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पद्म पुरस्कार-आडवाणी जी राजनीति के “ट्रेजेडी किंग” हैं।
सरकारने बिल गेट्स को पद्म भूषण से सम्मानित किया है। उन्हे यह पद्म पुरस्कार सामाजिक कार्य के लिए दिया गया है। मेरे अहमक दिमाग को अभी तक समझ में नहीं आया है कि सरकार की नज़र में गेट्स की कम्पनी ‘माइक्रोसॉफ्ट’ सामाजिक कार्य है या उनका फ़ाउंडेशन! हो सकता है कि दोनों को ही समाज सेवा मान कर यह पुरस्कार दिया गया हो। हालांकि कुछ जानकारों का मानना है कि चूंकि उनकी पत्नी मिलिंडा गेट्स को भी यह पुरस्कार मिला है तो इसका आशय यह है कि उनके एन.जी.ओ. को ही सरकार समाज सेवा का पर्याय मानती है, कंपनी को नहीं। अगर ऐसा है तो सरकार बिल गेट्स की कंपनी को किसका पर्याय मानती है? लूट का? कमाई का? या इसे भी देश सेवा ही माना जा रहा है?
बड़ी-बड़ी दुकानों व मॉलों में आजकल दान का एक डब्बा रखा जाता है जिस पर लिखा होता है कि आपका दान किसी बच्ची को शिक्षित कर देगा या किसी कैंसर के मरीज के इलाज में काम आएगा। ‘बिल-मिलिंडा गेट्स फ़ाउंडेशन’ भी ‘माइक्रोसॉफ्ट’ की दुकान में रखी दानपेटी ही है। आजकल अपनी दुकानों में अपनी दानपेटी रख समाज सेवा करने का बड़ा प्रचलन है। देर-सबेर सरकार भी इसका ध्यान कर लेती है। कृतज्ञ देश की तरफ से एक अदद पुरस्कार देकर।
खैर। मेरी चिंता दूसरी है। चूंकि बिल गेट्स को समाज सेवा के लिए पद्म से नवाजा गया है इसका मतलब यह है कि उन्होनें इस देश में लोगों की बड़ी सेवा की है। अब मैं भी तो इसी देश का नागरिक हूं, सो इसका अर्थ है कि गेट्स ने मेरी भी सेवा की है। मेरी चिंता अब यह है कि मैं इस सेवा का कर्ज कैसे चुकाऊं। क्या गेट्स की दुकान से सामान खरीद कर? वह तो अक्सर जबरन बेचा जाता है जैसे ही

कंप्यूटर खरीदने जाते हैं। ये जबरन की सेवा है। अगर मैं यह कह दूं कि गेट्स की दुकान का सामान मैं बिना खरीदे ही इस्तेमाल कर रहा हूं तो मुझे जेल हो जाएगी। यानी इनकी सेवा को कोई अन्यथा न ले।
पद्म पुरस्कार का मामला सिर्फ गेट्स का ही नहीं है। लालकृष्ण आडवाणी को भी पद्म पुरस्कार से नवाजा गया है। आडवाणी जी के साथ यह ऐतिहासिक अन्याय है। वाजपेयी को पिछले साल भारत रत्न दे दिया गया। पुरस्कार में भी आडवाणी दूसरे नंबर पर ही रहें। पहला पायदान आडवाणी के लिए ताउम्र मृग-मरीचिका बना रह गया। यह भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी त्रासद-कथाओं में से एक है। आडवाणी जी राजनीति के “ट्रेजेडी किंग” हैं। वैसे उनकी राजनीति भी देश के लिए त्रासद ही रही है। चाहे रथयात्रा हो या बाबरी मस्जिद ध्वंस। शायद पद्म विभूषण उन्हें इसी त्रासदी के लिए मिला है।

पद्म विभूषण के एक अन्य भागी हैं जगद्गुरू स्वामी रामभद्राचार्य। हमारे देश में जगद्गुरुओं की जनगणना की जानी चाहिए। वैसे तो यह देश ही जगद्गुरू होने का दावा करता है। सारी दुनिया पर हमारे प्राचीन ज्ञान का कर्ज है। जब तक यह ऋण चुकता नहीं हो जाता हम नए ज्ञान की खोज नहीं नहीं करेंगे। वैसे भी हमें क्या खोजना है। प्लास्टिक सर्जरी, अंग प्रत्यारोपण, परमाणु बम, मिसाइल से लेकर हवाई जहाज की तकनीक हमारे पास सदियों से रही है। यह हमारी विनम्रता है कि इतना ज्ञान लेकर भी हम शांत रहते हैं। यह हमारा ‘नेशनल कैरेक्टर’ है। यूरोप-अमेरिका वाले छिछले कैरेक्टर के होते हैं तभी तो हर छोटी-बड़ी खोज करके “युरेका-युरेका” (“मिल गया-मिल गया”) चिल्लाने लगते हैं।

जहां तक जगद्गुरू स्वामी रामभद्राचार्य की बात है, वे ज्ञानी पुरुष हैं। उन्हें इसका ज्ञान है कि बाबर ने अयोध्या में कौन से मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद बनवाई थी। यह बात वे कोर्ट को बता चुके हैं। उनकी आस्था राम में है। इसी आस्था की रक्षा के लिए बाबरी मस्जिद तोड़ी गई थी। इसी आस्था की खातिर दंगे और कत्लेआम हुए। इनकी आस्था इंसानियत से बड़ी है। इंसानियत से बड़ी आस्थाएं क्रूर होती हैं। मेरा सवाल यह है कि स्वामी रामभद्राचार्य को पुरस्कार किस बात का मिला है। ज्ञान का? आस्था का? या क्रूरता का?

सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को भी पद्म विभूषण दिया गया है। खबर है कि बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने इसका विरोध करते हुए अमिताभ के लिए ‘भारत रत्न’ की मांग की है। मैं ममता का समर्थन करता हूं। अमिताभ ने पिछले पंद्रह सालों में देश की विकास दर से भी तेज गति से लोगों को लखपति-करोड़पति बनवाया है। वैसे अमिताभ गुजरात सरकार के “ब्रांड एंबैसेडर” भी रहे हैं। इस ‘ब्रांड’ में गोधरा और उसके बाद की “प्रतिक्रिया” भी शामिल हैं, फर्जी एनकाउंटर भी शामिल हैं, गुजरात की कुपोषित बच्चियां भी शामिल हैं। अमिताभ अदाकार हैं। वे इन सबको एक अदा के साथ दिखाते हैं और छिपाते हैं। महानायकत्व भी एक अदा है जिसके सहारे ‘गुजरात मॉडल’ से लेकर च्वयनप्राश तक बिकता है। पद्म विभूषण भी शायद इसी अदा को मिला है।

पद्म पुरस्कारों की लिस्ट तो लंबी है – एक सौ चार लोग इसमें शामिल हैं। इतने लोगों ने देश की उत्कृष्ट सेवा की है। सरकार तो पद्म पुरस्कार देकर छुट्टी पा गई। मैं इनका उपकार कैसे चुकाउंगा। इस गणतंत्र दिवस पर यह मेरी सबसे बड़ी चिंता है।
- लोकेश मालती
प्रकाशलोकेश मालती प्रकाश, लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार व शिक्षा का अधिकार कार्यकर्ता हैं।