हर मुश्किल आसान विनिवेश, यानी देश बेच डालो!

देशभक्ति का नायाब नमूना, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का लग रहा है सेल ताकि अच्छे दिन आये दिशी विदेशी निजी कारपोरेट कंपनियों के!

पलाश विश्वास

हर मुश्किल आसान विनिवेश, यानी देश बेच डालो!

देशभक्ति का नायाब नमूना, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का लग रहा है सेल ताकि अच्छे दिन आये देशी विदेशी निजी कारपोरेट कंपनियों के!

औद्योगीकरण के बहाने स्मार्ट भारत के लिए सबसे सीधा रास्ता विनिवेश का है।

खेती में मरघट है और किसानों की खुदकशी आम है तो औद्योगिक ढांचा चरमरा रहा है और उत्पादन लगातार गिर रहा है।
भारत का बाजार विदेशी कंपनियों के हवाले है। जिस चीन के बहिष्कार का नाटक है, सबसे ज्यादा मुनाफे में वे ही चीनी कंपनियां है।

जाहिर है कि अच्छे दिन सचमुच आ गये हैं।

बहरहाल किनके अच्छे दिन हैं और किनके बुरे दिन, यह समझ पाना टेढ़ी खीर है।

अब केंद्र सरकार भी अपने पीएसयू ( पब्लिक सेक्टर यूनिट) के लिए बड़ा सेल लाने पर विचार कर रही है।

जाहिर है कि भारत सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की उत्पादन इकाइयों, उनके अधीन राष्ट्र की बेशकीमती संपत्ति और इन कंरपनियों के नियंत्रित प्रबंधित सारे संसाधनों को एकमुश्त निजी कारपोरेट देशी विदेशी कंपनियों के हवाले करने जा रही है। देशभक्ति यही है।

रोजगार सृजन का यह अभूतपूर्व उपक्रम बताया जा रहा है। सरकारी कंपनियों यानी सरकारी क्षेत्रों के बैंकों,जीवन बीमा निगम,भारतीय रेलवे जैसी कंपनियों की जमा पूंजी विनिवेश में लगाकर, यानी इन कंपनियों में लगगी आम जनता और करदाताओं के खून पसीने की कमाई विदेशी और देशी, निजी और कारपोरेट कंपनियों केहित में शेयर बाजार में हिस्सेदारी खरीदने के दांव पर लगाकर सरकारी कंपनियों को ठिकाने लगाने के इस महोत्सव से व्यापक पैमाने पर रोजगार सृजन का दावा किया जा रहा है।

सरकारी कंपनियों को, देशी उत्पादन इकाइयों को छिकाने लगाकर मेहनतकशों और कर्मचारियों के हक-हकूक छीनकर कैसे रोजगार का सृजन होगा, खुलासा नहीं है।

विभिन्न मंत्रालयों के सचिवों के साथ नई विश्वव्यवस्था के परिकल्पित कल्कि अवतार ने सिलसिलेवार बैठक करके मैजिक शो के बीच देश की सरकारी कंपनियों के खजाने को खोलकर लोककल्याण और भारत निर्माण का यह विनिवेश किया है।

कल्कि महाराज की दलील है कि सरकारी कंपनियां पूंजी पर बैठी हैं, इस पूंजी का निवेश कर दिया जाये तो अच्छे दिन आ जायेंगे और हर युवा हाथ को रोजगार मिलेगा। देश में दूध घी की नदियां बहने लगेंगी। सरकारी कंपनियों की इस पूंजी से सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में सौंपकर उनमें काम कर रहे मेहनतकशों और कर्मचारियों की रोजी रोटी छीन ली जाये तो देशी विदेशी कंपनियों की दिवाली घनघोर मनेगी, जो उन्हेंने इस देश की सेना को विदेशी कंपनियों के हाथों देश हारने की दीवाली का बतौर समर्पित किया है।

जाहिर है कि दिवाली सेना को समर्पित करके युद्धोन्माद का ईंधन फुल टंकी भर लेने के बाद मां काली की पूजा के तहत अब उसी फर्जी औद्योगीकरण के शहरीकरण अभियान के तहत सरकारी कंपनियां, सरकारी संपत्ति और आम जनता के संसाधन विदेशी हितों की बलि चढ़ाने का कार्यक्रम जारी है। देश को देशभक्त सरकार का यह तोहफा है कि केंद्र सरकार अपनी 22 लिस्टेड और अनलिस्टेड कंपनियों की नियंत्रण हिस्सेदारी बेचने पर विचार कर रही है।

आम जनता के अच्छे दिनों के आयात निर्यात की इस बुलेट परियोजना के तहत दावा यह है कि इससे सरकार को 56,500 करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य (डिसइनवेस्टमेंट टारगेट) हासिल करने में मदद मिलेगी।

फिलहाल विनिवेश की इस ताजा लिस्ट में बड़ी सरकारी कंपनियां जैसे कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, भारत अर्थमूवर्स शामिल हैं। बाकी कंपनियों के कर्मचारी अफसर धीरज रखें, अबकी दफा नहीं तो बहुत जल्द उनका भी काम तमाम है।
इस घोषित लिस्ट के अलावा सरकार स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAIL)के तीन प्लांट्स और अनलिस्टेड कंपनी सीमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया में भी अपनी हिस्सेदारी बेचने की योजना बनाई है।

गौरतलब है कि नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट में घाटे में चल रहे 74 में से 26 सरकारी पीएसयू को बंद करने की सलाह दी है। वहीं, पांच पीएसयू को लॉन्ग टर्म लीज या मैनेजमेंट कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर देने का सुझाव दिया गया है। तीन सब्सिडियरी फर्म को पैरेंट पीएसयू में मिलाने और दो को जस-का-तस बनाए रखने की सिफारिश की है।

गनीमत है कि विदेशी कंपनियों को इस तरह भारतीय कंपनियों, भारत की संपत्ति और संसाधनों को हासिल करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह को ई पलाशी का युद्ध नहीं लड़ना पड़ रहा है। देश की स्वतंत्रता और संप्रभुता उन्हें धनतेरस के उपहार की तरह सप्रेम भेंट दिया जा रहा है। आम जनता देश के भीतर विदेशी कंपनी के हाथों देश को बेचे जाते देखकर खामोश रहे,इसके लिए उनका ध्यान भटकाने के लिए युद्ध और गृहयुद्ध का माहौल बनाये रखना जरुरी है ताकि लाखों ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों देश का चप्पा-चप्पा बेच सके देशभक्तों की सरकार।

इस कारपोरेट धनतेरस कार्निवाल के लिए डिपार्टमेंट ऑफ इनवेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट (दीपम) ने कैबिनेट नोट जारी किया है।

दावा यह है कि सार्वजनिक कंपनियों का कूटनीतिक विनिवेश (स्ट्रैटेजिक डिसइनवेस्टमेंट) होने जा रहा है। इसकी प्रक्रिया शुरू हो गई है।

गौरतलब है कि इस लिस्ट में ऐसी कंपनियां भी शामिल हैं, जो मुनाफे में चल रही हैं। वहीं कुछ ऐसी भी हैं, जो मुनाफे में नहीं हैं लेकिन उनके पास काफी संपत्ति है।

संसद के बजट सत्र से पहले ही विनिवेश का यह नील नक्शा तैयार है और हमेशा की तरह संसद को बाईपास करके कैबिनेट ने सरकारी कंपनियों में हिस्सा बेचने से संबंधित विनिवेश प्रस्ताव को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है और आगे होने वाले विनिवेश की रुपरेखा तय कर दी है, जिसका इस देश के निर्वाचित जनप्रतिनिधि विरोध करेंगे, इसकी कोई आशंका भी नहीं है। इस फैसले के तहत 50 पीएसयू में स्ट्रैटेजिक विनिवेश होगा।

इस मामले में अब कंपनी दर कंपनी फैसला लिया जाएगा।

रोजगार भले छीनजाये।सर पर चाहे चंटनी की तलवार लटकी रहे। बचे-खुचे अफसरों और कर्मचारियों को सातवां वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के अलावा इस तरह के तमाम क्रयक्षमता बढ़ाने वाले वियाग्रा की आपूर्ति होती रहेगी, ताकि संगठित सरकारी क्षेत्र में विनिवेश के खिलाफ कोई चूं भी न कर सके।

बहरहाल 1991 के बाद 1916 तक ट्रेड यूनियनों के लिए विनिवेश के सौजन्य से सपरिवार विदेश दौरे और दूसरी किस्म की मौज मस्ती की गुंजाइश बहुत कम हो गयी है और कामगार कर्मचारी हितों की लड़ाई और आंदोलन की विचारधारा अब विशुध चूं चूं का मुरब्बा है, जो आयुर्वेद का वैदिकी चमत्कार है।

बहरहाल वित्त मंत्री मशहूर कारपोरेट वकील अरुण जेटली ने गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक के बाद जानकारी देते हुए मीडिया मार्फत कहा है कि किस पीएसयू का रणनीतिक विनिवेश होगा यह तय करने का काम डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट (डीआईपीएएम) को सौंपा गया है। वही विनिवेश के लिए न्यूनतम मूल्य तय करेगा।

उन्होंने बताया कि सरकारी कंपनियों में रणनीतिक हिस्सेदारी की बिक्री के जरिए 20,500 रुपए जुटाने की योजना है। लेकिन इस लक्ष्य को पाने के लिए सरकार विनिवेश में जल्दबाजी में नहीं करेगी।

विनिवेश के इस खेल में आपका बीमा प्रीमियम और उसका भविष्य भी दांव पर है क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र की जीवन बीमा निगम कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने सरकार द्वारा एनबीसीसी के 2,218 करोड़ रुपये के विनिवेश के तहत 50 प्रतिशत से अधिक शेयरों की खरीद की है। एनबीसीसी की पिछले सप्ताह आयोजित बिक्री पेशकश में भागीदारी के बाद सार्वजनिक क्षेत्र की निर्माण कंपनी में एलआईसी की हिस्सेदारी बढ़कर 8.11 प्रतिशत हो गई है।

एनबीसीसी द्वारा शेयर बाजारों को दी गई जानकारी के अनुसार ओएफएस के दिन उसके नौ करोड़ शेयरों की पेशकश में से 54.08 प्रतिशत या 4.86 करोड़ शेयर खरीदे।

मीडिया के मुताबिक ओएफएस के न्यूनतम मूल्य 246.50 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से एलआईसी ने एनबीसीसी के 4.86 करोड़ शेयरों की खरीद के लिए करीब 1,200 करोड़ रुपये का निवेश किया। सरकार ने संस्थागत और खुदरा निवेशकों को एनबीसीसी की 15 प्रतिशत हिस्सेदारी बिक्री के जरिये 2,218 करोड़ रुपये जुटाए हैं।

इस साल अप्रैल से सरकार बिक्री पेशकश के जरिये तीन कंपनियों में विनिवेश से 8,632 करोड़ रुपये जुटा चुकी है। सरकार ने चालू वित्त वर्ष में विनिवेश से 56,500 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है।

विनिवेश हर मुश्किल आसान क्यों है, इसकी दलील यह है कि वित्त वर्ष 2016-17 के लिए सरकार ने राजकोषीय घाटे का लक्ष्य जीडीपी का 3.5 प्रतिशत रखा है।

चालू वित्त वर्ष में रक्षा क्षेत्र में वन रैंक वन पेंशन तथा सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने के चलते सरकार के खजाने पर बोझ बढ़ा है।

इसके बावजूद केंद्र ने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को सहजता से हासिल करने की ओर बढ़ रहा है। सिर्फ सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें ही लागू होने से चालू वित्त वर्ष में सरकार के खजाने पर एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का बोझ पड़ा है।

हालांकि सरकार को काले धन की घोषणा होने और स्पेक्ट्रम की नीलामी से अतिरिक्त आय जुटाने में मदद मिली है। घरेलू काले धन के लिए आय घोषणा योजना से सरकार को लगभग 30,000 करोड़ रुपये मिलने का अनुमान है लेकिन चालू वित्त वर्ष में इसमें से मात्र आधी राशि ही आएगी।

फिर देश का भी निजीकरण करके बेच दो मोदी जी

A unique example of patriotism, is disinvestment, that is, selling the country!