मौके पर मौजूद पत्रकार ने सिमी के कथित आतंकवादियों के एनकाउंटर पर उठाए गंभीर सवाल
नई दिल्ली। मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में अपना एक बेहतर योगदान देने वाले पत्रकार प्रवीण दुबे ने भोपाल जेल से भागे आठ आतंकियों को मुठभेड़ में मार गिराने के दावे पर सवालिया निशान लगाए हैं।

प्रवीण दुबे ने घटना के कुछ अंश अपनी आंखों से देखे हैं। उन्होंने सवाल किया है कि जब पकड़ा जाना आसान था तो मारा क्यों गया। अगर आतंकी पकड़े जाते तो भागने की वजह साफ़ हो सकती थी।

प्रवीण दुबे ने अपनी फेसबुक टाइमलाइन पर स्टेटस अपडेट किया, जो सोशल मीडिया पर काफी शेयर हो रहा है।

रिहाई मंच ने भी भोपाल फर्जी मुठभेड़ कांड पर सवाल उठाते हुए कहा है कि बेगुनाहों के खून से नहीं भ्रष्टाचारी शिवराज सिंह की राजनीति नहीं छिपेगी।
प्रवीण दुबे की फेसबुक पोस्ट निम्नवत् है।
शिवराज जी...इस सिमी के कथित आतंकवादियों के एनकाउंटर पर कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है....मैं खुद मौके पर मौजूद था..सबसे पहले 5 किलोमीटर पैदल चलकर उस पहाड़ी पर पहुंचा, जहां उनकी लाशें थीं...आपके वीर जवानों ने ऐसे मारा कि अस्पताल तक पहुँचने लायक़ भी नहीं छोड़ा...

न...न आपके भक्त मुझे देशद्रोही ठहराएं, उससे पहले मैं स्पष्ट कर दूँ...मैं उनका पक्ष नहीं ले रहा....उन्हें शहीद या निर्दोष भी नहीं मान रहा हूँ लेकिन सर इनको जिंदा क्यों नहीं पकड़ा गया..?

मेरी एटीएस चीफ संजीव शमी से वहीं मौके पर बात हुई और मैंने पूछा कि क्यों सरेंडर कराने के बजाय सीधे मार दिया..?

उनका जवाब था कि वे भागने की कोशिश कर रहे थे और काबू में नहीं आ रहे थे, जबकि पहाड़ी के जिस छोर पर उनकी बॉडी मिली, वहां से वो एक कदम भी आगे जाते तो सैकड़ों फीट नीचे गिरकर भी मर सकते थे..

मैंने खुद अपनी एक जोड़ी नंगी आँखों से आपकी फ़ोर्स को इनके मारे जाने के बाद हवाई फायर करते देखा, ताकि खाली कारतूस के खोखे कहानी के किरदार बन सकें.. उनको जिंदा पकड़ना तो आसान था फिर भी उन्हें सीधा मार दिया...और तो और जिसके शरीर में थोड़ी सी भी जुंबिश दिखी उसे फिर गोली मारी गई...एकाध को तो जिंदा पकड लेते....उनसे मोटिव तो पूछा जाना चाहिए कि वो जेल से कौन सी बड़ी वारदात को अंजाम देने के लिए भागे थे..?

अब आपकी पुलिस कुछ भी कहानी गढ़ लेगी कि प्रधानमन्त्री निवास में बड़े हमले के लिए निकले थे या ओबामा के प्लेन को हाइजैक करने वाले थे, तो हमें मानना ही पड़ेगा क्यूंकि आठों तो मर गए... शिवराज जी सर्जिकल स्ट्राइक यदि आंतरिक सुरक्षा का भी फैशन बन गया तो मुश्किल होगी...

फिर कहूँगा कि एकाध को जिंदा रखना था भले ही इत्तू सा...सिर्फ उसके बयान होने तक....

चलिए कोई बात नहीं...मार दिया..मार दिया लेकिन इसके पीछे की कहानी ज़रूर अच्छी सुनाइयेगा, जब वक़्त मिले...कसम से दादी के गुज़रने के बाद कोई अच्छी कहानी सुने हुए सालों हो गए....

आपका भक्त