भारतीय लोकतंत्र के लिए शर्मनाक दिन, सरकार की सरपरस्ती में हुई यह आतंकवादी कार्रवाई
भारतीय लोकतंत्र के लिए शर्मनाक दिन, सरकार की सरपरस्ती में हुई यह आतंकवादी कार्रवाई
लोकतंत्र को सबसे बड़ा खतरा आज अगर किसी से है तो वो है इन बाबाओ से
इस देश की त्रासदी यह है कि जिन लोगों के लिए आप काम करते हैं वो भी समय आने पर बाबाओं की अफीम के मज़े लेने चले जाते हैं और नतीजा है सिरसा।
राम रहीम एक निशानी है उस बड़ी बीमारी का, जिसका इलाज़ हमारे 'डाक्टर' करना नहीं चाहते।
इस देश के लोकतंत्र को सबसे बड़ा खतरा आज अगर किसी से है तो वो है इन बाबाओ से जिनका मूल उद्देश्य इस देश में मनुवाद की स्थापना कर मानववादी संविधान को ख़ारिज करना है। हमारे सभी नेता जिनकी लोकतंत्र में कोई आस्था नहीं, इन बाबाओं के जरिये जनता के वोट खरीदते हैं।
राम रहीम ने पिछले चुनावो में भाजपा को वोट देने की अपील की थी जिसके परिणामस्वरूप मनोहर लाल खट्टर की नकारा सरकार ने उन्हें 200 कारों के काफिले के साथ पूरे शहंशाही तरीके से कोर्ट में एंट्री दी और फिर उन्हें बलात्कारी होने के अपराधी घोषित करने के बाद बाकायदा राज्य सरकार के आथित्य में एक गेस्ट हाउस में रखा गया है।
इससे बड़ी शर्मनाक बात क्या होगी कि हिंदुत्व के प्रहरियो की जुबान पर ताले लगे हैं और जो कुछ बोल रहे हैं वो बातें इधर-उधर घुमा के बात कर रहे हैं।
संघियों को ये समझ लेना चाहिए कि उन्हें जनता को भड़काना आता है, उससे ज्यादा कुछ नहीं। शासन चलाने के लिए जो वैचारिक प्रतिबढता होनी चाहिए वो उनके पास नहीं है। संकीर्ण मानसिकता के सहारे आप भारत जैसे विशाल बहभाषी, बहुसांस्कृतिक देश को नहीं चला सकते। संघ न तो देश की विविधता का सम्मान करता है और न ही इसकी सेक्युलर विरासत का। उनके लिए हर एक बात में पाकिस्तान, वन्देमातरम और मुसलमान की बाइनरी चाहिए।
जो हरियाणा में हुआ क्या वो किसी आतंकवाद से कम था, जिसमें सरकार की पूर्ण भागीदारी थी। हरियाणा और चंडीगढ़ हाई कोर्ट ने सरकार को लगातार निर्देश दिया था कि वो सुरक्षा के पूर्ण इंतज़ाम करे, लेकिन खट्टर सरकार ने कुछ नहीं किया।
आज पंचकुला और सिरसा में व्यापक हिंसा के बाद, जिसमें अभी तक 32 से ज्यादा लोग मारे गए हैं और करोडो की सम्पति का नुक्सान हुआ, पंजाब और हरयाणा हाई कोर्ट ने इसकी वसूली राम रहीम सिंह से करने की बात कही है। क्या खट्टर सरकार की हिम्मत है कि वो हाई कोर्ट के आदेश पर तुरंत अमल करेगी ?
डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी अपने गुरू की रिहाई के लिए हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जा सकते हैं, लेकिन आज की हिंसा के लिए राम रहीम सिंह पर मुकदमा चलना चाहिए।
शर्मनाक यह है भाजपा के नेता साक्षी महाराज इसके लिए कोर्ट को दोषी ठहरा रहे हैं।
सवाल यह है कि ऐसे नेताओं के चलते जो बीज भाजपा और संघ देश में बो रहे हैं वो देश की सुरक्षा, एकता और अखंडता के लिए खतरा है।
भारत में एकता की गारंटी यहाँ का संविधान है और उसके अनुसार देश में लोगो को मानववाद, वैज्ञानिक चिंतन, पर्यावरण संरक्षण, महिलाओ का सम्मान, धर्मनिरपेक्षता हमारे राष्ट्रीय कर्त्तव्य हैं, लेकिन पिछले तीन वर्षो में तो ऐसा लगता है कि ये शब्द हमारी सरकार के लिए सबसे खतरनाक हो गए।
देशभक्ति, राष्ट्रवाद, गौसेवा, गंगा, पाकिस्तान की चर्चा करने वाले संघ के मठाधीश क्या हरियाणा और पंजाब में हुई हिंसा की कड़े शब्दों में निंदा करेंगे या नहीं ?
क्या अपने देश के लोगों के घर जला देना, पुलिस की गाड़ियां फूंकना, न्यायालय में हिंसा, मीडिया पर हमला, राष्ट्रीय सम्पति को नुक्सान पहुचना, राष्ट्रद्रोह नहीं है ?
कन्हैया कुमार और उमर खालिद पर देशद्रोह का मुक़दमा केवल उनके भाषणों के कारण लगा जो सरकार को पसंद नहीं थे। हरियाणा में भगाना के दलितों ने जाटो के हिंसा का विरोध किया तो उन पर देशद्रोह का मुकद्दमा लगा, लेकिन गुरमीत राम रहीम के गुंडों ने लोगों के घरों को जला दिया, आगजनी की, बसे फूंकी लेकिन वो 'देशभक्ति' है।
जो संघी और भाजपाई टीवी बहसों में बिना सोचे समझे किसी पर भी अनर्गल आरोप लगाने में विशेषज्ञ हैं, वे अभी राम रहीम के मामले में 'शांति' की अपील कर रहे हैं।
कोई झा साहेब टी वी पर कह रहे थे के जज को अपना निर्णय देर से देना चाहिए था, उन्हें कोर्ट परिसर से भीड़ हटवाने का आदेश देना चाहिए था। क्या हाई कोर्ट लगातार हरियाणा सरकार को आगाह नहीं कर रहा था ?
हम सभी शांति चाहते हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि राम रहीम पर मुकदमा न चले या उन्हें सजा न हो ? उन्हें न्याय प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा और उनके पास वकीलों की कोई कमी नहीं होगी क्योंकि पैसे की कोई कमी नहीं है। इसलिए उन पर लग रहे आरोपों को सुप्रीम कोर्ट तो सिद्ध होना पड़ेगा तभी अंतत वह अभियुक्त होंगे, लेकिन आज की हत्याओं और आगजनी के लिए राम रहीम पर और मुकदमे दर्ज होने चाहिए। हरियाणा की निक्कमी खट्टर सरकार का ये चेहरा दूसरी बार सामने आया है जब सरकार ने जानते हुए भी कोई कार्यवाही नहीं की।
आज के पूरे घटनाक्रम को एक दूसरे नज़रिए से भी देखने की जरुरत है। वो ये कि इस देश में ईमानदारी से काम करने पर आपको सजा मिलती है और वही लोग आपके साथ नहीं आते जिनके लिए आप लड़ते हैं।
जंतर मंतर में हमने आसाराम बापू और राम पाल के चेलो को बहस करते देखा है। अब तो वहां पर भी एक और नए बाबा के भक्तों की भीड़ होगी।
प्रश्न है कि देश में जब बच्चे अस्पताल में मरते हैं या कही अन्याय होता है तो कोई एक कदम बढाने को तैयार नहीं होता ? क्या इस देश का यही चरित्र है ? शर्मनाक है ?
क्या इस देश में वाकई में अब जनता के कोई प्रश्न बचे नहीं है, कि लोगो के पास बाबाओं के चक्कर लगाने और उन्हें पैसे देने का पूरा समय है, लेकिन अपनी समस्याओं पर बात करने के लिए राजनीतिज्ञों से सवाल करने का वक़्त नहीं है और जो सामाजिक संगठन या कार्यकर्त्ता कार्य कर रहे हैं उनके साथ सहयोग का तो मतलब ही नहीं है।
मतलब ये कि गाँव में स्कूल बनाने के लिए आपको कोई सहयोग नहीं मिलने वाला, लेकिन एक मंदिर बनाने के लिए लोग बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं।
भारतीय लोकतंत्र के लिए ये शर्मनाक दिन है जब एक राज्य सरकार ने न्यायालय के लगातार कहने के बाद भी कार्यवाही नहीं की। इस लिहाज से हरियाणा का प्रशाmन, मुख्यमंत्री नdयायपालिका की अवमानना के दोषी हैं। खट्टj को जितनी जल्दी रिटायर किया जाय उतना अच्छा। भाजपा को चाहिए कf साक्षी जैसोx को नियंत्रित करे नहीं तो जनता के सब्र का बांध टूट सकता है।
भक्तो से केवल यही कहना है कf किसी के भक्ति इतना न करो को होश खो दो। मैं तो सीधे कहता हूँ, कि पंजाब जहा से ग़दर आन्दोलन निकला, जहाँ से सिख गुरुओं ने ब्राह्मणवाद के विरुद्ध परचम लहराया, जहाँ से हजारो की संख्या में लोगो ने बाबा साहेब आंबेडकर के आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया, उस पंजाब में अकालियो ने धर्म की राजनीति की और उसके काउंटर में ब्राह्मणवादी ताकतों ने डेरो को आगे बढ़ाया।
आज डेरे पंजाब की राजनीति को नियंत्रण करने के एक बड़ा तरीके हो गए हैं। अब इन डेरो का असर हरयाणा में ज्यादा हो गया है इसलिए ये किसी भी जाति के हों लेकिन मनुवाद को ही मज़बूत कर रहे हैं।
आश्चर्य इस बात का है कि इतने भगवानो के होने के बावजूद भी हमारे लोग नए भगवानो की तलाश में हैं। बात साफ़ है कि लोगो को लगातार ठगने के बावजूद भी 'भगवानो' के 'चमत्कार' पर भरोसा है और यही हमारे लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की हार भी है, क्योंकि न हम उनमे वैज्ञानिक चिंतन विकसित कर पाए और न ही लोकतान्त्रिक व्यवहार की आदत। परिणाम आज साफ़ दिखाई दे रहे हैं, देश के लिए खतरे की घंटी है।
देश के राजनीतिक नेताओं को अब साफ़ तौर पर धर्म की धंधेबाजो से किनारा करना होगा और लोगो में राजनैतिक परिपक्वता लानी पड़ेगी। चमत्कारों के इंतज़ार में इस देश में बहुत भयानक त्रासदी लगातार आती रहेगी और हम लोग असहाय होकर इन घटनाक्रमों को देखते रहेंगे।


