फेल हो गई भाजपा की पटेल को बड़ा दिखाने के लिए नेहरू को छोटा करने की साजिश
फेल हो गई भाजपा की पटेल को बड़ा दिखाने के लिए नेहरू को छोटा करने की साजिश
BJP's conspiracy to make Nehru smaller to make Patel bigger has failed
पिछले कुछ वर्षों से 31 अक्टूबर के आसपास, संघ परिवार, सरदार वल्लभभाई पटेल का महिमामंडन करने वाले बयानों की झड़ी लगा देता है। सन 2017 का अक्टूबर भी इसका अपवाद नहीं था। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘‘मैं भाजपा से हूं और सरदार पटेल कांग्रेस में थे परंतु मैं फिर भी उनकी विचारधारा का पालन करता हूं और उनके दिखाए रास्ते पर चलता हूं। उनकी विचारधारा किसी पार्टी की नहीं है।’’ इसके साथ ही, जवाहरलाल नेहरू का कद छोटा करने के प्रयास भी हो रहे हैं। मोदी ने कहा कि नेहरू ने सरदार पटेल की अंतिम यात्रा में भाग नहीं लिया। मोदी-भाजपा के यह प्रयास एक राजनीतिक एजेंडा का हिस्सा हैं।
भाजपा जिस विचारधारा को मानती है, उस विचारधारा से जुड़े किसी संगठन या नेता ने स्वाधीनता संग्राम में भाग नहीं लिया था। जाहिर है कि भाजपा को एक ऐसे नायक की ज़रूरत है जो स्वाधीनता संग्राम सैनानी रहा हो। इसके लिए उन्होंने सरदार पटेल को चुना है।
FRAUDULENT LOVE OF RSS/BJP FOR SARDAR PATEL… Goebbels is dead, long live RSS
नेहरू एक अत्यंत ऊँचे कद के नेता थे और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के हामी थे। भाजपा और उससे जुड़े संगठन, नेहरू की भूमिका को कम करके दिखाना चाहते हैं। इसी एजेंडे के तहत वे बार-बार इस आशय के वक्तव्य जारी करते हैं जिनसे ऐसा लगे कि नेहरू और पटेल के बीच गंभीर मतभेद थे। इन वक्तव्यों के ज़रिए, पटेल का महिमामंडन किया जाता है और नेहरू का कद घटाने का प्रयास। भाजपा का स्वाधीनता संग्राम के दो वरिष्ठतम नेताओं को एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी के रूप में प्रस्तुत करने का यह प्रयास अत्यंत घृणित है।
मोदी का यह दावा कि वे पटेल की विचारधारा के हामी हैं और उनके दिखाए रास्ते पर चल रहे हैं एक बड़ा झूठ है।
पटेल एक भारतीय राष्ट्रवादी और गांधीजी के अनन्य अनुयायी थे। इसके विपरीत, मोदी, आरएसएस की विचारधारा में रंगे हुए हैं, जिसका मूल एजेंडा हिन्दू राष्ट्रवाद है। पटेल, आरएसएस की विचारधारा की बांटने वाली प्रवृत्ति से अच्छी तरह वाकिफ थे। वे जानते थे कि आरएसएस घृणा फैलाने के अलावा कुछ नहीं करता। महात्मा गांधी की हत्या के बाद पटेल ने लिखा ‘‘...इन दोनों (आरएसएस और हिन्दू महासभा) संगठनों, विशेषकर पहले, की गतिविधियों के चलते देश में इस तरह का वातावरण बन गया जिसके कारण इतनी भयावह त्रासदी संभव हो सकी... आरएसएस की गतिविधियां शासन और राज्य के अस्तित्व के लिए स्पष्ट खतरा थीं।’’
पटेल को पूजकर क्या संघ हिन्दुत्व और हिन्दू राष्ट्रवाद को भूलने को तैयार है ?
भाजपा के पटेल और नेहरू को एक-दूसरे का प्रतिद्वंद्वी, बल्कि शत्रु बताने का प्रयास निंदनीय है। सच यह है कि दोनों एक-दूसरे को अच्छी तरह समझते थे और एक-दूसरे के पूरक थे। उनके बीच किसी तरह की कोई प्रतिद्वंद्विता नहीं थी। पटेल जानते थे कि नेहरू की लोकप्रियता जबरदस्त है। एक रैली, जिसमें पटेल और नेहरू दोनों ने भाग लिया था, में उमड़ी विशाल भीड़ पर टिप्पणी करते हुए पटेल ने अमरीकी पत्रकार विन्सेंट शीएन से कहा था कि ‘‘वे जवाहर के लिए आए थे मेरे लिए नहीं’’। इसके साथ ही, पटेल कांग्रेस संगठन की रीढ़ थे। गांधी, जिन्हें राष्ट्र ने देश का पहला प्रधानमंत्री चुनने का अधिकार दिया था, ने इस पद के लिए नेहरू को चुना क्योंकि वे जानते थे कि नेहरू को वैश्विक राजनीति की बेहतर समझ है और वे जनता के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हैं।
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों की मदद की थी
नेहरू को छोटा सिद्ध करने के लिए मोदी किस हद तक जा सकते हैं यह इस बात से जाहिर है कि उन्होंने कहा कि नेहरू ने पटेल के अंतिम संस्कार में भाग नहीं लिया था।
‘द टाईम्स ऑफ इंडिया’ ने पटेल के अंतिम संस्कार की खबर प्रमुखता से अपने मुखपृष्ठ पर छापी थी। इसमें कहा गया था कि इस मौके पर राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और प्रधानमंत्री पंडित नेहरू मौजूद थे। समाचारपत्र में नेहरू की सरदार पटेल को श्रद्धांजलि भी प्रकाशित हुई थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि सरदार पटेल ने भारत को स्वाधीनता दिलवाने और राष्ट्र के रूप में उसके निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने एक वीडियो क्लिप पोस्ट की थी जिसमें नेहरू को पटेल के अंतिम संस्कार में भाग लेते दिखाया गया था। मोरारजी देसाई ने अपनी आत्मकथा (खंड 1, पृष्ठ 271, अनुच्छेद 2) में इस अवसर पर पंडित नेहरू की उपस्थिति की चर्चा की है। इन तथ्यों के सामने आने के बाद मोदी अपनी बात से पलट गए और यह दावा किया गया कि उनकी बात को गलत ढंग से प्रस्तुत किया गया था परंतु इससे यह साफ है कि मोदी और उनके साथी, नेहरू की नकारात्मक छवि बनाने के लिए कितने आतुर हैं।
नेहरू का पत्नी प्रेम... कमला को बेइंतिहा प्यार करते थे पं. नेहरू
कांग्रेस-नेहरू और पटेल के बीच खाई थी यह बताने के लिए प्रयासों के तहत मोदी ने गुजरात के खेड़ा में बोलते हुए कहा कि कांग्रेस ने देश के विभाजन को सुगम बनाया। तथ्य यह है कि उस समय कांग्रेस की ओर से जो दो बड़े नेता चर्चाओं में भाग ले रहे थे वे थे सरदार पटेल और जवाहरलाल नेहरू। जसवंत सिंह ने जिन्ना पर लिखी अपनी पुस्तक में विभाजन के लिए नेहरू-पटेल को दोषी बताया था।
विभाजन कई जटिल कारकों का नतीजा था। अब, जहां पटेल की प्रशंसा की जा रही है वहीं कांग्रेस को विभाजन के लिए दोषी बताया जा रहा है। यह सरासर झूठ है क्योंकि तत्समय जो भी निर्णय लिए गए थे उसमें नेहरू और पटेल की बराबर भागीदारी थी। व्ही.पी. मेनन, जिन्होंने विभाजन की योजना तैयार की थी, ने लिखा है कि ‘‘पटेल ने भारत के विभाजन को दिसंबर 1946 में ही स्वीकार कर लिया था। नेहरू इसके लिए छह माह बाद राज़ी हुए।’’
संघ-भाजपा का राष्ट्रवादी पाखंड... संघ के कार्यकर्ताओं ने वंदेमातरम अंग्रेजों के खिलाफ कभी नहीं गाया
नेहरू और पटेल अलग-अलग रास्तों पर चल रहे थे यह प्रचार पहले भी किया जाता रहा है - यहां तक कि दोनो के जीवनकाल में भी।
नेहरू ने पटेल को लिखा कि वे इस तरह की अफवाहों से विक्षुब्ध हैं और उन्हें इससे पीड़ा होती है। इसके जवाब में पटेल ने 5 मई, 1948 को अपने पत्र में नेहरू को लिखा,
‘‘आपके पत्र ने मेरे मन को गहरे तक छू लिया... हम दोनों जीवन भर एक साथ मिलकर एक ही उद्देश्य के लिए काम करते आए हैं। हमारे दृष्टिकोणों और स्वभाव में चाहे जो भी अंतर रहे हों परंतु हमारे परस्पर प्रेम और एक-दूसरे के प्रति सम्मान के भाव और हमारे देश के हित उनसे हमेशा ऊपर रहे’’। उन्होंने संसद में बोलते हुए कहा, ‘‘मैं सभी राष्ट्रीय मुद्दों पर प्रधानमंत्री के साथ हूं। लगभग चौथाई सदी तक हम दोनों ने हमारे गुरू (गांधी) के चरणों में बैठकर भारत की स्वाधीनता के लिए एक साथ संघर्ष किया। आज जब महात्मा नहीं हैं तब हम आपस में झगड़ने की बात सोच भी नहीं सकते।’’
कश्मीर : जिस पर हम सिर्फ झूठ बोलना और सुनना चाहते हैं, शायद हमसे बड़ा शातिर और सैडिस्ट समाज कोई नहीं
कश्मीर के मुद्दे पर भी यह दिखाने का प्रयास किया जा रहा है कि दोनों के बीच मतभेद थे और अगर पटेल की चलती तो वे बल प्रयोग कर कश्मीर को भारत का हिस्सा बना लेते। आईए, हम देखें कि सरदार वल्लभभाई पटेल का इस मुद्दे पर क्या कहना था। बंबई में एक आमसभा को संबोधित करते हुए 30 अक्टूबर, 1948 को पटेल ने कहा, ‘‘कई लोग ऐसा मानते हैं कि अगर किसी क्षेत्र में मुसलमानों का बहुमत है तो वह पाकिस्तान का हिस्सा बनना चाहिए। वे इस बात पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि हम कश्मीर में क्यों हैं? इस प्रश्न का उत्तर बहुत सीधा सा है। हम कश्मीर में इसलिए हैं क्योंकि कश्मीर के लोग यह चाहते हैं कि हम वहां रहें। जिस क्षण हमें यह एहसास होगा कि कश्मीर के लोग यह नहीं चाहते कि हम उनकी ज़मीन पर रहें, उसके बाद हम एक मिनिट पर वहां नहीं रूकेंगे... हम कश्मीर के लोगों का दिल नहीं तोड़ सकते (द हिन्दुस्तान टाईम्स, 31 अक्टूबर, 1948)’’।
जैसा कि पटेल के पत्रों और संसद में दिए गए उनके वक्तव्यों से जाहिर है, इन दोनों महान नेताओं का आपस में जबरदस्त तालमेल और घनिष्ठता थी और वे एक-दूसरे का बहुत सम्मान करते थे। भाजपा का झूठा प्रचार कभी सफल नहीं होगा।
(अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)
(लेखक आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)


