स्वयं को खत्म करने की चेतावनी दी आतंकवाद के नाम पर फंसाए गए व्यक्ति ने
स्वयं को खत्म करने की चेतावनी दी आतंकवाद के नाम पर फंसाए गए व्यक्ति ने
नई दिल्ली। पुलिस से मिल रही वेवजह धमकियों से तंग आकर आतंकवाद के नाम पर फंसाए गए पेशे से एक पत्रकार व्यक्ति ने स्वयं को खत्म करने की चेतावनी दी है।
कर्नाटक के आज़ाद नगर बेलगाम के रहने वाले इक़बाल अहमद जकाती ने वरिष्ठ अधिकारियों और मीडियाकर्मियों को भेजे अपने पत्र में पूरा हालात का बयान किया है। हम उनका पत्र हू-ब-हू बिना संपादन के प्रकाशित कर रहे हैं।–
बेवजह पुलिस की जानिब से मुकद्दमे और धमकिया....
————————————मेरा नाम इक़बाल अहमद जकाती है.और पिछले कई वर्षों से पुलिस जुर्म का शिकार हूँ पेशे से मै पत्रकार हूँ.इसके बावजूद मुझे बेइंतेहा तकलीफ दी जा रही है.अब हाल ही में मुझ पर मार्किट पुलिस थाना बेलगाम(क्राइम no ३और ४ )दर्ज किया हुआ है.मुझे इसकी एफआइआर माँगने से भी नहीं दी जा रही है.मै इनकी हररोज़ की परेशानी से इसकदर परेशान हूँ के अब मेरे पास सिवाय अपनीआप को ही खत्म करने के सिवाय कोई रास्ता नहीं.
मै वह बदनसीब शक्स हूँ जिस पर दहशतगर्दी के इलज़ाम में तक़रीबन चार साल तक बिलावजह जेल भेज दिया गया.मै बेलगाम में एक कार कंपनी में जॉब करता था. इसी अनुभव की वजह से मै शारजाह नौकरी के लिए चला गया मुझे बेलगाम पुलिस ने आतंकवादी बताकर घरों की तलाशी ली और हथियार होने की झूटी खबर बना कर मेरे माता पिता और छोटे बच्चों को तकलीफ दी. जिसकी वजह से मै शारजाह से मुंबई आयामुझे आते ही फ़ौरन गिरफ्तार कर लिया गया.मुंबई पुलिस ने तरह तरह की तकलीफे दी और रात भर देशद्रोही कह कर पीटते रहे.
बेलगाम पुलिस ने मुझे मुंबई से बेलगाम लाया.कभी मै ख्वाब में भी नहीं सोच सकता था ऐसी तकलीफे दी गयी.मुझे१७ दिन बेंगलुरु में नार्को,ब्रेनमैपिंग जैसे टेस्ट किये गए.सिमी संघटना का मुखिया भी इन्ही पुलिसवालों ने बना दिया.
बेलगाम में तीन और हुबली कोर्ट धमाके का मुकद्दमा मुझ पर दायर कर दिया मैंने पुलिसवालों को हाथ पाँव जोड़ कर कहा की मेरा इन मामलों से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं.लेकिन बेरहम पुलिस रात देर तक जानवरों की तर पिटती थी.हुबली कोर्ट धमाका का सरगना गिरफ्तार जैसी सुर्खिया न्यूज़ चैनल और अख़बारों ने भी दी.जलन की लम्बी दास्ताँ मेरे नाम पुलिसवालों ने रकम कर दी.
जेल में भी पुलिसवालों ने पीटा जब के कहा ये जाता है के जेल में नहीं पीटते.खैर तक़रीबन चार साल के ट्रायल के बाद अदालत ने बेकसूर कह कर रिहा कर दिया.घर पहुंचा तो घर का में सिवाय परेशानी के कुछ नहीं था.माँ बाप बीवी सभी बीमार थे.मोहोल्ले में कोई भी बात नहीं करता था.एक तरह का सोसिअल बायकॉट था.और इसी में मेरे पिताजी का देहांत हो गया..घर में अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए मैंने नौकरी तलाशनी शुरू की लेकिन किसी ने मुझे नहीं लिया इसलिए के मुझे लोगों ने आतंकवादी कहना शुरू किया था.बच्चे सड़क से गुज़रते तो उन्हें भी यही ताने सुनने पड़ते.
फिर मैंने अपनी आवाज़ को लोगों तक पहुँचाने के लिए अखबार निकालने का फैसल किया.मेरे भाईने मुझे कुछ पैसे दिए जिससे पैगाम इ इत्तेहाद के नाम से साप्ताहिक शुरू किया..पिछले एक साल से अखबार चला रहा हूँ.
पुलिस बेवजह मुझे बुला कर तंग करती रहती है.घंटों पुलिस ठाणे में बिठा दिया जाता है.शहर में कही पर भी कुछ हुआ तो मुझे बुला कर धमकी दी जाती है.आयजीपी भास्कर rao ने मुझे एनकाउंटर तक की धमकी दी.अखबार बंद करने को कहा.मुझे समझ में नहीं आता के आखिर मैंने क्या जुर्म किया है जो बार बार मुझे धमकिया और मुकद्दमे डालने की बात कही जाती है.इन्ही पुलिसवालों की वजह से मै समाजकार्य भी करना छोड़ दिया...आखिर मै करू तो क्या करू.....
दो दिन पहले मुझे ये इत्तेला मिली के मुझ पर फिर शांतता भंग के जुर्म में मार्किट पुलिस ठाणे में क्राइम न.३ और चार के तहत केस बुक किया हुआ है.एक पत्रकार को सिर्फ इसलिए के वो अल्पसंख्यांक समुदाय से है.अत्याचार कर सकते है क्या ?.कोई भी समाज का मुझे सप्पोर्ट नहीं मिल रहा है.लोग भी पुलिस से डरे हुए है.इतना जुल्म हो चूका है के अब मुझमे और सहने की हिम्मत नहीं है.पुलिस ठाणे में क्यों मुझे तकलीफ दी जा रही कहने पर कमिश्नर का हुक्म है कहा.मुझे एफआइआर की कापी भी नहीं दी सिर्फ बताया के मुकद्दमा दायर करने का हुक्म है.और दो चार दिन में हम समन भेज देंगे.
आखिर में मुझे ऐसा लग रहा है के यहा पर ज़ुल्म इसी तरह से होता रहेगा.हररोज़ . मरने से एक ही बार मर जाना बेहतर है.शायद इन्हे कुछ आराम मिले.......iqbalahmed jakati


