पुन्नी सिंह का सारा साहित्य हाशिए के समाज के पक्ष में है- संजीव
कथाकार पुन्नी सिंह का सम्मान समारोह संपन्न
जाहिद खान
शिवपुरी (मप्र)। वरिष्ठ साहित्यकार पुन्नी सिंह के पचहत्तरवें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में आयोजित उनके सम्मान समारोह में सभा को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध कथाकार-उपन्यासकार संजीव ने कहा, पुन्नी सिंह ने बड़े ही आत्मीयता से अपनी कहानियों में हाशिए के समाज को सम्मान दिया है। उनकी कहानियों से सरोकारों की दुनिया सामने आई है। उनकी किसी भी कहानी को उठा लीजिए, उसमें जीवंत पात्र मिलते हैं। मेरे मन में एक सवाल हमेशा कौंधता रहा है कि हमारे साहित्यिक जगत ने पुन्नी सिंह को वह सम्मान क्यों नहीं दिया, जिसके वे हकदार हैं।
यू. के. कथा सम्मान और श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफ्को सम्मान (ग्यारह लाख की पुरस्कार राशि) से सम्मानित रचनाकार संजीव ने महाभारत के एक दृश्य के हवाले से कहा वरवरीक से जब पूछा गया कि वे किसकी ओर से युद्ध लड़ेंगे, तो उन्होंने जवाब दिया कि जो हार रहे हैं, जो पराजित हैं मैं उन्हीं की तरफ से युद्ध लड़ूंगा। इसी तरह से पुन्नी सिंह ने भी अपनी सारी कहानियां पराजितों और हारे हुए लोगों के पक्ष में लिखी हैं।
स्थानीय मध्य देशीय अग्रवाल धर्मशाला में आयोजित ‘पाथर घाटी का शोर’ कार्यक्रम की शुरुआत म. प्र. प्रगतिशील लेखक संघ, इकाई शिवपुरी के अध्यक्ष पुनीत कुमार के स्वागत भाषण के साथ हुई। उन्होंने अपने स्वागत भाषण में बाहर से आए अतिथियों को शहर के इतिहास और प्राकृतिक सौंदर्य को बतलाने के बाद कहा, पुन्नी सिंह ने शिवपुरी को अपनी कर्मस्थली बनाया, यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है।
‘पुन्नी सिंह के साहित्य में हाशिए का समाज’ विचारगोष्ठी का आगाज म. प्र. प्रगतिशील लेखक संघ के प्रदेश महासचिव विनीत तिवारी ने किया। उन्होंने कहा पुन्नी सिंह ने अपने उपन्यासों ‘पाथर घाटी का शोर’, ‘सहराना’ और ‘वो जो घाटी ने कहा’
के जरिए शिवपुरी जिले के इलाके के पथरीले यथार्थ को पहली बार पूरे देश के सामने रखा है। शिवपुरी को यदि सही तरह से जानना है, तो इसमें पुन्नी सिंह का साहित्य मददगार हो सकता है। उनके रचना साहित्य में जिले की धड़कन मिलती है।
बूंदी, राजस्थान से पधारे प्रोफेसर रमेशचंद मीणा ने कहा शिवपुरी-श्योपुर इलाके में बड़ी तादाद में सहरिया आदिवासी निवास करते हैं। यह आदिवासी समाज में सबसे ज्यादा हाशिए पर हैं। पुन्नी सिंह ने अपने उपन्यास सहराना में इन्हीं सहरिया आदिवासियों की समस्याओं को बड़ी प्रबलता से उठाया है।
दिल्ली से आए कवि-कहानीकार शैलेन्द्र चैहान ने कहा पुन्नी सिंह ने आदिवासी और दलित साहित्य को एक अलग ही दृष्टि से देखा है। उन्होंने अपने लेखन में एक अलग सौंदर्यशास्त्र की रचना की है। जबकि दूसरे तमाम साहित्यकार आदिवासी और दलित वर्ग की समस्याओं को उस वर्गीय चेतना से नहीं देख पाए हैं। पुन्नी सिंह ने हाशिए के समाज को हमेशा अपनी रचनात्मकता के केन्द्र में रखा।
पुन्नी सिंह के बड़े बेटे नाटककार राजेन्द्र यादव ने अपने पिता के सम्मान समारोह में भावुक होते हुए कहा, मुझे इस बात का हमेशा अभिमान रहेगा कि मेरे पिता बहुत बड़े संगठनकर्ता हैं। उन्होंने अपनी संगठन क्षमता से मध्य प्रदेश में प्रगतिशील लेखक संघ का विस्तार किया।
कनाडा में रहने वाले भारतवंशियों द्वारा स्थापित एक सम्मान से हाल ही में सम्मानित कथाकार महेश कटारे ने कहा, साहित्यकार जनता का चाकर होता है और उसे हमेशा जनता की सोचना चाहिए। पुन्नी सिंह ने अपने साहित्य से निचले तबके के जीवन को आवाज दी है।
लखनऊ से आए प्रसिद्ध कथाकार शिवमूर्ति ने कहा, पुन्नी सिंह के साहित्य में उनके समय और समाज की नब्ज साफ-साफ महसूस होती है। हिंदी साहित्य में पुन्नी सिंह का नाम उन साहित्यकारों में शुमार होता है, जिन्होंने अपनी कहानियों से गांव और किसान को साहित्य के केन्द्र में लाया।
हिंदी के बड़े आलोचक और आलोचना की कई किताबों के रचयिता वीरेन्द्र यादव ने कहा साहित्य महज एक साहित्यिक अभिसंरचना नहीं है, बल्कि सामाजिक रचना है। अपनी कहानी लिखते वक्त पुन्नी सिंह सिर्फ कहानीकार नहीं रह जाते, बल्कि एक सामाजिक कार्यकर्ता की तरह काम करते हैं। उनके साहित्य में पाठकों को एक दृष्टि और प्रगतिशील चेतना मिलती है। उनकी कहानियों के पात्रों में प्रतिरोध की चेतना दिखलाई देती है। उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि आज हिंदी साहित्य में दलित और आदिवासी विमर्श व्यापक रूप से दिखलाई देता है, लेकिन पुन्नी सिंह यह विमर्श अपने साहित्य में दो दशक पहले ही कर चुके थे। आज दलित, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों की जो समस्याएं हैं, यदि इन समस्याओं के समाधान की ओर जाना है तो हमें पुन्नी सिंह के कथा साहित्य की तरफ जाना होगा। पुन्नी सिंह के साहित्य का पुनर्पाठ होना चाहिए, यही उनका सच्चा सम्मान होगा।
अपने उपन्यासों में अंचल की समस्याओं को बड़े ही प्रमाणिकता से पेश करने वाले कथाकार पुन्नी सिंह ने अपने सम्मान के बाद श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा साथियो, मैं सम्मान के लिए नहीं लिखता। समाज में जो शोषण है, सामाजिक विसंगतियां हैं उन्हें पाठकों के समक्ष प्रकट करने के लिए लिखता हूं। अपने अंदर की जो बैचेनी है, उसे दूर करने के लिए लिखता हूं। मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है कि मेरे लेखन में ईमानदारी हो।
विचारगोष्ठी के बाद पूरा कार्यक्रम पुन्नी सिंह के सम्मान में बदल गया। हिंदी साहित्य में पुन्नी सिंह के अवदान के लिए उन्हें सबसे पहले म. प्र. प्रगतिशील लेखक संघ की शिवपुरी इकाई ने सम्मानित किया, तो उसके बाद जिले के प्रमुख साहित्यिक और सामाजिक, कर्मचारी संगठन मसलन रामकिशन सिंघल फाउण्डेशन, एलआईसी यूनियन, सीटू, भोपाल-बीना-ग्वालियर-गुना-अशोकनगर-दतिया-भिंड-झांसी-करैरा आदि की म.प्र. प्रलेसं इकाईयों ने पुन्नी सिंह को फूलमाला और शाल-श्रीफल देकर सम्मानित किया। अभिनंदन-पत्र का वाचन कवि-गीतकार विनयप्रकाश जैन ने किया। कार्यक्रम में पुन्नी सिंह के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित एक स्मारिका का विमोचन भी हुआ। सभागार में अपने कोलाज पोस्टर लगाने वाले मशहूर कोलाज चित्रकार पंकज दीक्षित को भी उनकी कला के लिए सम्मानित किया गया। तीन घंटे से ज्यादा चले इस आयोजन में बड़ी संख्या में नगरवासियों के साथ प्रदेश और प्रदेश के बाहर प्रगतिशील लेखक संघ के संगठन से जुड़े कई महत्वपूर्ण साथियों मसलन के.बी.एल. पांडेय (दतिया), दिनेश बैस (झांसी), डॉ. नईम (झांसी), पवनकरण (ग्वालियर), महेन्द्र सिंह (भोपाल), सुरेश तोमर (ग्वालियर), प्रवीण जैन (बीना), भगवान सिंह निरंजन (ग्वालियर), पंकज दीक्षित (अशोकनगर), पवित्र सलालपुरिया (गुना), सत्येन्द्र रघुवंशी (गुना), जितेन्द्र बिसारिया (ग्वालियर), डॉ. दिनेश (गुना), महेश कटारे ‘सुगम’ (बीना), ब्रजेन्द्र (अशोकनगर), सोनेश सेठी (अशोकनगर), अभिषेक अंशु (अशोकनगर), अरविंद भदौरिया (ग्वालियर), राजेन्द्र यादव (शिकोहाबाद), सतीश श्रीवास्तव (करैरा) आदि ने हिस्सेदारी की। कार्यक्रम का शानदार संचालन लेखक-कवि अखलाक खान और कहानीकार डॉ. पद्मा शर्मा ने संयुक्त रूप से किया, तो वहीं आमंत्रित अतिथियों और नगरवासियों का इस कार्यक्रम में सहयोग के लिए आभार प्रदर्शन म. प्र. प्रगतिशील लेखक संघ की शिवपुरी इकाई के सचिव जाहिद खान ने किया।