियों के बड़े नेता भी बाबा के दरबार में हाजिरी देते रहते थे। परंतु भाजपा, अन्य पार्टियों की तुलना में बाबा भक्ति में कुछ ज्यादा ही रमी हुई थी।

पिछले चुनाव के बाद हरियाणा के वर्तमान मुख्यमंत्री और उनके एक मंत्री गुरमीत सिंह के डेरे पर उन्हें धन्यवाद देने गए थे।

एक मंत्री ने बाबा के जन्मदिन पर उन्हें 51 लाख रूपए भेंट किए थे। बाबा की गिरफ्तारी के बाद उनके साथ एक महिला थी, जो उनकी दशक पुत्री बताई जाती है। उसने दावा किया कि बाबा के साथ भाजपा ने धोखा किया है। उसने यह भी कहा कि बाबा और भाजपा के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके अंतर्गत सरकार उनके खिलाफ चल रहे मुकदमे में उनकी मदद करने वाली थी। यह सब मुख्यधारा के मीडिया में प्रकाशित नहीं हुआ और इसका कारण अब सभी को पता है।

गुरमीत को 20 साल की कैद की सज़ा मिलने के बाद प्रधानमंत्री ने निर्णय का स्वागत करते हुए कोई ट्वीट नहीं किया। प्रधानमंत्री ने हिंसा की निंदा तो की परंतु उसके पीछे कौन था, इस बारे में वे मौन बने रहे।

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गुरमीत एक रंगीन मिज़ाज व्यक्ति हैं। वे पहले बाबा नहीं हैं जिन पर यौन अपराधों में संलिप्तता का आरोप लगा हो। ऐसे लोगों में आसाराम बापू, उनके पुत्र नारायण सांई, संत रामपाल व स्वामी नित्यानंद शामिल हैं।

ऐसा लगता है कि कई स्वामी और बाबा अपनी महिला अनुयायियों का शारीरिक शोषण करते रहे हैं। इनमें से कई भगवान कृष्ण और गोपियों की कथा का इस्तेमाल कर अपनी असहाय महिला सेविकाओं का शोषण करते आए हैं। जो कुछ अब तक सामने आया है वह शायद बाबाओं के कुत्सित कारनामों का एक छोटा-सा हिस्सा मात्र है। इन बाबाओं के आश्रमों के भीतर क्या होता है यह कोई नही जानता। वहां गुफाएं और कुटीरें हैं जिनमें बाबा अपनी महिला श्रद्धालुओं के साथ समय बिताते हैं। उनकी सुरक्षा बहुत कड़ी होती है और उनके डेरों और आश्रमों में क्या होता है, यह जानना लगभग असंभव है।

बाबाओं की नई पीढ़ी को राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त है और इसके बदले वे अपने राजनेता संरक्षकों को अपने समर्थकों के वोट दिलवाते हैं।

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भारत में संतों की अत्यंत प्राचीन और गौरवशाली परंपरा है। इनमें कबीर और निज़ामुद्दीन औलिया जैसे संत शामिल हैं। आज के संतों की तरह वे अपने अनुयायियों के असुरक्षा भाव का शोषण कर आध्यात्म को व्यवसाय नहीं बनाते थे। धर्म के कई पहलू हैं। यह सही है कि धर्म ने समाज को नैतिक बनाने में मदद की है। परंतु इसके साथ-साथ धर्म ने हमें अंधश्रद्धा और कर्मकांड भी दिए हैं। आम लोग तरह-तरह के असुरक्षा भाव और चिंताओं से पीड़ित रहते हैं। आधुनिक बाबा उन्हें भावनात्मक सहारा उपलब्ध करवाते हैं और इसी कारण बड़ी संख्या में लोग उनके डेरों, आश्रमों आदि में जुटते हैं।

इस तरह के बाबाओं की संख्या में पिछले तीन दशकों में तेज़ी से वृद्धि हुई है। जीवन में स्थायित्व पाने और अपनी गहरे असुरक्षा भाव पर विजय प्राप्त करने के लिए लोग इन कपटी बाबाओं की शरण में जाने लगे हैं।

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ये बाबा भले ही पढ़े-लिखे न हों परंतु वे इतने धूर्त होते हैं कि वे लोगों को यह समझाने में सफल रहते हैं कि उनमें ईश्वरीय शक्तियां हैं और वे लोगों की समस्याओं को सुलझा सकते हैं। ऐसे बाबाओं में श्री श्री रविशंकर जैसे परिष्कृत बाबा शामिल हैं जिन्हें यमुना नदी के अत्यंत नाजुक पर्यावरणीय संतुलन को बिगाड़ने में कोई संकोच नहीं होता। इनमें निर्मल बाबा जैसे भोंडे लोग भी शामिल हैं जो अपने भक्तों को उनकी चटनी का रंग बदलने की सलाह देते हैं।

बाबाओं की फौज में रामदेव जैसे चतुर व्यक्ति भी शामिल हैं जिन्होंने योग और भगवा वस्त्रों की आड़ में एक बड़ा व्यावसायिक साम्राज्य स्थापित कर लिया है। ये सब आध्यात्मिक भाषा बोलते हैं और उन लोगों के दिलों में अपनी पैठ बना लेते हैं जो शांति और सुरक्षा भाव की तलाश में होते हैं।

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पहचान के मुद्दों की राजनीति करने वाले दलों का इन बाबाओं से गठबंधन अत्यंत खतरनाक है। इसके चलते ये बाबा न केवल अरबों रूपए कमा लेते हैं वरन समाज को हिंसा के दावानल में झोंकने के सक्षम भी हो जाते हैं, जैसा कि रामपाल व राम रहीम के मामले में हुआ। निःसंदेह इनमें से कुछ जातिगत समानता की बात भी करते हैं परंतु उनके भले कामों की तुलना में उनकी दुष्टताओं की सूची बहुत लंबी है।

ये बाबा लोगों में जुनून पैदा करने में सक्षम होते हैं। धर्म को यदि दुनियावी तनावों से मुक्ति पाने के लिए नींद की दवा की तरह इस्तेमाल किया जाएगा तो इससे जिस तरह के खतरे उभरेंगे उसका एक उदाहरण हमने हाल में हरियाणा में देखा। (अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया) (लेखक आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)