दीदी की सत्ता की बाहली में जुटा संघ परिवार, जंगल महल में दीदी का केसरिया रंग वसंत बहार
दीदी की सत्ता की बाहली में जुटा संघ परिवार, जंगल महल में दीदी का केसरिया रंग वसंत बहार
शालबनी में माकपा प्रत्याशी के साथ मीडियाकर्मियों को धुन डाला सत्तादल के गुंडों ने, एक मीडियाकर्मी का अपहरण भी
असम में असम गण परिषद के कंधे पर बंदूक रखकर भाजपा हिंदुत्व के इस प्रयोगशाला का विस्तार करना चाहती है हिंदुत्व के एजंडे का ग्लोबल कार्यान्वयन के लिए तो बंगाल में उसकी मुख्य चुनौती सत्ता में खुद आने की नहीं है बल्कि ममता दीदी को सत्ता में बहाल रखकर वाम और कांग्रेस गठबंधन के उभार को रोकने की है।
जाहिर है कि इस लिहाज से यह चुनाव बेहद खास है कि बंगाल और असम में तय होने जा रहा है कि वोट की ताकत से केसरिया अश्वमेधी घोड़ों को रोका जाना संभव है या नहीं है।
इस प्रयोग के बाद यूपी में भी समाजवादियों के साथ दीदीमार्का तालमेल संघपरिवार का फौरी कार्यक्रम हो सकता है।
पलाश विश्वास
कोलकाता। बंगाल के संवेदनशील जंगल महल और असम में विधानसभाओं के चुनाव के पहले चरण का मतदान शुरू हो चुका है। जंगल महल के शालबनी में माकपा प्रत्याशी के साथ मीडियाकर्मियों को धुन डाला सत्तादल के गुंडों ने और इस प्रकरण में एक मीडियाकर्मी का अपहरण भी हो गया। इन पंक्तियों को लिखने तक उसके साथ अंतिम वक्त तक रहे पत्रकारों ने कहा कि उसे बुरी तरह मारपीट कर ले गये और उसका अता पता नहीं है।
बहरहाल सरकारी सूत्रों के मुताबिक हिंसा की कोई खबर अभी लीक नहीं हुई है।
सरकारी सूत्रों के मुताबिक पश्चिम बंगाल में सोमवार सुबह सात बजे कड़ी सुरक्षा के बीच विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए मतदानशुरू हो गया। शुरुआती दो घंटों में करीब 23 फीसदी मतदान हुआ। विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 18 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान शुरू हुआ। ये निर्वाचन क्षेत्र राज्य के तीन जिलों पश्चिमी मेदिनीपुर, बांकुड़ा व पुरुलिया में आते हैं। इस चरण में जिन 18 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान हो रहा है, उनमें से नौ पुरुलिया, तीन बांकुरा और छह पश्चिम मिदनापुर में पड़ते हैं।
निर्वाचन आयोग के एक अधिकारी ने मीडिया से कहा, "शुरुआती दो घंटों में 23 फीसदी से थोड़ा ज्यादा मतदान दर्ज किया गया।
असम से अभी किसी बड़ी खबर नहीं आयी है। लेकिन वहां कभी भी बंगाल से बड़ी घटना हो जाने का अंदेशा बना हुआ है।
बंगाल में हिसां सत्ता दल का विशेषाधिकार है तो असम में धर्मोन्मादी ध्रुवीकरण चरम पर है और वहां सियासत सांप्रदायिक दंगों की पूंजी के दम पर चलती है।
असम में कांग्रेस सरकार के चुने जाने का भरोसा जाहिर करते हुए मुख्यमंत्री तरूण गोगोई ने कहा है कि केवल उनकी पार्टी ही राज्य में विकास के जरिए बेहतर बदलाव लायी है जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने वादों को पूरा करने में 'विफल ' रहे हैं ।
बहरहाल इन दो राज्यों में मुख्य चुनौती संघ परिवार की सत्ता दखल की है।
असम में असम गण परिषद के कंधे पर बंदूक रखकर भाजपा हिंदुत्व के इस प्रयोगशाला का विस्तार करना चाहती है हिंदुत्व के एजंडे का ग्लोबल कार्यान्वयन के लिए तो बंगाल में उसकी मुख्य चुनौती सत्ता में खुद आने की नहीं है बल्कि ममता दीदी को सत्ता में बहाल रखकर वाम और कांग्रेस गठबंधन के उभार को रोकने की है।
जाहिर है कि इस लिहाज से यह चुनाव बेहद खास है कि बंगाल और असम में तय होने जा रहा है कि वोट की ताकत से केसरिया अश्वमेधी घोड़ों को रोका जाना संभव है या नहीं है।
इस प्रयोग के बाद यूपी में भी समाजवादियों के साथ दीदीमार्का तालमेल संघपरिवार का फौरी कार्यक्रम हो सकता है। इसमें समाजवादियों की कितनी मजबूरी होगी और संघ परिवार मुलायम को खुश करने के लिए क्या क्या कर सकता है, मसलन मुलायम का राष्ट्रीय कद केसरियाकरण से किस हद तक ऊंचा किया जा सकता है और यूपी के भाजपाइयों की महात्वांकांक्षाओं की बलि चढ़ाकर अखिलेश को ही अगला मुख्यमंत्री बनाये रखने में भाजपा सहमत है या नहीं, यह सबकुछ निर्भर करेगा।
यह सारा खेल संघ परिवार की रणनीति की असम और बंगाल में कामयाबी नाकामयाबी पर निर्भर है।
बहरहाल बंगाल में संघ समर्थित वाम, कांग्रेस विरोधी तृणमूली हिंसा का यह लोकतंत्र उत्सव किस किस्म का जनादेश पैदा करेगा कहना मुश्किल है। जबकि वाम व लोकतांत्रिक गठबंदन के तेजी से जनता के बीच पैठ बनाने के बावजूद मतदान शुरू होने से पहले तक समझा जा रहा था कि दीदी इस चुनौती का सामना कर लेंगी।
इसके विपरीत अब जिस तरह जंगल महल में भी आदिवासी स्त्री पुरुषं को डराने धमकाने, मारने पीटने और माकपा प्रत्याशी समेत मीडिया कर्मियों पर हमला करने की गलतियां कर रहा है सत्तादल, उससे तो यही लगता है कि दीदी फ्लाईओवर गिरने के सदमे से उबर नहीं पायी है और शहरी विकास मंत्री के स्टिंग के मुताबिक सारे वोट लूट लेने के एजंडा के तहत ही फिर वे सत्ता में वापस लौटना चाहती हैं।
इन हिंसा की घटनाओं में सर्वत्र शांतिपूर्ण मतदान के लिए ढाक ढोल पीटकर जिस केंद्रीय वाहिनी को तैनात किया गया है, वह तमाशबीन है और पीड़ितों की गुहार को अनसुनी कर रही है।
इसके अलावा इस हिंसा के खिलाफ सत्तादल और संघ परिवार दोनों ओर से निंदा के कोई शब्द नहीं हैं जबकि बूथों में पीटे जाने वाले वोटरों में भाजपा समर्थक भी हैं।
जाहिर है कि तृणमूल कांग्रेस नंदीग्राम केशपुर नानुर सिंगुर का हवाला देते हुए चीख-चीखकर कहने की कोशिश कर रहे हैं कि सत्ता में रहते हुए वामदलों ने अगर हिसा का रास्ता अख्तयार किया तो तृणमूली हिंसा पर सबको जुबान तालाबंद रखना चाहिए।
अजीब संजोग है कि संघ परिवार और हिदुत्व ब्रिगेड का भी बंगाल और बाकी देश में यही रवैया है। वे भी माकपाई हिंसा का हवाला जोर शोर से दे रहे हैं और केद्रीय वाहिनी से लेकर भाजपा की सरकार और पार्टी तृणमूल की हिंसा का समर्थक बतौर सामने आ रही है।
बता दें कि पिछले बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले माओवादी नेता किशनजी ने फतवा दिया था तृणमूल कांग्रेस को जिताने के लिए और किशनजी ने तब ऐलान किया था कि वे ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री बतौर देखना चाहते हैं।
उन्होंने ममता दीदी को मुख्यमंत्री बनते हुए देखा जरुर, लेकिन दीदी की ही पुलिस ने उन्हें मार डाला। किशनजी के दाहिने हाथ माओवादी दस्ता के कमांडर विकास और उनकी पत्नी को ऐन चुनाव से पहले गिरफ्तार कर लिया है।
इसी सिलसिले में हालफिलहाल तक चर्चित लालगढ़ प्रकरण की याद दिलाना जरूरी है, जहां जनगणेर पुलिसिया अत्याचार समिति के आंदोलन की वजह से आपरेशन ग्रीन हंट की नौबत बनी थी।
इस समिति के नेता थे छत्रधर महतो, जिनके साथ जमीन आंदोलन के दौर में जंगल महल में न सिर्फ दीदी बल्कि उनके मंत्री संतरी बंग भूषण बंगविभूषण सुशील समाज के चमकदार तमाम चेहरे मंच साझा कर रहे थे।
छत्रधर महतो परिवर्तन होते न होते माओवादी करार दिये गये और जेल में सड़ रहे हैं। उनके नाम पूर्व तृणमूल सांसद कबीर सुमन ने अपनी सांसदी को दौरान एक पोपुलर गाना भी लिखा थाः छत्रधरेर गान। हो सके तो इस मतदान के साथ उन्हें भी तनिक याद कर लें।


