रेत और धूल के तूफ़ानों का वैश्विक संकट: सहारा से यूरोप तक कैसे उड़ते हैं अरबों टन कण?

कृषि और अर्थव्यवस्था को कैसे नुकसान पहुँचाते हैं धूल भरे तूफ़ान? क्या है WMO की चेतावनी और समाधान का रास्ता?;

By :  Hastakshep
Update: 2025-07-12 02:35 GMT

स्वास्थ्य पर रेत और धूल के तूफ़ानों का क्या असर

हर साल अरबों टन धूल क्यों उठती है वायुमंडल में?

  • रेत और धूल के तूफ़ानों से कौन-कौन से देश प्रभावित होते हैं?
  • सहारा से उड़कर यूरोप तक कैसे पहुँचती है धूल?
  • स्वास्थ्य पर रेत और धूल के तूफ़ानों का क्या असर
  • कृषि और अर्थव्यवस्था को कैसे नुकसान पहुँचाते हैं धूल भरे तूफ़ान?
  • क्या है WMO की चेतावनी और समाधान का रास्ता?

'रेत और धूल के तूफ़ानों से लड़ाई का दशक' क्यों ज़रूरी है?

क्या आप जानते हैं कि एक तूफ़ान जो सहारा से उठता है, वह यूरोप के आसमान को ढँक सकता है और सूर्य की रौशनी को छिपा सकता है। जी हाँ यह सच है। मौसम की इन घटनाओं का पर्यावरण के अलावा, मानव जीवन और अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर पड़ता है। WMO एयरबोर्न डस्ट बुलेटिन संख्या 9 - जुलाई 2025 में चेतावनी दी गई है कि रेत और धूल के तूफान मानव स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्थाओं और पारिस्थितिकी प्रणालियों पर बढ़ता प्रभाव डाल रहे हैं - जिससे 150 से अधिक देशों में लगभग 330 मिलियन लोग प्रभावित हो रहे हैं।...आइए इस संबंध में पढ़ते हैं संयुक्त राष्ट्र समाचार की यह खबर...

हर साल, दो अरब टन रेत व धूल समा जाती है वायुमंडल में, क्या हैं प्रभाव

11 जुलाई 2025 जलवायु और पर्यावरण

हमने धूल भरे तूफ़ान तो बहुत आते देखे हैं और जब वो हमारी आँखों व आसमान को धुँधला करते हैं तब हमें इनकी गम्भीरता का अहसास होता है. मगर ये सवाल अक्सर परेशान करता है कि ये रेत व धूल कहाँ से आते हैं और तूफ़ान ठंडा पड़ जाने के बाद वो कहाँ चले जाते हैं? तो इस सवाल का जवाब जलवायु वैज्ञानिकों के पास है. हर साल दो अरब टन से ज़्यादा रेत व धूल के महीन कण, वायुमंडल में दाख़िल होते हैं, जो किसी सीमा तक नहीं रुककर, पूरी दुनिया में फैलते हैं.

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) का अनुमान है कि दुनिया भर के 150 देशों में, 33 करोड़ से अधिक लोग रेत व धूल के तूफ़ानों से प्रभावित होते हैं.

इसके फलस्वरूप, प्रभावित लोगों को गम्भीर स्वास्थ्य समस्याएँ होती हैं, और कुछ लोगों की तो समय से पहले मौत हो जाती है. इसके अलावा, भारी आर्थिक नुक़सान भी होता है.

WMO की नई वार्षिक रिपोर्ट आगाह करती है कि वैसे तो वर्ष 2024 में धूल की मात्रा में मामूली कमी आई, लेकिन इसका मानव जीवन और अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभाव लगातार बढ़ रहा है.

एक गम्भीर संकट

WMO की महासचिव सेलेस्टे साउलो का कहना है, “रेत और धूल के तूफ़ान केवल खिड़कियाँ और आसमान को ही धुंधला नहीं बनाते. बल्कि ये लाखों लोगों के स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता को नुक़सान पहुँचाते हैं और करोड़ों डॉलर का नुक़सान करते है.”

हालाँकि रेत और धूल का उड़ना एक प्राकृतिक मौसमी प्रक्रिया है, लेकिन भूमि के क्षरण (degradation ) और जल प्रबन्धन की विफलताओं ने, हाल के दशकों में इन तूफानों की तीव्रता और दायरे को और बढ़ा दिया है.

धूल और रेत के कण, जो 80 प्रतिशत उत्तरी अफ़्रीका और मध्य पूर्व से आते हैं, हवा के साथ हज़ारों किलोमीटर दूर तक, सरहदों और महासागरों को पार कर लेते हैं.

WMO की वैज्ञानिक सारा बासार्ट ने जिनीवा में एक प्रेस वार्ता के दौरान कहा, “जो तूफ़ान सहारा में उठता है, वह यूरोप का आसमान धुँधला कर सकता है. जो धूल मध्य एशिया में उड़ती है, वह चीन की वायु गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है. वातावरण को कोई सीमा नहीं रोकती.”

2024 में, ठीक ऐसा ही हुआ. पश्चिमी सहारा की धूल और रेत उड़कर स्पेन के कैनरी द्वीपों तक पहुँच गई. वहीं, मंगोलिया में तेज़ हवाओं और सूखे के कारण, धूल बीजिंग और चीन के उत्तरी हिस्सों तक पहुँच गई थी.

बढ़ती चुनौती से स्वास्थ्य को भी ख़तरा

यूएन महासभा अध्यक्ष के फिलेमॉन यैंग की ओर से एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “ये चरम मौसम घटनाएँ केवल किसी एक इलाके़ की समस्या नहीं हैं. रेत और धूल के तूफ़ान आज के दौर की सबसे अनदेखी लेकिन दूरगामी वैश्विक चुनौतियों में से एक बनते जा रहे हैं.”

ये तूफ़ान सूर्य की रौशनी को छिपा देते हैं, जिससे ज़मीन और समुद्र दोनों के पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित होते हैं. ऐसी मौसम घटनाओं का, पर्यावरण के अलावा, मानव जीवन और अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर पड़ता है.

संयुक्त राष्ट्र के ‘रेत व धूल के तूफ़ानों से लड़ने वाले गठबन्धन’ की सह-अध्यक्ष रोला दाश्ती का कहना है, “पहले रेत व धूल के तूफ़ानों को मौसमी या स्थानीय समझा जाता था, लेकिन अब तूफ़ान एक स्थाई और बढ़ता हुआ वैश्विक ख़तरा बन गए हैं.”

वर्ष 2018 से 2022 के बीच, लगभग 3 अरब 80 करोड़ लोग धूल के कणों के सम्पर्क में आए.

धूल के ये कण हृदय सम्बन्धी बीमारियों को बढ़ावा देते हैं और कई अन्य गम्भीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनते हैं. जिसकी वजह से, हर साल लगभग 70 लाख लोग समय से पहले अपनी जान गँवा देते हैं, ख़ासकर वो लोग, जो पहले से ही कमज़ोर स्वास्थ्य या अन्य जोखिमों से जूझ रहे होते हैं.

महासभा अध्यक्ष ने इसे “भयावह मानवीय क़ीमत” बताया. आर्थिक दृष्टि से, ऐसे तूफ़ानों के कारण ग्रामीण समुदायों में फ़सल उत्पादन में 20 प्रतिशत तक कमी आ सकती है, जो समुदायों को भूख और ग़रीबी की ओर धकेल सकती है.

वर्ष 2024 में, केवल मध्य पूर्व और उत्तरी अफ़्रीका में ही, रेत और धूल के तूफ़ानों के कारण क्षेत्रीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को 2.5 प्रतिशत तक का आर्थिक नुक़सान हुआ.

वैश्विक सहयोग की ज़रूरत

WMO ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया कि वे जल्द चेतावनी प्रणाली और डेटा ट्रैकिंग में अधिक संसाधन निवेश करें.

WMO की दाश्ती का कहना है, “कोई भी देश, चाहे वह कितना भी तैयार क्यों न हो, इस चुनौती का अकेले सामना नहीं कर सकता. रेत और धूल के तूफ़ान सीमाओं से भी आगे जाने वाला एक ख़तरा हैं, जो समन्वित, बहु-क्षेत्रीय और बहुपक्षीय कार्रवाई की माँग करता है.”

महासभा अध्यक्ष ने, वर्ष 2025-2034 को ‘रेत और धूल के तूफ़ानों से लड़ाई का दशक’ घोषित किए जाने के साथ कहा कि यह समय, एक महत्वपूर्ण बदलाव का दौर साबित होना चाहिए.

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