भोपाल। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर यूनियन कार्बाइड के परित्यक्त कारखाने के आस पास के रहवासियों ने पिछले 19 सालों से दबे हज़ारों टन जहरीले कचरे को हटा नहीं पाने की सरकार की विफलता के खिलाफ प्रदर्शन किया।
संगठनों ने बताया कि लखनऊ की इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च ने अक्टूबर 2012 की अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 22 बस्तियों का भूजल प्रदूषित है। उनके अनुसार हाल की जांचों में प्रदूषण 22 बस्तियों से आगे जा चुका है और इसका फैलना तब तक जारी रहेगा, जब तक जहरीला कचरा गड़ा रहता है।

भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्षा रशीदा बी कहती हैं “यूनियन कार्बाइड ने हमारे घरों के पास इस कचरे को गाड़ दिया है। क्यूँ भारत सरकार, यूनियन कार्बाइड के वर्तमान मालिक डाव केमिकल को आज तक इस बात के लिए मजबूर नहीं कर पाई कि वो अपनी कानूनी जिम्मेदारी स्वीकारे और यहां से जहरीला कचरा हटाए”।
भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशन भोगी संघर्ष मोर्चा के बालकृष्ण नामदेव ने हाल में पर्यावरण मंत्री द्वारा प्रदूषण की गहराई और फैलाव के वैज्ञानिक आकलन के संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव को ठुकराने की तीव्र भर्त्सना की। उन्होंने कहा की इस तरह के आकलन के बगैर ज़हर सफाई का काम शुरू ही नहीं हो सकता
भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष नवाब खां कहते हैं, “जो रहवासी 20 साल से ऊपर प्रदूषित भूजल पीते आ रहे हैं, उनके परिवारों में जन्मजात विकृतियों के साथ सैकड़ों बच्चे पैदा हो रहे हैं। जब तक इस ज़हरीले कचरे को खोद कर उसे सुरक्षित तरीके से ठिकाने नहीं लगाया जाता, तब तक ज़हरीला प्रदूषण पीढ़ियों को विकलांग करता रहेगा”।
भोपाल ग्रुप फॉर इनफार्मेशन एंड एक्शन के सतीनाथ षडंगी ने बताया कि डाव केमिकल द्वारा ज़हरीले कचरे को उठाने और ज़हर सफाई करने के सम्बन्ध में एक याचिका मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में पिछले 11 सालों से लंबित है। उन्होंने कहा “सैकड़ों अजन्मे बच्चों के जीवन और भविष्य की बर्बादी से जुड़े इस मुद्दे पर न्यायाधीशों की धीमी चाल वाकई चौकाने वाली है”।
‘डाव- कार्बाइड के खिलाफ बच्चे’(Children Against Dow Carbide) की संस्थापिका साफरीन खां कहती हैं, भोपाल के इस दूसरे हादसे का सबसे दर्दनाक पहलू यह है कि इसमें हर दिन नए लोग पीड़ित हो रहे हैं, जबकि हमारे स्वास्थ्य और जीवन की रक्षा के लिए बनी सरकारी संस्थाएं चुपचाप देख रही हैं।