पहाड़ इतना मज़बूत नहीं होता, जितना मज़बूत होता है, आदमी का इरादा
पहाड़ इतना मज़बूत नहीं होता, जितना मज़बूत होता है, आदमी का इरादा

जो ठाना है,
वो पाना है।
जब तक तोड़ेंगे नहीं,
तब तक छोड़ेंगे भी नहीं।
ये शब्द आज भी,
हमारे कानों में गूंजते हैं,
उस एक अदना से,
गाँव के आदमी,
दशरथ माँझी के,
जो देखने में साधारण था,
लेकिन अंदर से था,
असाधारण ।
उस एक आदमी ने,
जिसने जब ठान लिया,
मीलों तनकर खड़े,
पहाड़ को तोड़कर,
सपाट कर दिया ।
उस एक आदमी ने,
कर दिखाया,
साधन नहीं,
मज़बूत इरादों से
हासिल की जा
सकती है,
कोई भी मंज़िल।
बस, आप उस पर
मज़बूत कदमों से,
मज़बूत इरादों से,
चल दीजिए,
और दिल में चाहिए,
बस, राह चलते जाने
की दीवानगी।
उस एक आदमी ने,
साबित कर दिया कि,
तपेंद्र प्रसाद, लेखक अवकाश प्राप्त आईएएस अधिकारी व पूर्व कैबिनेट मंत्री व सम्यक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।पहाड़ इतना मज़बूत नहीं होता,
जितना मज़बूत होता है,
आदमी का इरादा।
समस्याएं उतनी,
बड़ी नहीं होती है,
जितना बड़ा होता है
आदमी का जिगरा।
तपेन्द प्रसाद
(इसी के प्रतीक हैं, Dashrath Manjhi (दशरथ माँझी). हम सभी के प्रेरणास्रोत)


