नई दिल्ली। सोहराबुद्दीन फर्ज़ी मुठभेड़ कांड की सुनवाई कर रहे सीबीआई जज बी.एच.लोया की रहस्यमयी मौत/हत्या के मामले मेंअब एक नया खुलासा हुआ है कि महाराष्ट्र के एक ताकतवर मंत्री के रिश्तेदार डॉक्टर के निर्देश पर जज बी.एच.लोया की पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट में घपला किया गया।

The caravan magazine ने Death Of Judge Loya: Post-Mortem Examination Was Manipulated Under Directions Of Doctor Related To Maharashtra Cabinet Ministerशीर्षक से अपनी स्टाफ रिपोर्टर निकिता सक्सेना की खोजपरक ख़बर प्रकाशित की है। हम उस ख़बर का हिन्दी संस्करण जो The caravan magazine में ही प्रकाशित हुआ है के प्रमुख अंश साभार यहां प्रकाशित कर रहे हैं।

1. नागपुर के शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालय के फॉरेन्सिक मेडिसिन विभाग में किए गए जज बीएच लोया के पोस्‍ट-मॉर्टम से जुडी परिस्थितियों पर दो महीने की जांच के बाद जो तथ्‍य सामने आए हैं, वे सिहरा देने वाले हैं। यह पोस्‍ट-मॉर्टम एक ऐसे डॉक्‍टर की निगरानी में किया गया जिसने बाकायद लिखवाया था कि कौन सा विवरण पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट में जोड़ना है और क्‍या घटाना है। बाद में कई पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्टों में घपलेबाज़ी की शिकायत पर इस डॉक्‍टर के खिलाफ जीएमसी में जांच भी चली थी। यह डॉक्‍टर अब तक लोया मामले में किसी भी मेडिकल या कानूनी दस्‍तावेज़ से अपना नाम दूर रखने में कामयाब रहा है। अब तक जज लोया की मौत के मामले में हुई मीडिया कवरेज की नज़र से भी यह डॉक्‍टर साफ़ बचता रहा है।



2. आधिकारिक रिकॉर्ड के मुताबिक लोया का पोस्‍ट-मॉर्टम डॉ. एन के तुमराम ने किया था जो उस वक्‍त जीएमसी के फॉरेन्सिक मेडिसिन विभग में लेक्चरार थे लेकिन वास्‍तव में य पोस्‍ट-मॉर्टम डॉ. मकरन्‍द व्‍यवहारे के निर्देष पर किया गया जो उस वक्‍त विभाग में प्रोफेसर थे और अब नागपुर के एक दूसरे संस्‍थान इंदिरा गांधी शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालय में फॉरेन्सिक विभाग के अध्‍यक्ष हैं। व्‍यवहारे एक ताकतवर संस्‍था महाराष्‍ट्र मेडिकल काउंसिल के सदस्‍य भी हैं जो राज्‍य में सभी चिकित्‍सा‍कर्मियों का निरीक्षण करने वाली इकाई है। अपने पेशेवर दायरे में उन्‍हें अपने राजनीतिक संबंधों के चलते सत्‍ता का इस्‍तेमाल करने वाले शख्‍स के रूप में जाना जाता है। व्‍यवहारे महाराष्‍ट्र के वित्‍त मंत्री सुधीर मुंगंतिवार के साले हैं जो देवेंद्र फणनवीस के बाद राज्‍य सरकार में दूसरे नंबर के नेता माने जाते हैं।

3. व्‍यवहारे ने लोया के केस में असाधारण दिलचस्‍पी ली थी। पोस्‍ट-मॉर्टम के दौरान वहां मौजूद कर्मचारियों के साक्षात्‍कार के अनुसार व्‍यवहारे ने पोस्‍ट-मॉर्टम जांच में निजी रूप से हिस्‍सा लिया और उसे निर्देशित किया- यहां तक कि एक जूनियर डॉक्‍टर पर वे चिल्‍ला भी उठे जब उसने लोया के सिर की जांच करते वक्‍त कुछ सवाल उठाए। लाया के सिर के पीछे एक घाव था लेकिन व्‍यवहारे ने ही यह सुनिश्चित किया कि पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट में इसका जि़क्र न होने पाए। रिपोर्ट कहती है कि लोया की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी। मामले की जांच से यह साफ़ है कि किसी भी ऐसे निष्‍कर्ष को छुपाने का संगठित प्रयास किया गया जो लोया की मौत के संदर्भ में आशंका को जन्‍म दे सके और व्‍यवहारे की भूमिका यहां पोस्‍ट-मॉर्टम जांच पर परदा डालने में रही है।

यह संगीन आरोप इस तथ्‍य से और पुष्‍ट होता है कि जीएमसी के कई कर्मचारियों ने मुझे बताया कि वे ऐसे कुछ मामलों के गवाह रहे हैं जहां व्‍यवहारे ने पोस्‍ट-मॉर्टम जांच में हेरफेर की और झूठी रिपोर्ट बनाई। उनकी ऐसी हरकतों के खिलाफ रेजि़डेंट डॉक्‍टरों और मेडिकल के छात्रों ने जब मुखर विरोध दर्ज कराया, तब जाकर 2015 में जीएमसी ने व्‍यवहारे के खिलाफ जांच बैठायी।



4. द कारवां की यह नई पड़ताल- जो एक ऐसे अज्ञात डॉक्‍टर की भूमिका को उजागर करती है जिसने लोया के सिर पर लगी चोट जैसे अहम तथ्‍यों को सफलतापूर्वक छुपाने का काम किया- समूचे पोस्‍ट-मॉर्टम की प्रक्रिया की सत्‍यता पर ही सवाल खड़ा करती है और इस तरह लोया की मौत की वजह के सरकारी संस्‍करण पर संदेह पैदा कर देती है। द कारवां ने नवंबर 2017 में जब पहली बार लोया के परिजनों के संदेह पर रिपोर्ट प्रकाशित की थी, तब अचानक एक कथित ईसीजी परीक्षण का एक चार्ट कुछ चुनिंदा मीडिया प्रतिष्‍ठानों तक पहुंचा दिया गया था जिन्‍होंने उसके आधार पर छाप दिया कि उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई है। सोशल मीडिया पर उस चार्ट की गड़बडि़यों की तरफ लोगों ने इशारा किया। महाराष्‍ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में लोया की मौत की स्‍वतंत्र जांच की आवश्‍यकता के खिलाफ अपनी दलील देते हुए उस चार्ट को प्रस्‍तुत नहीं किया। इसके चलते जीएमसी में तैयार पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट अकेले सबसे अहम दस्‍तावेज़ के रूप में उभरी जिसके आधार पर महाराष्‍ट्र सरकार ने दलील दी कि लोया की मौत प्राकृतिक थी। अब पोस्‍ट-मॉर्टम परीक्षण की समूची कवायद खुद कठघरे में खड़ी हो गई है।

5. इस जांच में जीएमसी के 14 मौजूदा ओर पूर्व कर्मचारियों के बयानात हैं। इसमें वे व्‍यक्ति भी शामिल हैं जिनके पास लोया के पोस्‍ट-मॉर्टम की प्रत्‍यक्ष जानकारी है। इन कर्मचारियों पर कोई आंच न आए, इसके लिए कारवां ने इनका नाम लेने के बजाय इनसे हुई मुलाकात के क्रम में इनकी पहचान रखने का फैसला किया है। इनमें से कई कर्मचारियों का साक्षात्‍कार एक से ज्‍यादा बार लिया गया। जिन्‍होंने भी बातचीत की, चाहे वे सीनियर प्रोफेसर ही क्‍यों न रहे हों, सभी को मुंह खोलने में भय था क्‍योंकि उन्‍हें व्‍यवहारे और प्रशासन सहित पुलिस व महाराष्‍ट्र के गुप्‍तचर विभाग की ओर से पलटवार कार्रवाई की आशंका थी चूंकि इन सभी ने एक ही पक्ष लगातार बनाए रखा है कि लोया की मौत प्राकृतिक थी।

इनकी गवाहियों के आधार पर मैंने 1 दिसंबर 2014 की सुबह 7 बजे (जब फॉरेन्सिक मेडिसिन विभाग खुलता है) से शुरू होकर जीएमसी तक के पूरे घटनाक्रम का एक खाका तैयार किया। जिन कर्मचारियेां को मैंने बोलने को राज़ी किया, उनमें से किसी को भी इस समय से पहले तक लोया की मौत की कोई जानकारी नहीं थी।

6. मुझसे मिले पांचवें कर्मचारी के अनुसार, जो कि उस दिन विभाग में मौजूद थे, लोया की लाश उस वक्‍त तक विभाग को सौंपी जा चुकी थी। विभाग खुलने के कुछ देर बाद व्‍यवहारे ने फोन कर के उस दिन पोस्‍ट-मॉर्टम के शिड्यूल के बारे में पूछा। वे करीब 10 बजे वहां आ गए- यह असाधारण था क्‍योंकि वे आम तौर से दोपहर होने तक विभाग में आया करते थे।

मुझसे मिले नौवें कर्मचारी ने बताया कि व्‍यवहारे कभी-कभार अपने व्‍याख्‍यानों में भी देर से पहुंचते थे और ऐसे कुछ मामलों में 2014 में विभागाध्‍यक्ष रहे व्‍यवहारे के वरिष्‍ठ डॉ. पीजी दीक्षित उनकी जगह ले लेते थे। मुझसे मिले आठवें कर्मचारी ने कहा, ”समय जैसी चीज़ें आम लोगों के लिए होती हैं, राजाओं के लिए नहीं।”

7. व्‍यवहारे दस दिन पहुंचे तो उत्‍तेजित से थे। पांचवें कर्मचारी ने मुझे बताया, ”उस दिन उनका अंदाज़ ही अलग था। वे बहुत खींझे हुए थे।” व्‍यवहारे तुरंत विभाग के पोस्‍ट-मॉर्टम कक्ष में गए और पूछा कि क्‍रूा पुलिस ने लोया की लाश के काग़ज़ात तैयार कर लिए हैं। अब तक काग़ज़ात तैयार नहीं हुए थे।

8. अगले एक घंटे में व्‍यवहारे तनाव में आ गए। आम तौर से वे पौन घंटे में एक बार पोस्‍ट-मॉर्टम कक्ष के पास स्‍मोकिंग क्षेत्र में जाकर सिगरेट पीया करते थे लेकिन पांचवें कर्मचारी के मुताबिक उस दिन व्‍यवहारे हर पंद्रह मिनट पर एक सिगरेट पी रहे थे। वे बार-बार पोस्‍ट-मॉर्टम कक्ष में जाते, ”पूछते (काग़ज़ात के बारे में), फिर बाहर जाते और एक सिगरेट सुलगा लेते… काग़ज़ात के आने तक वे कम से कम तीन बार (पोस्‍ट-मॉर्टम) कक्ष में आ चुके थे।”

9. उस दिन पोस्‍ट-मॉर्टम ड्यूटी पर दो डॉक्‍टर थे- तुमराम और एक पोस्‍ट-ग्रेजुएट का छात्र अमित थामके। जब लोया का पोस्‍ट-मॉर्टम शुरू हुआ- 10.55 बजे, रिपोर्ट के मुताबिक- व्‍यवहारे भी वहां आ गए।

10. मुर्दाघर के कर्मचारियों ने लोया की लाश को जांच टेबल पर लिटाया और पोस्‍ट-मॉर्टम के लिए तैयार कर दिया। व्‍यवहारे ने सर्जिकल जांच के लिए दस्‍ताने पहन लिए- यह उनके लिए भी असामान्‍य बात थी। पहले कर्मचारी ने मुझे बताया, ”व्‍यवहारे कभी भी दस्‍ताने नहीं पहनते हैं… इसीलिए यह ए‍क अद्भुत बात थी।” उसने बताया कि अधिकतर बार जब उसने व्‍यवहारे को पोस्‍ट-मॉर्टम कक्ष में देखा है, व्‍यवहारे ने कभी भी खुद ऑटोप्‍सी नहीं की और न ही उन्‍होंने कभी दसताने पहने।

11. लोया की ऑटोप्‍सी के दौरान व्‍यवहारे के शर्ट की मुड़ी हुई बांह अचानक नीचे खिसक आई। उन्‍हेांने कमरे में मौजूद दो डॉक्‍टरों में सक एक को कहा कि बांह ऊपर कर दे। पांचवें कर्मचारी का कहना था, ”खुद नहीं किया। उस लाश के साथ वे हर छोटी-छोटी बात पर खीझ जा रहे थे।”

12. एक महीने के अंतराल पर लिए गए दो अलग-अलग साक्षात्‍कारों में पांचवें कर्मचारी ने मुझे बताया कि लोया के सिर पर एक चोट थी, ”पीछे की ओर दाहिनी तरफ”। यह चोट ”ऐसी थी जैसे कि कोई पत्‍थर लगा हो और चमड़ी हट गई हो।” उसके मुताबिक यह चोट बहुत बड़ी नहीं थी लेकिन इतनी गहरी जरूर थी कि खून भरभरा कर उससे निकल गया रहा होगा क्‍योंकि ”लोया को ढंका हुआ कपड़ा सिर की तरफ खून में सन चुका था… वह पूरी तरह लाल था।” लोया के सिर पर चोट वाली जगह ”बाल भी चिपके हुए थे।”

13. लोया के सिर की जांच के दौरान व्‍यवहारे ने तुमराम को डांटा था। पांचवें कर्मचारी ने बताया कि तुमराम ने व्‍यवहारे का ध्‍यान किसी चीज़ की ओर खींचा जिस पर व्‍यवहारे ने उसे डांटते हुए मराठी में कहा, ”जितना कह रहा हूं उतना ही लिखो।” परीक्षण के अंत में कर्मचारी ने याद करते हुए बताया कि व्‍यवहारे ने कहा था, ”मेरे सामने पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्अ के निष्‍कर्ष लिखो।”

14. रिपोर्ट सिर पर लगी चोट को नजरंदाज करती है और कहती है कि लोया की मौत की संभावित वजह ”कोरोनरी आर्टरी इनसफीशियंसी” है। उपशीर्षक ”एक्‍सटर्नल एग्‍जामिनेशन” में बिंदु संख्‍या 14 के अंतर्गत ”त्‍वचा की स्थिति-खून के धब्‍बे, इत्‍यादि” के नीचे लिखा है ”ड्राइ एंड पेल”। बिंदु 17 में ”सरफेस वुंड्स एंड इंजरीज़” के तहत रिपोर्ट कहती है, ”नो एविडेंस ऑफ एनी बॉडिली इंजरीज़” (शरीर पर चोट का कोई साक्ष्‍य नहीं)। बिंदु 18 में ”बाहरी जांच में पाया गया कोई और ज़ख्‍म या फ्रैक्‍चर के रूप में पैल्‍पेशन” में लिखा है, ”नन” (कोई नहीं)। बिंदु 19 में ”सिर” के अंतर्गत पहली प्रविष्टि ”इंजरीज़ अंडर द स्‍काल्‍प, देयर नेचर” में रिपोर्ट कहती है ”नो इंजरीज़”। फॉरेन्सिक विभाग के भीतर के कर्मचारियों की गवाहियां प्रत्‍येक प्रविष्टि की सत्‍यता पर सवाल खड़े कर रही हैं।

15. लोया के सिर पर चोट वाली जो बात बतायी गई, वह डॉ. आरके शर्मा द्वारा पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट के किए गए विश्‍लेषण से मेल खाती है। डॉ. शर्मा दिल्‍ली के भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान में फॉरेन्सिक मेडिसिन और टाक्सिकोलॉजी के प्रमुख रह चुके हैं। जैसा कि शर्मा ने कारवां को बताया था, रिपोर्ट कहती है कि लोया का ड्यूरा कंजस्‍टेड था। उन्‍होंने समझाया था, ”ड्यूरा मैटर मस्तिष्‍क को घेरने वाली बाहरी सतह है। यह सदमे जैसी किसी स्थिति में नुकसानग्रस्‍त हो जाती है, जो दिमाग पर किसी किस्‍म के हमले का संकेत है। शारीरिक हमला।”

16. पहली बार लोया के परिजनों ने बताया कि उनके सिर पर चोट के निशान थे और उनकी देह और शर्ट दोनों पर खून था। ये तमाम विवरण लोया की मौत पर कारवां की पहली रिपोर्ट का हिस्‍सा थे। सरकारी डॉक्‍टर डॉ. अनुराधा बियाणी ने कहा था कि परिजनों को सौंपे जाने के बाद उन्‍हेांने जब पहली बार अपने भाई की लाश देखी तो उन्‍होंने एक बात नोट की थी, ”गरदन और शर्ट के पीछे की तरफ खून के धब्‍बे थे।” लोया की मौत के बाद 2014 में उन्‍होंने अपनी डायरी में एक प्रविष्टि की थी, ”उनके कॉलर पर खून था।” लोया की दूसरी बहन सरिता मांधाने ने कारवां को बताया था कि उन्‍होंने ”गरदन पर खून देखा”, ”उनके सिर पर एक चोट थी और खून था… पीछे की ओर” और ”उनकी शर्ट पर खून के धब्‍बे थे।” लोया के पिता हरकिशन ने कहा था, ”उसकी शर्ट पर खून था बाएं बाजू से लेकर कमर तक।”

17. लोया की मौत के बाद तैयार किए गए मेडिकल काग़ज़ात को मैंने नौवें कर्मचारी के साथ साझा किया। उसे पढ़ने के बाद उसने कहा, ”यह जो अजीब है।” पोस्‍ट-मॉर्टम करने का मानक तरीका होता है कि मृतक के शरीर में से कोशिकाओं के नमूने लिए जाते हैं जिन्‍हें बिसरा के फॉर्म के साथ लैब में परीक्षण के लिए भेजा जाता है। यह फॉर्म पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट में दी गई सटीक सूचना के आधार पर पोस्‍ट-मॉर्टम के तत्‍काल बाद भरा जाता है। कर्मचारी ने कहा, ”पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट में इसने (डॉक्‍टर ने) हृदय के बारे में विशेष तौर पर लिखा है” लेकिन ये विवरण कहीं और नहीं दिखते। उसने कहा, ”इन्‍होंने पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट में जरूर बराद में हेरफेर की होगी।”

18. 17 नवंबर 2015 को 28 साल के एक पोस्‍ट-ग्रेजुएट छात्र डॉ. नितिन शरणागत ने खुद को छात्रवास के कमरे में बंद कर के दवा का ओवरडोज़ ले लिया और खुदकुशी की कोशिश की। शरणागत के सहपाठियों ने दरवाजा तोड़ा तो उसे मुंह से झाग फेंकते हुए पाया। वे उसे लेकर अस्‍पताल गए जहां उसकी जान बच गई। अपने सुसाइड नोट में शरणागत ने लिखा था कि व्‍यवहारे की सतत प्रताड़ना के चलते वह यह कदम उठाने को बाध्‍य हुआ है।

उस वक्‍त टाइम्‍स ऑफ इंडिया को दिए एक साक्षात्‍कार में शरणागत ने कहा था, ”डॉ. व्‍यवहारे अकसर अपने परिजन का नाम लेकर मुझे धमकाते थे जो राज्‍य की कैबिनेट में एक मंत्री है। वे मुझे मेरे किए पोस्‍ट-मॉर्टम पर दस्‍तखत नहीं कर के प्रताडि़त करते थे। किसी-किसी दिन तो वे मुझे कोई काम नहीं देते थे और खाली बैठाए रहते थे।”

इस बीच एक महिला छात्र ने भी व्‍यवहारे के लिखफ यौन दुर्व्‍यहार की शिकायत दर्ज करवायी थी। जीएमसी के एक शिक्षक ने नागपुर टुडे नाम की वबसाइट को बताया था कि व्‍यवहारे ”अकसर उसे गलत तरीके से छूता था, उसके दिखने को लेकर भद्दी टिप्‍पणियां करता था और अकसर उससे पार्टी में साथ चलने को कहता था।&rd