.......जो राजनीति के तहत ...छपाक ...फ़िल्म के विरोध में शामिल हैं, अब वो लोग... महिलाओं के प्रति होने वाले किसी भी अपराध में मोमबत्तियाँ ना थामें ......??

ज़ुल्म हुआ है बस इतना ही तो कहा ख़िलाफ़त में

फ़ैसले तो नहीं दिये ..

मगर उफ़्फ़

यह औरतों से डरे हुए लोग कितना शोर कर रहे हैं...

छपाक ...से घबराए..

झुंड के झुंड बनाए

दिन रात रोने में लगे हैं ...

औरतों तुम अपने वजूद की खोखली ज़मीन से पूरी ताक़त से चिल्लाओ ...

कैसे भी करके इन आवाज़ों के शोर को छितराओ...

समझाओ देश को घबराए नहीं...

यह फ़िल्म-शिल्म ईपिका-शीपिका जैसी तमाम “रंडियां”<1> मिलकर भी,

किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं...

सो बेफ़िक्री से लगो सब अपने-अपने काम से...

फेंक सकते हैं तेज़ाब-शेजाब राजेश, नईम..

डॉ. कविता अरोरा (Dr. Kavita Arora) कवयित्री हैं, महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली समाजसेविका हैं और लोकगायिका हैं। समाजशास्त्र से परास्नातक और पीएचडी डॉ. कविता अरोरा शिक्षा प्राप्ति के समय से ही छात्र राजनीति से जुड़ी रही हैं। डॉ. कविता अरोरा (Dr. Kavita Arora) कवयित्री हैं, महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली समाजसेविका हैं और लोकगायिका हैं। समाजशास्त्र से परास्नातक और पीएचडी डॉ. कविता अरोरा शिक्षा प्राप्ति के समय से ही छात्र राजनीति से जुड़ी रही हैं।

किसी के नाम से...

बेखौफ रहो यहाँ हर मुद्दा यूं ही टाला जाता है..

सच को सच कहना सुनना अब देशद्रोह कहलाता है..

रेप-शेप आसी-बासी इक्टिम-विक्टिम सब भाड में...

धर्म को ताने फिर लोग अडे हैं

आका अपनी जुगाड़ में

डॉ. कविता अरोरा

<1> यह शब्द लेखिका का नहीं है, सोशल मीडिया पर धर्म ध्वजा लहराने वाले इस्तेमाल कर रहे हैं