फ़िज़ाई आलूदगी
फ़िज़ाई आलूदगी

फ़िज़ाई आलूदगी
<Environmental Pollution >
-: मोहम्मद ख़ुर्शीद अकरम सोज़ :-
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दिल में कैसा दर्द है , सीने में है कैसी जलन
साँस बोझिल हो रही है और तारी है घुटन
हम ने सनअत में तरक़्क़ी ख़ूब तो कर ली मगर
बद से बदतर हो गया माहौल पे इसका असर
जंगलों को इस क़दर हम ने किया बर्बाद है
ज़हर-आलूदा हवाओं से फ़िज़ा बर्बाद है
अल्ट्रावाइलट किरण से , जो हमारी ढाल है
अब वही ओज़ोन, सी एफ़ सी से ख़ुद बेहाल है
सनअति आलूदगी की हर तरफ़ यलगा़र है
ऑक्सीजन की कमी से ज़िंदगी दुश्वार है
अब तो हर ज़ीरूह को ख़तरा बड़ा लाहक़ हुआ
किस तरह बाक़ी रहेगा ज़िंदगी का सिलसिला
नाम :- मोहम्मद खुर्शीद अकरमतख़ल्लुस : सोज़ / सोज़ मुशीरी
दिल में कैसा दर्द है , सीने में है कैसी जलन
साँस बोझिल हो रही है और तारी है घुटन
आओ मिलकर हम सभी माहौल की रक्षा करें
आ गया है सामने जो दूर वो ख़तरा करें
चिमनियों से बंद हो अब ज़हर-आलूदा धुआँ
मत करो उपयोग हरगिज़ पॉलिथिन की थैलियाँ
आओ मिल-जुल कर लगायें पेड़-पौधे बेशुमार
ख़त्म हो आलूदगी और हर तरफ़ छाए बहार
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शब्दार्थ :- फ़िज़ाई आलूदगी = पर्यावरणीय प्रदूषण , सनअत = उद्योग ,
ज़हर आलूदा = विषैला, सनअति आलूदगी=औद्योगिक प्रदूषण , ज़ीरूह= जीव


