द्रोपदी दुर्गति गीता महोत्सव
द्रोपदी दुर्गति गीता महोत्सव
द्रोपदी महानायिका है भारतीय महाकाव्य महाभारत की, जो हिंदुत्व के सिद्धांतों की आधारभूमि है और इसीकी कोख से जन्मी है गीता, जिसे भारत का राष्ट्रीयग्रंथ बनाने की तैयारी है।( गीता महोत्सव )
हिंदू राष्ट्र के लिए गीता महोत्सव जिस धर्म अधर्म जातिव्यवस्था कर्मसिद्धांत पर आधारित है वह गीता है और श्रीकृष्णमुखे गीतोपदेश कुरुक्षेत्र के मैदान में दिया गया, जिसे आधुनिक भारत के महाभारत में पल दर प्रतिपल दोहरा रहे हैं तमाम बजरंगी, साधु संत से लेकर हिंदुत्व अश्वमेध के घोड़ों पर सवार सिपाहसालार तमाम।
कुरुवंश के ध्वंस के निमित्त राजा द्रुपद के यज्ञ की अग्नि से आभिर्भूत द्रोपदी पांडवं और कौरवों के आत्मध्वंस की वजह बना दी गयी इस कथा में।
द्रोपदी अत्यंत सुंदर है और उसकी सुंदरता की तुलना एकमात्र ग्रीक ट्रेजेडी कीनायिकाओं के सौंदर्य से की जा सकती है और वह हेलेन की तरह ग्रीक महाकाव्यइलियड की महानायिका है।
हेलेन भी ट्राय के युद्ध की वजह बतायी जाती है।
हेलेन से अलग लेकिन द्रोपदी रसोई की महारानी है। हर तरह की रेसिपि में मास्टरब्लास्टर जो नारी होने की अनिवार्य शर्त है।
द्रोपदी में बाकी हिंदू शास्त्रों के मुताबिक आदर्श नारी के सारे गुण हैं।
वह कुशाग्र बुद्धि की अधिकारिणी और मनुस्मृति अनुशासन के अनुपालन में सतत प्रतिबद्ध है।
स्वयंवर सभा में ब्राह्मण वेष में उपस्थित अर्जुन को पहचानने में और स्वयंवर से पहले मन ही मन उसका अभिषेक करने में उसे कोई भूल नहीं हुई और वह यह भी जानती थीं कि चिड़िया की आंख पर निशाना कर्ण भी साध सकते थे।
इसीलिए अपने वाक्यवाण से उसने कर्ण के साथ साथ दुर्योधन को भी स्वयंवर सभा से लहूलुहान करके भगा दिया।
जब कौरवों और पांडवों में राज्य के बंटवारे पर सुलह हो गया और इंद्रप्रस्थ का महातिलिस्म बनकर तैयार हो गया तब किंकर्तव्यविमूढ़ दुर्योधन की खिल्ली उड़ाती उसकी हंसी महाभारत में कुरुक्षेत्र की बिसात में तब्दील हो गयी जो द्रोपदी के प्रतिशोध की आग से सजाया गया।
# द्रोपदी दुर्गति
#गीता महोत्सवे
वहीं द्रोपदी जब माता कुंती के आदेशानुसार पांच पतियों को पूर्वजन्म के फल मुताबिक स्वीकार करने को मजबूर होती है या चीरहरण के वक्त पांच धुरंधर पतियों के उपस्थित होने के बावजूद धर्म की बार बारी दुहाई देने वाले अतिआदरणीय भीष्मपितामह, विदुर इत्यादि की उपस्थिति में एकदम एकाकी और असहाय होकर भगवान श्रीकृष्ण से मदद की गुहार लगाती है तो पूरे भारतीय महादेश तो क्या मानव सभ्यता में पुरुषतांत्रिक समाज में स्त्री सत्ता की प्रतीक बन जाती है द्रोपदी और उत्तरआधुनिक स्त्री विमर्श की नियति भी वही द्रोपदी दुर्गति है।
# द्रोपदी दुर्गति
#गीता महोत्सवे
अब फिर हिंदू साम्राज्यवाद के पुनरूत्थान गीता महोत्सवे वही द्रोपदी दुर्गति है।
धर्मांतरण की पूरी लड़ाई लेकिन स्त्री देह की जमीन पर लड़ी जा रही है, लव जिहाद से लेकर वैदिकी वैलेंटाइन महापर्व तक।
सत्ता की फिर वह लड़ाई द्रोपदी की देह पर देहमुक्ति के बाजार में।
प्रेम से उदात्त और नैसर्गिक भाव मानव सभ्यता मे कुछ और नहीं है।
वह प्रेम लेकिन हर धर्म में हर समाज में विशुद्ध पुरुष वर्चस्व का मामला है।
ट्राय का युद्ध इसलिए हुआ कि हेलेन नाम्नी अत्यंत सुंदरी कन्या ग्रीक सभ्यता के अनुशासन भंग करने के अपराध में शाश्वत खलनायिका बन गयी।
युद्ध हुआ ही इसीलिए कि उसने अपना प्रेम चुना जो वास्तविक अर्थो में आज भी पुरुष का एकाधिकारवादी वर्चस्व है।
#द्रोपदी दुर्गति
#गीता महोत्सवे
द्रोपदी ने प्रेम किया तो अर्जुन से ही था लेकिन शास्त्रीय विधि और कथा सौन्दर्यबोध और गीता वक्तव्य के मुताबिक जब उसने अपने पूर्व जन्म फल के मुताबिक पांच पांच पतियों का वरण कर लिया, तो भी अर्जुन के प्रति उसके विशेष प्रेम की वजह से सशरीर स्वर्ग अभियान में पहला पतन लेकिन द्रोपदी का हुआ।
यहां तक कि महाभारत युद्ध का चरमोत्कर्ष लेकिन न भीष्म पितामह की इच्छा मृत्यु है ना कौरव वीरों के शोक में विलाप करती औरते हैं और न मृत विध्वस्त वैदिकी सभ्यता के महाश्मशान में मंडराते गिद्ध और चील का उन्मुक्त उल्लास है।
वह चरमोत्कर्ष लेकिन आततायी अश्वत्थामा के घात लगाकर माता द्रोपदी की संतानों का वध है।
हिंदुत्व कुल मिलाकर वहीं वध संस्कृति है और द्रोपदी की देह मन और उसका मातृत्व और प्रेम अनंत उत्पीड़न का शिकार उसी तरह आज भी।
मुक्त बाजार में भोगी समाज और पुरुषवर्चस्व के राजकाज, धर्म अधर्म में देहमुक्ति आंदोलन और स्त्री सशक्तीकरण का यही प्रस्थानबिंदू है।
# द्रोपदी दुर्गति
#गीता महोत्सवे
मैं तो परमाणु उत्तरदायित्व कानून पर अमेरिकी सरकार के लिए देशप्रेमियों के देश बेचो बयान को आज रोजनामचे का विषय बनाना चाहता था कि अमेरिकी प्रेसीडेंट बाराक ओबामा के उदात्त उद्गार धर्म स्वतंत्रता की कुल डिप्लोमेसी वहींच है।
हमने बाराक ओबामा से पूछा था कि गुजरात नरसंहार के मामले में उनका क्या स्टैंड है।
जाहिर है कि जब हमारी राजनीति और सत्ता हम प्रजाजनों को कोई जवाब नहीं देती तो व्हाइटहाउस को भारत के किसी गुलाम प्रजाजन का क्या जवाब होता।
जवाब भारत से मिला।
जवाब संघ परिवार से मिला।
जवाब केसरिया सहनागरिकों से मिला।
एक प्रति प्रश्न हमारे पुरातन मित्र नव दलित आंदोलन के पुरोधा और मानवाधिकार जलसुनवाई के तहत मानवाधिकार कर्मी डा. लेनिन रघुवंशी का आयाः
गुजरात जनसंहार पर भारतीय जनता का स्टैंड क्या है।
मुंबई में फिलीस्तीनियों के हक हकूक के लिए सालिडेरेटी के नेता और मनवाधिकार कर्मी फिरोज मीठीबोरवाला ने टिप्पणी की कि वाजिब सवाल है।
निःसंदेह।
दोनों हमारे प्रिय मित्र हैं। उनकी निरंतर सक्रियता का मैं हर हाल में समर्थन करता हूं।
लेकिन उनके इस प्रतिप्रश्न से मेरा ओबामा को किये प्रश्न का प्रसंग सिरे से बदल गया है और मुझे यह कहते हुए झिझक नहीं है कि इस प्रतिप्रश्न से बाराक ओबामा वैसे ही जवाब के उत्तरदायित्व से मुक्त है जैसे मोदी सरकार के मेमोरेंडम से जैसे अमेरिकी कंपनियां भारत में भविष्य में होने वाली परमाणु और औद्योगिक दुर्घटनाओं की जिम्मेवारी से एकमुश्त बरी हो गयी हैं।
हम लगातार इस बारे में अपडेट देते रहे हैं।
हमारे मतामत और सारे संदर्भ प्रसंग तथ्य हमारे ब्लागों के अलावा हस्तक्षेप में भी रोजाना छपते रहे हैं, जिसके गूगल प्लस के फालोअर ही पचास हजार पार हैं।
अखबारों में हर भाषा में भारत अमेरिकी राजनय का कच्चा चिट्ठा खुला है और इसके अलावा हमारे अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने विदेशी बैंकों के भारतीय खाताधारकों का पर्दाफाश किया है।
नये सिरे से उन तथ्यों को शायद अब दोहराने की जरुरत नहीं है।
रक्षा में विदेशी पूंजी और मेकिंग इन का किस्सा धारावाहिक है।
बजट तैयारियों की कारपोरेट लाबिइंग भी बेपर्दा है।
इस आलेख के साथ ताजा तथ्य भी नत्थी होंगे।
हिंदुत्व के गीतामहोत्सव की असल कोख को पहचाने बिना भारतीय अर्थव्यवस्था और भारतीय नागरिकों के इस दस दिगंत सर्वनाश का मामला खुलता नहीं है।
इसीलिए आज का रोजनामचा यह
# द्रोपदी दुर्गति
#गीता महोत्सवे
कल रात घर वापसी के वक्त जब हमारे ड्राइवर केशरिया रंगे दिल्ली के संभावित चुनाव परिणाम में केसरिया फीका हो जाने के अंदेशे से बेहद उदास थे तो हमने हल्के से टिप्पणी कर दी कि कोई जरूरी नहीं कि दसों दिशाओं में कमल ही कमल खिले।
हमने कहा कि वैसे दुर्गा पूजा के लिए कमल जितना जरूरी है वैसे ही बाकी देवदेवियों के लिए दूसरे फूल भी जरूरी हैं।
दूसरे फूल नहीं खिले तो देवमंडल में महामारी हो जायेगी जो मारामारी होगी वह अलग।
मसलन बंगाली तो दुर्गा पूजा अब कुछ सौ साल से पहले से करते रहे हैं लेकिन यहां शिव के उपासक अनार्य थे और काली की उपासना अनंत काल से चली आ रही है।
जाहिर है कि धतूरा और लाल जबा न खिले तो केसरिया भी नहीं खिलेगा।
दिल्ली में ही जब कमल खिलता दीख नहीं रहा है, तो बंगाल में कमल खिलने की उम्मीद लेकर हताश होने की जरूरत तो है नहीं।
हमने कहा कि घास फूल के मुकाबले में तो अब लाल जबा फूल की वसंत बहार होने के आसार ही ज्यादा लग रहे हैं।
हमने यह भी कहा कि बिहारो में लालू नीतीश एकजुट हैं, तो सूखी नदी में पतवाक खेते हुए कैसे कमल बो सकते हैं मांझी मसीहा।
# द्रोपदीदुर्गति
#गीतामहोत्सवे
फिर विशुदा की अतिप्रिय द्रोपदी कथा शुरू हो गयी कि दीदी के मुकाबले कमलदल का असली चेहरा फिर वही द्रोपदी है।
फिर द्रोपदी की देह पर खिलते कमल की चर्चा जोरों से चली।
वैलेंटाइन डे कोलकाता में सरस्वती पूजा बतौर मनाया जाता रहा है और वैलेंटाइन डे धर्मांतरण महोत्सव है।
इसी प्रसंग में सहयात्री सहकर्मी चित्रकार सुमित गुहा ने कहा कि बच्चे बपैदा करने से तय होना है धर्म अधर्म। हिंदुओं की आबादी बढ़ाने खातिर बहुविवाह की हिंदुत्व पेशकश भी है।
हिंदुत्व के शंखनाद के साथ संत समागम में खुलकर इस्लाम मुताबिक चार शादियों की इजाजत है तो धर्म शास्त्र सम्मत द्रोपदी के चार पतियों की व्यवस्था लागू करने में हर्ज क्या है।
अगर पुरुष को बहुविवाह करने की इजाजत है तो स्त्री को क्यों नहीं।
फिरोज मीठीबोरवाला की तर्ज पर हमें कहना पड़ा कि वाजिब सवाल है।
# द्रोपदी दुर्गति
#गीता महोत्सवे
इसी सिलसिले में हम यह द्रोपदी कथा को बांच रहे हैं, जो दरअसल गीता महोत्सव के तहत स्त्री आखेट का मोहत्सव अर्थात मनुस्मृति अनुशासन है।
द्रोपदी के तो पांच मान्य पति रहे हैं।
वैदिकी कथानुसार कौन देव, कौन देवी, कौन अवतार वर्णशंकर नहीं है, यह भी कहना मुश्किल है क्योंकि पुत्र का वर देने वाले महापुरुष या देव स्त्री का पति हो यह भी जरूरी नहीं है।
नियोग की सनातन व्यवस्था है और उसके लिए स्त्री के मतामत अनिवार्य है नहीं।
अंबिका और अंबालिका और विदुर को कोख में जनने वाली माता की इच्छा अनिच्छा का सम्मान भी नहीं किया गया है और इसी नियोग से शास्त्र सम्मत धृतराष्ट्र जन्म है तो पांडु का पांडुवर्ण भी इसी अनिच्छाकृत नियोग से है। वह धर्म है विशुद्ध वैदिकी।
महाभारत को लिखने वाले ऋषिवर स्वयं माता सत्यवती के कुहासा अभिसार का परिणाम हैं तो माता कुंती एक पति के बावजूद छह छह देवों के संतानों की माता हैं।
बाकी कथा बेहद संवेदनशील है कि ईश्वरों की जन्मकथा में भी भारी घालमेल है और उसकी चर्चा तनिक संवेदनशील हो सकती है।
पुराण और पौराणिक, वैदिकी साहित्य के पाठक खुदै समझ लें बाकी किंवदंतियों और लोक में तो यह खुल्ला खेल फर्रूखाबादी है।
कुल मिलाकर कथा वहीं
# द्रोपदी दुर्गति
#गीता महोत्सवे
पलाश विश्वास


